वाराह स्तुति || Varah Stuti

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कूर्मपुराण के पूर्वभाग षष्ठोऽध्याय में ऋर्षिगणों द्वारा पृथ्वी के उद्धार के लिए भगवान् श्रीवाराह की सुंदर स्तुति का वर्णन है। इसके नित्य पाठ से जीवन में कभी भी चोरी आदि का भय नहीं रहता।

जल क्रीड़ाओं में रुचि रखने वाले वराह के रूप को धारण किया, वह सुन्दर रूप दूसरों द्वारा मन से भी पराजित करना शक्य नहीं था। वह वाणीरूप होने के कारण ब्रह्मसंज्ञक था। पृथिवी का उद्धार करने के लिए रसातल में प्रवेश करके अपने दीर्घ दाढ से उसे ऊपर उठा लिया। इसी से वे आत्माधार तथा धराधर भी कहलाये। वाराह के दंष्ट्राग्न भाग पर अवस्थित पृथ्वी को देखकर सिद्ध एवं ब्रहार्षिगण, प्रसिद्ध पौरुष वाले जनलोक में स्थित हरि की स्तुति करने लगे।

वाराह स्तुति

ऋषय ऊचुः ।

नमस्ते देवदेवाय ब्रह्मणे परमेष्ठिने ।

पुरुषाय पुराणाय शाश्वताय जयाय च ।। ६.११

ऋषियों ने कहा- देवों के देव, ब्रह्मस्वरूप, परमेष्ठी (परम पद में स्थित रहने वाले) पुराण पुरुष, शाश्वत और जयस्वरूप, आपके लिए नमस्कार है।

नमः स्वयंभुवे तुभ्यं स्त्रष्ट्रे सर्वार्थवेदिने ।

नमो हिरण्यगर्भाय वेधसे परमात्मने ।। ६.१२

स्वयंभू, सृष्टि रचयिता और सर्वार्थ को जानने वाले आपको नमस्कार है। हिरण्यगर्भ, वेधा और परमात्मा को नमस्कार है।

नमस्ते वासुदेवाय विष्णवे विश्वयोनये ।

नारायणाय देवाय देवानां हितकारिणे ।। ६.१३

वासुदेव, विष्णु, विश्वयोनि, नारायण, देवों के हितकारी देवरूप के लिए नमस्कार है।

नमोऽस्तु ते चतुर्वक्त्रे शार्ङ्गचक्रासिधारिणे ।

सर्वभूतात्मभूताय कूटस्थाय नमो नमः ।। ६.१४

चतुर्मुख, शार्ङ्ग, चक्र तथा असि धारण करने वाले आपको नमस्कार है। समस्तभूतों के आत्मस्वरूप तथा कूटस्थ को नमस्कार है।

नमो वेदरहस्याय नमस्ते वेदयोनये ।

नमो बुद्धाय शुद्धाय नमस्ते ज्ञानरूपिणे ।। ६.१५

वेदों के रहस्यरूप के लिए नमस्कार है। वेदयोनि को नमस्कार है। बुद्ध और शुद्ध को नमस्कार है। ज्ञानरूपी के लिए नमस्कार है।

नमोऽस्त्वानन्दरूपाय साक्षिणे जगतां नमः ।

अनन्तायाप्रमेयाय कार्याय करणाय च ।। ६.१६

आनन्दरूप और जगत् के साक्षीरूप को नमस्कार है। अनन्त, अप्रमेय, कार्य तथा कारणरूप को नमस्कार है।

नमस्ते पञ्चभूताय पञ्चभूतात्मने नमः ।

नमो मूलप्रकृतये मायारूपाय ते नमः ।। ६.१७

पञ्चभूतरूप आपको नमस्कार। पञ्चभूतात्मा को, मूलप्रकृतिरूप मायारूप आपको नमस्कार है।

नमोऽस्तु ते वराहाय नमस्ते मत्स्यरूपिणे ।

नमो योगाधिगम्याय नमः सकर्षणाय ते ।। ६.१८

वराह रूपधारी को नमस्कार है। मत्स्यरूपी को नमस्कार है। योग के द्वारा ही जानने योग्य को नमस्कार है तथा संकर्षण! आपको नमस्कार है।

नमस्त्रिमूर्तये तुभ्यं त्रिधाम्ने दिव्यतेजसे ।

नमः सिद्धाय पूज्याय गुणत्रयविभागिने ।। ६.१९

त्रिमूर्ति के लिए नमस्कार है। दिव्य तेज वाले विधामा, सिद्ध, पूज्य और तीनों गुणों का विभाग करने वाले आपको नमस्कार है।

तमोऽस्त्वादित्यवर्णाय नमस्ते पद्मयोनये ।

नमोऽमूर्त्ताय मूर्ताय माधवाय नमो नमः ।। ६.२०

आदित्यरूप को नमस्कार है। पद्मयोनि को नमस्कार है। अमूर्त, मूर्त तथा माधव को नमस्कार है।

त्वयैव सृष्टमखिलं त्वय्येव लयमेष्यति ।

पालयैतज्जगत् सर्वं त्राता त्वं शरणं गतिः ।। ६.२१

आपने ही अखिल जगत् को सृष्टि की है। आप में ही सकल विश्व स्थित है। आप इस सम्पूर्ण जगत् का पालन करें। आप ही रक्षक एवं शरणागति हैं।

सनकादि मुनियों द्वारा इस प्रकार स्तुति किये जाने पर वराह शरीरधारी भगवान् विष्णु उनसे अति प्रसन्न हुए।

श्रीकूर्मपुराणे षट्साहस्त्र्यां संहितायां पूर्वविभागे षष्ठोऽध्यायः।।६।।

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