बालग्रहरक्षा स्तोत्र Baal Grah Raksha Stotra

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इस बालग्रहरक्षा स्तोत्र अथवा बाल रक्षा स्तोत्र का झाड़ा देते हुए पाठ करने से बच्चों की हर समस्या से रक्षा होती है । यह स्तोत्र श्रीविष्णुपुराण और श्रीमद्भागवत महापुराण में वर्णित है, व्रजवासीगणों ने देखा कि कृष्ण पूतना की गोद में हैं और वह मारी गयी है । तब भयभीत माता यशोदा और रोहिणी के साथ गोपियों ने कृष्ण को गोद में लेकर उन्हें गाय की पूँछ घुमाने आदि उपायों से बालक श्रीकृष्ण के अंगों को सब प्रकार से रक्षा की। उन्होंने पहले बालक श्रीकृष्ण को गोमूत्र से स्नान कराया, फिर सब अंगों में गो-रज लगायी और फिर बारहों अंगों में गोबर लगाकर भगवान के केशव आदि नामों से रक्षा की। इसके बाद गोपियों ने आचमन करके अजआदि ग्यारह बीज-मन्त्रों से अपने शरीर में अलग-अलग अंगन्यास एवं करन्यास किया और फिर बालक के अंगों में बीजन्यास किया।

बालग्रहरक्षास्तोत्रम् श्रीविष्णुपुराण

नन्दगोप उवाच

रक्षतु त्वामशेषाणां भूतानां प्रभवो हरिः ।

यस्य नाभिसमुद्भूतपङ्कजादभवज्जगत् ॥ १४॥

नन्दगोप बोले ;- जिनकी नाभि से प्रकट हुए कमल से सम्पूर्ण जगत् उत्पन्न हुआ है वे समस्त भूतों के आदिस्थान श्रीहरि तेरी रक्षा करें ।

येन दंष्ट्राग्रविधृता धारयत्यवनी जगत् ।

वराहरूपधृग्देवस्स त्वां रक्षतु केशवः ॥ १५॥

जिनकी दाढ़ो के अग्रभाग पर स्थापित होकर भूमि सम्पूर्ण जगत् को धारण करती है वे वराह-रूपधारी श्रीकेशव तेरी रक्षा करें ।

नखाङ्कुरविनिर्भिन्नवैरिवक्षःस्थलो विभुः ।

नृसिंहरूपी सर्वत्र रक्षतु त्वां जनार्दनः ॥ १६॥

जिन विभु ने अपने नखाग्रो से शत्रू के वक्षःस्थल को विदीर्ण कर दिया था वे नृसिंहरूपी जनार्दन तेरी सर्वत्र रक्षा करें ।

वामनो रक्षतु सदा भवन्तं यः क्षणादभूत् ।

त्रिविक्रमः क्रमाक्रान्तत्रैलोक्यः स्फुरदायुधः ॥ १७ ॥

जिन्होंने क्षणमात्र में सशस्त्र त्रिविक्रमरूप धारण करके अपने तीन पगों से त्रिलोकी को नाप लिया था वे वामन भगवान तेरी सर्वदा रक्षा करें।

शिरस्ते पातु गोर्विदः कठं रक्षतु केशवः ।

गुह्यं सत्त्वतरं विष्णुर्जघे पादौ जनार्दनः ॥ १८॥

गोविन्द तेरे शिर की, केशव कण्ठ की, विष्णु गुह्यस्थान और जठर की तथा जनार्दन जंघा और चरणों की रक्षा करें।

मुखश्चादूडबाहूच मनस्सर्वेन्द्रियाणि च ।

रक्षत्वव्याहतैश्वर्यस्तव नारायणोऽव्ययः ॥ १९॥

तेरे मुख, बाहु, प्रबाहु, मन और सम्पूर्ण इन्द्रियों की अखण्ड ऐश्वर्या सम्पन्न अविनाशी श्री नारायण रक्षा करें ।

शङ्खचक्रगदापाणेश्शङ्खनादहताः क्षयम् ।

गच्छन्तु प्रेतकूष्माण्डराक्षसा ये तवाहिताः ॥ २०॥

तेरे अनिष्ट करनेवाले जो प्रेत, कूष्माण्ड और राक्षस हों वे शाङ्ग धनुष, चक्र और गदा धारण करनेवाले विष्णु भगवान की शंख-ध्वनि से नष्ट हो जायँ ।

त्वां पातु दिक्षु वैकुण्ठो विदिक्षु मधुसूदनः ।

हृषीकेशोऽम्बरे भूमौ रक्षतु त्वां महीधरः ॥ २१॥

भगवान वैकुण्ठ दिशाओं में, मधुसूदन विदिशाओं (कोणों) में, हृषीकेश आकाश में तथा पृथिवी को धारण करनेवाले श्रीशेषजी पृथ्वी पर तेरी रक्षा करें।

