इंडियन आर्मी लेफ्टिनेंट नरेंद्र – 14 साल की उम्र में पिता को खोया, भाई ने मजदूरी करके पढ़ाया
हरियाणा में मिट्ठापुर के नरेंद्र सिंह की कहानी कई युवाओं के लिए प्रेरणा बन सकती है। 26 साल के नरेंद्र सिंह संघर्ष का लंबा रास्ता चलकर भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर काबिज हुए हैं। उन्होंने 14 साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया था। बड़े भाई की उम्र भी तब 16 साल ही थी। नरेंद्र की पढ़ाई चलती रहे, इसलिए बड़े भाई ने 10वीं की पढ़ाई बीच में छोड़ दी और मेहनत-मजदूरी करने लगे। जो कमाई होती उसका बड़ा हिस्सा नरेंद्र के लिए खर्च किया जाता।
पिता चल बसे, भाई ने पढ़ाई छोड़ी और घर संभाला
नरेंद्र बताते हैं कि, ”मेरी 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई समलेहड़ी के गर्वमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल से हुई। भाई टैंपो चलाते थे। उन्होंने मुझे आगे की पढ़ाई करने के लिए पंजाब टेक्नीकल यूनिवर्सिटी जालंधर भेजा, जहां मैंने बीटेक एयरोनॉटिकल में एडमिशन लिया। वहां मुझे स्कॉलरशिप भी मिली। 2018 में वहां से 81% मार्क्स के साथ बीटेक पास की। उसके बाद घर आकर परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगा। अम्बाला में बतौर ग्रामीण डाक सेवक भी काम किया। इस सबके साथ-साथ डिफेंस के एग्माज की तैयारी भी करता रहता।”
भाई टैंपो चलाकर कमाते थे, मेरी पढ़ाई चलती रही
बकौल नरेंद्र, ”साल 2018 से 2020 तक मैंने 12 बार इंडियन आर्मी और इंडियन नेवी में अलग-अलग पोस्ट्स के लिए एग्जाम दिया। मैं जब इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स कर रहा था, तो वहां मुझे रिटायर्ड कर्नल राज किशन गुप्ता के बारे में पता चला। मैंने एक दिन उनसे संपर्क किया और उन्हें बताया कि, मेरे पिता नहीं हैं। भाई ही अपना परिवार संभालते हैं और मेरी पढ़ाई करवा रहे हैं। मैं डिफेंस के लिए तैयारी कर रहा हूं। तब रिटायर्ड कर्नल राज किशन गुप्ता ने मेंटर की तरह मुझे गाइड किया।”
12वीं बार में इंडियन मिलिट्री में सिलेक्शन हुआ
नरेंद्र ने कहा, ”साल 2020 में जब मैंने 12वीं बार में पीजीसी का इंटरव्यू दिया तो इंडियन मिलिट्री एकेडमी में सिलेक्शन हो गया। उसी साल जुलाई में मेरी ट्रेनिंग शुरू हुई। उसके बाद इस साल 2021 में 12 जून को मेरा लेफ्टिनेंट रैंक पर सिलेक्शन हुआ। उसके बाद परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मां, भाई और भाभी सबने उत्साहवर्द्धन किया।
संघर्ष जितना होगा, सफलता उससे भी बड़ी होगी
नरेंद्र अपनी कामयाबी का श्रेय बड़े भाई और अपनी मेहनत को देते हैं। उन्होंने कहा कि, मेरा संघर्ष बहुत बड़ा था, मगर सफलता उससे भी बड़ी मिली है। नरेंद्र के परिवार में मां भूपिंदर कौर, भाई ओंकार सिंह, भाभी राजविंदर कौर और भतीजे एकम हैं।