Bahadur Shah Zafar Autobiography | बहादुर शाह जफ़र का जीवन परिचय : भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन, आखिरी शहंशाह, और उर्दू के जानेे-माने शायर थे

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बहादुर शाह ज़फर का जीवन परिचय (Bahadur Shah Zafar Age,Caste,Poetry,Marg,Tomb,Descendants, Biography in Hindi)

कभी सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत पर अंग्रेजों से पहले 200 वर्षो तक मुगलों का शासन रहा,जिसमें आखिरी शासक बहादुर शाह जफर थे. लेकिन जफर को सिर्फ इस कारण इतिहास में सम्मान नही मिला कि वो आखिरी मुगल बादशाह थे , बल्कि उस कारण भी की उन्होंने देश के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में मुख्य भूमिका निभाई थी,इसके अलावा वो एक कवि और सूफी दार्शनिक भी थे.

बहादुर शाह ज़फर जन्म और परिवार (Bahadur Shah Zafar family and Birth Details)

बहादुर शाह जफर का जन्म 24 अक्टूबर 1775 को हुआ था. उनका पूरा नाम मिर्ज़ा अबू ज़फर सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह जाफर था. जफर का जन्म भले एक मुगल घराने में हुआ था लेकिन उनकी माँ हिन्दू महिला थी.

बहादुर शाह ज़फ़र
पूरा नाम अबु ज़फ़र सिराजुद्दीन महम्मद बहादुर शाह ज़फ़र
अन्य नाम बहादुरशाह द्वितीय
जन्म 24 अक्तूबर सन् 1775
जन्म भूमि दिल्ली
मृत्यु तिथि 7 नवंबर, 1862
मृत्यु स्थान रंगून, बर्मा
पिता/माता अकबर शाह द्वितीय और लालबाई
पति/पत्नी 4 (अशरफ़ महल, अख़्तर महल, ज़ीनत महल, ताज महल)
राज्य सीमा उत्तर और मध्य भारत
शासन काल 28 सितंबर 1837 – 14 सितंबर 1857
शा. अवधि 19 वर्ष
धार्मिक मान्यता इस्लाम, सूफ़ी
पूर्वाधिकारी अकबर शाह द्वितीय
उत्तराधिकारी मुग़ल साम्राज्य समाप्त
वंश मुग़ल वंश
अन्य जानकारी बहादुर शाह ज़फ़र एक कवि, संगीतकार व खुशनवीस थे और राजनीतिक नेता के बजाय सौंदर्यानुरागी व्यक्ति अधिक थे।

बहादुर शाह जफर ने उर्दू,पर्शियन और अरेबिक की शिक्षा ली थी. उन्हें घुड़सवारी,तलवारबाजी, ज्वलनशील तीरंदाजी भी सिखाई गयी थी. उन्हें इब्राहीम जोक और असद उल्लाह खान ग़ालिब से कविताओं का शौक लगा,वो बचपन से ही ज्यादा महत्वकांक्षी नहीं थे, और उन्हें राजनीति से ज्यादा  सूफी, म्यूजिक, साहित्य  के प्रति रुझान था. भगवान बिरसा मुंडा के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े।

वैवाहिक जानकारी (Marriage details)

उनके 4 पत्नियों में से सबसे अजीज पत्नी जीनत महल थी. जीनत के साथ उनकी शादी का प्रमाण पत्र भी मिला है. इन दोनों की शादी 18 नवम्बर 1840 को हुयी थी, जिसका काबिन-नामा बना हुआ हैं,उसमें 1,500,000 रूपये का काबिन का जिक्र हैं, जिसके अनुसार इस काबिन के एक तिहाई हिस्से का भुगतान तुरंत किया जाएगा जबकि बाकी के बचे हुए हिस्से को वैवाहिक जीवन में कभी भी चुकाया जा सकेगा,और ये भी लिखा हैं कि ये विवाह 2 ईमानदार वयस्कों की उपस्थिति में हुआ हैं.

बहादुर शाह शासनकाल (Bhadur Shah Zafar shashankal)

बहादुर शाह को जीवन के छ्टे दशक में सत्ता मिली थी,जब वो दिल्ली के राजा बने तब उनके पूर्वजों ने सत्ता लगभग खो दी थी. लाल किले के बाहर उनका कोई शासन नहीं था. 28 सितम्बर 1837 को अकबर की मृत्यु के बाद बहादुर शाह जफर मुगल शासक बने,और 20 वर्षों तक मुगल शासक के नाम से जाने गए. हालांकि वो अपने पिता की पहली पसंद नहीं थे. अकबर-II मिर्ज़ा मुमताज़ बेगम के पुत्र जहांगीर को राजा बनाना चाहते थे लेकिन वो ऐसा नहीं कर सके क्योंकि मिर्ज़ा का अंग्रेजों से गम्भीर विवाद हो गया था.

