भारत की पहली महिला IAS अफ़सर की कहानी, जिन्होंने सिस्टम से लड़कर एक स्वर्णिम इतिहास लिखा
आजादी के बाद भारत में महिलाओं को भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) समेत किसी भी तरह की नागरिक सेवा में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं थी। हालाँकि देश के भीतर प्रतिभाशाली महिलाओं की कोई कमी नहीं थी और इस सेवा से उन्हें वंचित रखना व्यवस्था की एक बहुत बड़ी खामी थी। आजादी के एक वर्ष बाद ही, महिलाओं को नागरिक सेवा में पात्र घोषित कर दिया गया।
यह वह दौर था, जब देश में हर तरफ पितृसत्ता हावी थी और महिलाओं को कदम-कदम पर इससे जूझना पड़ रहा था। उस दौर में एक महिला को आईएएस ऑफ़िसर के रूप में देखने के लिए कोई तैयार नहीं था। लेकिन केरल की अन्ना जॉर्ज नाम की एक साधारण लड़की अपने लक्ष्य को साधने में जुटी हुईं थी।
साल 1951 में जब यूपीएससी की परीक्षा के परिणाम घोषित हुए, तब सफल होने वाले छात्रों की सूची में एक महिला का नाम भी था। वह महिला इतिहास के पन्नों में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिख चुकी थी। लेकिन उनके लिए चुनौती अभी ख़त्म नहीं हुई थी। संघ लोक सेवा आयोग द्वारा संचालित आर एन बनर्जी और चार आईसीएस अधिकारियों के शामिल साक्षात्कार बोर्ड में उन्हें काफी हतोत्साहित किया गया और उन्हें विदेश सेवा और केन्द्रीय सेवाओं को चुनने हेतु कहा गया, किन्तु अन्ना बिना हतोत्साहित हुए मद्रास काडर को चुना और पहले प्रयास में ही उसी वर्ष उनका चयन एक आईएएस ऑफ़िसर के रूप में हुआ।
घुड़सवारी और शूटिंग की ट्रेनिंग से पूर्ण अन्ना ने किसी मामले में अपने आप को एक पुरुष के मुकाबले कमतर नहीं माना। उन्होंने कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी एक बेहतर प्रशासनिक अफ़सर के रूप में ख़ुद को साबित किया।
उनकी मानें तो उनके किसी भी फ़ैसले को अच्छा नहीं माना जाता था और लोगों को लगता था कि वो विफ़ल हो जायेंगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, हर मोर्चे पर वह सफल रहीं
अपने करियर में उन्होंने कई महत्वपूर्ण फ़ैसले लिए, जिनके लिए उनकी हमेशा सराहना की जाती है। साथ ही, 1982 एशियाड परियोजना में उन्होंने राजीव गांधी की सहायता की, पैर में चोट होने के बावजूद वो खाद्य उत्पादन पैटर्न का अध्ययन करने के लिए आठ राज्यों की यात्रा पर इंदिरा गांधी के साथ रहीं। उन्होंने अपने कार्यकाल में 7 अलग-अलग मुख्यमंत्रियों के साथ शानदार तरीके से काम किया।
उन्हें 1979 में भारत सरकार द्वारा प्रशासकीय सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य हेतु पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। आज अन्ना हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उन्होंने जो कीर्तिमान स्थापित किया वह हमेशा देश की लाखों-करोड़ों बेटियों के लिए प्रेरणा के रूप में देखा जाएगा। हर कदम पर चुनौतियों से लड़ कर खुद को एक काबिल ऑफ़िसर के रूप में स्थापित कर अन्ना ने वाक़ई में एक स्वर्णिम इतिहास लिखा।