धुंधली नदी में – धर्मवीर भारती
आज मैं भी नहीं अकेला हूं शाम है‚ दर्द है‚ उदासी है। एक खामोश सांझ–तारा है दूर छूटा हुआ किनारा...
आज मैं भी नहीं अकेला हूं शाम है‚ दर्द है‚ उदासी है। एक खामोश सांझ–तारा है दूर छूटा हुआ किनारा...
चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना! जाग तुझको दूर जाना! अचल हिमगिरि के हॄदय में आज चाहे कम्प...
जब-जब सिर उठाया अपनी चौखट से टकराया। मस्तक पर लगी चोट, मन में उठी कचोट, अपनी ही भूल पर मैं,...
जीवन के रेतीले तट पर‚ मैं आँधी तूफा.न लिये हूँ। अंतर में गुमनाम पीर है गहरे तम से भी है...
जीवन कभी सूना न हो कुछ मैं कहूं‚ कुछ तुम कहो। तुमने मुझे अपना लिया यह तो बड़ा अच्छा किया...
क्या फिर वही होगा जिसका हमें डर है? क्या वह नहीं होगा जिसकी हमें आशा थी? क्या हम उसी तरह...
तुमुल कोलाहल कलह में, मैं हृदय की बात रे मन। विकल हो कर नित्य चंचल खोजती जब नींद के पल...
मत कहो आकाश में कोहरा घना है, यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है। सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से,...
गांव में मैैं गीत के आया‚ मुझे ऐसा लगा‚ मेरा खरापन शेष है। वृक्ष था मैं एक‚ पतझड़ में रहा...
निर्मम कुम्हार की थापी से कितने रूपों में कुटी-पिटी, हर बार बिखेरी गई, किंतु मिट्टी फिर भी तो नहीं मिटी।...
आया प्रभात चंदा जग से कर चुका बात गिन गिन जिनको थी कटी किसी की दीर्घ रात अनगिन किरणों की...
प्राण तुम्हारी पदरज फूली मुझको कंचन हुई तुम्हारे चंचल चरणों की यह धूली! आईं थीं तो जाना भी था– फिर...