प्रेरणा : खुद के बच्चों को सुनामी में खोने के बाद अब अनाथ बच्चों की ज़िन्दगी संवार रही हैं

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मातृत्व को दुनिया में सबसे उपर का दर्जा हासिल है ! आखिर मातृत्व ममता और दया की प्रतिमूर्ति जो होती है ! तमिलनाडु की रहने वाली चूड़ामणि मातृत्व की एक ऐसी हीं प्रेरणा बन चुकी हैं ! वे अपने मातृत्व के साये में कई अनाथों की जिंदगी सँवार रही है !

अनाथ जिनका इस दुनिया में कोई नहीं होता है, बिल्कुल बेसहारा , लाचार और कमजोर ! ऐसे में उनके पोषण की जिम्मेदारी चूड़ामणि अपने पति परमेश्वरन् के साथ मिलकर निभा रही हैं !

चूड़ामणि भी आम लोगों की तरह अपने पति और बच्चों के साथ जिंदगी बिता रही थीं ! 26 दिसम्बर 2004 को दबे पाँव 9.1 की तीव्रता वाले आए भूकम्प और सुनामी ने इनकी हँसती-खेलती जिंदगी को तबाह कर दिया ! उनके तीनों बच्चे सुनामी की भेंट चढ गए ! इस दर्दनाक घटना से बिल्कुल टूट चुकीं वह दम्पति आत्महत्या तक के बारे सोंचने लगा था , और सोंचता भी क्यूँ ना आखिर उनकी उम्मीदों के तीनों जगमगाते सितारे बुझ जो गए थे ! अपनी गहरी पीड़ा को सीने में दबाकर वे शहर छोड़कर गाँव चले गए ! जाने के क्रम में रास्ते में उन्होंने सड़कों पर कई अनाथ बच्चों को इधर-उधर भटकते देखा जो अपने माता-पिता का साया उठ जाने के बाद बेसहारा हो चले थे ! उन बच्चों की बिखरती हुई जिंदगी को देखकर उनके अंदर उन बच्चों के लिए कुछ करने का विचार आया और चूड़ामणि व उनके पति परमेश्वरन ने आत्महत्या का विचार त्याग दिया और उन बच्चों की जिंदगी सँवारने का फैसला किया !

ऐसे शुरू हुआ अनाथों के परवरिश का कार्य

चूड़ामणि कहती हैं “हमने कई बच्चों को सड़क किनारे देखा जो बिल्कुल असहाय थे , जिनके पास ना तो रहने को घर था और ना हीं उनके माता-पिता थे ! मैंने सोंचा कि मेरे बच्चे तो अब रहे नहीं तो क्यों ना इन बच्चों को आश्रय दिया जाए” ! शुरूआत में उन्होंने चार अनाथ बच्चों को घर ले आए जिसमें दो लड़के और दो लड़कियाँ थीं ! अपने घर को हीं अनाथाश्रम बना दिया जिसका नाम उन्होंने ‘नांबिक्केई’ दिया ! तमिल भाषा के इस शब्द का अर्थ होता है ‘उम्मीद’ ! अनाथ बच्चों की उम्मीद बनकर उन्हें परवरिश करने जैसे कार्य से यह संस्था अपने नाम को सिद्ध करने लगी ! धीरे-धीरे उन्होंने अपने अनाथाश्रम का विस्तार शुरू किया , दो अलग-अलग मकान बनवाए ! एक लड़कों और दूसरा लकड़ियों के लिए ! तत्पश्चात कुछ और अनाथ बच्चों को इस अनाथाश्रम में ले आए जिससे उनके इस अनाथालय में बच्चों की संख्या बढकर 36 हो गई ! सूनामी के बाद अब तक लगभग 50 बच्चों की जिंदगी सँवारती चूड़ामणि और उनके पति परमेश्वरन सभी के लिए प्रेरणा हैं !

परवरिश के साथ शिक्षा प्रदान

अपने अनाथाश्रम में बच्चों की परवरिश पर खासा ध्यान देती हैं चूड़ामणि ! शिक्षा और कौशल के विकास पर बच्चों का ध्यान केन्द्रित किया जाता है ! यहाँ बच्चों को शुरूआती पढाई , माध्यमिक पढाई के बाद उच्च शिक्षा भी दिलाई जाती है ताकि वे अपने सपनों को पूरा कर सकें ! उस आश्रम के कई बच्चे इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी जैसे तकनीकी शिक्षा भी ग्रहण कर रहे हैं ! कई बच्चे बहुराष्ट्रीय कंपनियों में कार्य कर रहे हैं तो कई उस अनाथाश्रम में अपनी सेवा दे रहे हैं ! बच्चों के समुचित विकास पर ध्यान केन्द्रित कर उन्हें काबिल बनाया जाता है !

अनाथों के लिए जीवन समर्पित

बेसहारे बच्चों का सहारा , नाउम्मीदी में भी उम्मीद बनकर उभरे चूड़ामणि अनाथ बच्चों की परवरिश , पढाई और उन्हें एक बेहतरीन इंसान बनाने के कार्य को अपनी जिंदगी का लक्ष्य बना चुकी हैं ! वे अपनी जिंदगी का हर क्षण उन अनाथ बच्चों को समर्पित कर देना चाहती हैं !

चूड़ामणि और उनके पति कहते हैं कि “हमारा यह मिशन आजीवन जारी रहेगा क्योंकि हम अपने बच्चों को सम्मान देना चाहते हैं” !

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