51 वर्षों में BSF में बनने वाली पहली महिला लड़ाकू अफसर :तनु श्री पारीक

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हम में से अधिकतर लोग समाज के द्वारा बनाई गई परिभाषा को मानकर अपनी जिंदगी के चाल ढाल बदल लेते हैं, समाज के द्वारा पहले से ही लगाई गई पाबंदियों में रहते हुए हम अपनी जिंदगी को संकुचित कर लेते हैं । लेकिन कुछ ऐसे लोग होते हैं जो खुद की जिंदगी की लिखावट अपनी काबिलियत के हिसाब से करते हैं और वही लोग आगे चलकर समाज को एक नया उदाहरण देते हैं।
तनु श्री पारीक एक ऐसा ही नाम है जिन्होंने समाज की परवाह किए बिना खुद के सपने और काबिलियत को अधिक महत्व दिया और पूरे अवाम के लिए एक प्रेरणा बन गई

। बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स में एक लड़ाकू ऑफिसर बन कर तनु ने यह साबित कर दिया की महिलाएं मानसिक और शारीरिक रूप से किसी भी तरीके से किसी मर्द से कम नहीं है। पिछले 51 सालों से बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स में लड़ाकू ऑफिसर की भर्ती नहीं ली गई थी लेकिन तनु ने सारे परंपराओं को तोड़ते हुए 2016 में बीएसएफ के साथ ही पूरे समाज के लिए एक उदाहरण पेश किया।

वर्ष 2014 में यूपीएससी की परीक्षा पास करने के बाद तनु ने बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स जॉइन किया
2016 में वह ऐसी पहली महिला ऑफिसर बनी जिनको लड़ाकू विभाग में चुना गया ।
साल 2017 में देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह के द्वारा इनके कंधे पर रैंक लगाया गया और बतौर ऑफिसर इनका शपथ ग्रहण पूरा हुआ

अपनी बचपन के बारे में बात करते हुए तनु बताती हैं की बचपन से ही उन्हें खेलकूद में अधिक रुचि थी । अपने स्कूल के दिनों वह एक बैडमिंटन खिलाड़ी रह चुकी हैं और इन्हें जूडो कराटे भी बहुत पसंद है । इसी दौरान तनु ने एनसीसी ज्वाइन किया और इन्हें फौज के तौर तरीके भी सीखने को मिले । आम लड़कियों की तरह अपने करियर को एक मोड़ देने के लिए तनु ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की लेकिन उन्हें बहुत जल्द यह महसूस हुआ कि वह मशीनों के साथ अपनी जिंदगी नहीं बिता सकती हैं । यद्यपि इंजीनियरिंग की पढ़ाई खत्म होने के बाद ही टाटा कंसलटेंसी सर्विस में उनका प्लेसमेंट हो गया।

वर्ष 2010 में मैं एक एनसीसी कैडेट थी , तब मैं पहली बार वर्दी पहनी तो मुझे एक अलग तरह की शक्ति का एहसास हुआ और तभी मैंने निर्णय लिया कि मुझे आगे चलकर खाकी पहनना है क्योंकि खाकी पहनने से एक अलग तरीके का एहसास होता था।

तनु पारीक का जन्म बीकानेर के एक गांव में हुआ था इनके पिता मवेशियों के डॉक्टर थे . उनके परिवार की खास बात यह थी कि तनु को कभी भी रोका नहीं गया, अपना निर्णय लेने के लिए वह आजाद थी । यहां तक की इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद भी तनु ने जब फौज जॉइन करने का निर्णय लिया तो इनके घर वालों ने इनका भरपूर साथ दिया।

बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स में चुनाव के बाद तनु अपने संघर्षों के बारे में बताती हैं, जब टेकनपुर में इनकी ट्रेनिंग शुरू हुई तब इनके साथ पूरे मैच में 67 पुरुष थे और ये अकेली महिला थी। तनु के लिए यह पहला अनुभव था जब इन्हें इतने पुरुषों के साथ एक ट्रेनिंग लेनी थी । लेकिन कुछ दिनों के बाद ही इन्होंने सोचना छोड़ दिया की हमारी पहचान लिंग के आधार पर है । उन्होंने खुद को पुरुष और महिला के आधार पर जांचना छोड़ दिया और एक बेहतरीन ट्रेनिंग लेने के साथ ही पासिंग आउट परेड में अपने 67 साथियों को उन्होंने नेतृत्व किया।

25 मार्च 2017 को अपने पास आउट के साथ ही तनु पारीक ने साबित कर दिया की महिलाएं किसी भी तरह से कमजोर नहीं है और वह जिंदगी के संघर्ष को लड़ने और जीतने के लिए तैयार हैं, जरूरत है तो खुद को साबित करने की।

तनु पारीक के जज्बे और संघर्ष को नमन करता है और इनके भविष्य की शुभकामनाएं देता है ।

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