पढिए…पहाड़ चीर कर सोना निकालने वाली “मशरूम लेडी” की कहानी !
जब इरादा बुलन्द हो और निरन्तर प्रयास किए जाएँ तो सफलता आपके कदमों में होती है ! आज बात उत्तराखंड की दिव्या रावत की जिन्होंने पत्थर चीर कर सोना निकालने सरीखे अपने कार्य से सबको चकित कर दिया ! पहाड़ी इलाकों में मशरूम की खेती करना कोई आसान कार्य नहीं लेकिन दिव्या आज मशरूम की बड़ी खेप तैयार कर रही हैं ! आईए जानते हैं उनके और उनके कार्य के बारे में…
उत्तराखंड की रहने वाली दिव्या रावत ने एमिटी यूनिवर्सिटी से पढाई की हैं ! पढाई के बाद उन्हें एक कम्पनी में 25000 मासिक की नौकरी भी मिल गई लेकिन दिव्या को वहाँ सीमित कहाँ रहना था , उन्हें तो सफलता की एक ऐसी इबारत लिखनी थी जिससे अन्य लोग भी प्रेरित हो सकें ! इसलिए वह नौकरी छोड़ कर गाँव चली आईं ! दरअसल दिव्या को बचपन से हीं खेती में गहरी रूचि थी ! उन्होंने मशरूम की खेती करने की सोंची और वर्ष 2013 में उन्होंने बेहद छोटी सी जगह में लगभग 100 बैग मशरूम उत्पादन के साथ एक छोटा कारोबार शुरू किया ! दिलचस्प बात यह है कि दिव्या ने यह उत्पादन पहाड़ों पर पुराने पड़े मकानों में शुरू किया !
इतनी मेहनत के बाद अब उन्हें अपने उत्पादों को एक पहचान देनी थी इसलिए दिव्या ने खुद की एक कम्पनी खोली जिसका नाम उन्होंने “सौम्य ब्रांड” रखा ! देश के कई हिस्सों के साथ विदेशों में भी इनके उत्पाद लोगों को बेहद भाने लगे जिससे आज दिव्या विदेशों में भी अच्छी मात्रा में मशरूम निर्यात कर रही है ! दिव्या जब एक सफल कारोबारी बन चुकी थीं फिर भी उनके कदम यहां रूकने वाले नहीं थे ! उन्होंने मशरूम की खेती के लिए आवश्यक बृहद बुनियादी ढाँचे को सरल करने के प्रयास किए और सफलता भी पाई ! दिव्या रावत ने उस ढाँचे में इस तरह सकारात्मक परिवर्तन किए कि अब कोई भी व्यक्ति इसे 5-10 हजार रूपये में शुरू कर सकता है !
दिव्या रावत अपने कार्य के बारे में कहती हैं “मैं कोई बड़ा कार्य नहीं कर रही हूँ ! मैं बस एक सामाजिक दायित्व का निर्वहन कर रही जिससे जीविका और रोजगार जैसे सामाजिक चुनौतियों से मुकाबला हो सके” !
दिव्या मशरूम की खेती के अतिरिक्त हिमालय क्षेत्रों में पाई जाने वाली दुर्लभ जड़ी-बूटी पर भी काम करना शुरू कर दिया ! इन जड़ी-बूटीयों पर रिसर्च करने के लिए उन्होंने मोथरोवाला में 1 करोड़ से भी अधिक लागत से एक लैब बनवाई हैं ! इसमें कीड़ा जड़ी के विभिन्न उत्पादों को तैयार किया जाता है !
युवाओं को नौकरी के लिए बाहर जाने और पलायन करने के बारे में उनका मानना है कि युवाओं को राजगार हेतु इधर-उधर भटकने से कहीं अच्छा है कि उन्हें खुद से कोई कारोबार शुरू करने चाहिए ! ऐसा करके वे खुद की आय तो कर हीं पाएँगे साथ हीं कई जरूरतमन्दों को भी कार्य दे पाएँगे !
बेहद दुर्लभ पहाड़ी क्षेत्र में मशरूम की खेत कर बृहद मात्रा में मशरूम उत्पादन करने वाली दिव्या रावत को “मशरूम लेडी” भी कहा जाता है ! इनके द्वारा उत्पादन किए पदार्थों की मांग अच्छी खासी है और वे इसे विदेशों में भी निर्यात करती हैं !
दिव्या रावत जी ने कम संसाधनों में शुरू किए कारोबार को एक बृहद स्तर पर ले जाकर युवाओं और कृषकों में प्रेरणा का संचार किया है जो यह साबित करता है कि परिश्रम का फल मीठा होता है ! दिव्या रावत जी और उनके कार्यों की सराहना करता है !