बहादुर शाह जफर मह्त्वकांक्षी व्यक्ति नहीं थे और उनका भारत की राजनीति में ना उन्हें कोई रूचि थी ना कोई महत्व बचा था  यहाँ तक कि अंग्रेज भी उन्हें कोई भी तरह खतरा मानते थे.एक राजा के तौर पर उनकी सफलता ये थी की उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि सभी धर्म के लोगों से समान व्यवहार किया जाए.उनके शासन काल के दौरान उन्होंने बड़े हिन्दू त्योहारों (होली और दिवाली) को भी दरबार में मनाना शुरू किया. वो हिन्दुओ की धार्मिक भावना का बहुत सम्मान करते थे,और कट्टर मुस्लिम शेख को नहीं मानते थे.

बहादुर शाह जफर और औरंगजेब ( Bahadur Shah Zafar and Aurenjeb)

बहादुर शाह जफर औरंगजेब के वंशज ही थे लेकिन इन दोनों के शासन काल में 180 वर्ष का अंतर था. इन दोनों के बीच में लगभग 10 से 12 मुगल शासक रह चुके थे. वास्तव में बहादुर शाह जफर के पड-दादा अलमगीर द्वितीय वो आखिरी राजा थे जिनका पूरी दिल्ली पर शासन था,इस तरह से ये कहा जा सकता हैं कि जिस आखिरी मुगल शासक ने देश पर राज किया था वो बहादुर शाह जफर नहीं बल्कि आलमगीर II था, हालांकि वो अफगान राजा अहमद शाह दुरानी की कठपुतली था,जिसने उसे राजा बनाया था और बाद में उसे मार दिया था. आलमगीर का बेटा शाह आलम II पहला मुगल राजा था, जो अंग्रेजों के पेंशन पर निर्भर था. उसका बेटा अकबर जो कि बहादुर शाह का पिता था ने थोडे समय ही  सत्ता सुख भोगा लेकिन उसे उन्हें भी पैसा या ताकत नहीं मिला.

इतिहास देखने पर  ये साफ़ समझा जा सकता हैं कि औरंगजेब जहां शक्तिशाली  और क्रूर मुगल शासक था वही बहादुर शाह जफर अपनी पीढ़ी के सबसे कमजोर और सहिष्णु शासक थे, उनके साथ मुगल साम्राज्य का अंत हो गया.

बहादुर शाह जफर और 1857 की क्रान्ति (Bhadur Shah Zafar aur 1857 ki kranti)

1857 की क्रांति के समय इंडियन रेजिमेंट ने दिल्ली को घेर लिया था और जफर को क्रान्ति का नेता घोषित कर दिया था. उस समय ऐसे माना जा रहा था कि जफर देश में हिन्दू-मुस्लिम को ना केवल एक कर देंगे बल्कि उन्हें भारत के राजकुमार के तौर पर सहर्ष और एकमत से स्वीकार भी कर लिया जाएगा. इस तरह से बहादुर शाह जाफर अंग्रेजों के बीच देश में बिखरते हुए राजाओं के लिए एक मात्र उम्मीद बचे थे.

अंग्रेजों ने इस क्रान्ति को सैन्य विद्रोह कहा था लेकिन क्रांतिकारियों ने सैन्य विद्रोह के अलावा बहादुर शाह के नेतृत्व में एक योजना भी बनाई थी. लेकिन ये योजना सफल ना हो सकी और जब अंग्रेज जीत गये तब बहादुर शाह जाफर ने दिल्ली के बाहर हुमायूं की समाधि पर जाकर शरण ली थी. मेजर होड़सन ने आकर इस समाधि को चारों तरफ घेर लिया और जाफर को आत्म समर्पण करने को कहा.

बहादुर शाह जाफर ने क्रांतिकारियों का पूरा सहयोग किया था, उन्होंने अपने बेटे मिर्ज़ा मुगल को कमांडर इन चीफ बनाया था,हालांकि मिर्ज़ा मुगल को युद्ध का कोई अनुभव नहीं था,ना ही उसने कभी कोई सेना का नेतृत्व किया थे.

