Vishwakarma Puja Vrat Katha 2023: भगवान विश्वकर्मा पूजा की व्रत कथा, पौराणिक कहानी से जानें विश्वकर्मा जयंती का महत्व

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विश्विकर्मा पूजा दिवस हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन आता है। इस दिन सारे मजदूर/कारखाने अपने काम बंद करके अपने औजार, मशीन तथा सभी औद्योगिक कंपनियों, दुकानों आदि की पूजा करते है।  हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान विश्वकर्मा निर्माण एवं सृजन के देवता कहे जाते हैं। माना जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही इन्द्रपुरी, द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्ग लोक, लंका आदि का निर्माण किया था।

पुष्पक विमान और सभी देवताओं के भवनों और उनके दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुओं का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है। भगवान विश्वकर्मा ने कर्ण का कुंडल, भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, भगवान शंकर का त्रिशूल और यमराज का कालदंड आदि का निर्माण किया है।

विश्वकर्मा दिवस उन चंद त्योहारों में से है जिसे हर साल 17 सितंबर को मनाया जाता है। इस दिन पूजा करने से व्यापारियों को विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस ​दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते है जिसे उनकी कृपा पाकर अपने बिगड़े काम बन जाते हैं, बिजनेस और रोजगार में सफलता प्राप्त होती है।

विश्विकर्मा पूजा कथा  | Vishwakarma Vrat katha

प्राचीन काल में जितनी भी राजधानियां थी। उन सभी का निर्माण विश्वकर्मा जी के द्वारा ही किया गया था।यहां तक की सतयुग का स्वर्ग लोक, त्रेतायुग की लंका, द्वापर की द्वारिका और कलियुग का हस्तिनापुर सभी विश्वकर्मा जी के द्वारा ही रचित थे।सुदामापुरी की रचना के बारे में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता भी विश्वकर्मा जी ही थे। इससे यह पता चलता है कि धन धान्य की अभिलाषा करने वालों को भगवान विश्वकर्मा की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

विश्वकर्मा जी को देवताओं के शिल्पी के रूप में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। भगवान विश्वकर्मा की एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में काशी में रहने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था।वह अपने कार्य में निपुण तो था लेकिन स्थान- स्थान पर घूमने पर भी वह भोजन से अधिक धन प्राप्त नहीं कर पाता था। उसके जीविकापर्जन का साधन निश्चित नहीं था। इतना ही नहीं उस रथकार की पत्नी भी पुत्र न होने के कारण चिंतित रहा करती थी।

पुत्र प्राप्ति के लिए दोनों साधु और संतों के पास जाते थे। लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी न हो सकी। तब एक पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार से कहा तुम दोनों भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ। तुम्हारी सभी इच्छाएं अवश्य ही पूरी होंगी और अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा का महत्व सुनों। इसके बाद अमावस्या को रथकार की पत्नी ने भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जिससे उसे धन धान्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और वह सुखी जीवन व्यतीत करने लगे।

विश्विकर्मा पूजा विधि हिन्दी मे मंत्र सहित  | Vishwakarma Pooja Vidhi

  • इस दिन सुबह उठकर स्नानादि कर पवित्र हो जाएं। इसके बाद पूजन स्थल को साफ कर गंगाजल छिड़क कर उस स्थान को पवित्र कर ले ।
  • एक चौकी लेकर उस पर पीले रंग का कपड़ा बिछाएं और पीले कपड़े पर लाल रंग के कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं।
  • भगवान गणेश का ध्यान करते हुए उन्हें प्रणाम करें। इसके बाद स्वास्तिक पर चावल और फूल अर्पित करें। फिर चौकी पर भगवान विष्णु और ऋषि विश्वकर्मा जी की प्रतिमा या फोटो लगाएं।
  • एक दीपक जलाकर चौकी पर रखें। भगवान विष्णु और ऋषि विश्वकर्मा जी के मस्तक पर तिलक लगाएं।
  • विश्वकर्मा जी और विष्णु जी को प्रणाम करते हुए उनका स्मरण करें। साथ ही प्रार्थना करें कि वे आपके नौकरी-व्यापार में तरक्की करवाएं।
  • विश्वकर्मा जी के मंत्र का 108 बार जप करें। फिर श्रद्धा से भगवान विष्णु की आरती करने के बाद विश्वकर्मा जी की आरती करें। आरती के बाद उन्हें फल-मिठाई का भोग लगाएं. इस भोग को सभी लोगों में बांटें।

विश्वकर्मा पूजा मंत्र :

मंत्र: ओम आधार शक्तपे नम:, ओम कूमयि नम:, ओम अनन्तम नम:, पृथिव्यै नम:।

विश्विकर्मा आरती

ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥

आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥

ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥

रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना॥

जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥

ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥

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