सेवा में भारतमाता की
सेवामें भारतमाता की, अर्पित यह जीवन;
है अपना अर्पित यह जीवन (२)
काया ही आधार प्रथम है, पूर्ण स्वस्थ और बने सबल
मर्यादित आहार विहारो, नियम बद्ध व्यायाम अटल
सुंदर सक्षम रूप निखरे (२)
करे कठिनतम श्रम, निकाले माटी से कंचन
अपनी चाहत अपनी सुविधा, ना कोई इच्छा पाले
सदा रहे कर्तव्य परायण, ऐसा ही दृढ़ मन ढाले
सुख दुःख में ना विचलीत होता (२)
साधक ध्येय मगन, निशंकी रहता नित्य प्रसन्न
विवेक जागे अहम तिरोहीत, विराट का ही कर पूजन
समरस भाव हिलोरे लेता, सहज सभी में अपनापन
तेजस्वी संकल्प प्रखर हो (२)
विचरे मुक्त गगन, सुमंगल नवयुग करे सृजन
हर क्षण अपने परम साध्य का, चिंतन मंथन सतत चले
आलोकित करने जग सारा, तिल तिल दीपक स्वयं जले
जय जय माँ की पुन:प्रतिष्ठा (२)
जगद्गुरू आसान, बिराजे युग युग करें नमन