इति श्रीविष्णुपुराणे पञ्चमेंऽशे पञ्चमोऽध्यायः बालग्रहरक्षास्तोत्रम् ॥

बालग्रह रक्षा स्तोत्रम् श्रीमद्भागवतमहापुराण

गोप्य उवाच  

अव्यादजोऽङ्घ्रिमणिमांस्तव जान्वथोरू

यज्ञोऽच्युतः कटितटं जठरं हयास्यः ।

हृत्केशवस्त्वदुर ईश इनस्तु कण्ठं

विष्णुर्भुजं मुखमुरुक्रम ईश्वरः कम् ॥ २२॥

गोपी कहने लगीं- अजन्मा भगवान तेरे पैरों की रक्षा करें, मणिमान घुटनों की, यज्ञपुरुष जाँघों की, अच्युत कमर की, हयग्रीव पेट की, केशव हृदय की, ईश वक्षःस्थल की, सूर्य कन्ठ की, विष्णु बाँहों की, उरुक्रम मुख की और ईश्वर सिर की रक्षा करें।

चक्र्यग्रतः सहगदो हरिरस्तु पश्चात्

त्वत्पार्श्वयोर्धनुरसी मधुहाजनश्च ।

कोणेषु शङ्ख उरुगाय उपर्युपेन्द्र-

स्तार्क्ष्यः क्षितौ हलधरः पुरुषः समन्तात् ॥ २३॥

चक्रधर भगवान रक्षा के लिए तेरे आगे रहें, गदाधारी श्रीहरि पीछे, क्रमशः धनुष और खड्ग धारण करने वाले भगवान मधुसूदन और अजन दोनों बगल में, शंखधारी उरुगाय चारों कोनों में, उपेन्द्र ऊपर, हलधर पृथ्वी पर और भगवान परमपुरुष तेरे सब ओर रक्षा के लिये रहें।

इन्द्रियाणि हृषीकेशः प्राणान् नारायणोऽवतु ।

श्वेतद्वीपपतिश्चित्तं मनो योगेश्वरोऽवतु ॥ २४॥

हृषिकेश भगवान इन्द्रियों की और नारायण प्राणों की रक्षा करें। श्वेतद्वीप के अधिपति चित्त की और योगेश्वर मन की रक्षा करें।

पृश्निगर्भस्तु ते बुद्धिमात्मानं भगवान् परः ।

क्रीडन्तं पातु गोविन्दः शयानं पातु माधवः ॥ २५॥

पृश्निगर्भ तेरी बुद्धि की और परमात्मा भगवान तेरे अहंकार की रक्षा करें। खेलते समय गोविन्द रक्षा करें, सोते समय माधव रक्षा करें।

व्रजन्तमव्याद्वैकुण्ठ आसीनं त्वां श्रियःपतिः ।

भुञ्जानं यज्ञभुक्पातु सर्वग्रहभयङ्करः ॥ २६॥

चलते समय श्रीपति तेरी रक्षा करें। भोजन के समय समस्त ग्रहों को भयभीत करने वाले यज्ञभोक्ता भगवान तेरी रक्षा करें।

डाकिन्यो यातुधान्यश्च कूष्माण्डा येऽर्भकग्रहाः ।

भूतप्रेतपिशाचाश्च यक्षरक्षोविनायकाः ॥ २७॥

कोटरा रेवती ज्येष्ठा पूतना मातृकादयः ।

उन्मादा ये ह्यपस्मारा देहप्राणेन्द्रियद्रुहः ॥ २८॥

स्वप्नदृष्टा महोत्पाता वृद्धबालग्रहाश्च ये ।

सर्वे नश्यन्तु ते विष्णोर्नामग्रहणभीरवः ॥ २९॥

डाकिनी, राक्षसी और कूष्माण्डा आदि बालग्रह; भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष, राक्षस और विनायक, कोटरा, रेवती, ज्येष्ठा, पूतना, मातृका आदि; शरीर, प्राण तथा इन्द्रियों का नाश करने वाले उन्माद एवं अपस्मार आदि रोग; स्वप्न में देखे हुए महान उत्पात, वृद्धग्रह और बालग्रह आदि – ये सभी अनिष्ट विष्णु का नामोच्चारण करने से भयभीत होकर नष्ट हो जायँ।

इति श्रीमद्भागवते महापुराणे दश्मस्कन्धे पूर्वार्धे षष्ठोऽध्यायः बालग्रहरक्षास्तोत्रं ॥ ६॥

इति बालग्रहरक्षास्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

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