तुम कभी थे सूर्य – चंद्रसेन विराट
तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये‚ थे कभी मुखपृष्ठ पर अब हाशियों तक आ गये। यवनिका...
तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये‚ थे कभी मुखपृष्ठ पर अब हाशियों तक आ गये। यवनिका...
कैसी है तुम्हारी हंसी? ऊंचाई से गिरती जलधारा सी? कल कल छल छल करती मैं चकित सी देखती रह गई...
उम्र बढ़ने पर हमें कुछ यूँ इशारा हो गया‚ हम सफ़र इस ज़िंदगी का और प्यारा हो गया। क्या हुआ...
कवि‚ कुछ ऐसी तान सुनाओ— जिससे उथल–पुथल मच जाये! एक हिलोर इधर से आये— एक हिलोर उधर से आये; प्राणों...
जा तेरे स्वप्न बड़े हों। भावना की गोद से उतर कर जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें। चाँद तारों सी अप्राप्य...
गुनगुनाओ तो सही तुम तनिक मुझको मैं तुम्हारे गीत का पहला चरण हूं। जब तलक अनुभूत सच की शब्द यात्रा...
जिस तट पर प्यास बुझाने से अपमान प्यार का होता हो‚ उस तट पर प्यास बुझाने से प्यासा मर जाना...
हिम गिरी के उत्तंग शिखर पर‚ बैठ शिला की शीतल छांह‚ एक पुरुष‚ भीगे नयनों से‚ देख रहा था प्र्रलय...
कौन यह तूफान रोके! हिल उठे जिनसे समुंदर‚ हिल उठे दिशि और अंबर हिल उठे जिससे धरा के! वन सघन...
बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी। गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी॥ चिंता-रहित खेलना-खाना...
कहां ढूंढें नदी सा बहता हुआ दिन वह गगन भर धूप‚ सेनुर और सोना धार का दरपन‚ भंवर का फूल...
नर हो, न निराश करो मन को कुछ काम करो, कुछ काम करो जग में रह कर कुछ नाम करो...