उनके परिवार के बहुत से सदस्य अंग्रेजों द्वारा मारे गए,या जेल में डाल दिए गये. 1858 में बहादुर शाह जफर को उनकी पत्नी जीनत महल और कुछ अन्य परिवार के सदस्यों के साथ राजद्रोह के आरोप में रंगून भेज दिया गया. इस तरह देश में लगभग 3 शताबदियों से चले रहे मुगल काल का समापन हो गया और ब्रिटिश की महारानी विक्टोरिया का शासन काल शुरू हो गया.

बहादुरशाह ज़फर: कवि (Bhadur Shah Zafar as Poet)

बहादुरशाह जफर बहुत अच्छे कवि थे,और उनकी लिखी गजल (ghazal) आज भी मुशायरों में सुनी आ सकती हैं. उनका पेन-नेम ज़फर था,जिसका मतलब “जीतना” होता हैं. कालान्तर में उनकी लिखी कविताओं (Poetry) को कुल्लियत-इ-जफर में संग्रहित किया गया. उनकी ज्यादातर गजलें जिन्दगी और मुशायरों पर होती थी. उनकी लिखी कुछ मुख्य कविताए हैं- लगता नहीं हैं दिल मेरा, ना किसी की आँख का नूर हूँ, यार था गुलज़ार था, जी नहीं लगता उजड़े दियार, खुलता नहीं है हाल, बात करनी मुझे मुश्किल,जा कहियो उनसे नसीम-ए-शहर.

 बहादुर शाह जफर :मृत्यु (Bhadur Shah Zafar:death)

ज़फर ने अपने जीवन के अंतिम क्षण अकेले और अवसाद में गुजारे थे, अपनी हार और अंग्रेजो द्वारा पकडे जाने के बाद उन्होंने कागज-कलम से रिश्ता तोड़ लिया था. बहादुर शाह की मृत्यु 7 नवम्बर 1862 को हुयी थी. उन्हें रंगून में श्वेडागोन पगोडा के पास दफनाया गया,जिस जगह पर बाद में बहादुर शाह जफर दरगाह बनी. उनकी पत्नी जीनत की मौत 1886 को हुई. जफर को एक सूफी संत माना जाता हैं,इसलिए आज भी सभी धर्मों लोग उनकी कब्र पर श्रद्धा के फूल चढाने जाते हैं.

बहादुर शाह सम्बंधित रोचक तथ्य  (Unknown Facts  about  Bhadur Shah Zafar)

  • बहादुर शाह इतने अच्छे घुड़सवार थे कि उन्हें भारत के “ढाई घोडा” में से एक माना गया था, बाकि के 2 घोड़े उनके भाई मिर्ज़ा जहांगीर जबकि दूसरा व्यक्ति महारष्ट्र का कोई घुड़सवार था.
  • इसके अलावा जाफर को पतंग उड़ाने का भी बहुत शौक था,उनका जब भी मन करता वो अपनी राजा वाली गरिमा के विपरीत यमुना के किनारे जाकर पतंग उड़ाते थे.
  • बहादुर शाह जफर काफी दयालु और दानी भी थे. वो जब खाना खाने बैठते और अपना चम्मच खीर में डालते तो बाहर ये घोषणा की जाती कि उन्होंने खाना शुरू कर दिया हैं. और 300 किलो चावल जरुरतमंदों को बांटे जाते.

बहादुर शाह जफर के नाम पर धरोहर  

  • बहादुर शाह जाफर के 1857 की क्रांति में दिए गये योगदान को समझाने के लिए, 1959 में आल इंडिया बहादुर शाह जाफर एकेडमी की स्थापना की गयी.
  • उन पर कुछ हिंदी-उर्दू मूवी भी बनी थी जिनमें बी आर चोपड़ा की बहादुर शाह ज़फर (1986) मुख्य हैं. 2002 में अर्जित गुप्ता ने उनके जीवित वंशजों पर शार्ट टीवी फिल्म भी बनाई थी,
  • नई दिल्ली,लाहौर,वाराणसी और अन्य शहरों में उनके नाम के शहर हैं. वाराणसी के विजयनगरम पैलेस में बहादुर शाह जाफर की प्रतिमा लगाई गयी हैं. बंगलादेश में विक्टोरिया पार्क का नाम भी बहादुर शाह जाफर पार्क रखा गया हैं.
  • म्यांमार में बहादुरशाह ज़फर का मक़बरा (tomb) है।
  • दिल्ली में बहादुर शाह ज़फर के नाम पर एक मार्ग भी है।

इस तरह ये कहा जा सकता है कि -1857 की क्रान्ति में “बहादुर शाह जफर” को “जफर” तो नही मिली लेकिन उन्होंने इतिहास में अपना नाम दर्ज करवाकर देश का दिल “जफर” कर लिया.

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