बालकृष्ण दशक – Bal Krishna Dashak
स्तोत्र श्रृंखला में बाल गोपाल श्रीकृष्ण की यह मनोहर स्तुति श्री बालकृष्ण दशक को आचार्य अमृतवाग्भव नामक विद्वान् के द्वारा ‘द्रुतविलम्बित’ नामक छन्द में रची हुई है, इसका पाठ करने वाले भक्तजनों के अभीष्ट फल को अतिशीघ्र पूरा होता और नित्य कल्याण प्राप्त होता है ।
श्री बालकृष्ण दशकम्
अधिकदम्ब-कदम्बक-सङ्कुल
बहु-विहङ्गम-सङ्ग-मनोहरे ।
तरणिजा-तट-मञ्जुल-कानने ।
मम विराजति मानसदैवतम् ॥ १ ॥
बहुत से पक्षियों के संगम से मनोहर बने हुए यमुना नदी के तट वाले सुन्दर वन में बहुतेरे कदम्ब वृक्षों के समूहों के झुरमुट के भीतर मेरे हृदय के देवता भगवान् श्रीकृष्ण विराजमान हैं।
नव-पयोधर-मण्डल-मञ्जुलं
कनक-मञ्जुल-पीत-पटोज्ज्वलम् ।
चतुर वल्लव-यौवत-बल्लभं
मम विराजति मानस दैवतम् ॥ २ ॥
नए बादलों के मण्डल के समान मनोहर (श्यामवर्ण वाले), सोने के समान सुन्दर पीले वस्त्र से देदीप्यमान और ग्वालों की चतुर युवतियों के समूह के प्रियतम मेरे हृदय के देवता श्रीबाल कृष्ण खूब शोभा पा रहे हैं।
अधि-पयो-दधि-मन्थन-मन्दिरं
सुनवनीत-लसन्मुख-चन्दिरम् ।
कुटिल-कुन्तल-पाशक- सुन्दरं
मम विराजति मानस दैवतम् ॥ ३ ॥
दूध दही का मन्थन करने के भवन के भीतर माखन के खूब लेप से शोभायमान मुख से (देखने वालों को) अह्लाद देने वाले और घुंघराले केशपाशों से सुन्दर बने हुए मेरे हृदय के देवता श्री गोपालकृष्ण खूब शोभा पा रहे हैं।
नव-शिखावल-बर्ह-विभूषितं
नव-सरोरुह-पल्लव- लोचनम् ।
हरिण-नाभि-मदाङ्कित भालक
मम विराजति मानस दैवतम् ॥ ४ ॥
मयूर के नए पंखों के शेखर से विभूषित, ताजा कमल-पत्र जैसे नेत्रों वाले और कस्तूरी के तिलक से चिन्हित माथे वाले मेरे हृदय के देवता श्री बाल गोपालकृष्ण खूब शोभा पा रहे हैं।
अधिशिरोऽधि-समुज्ज्वल-कौस्तुभा-
भरण- चारु-मयूख- विभिन्नया ।
विघृतयोज्ज्वलया वनमालया
मम विराजति मानस-दैवतम् ॥ ५ ॥
सिर के ऊपर पहने हुए, बहुत अधिक चमकीले कौस्तुभ-मणि रूप अलंकार की सुन्दर किरणें जिसमें बीच बीच में प्रविष्ट हुई हैं, इस प्रकार की तथा खूब चमकीली बनी हुई, (गले में) पहनी हुई वनमाला से मेरे हृदय देवता श्री बालकृष्ण खूब शोभा पा रहे हैं।
दलित-शीतकरोज्ज्वल-कान्तिमन्
मणिगणाञ्चित-हेम-किरीटकम् ।
रुचिर-कङ्कण-शोभि-कर-द्वयं
मम विराजति मानस दैवतम् ॥ ६ ॥
चन्द्रमा को भी जिसने परास्त किया है, ऐसी खूब चमकीली कान्ति वाले रत्नों की एक श्रेणी से जिनका सोने का मुकुट अलंकृत हुआ है तथा जिनके दोनों हाथ अतीव सुन्दर कंकणों (कड़ों) से सुशोभित हो रहे हैं, ऐसे मेरे हृदय के देवता श्री बालगोपालकृष्ण खूब शोभा पा रहे हैं।
सुमुरली-रणना-तरली-कृत-
व्रज-वधूजन-मानस मण्डलम् ।
मणि-गणाञ्चित-काञ्चन-कुण्डलं
मम विराजति मानस-दैवतम् ॥ ७ ॥
मनोहर मुरली की गूंज से जिन्होंने ब्रज गोकुल की युवती कुलस्त्रियों के हृदय मण्डलों में उथल पुथल मचा दी है तथा जिनके कानों के कुण्डल रत्नों की श्रेणियों से अलंकृत हैं, ऐसे मेरे हृदय देवता बाल गोपालकृष्ण खूब शोभा पा रहे हैं।
निज-मित-स्मित-मञ्जुल-माधुरी-
विदलितामृत-शीकर-वर्षणम् ।
मुनि-मनो-नयन-श्रुति-हर्षणं
मम विराजति मानस-दैवतम् ॥ ८ ॥
अपनी मन्द मन्द मुस्कराहट की सुमनोहर मधुरिमा के द्वारा जिन्होंने अमृत के छींटों की वृष्टि को भी मात कर दिया है और जो मुनियों के भी मन को, नेत्रों को और कानों को आह्लादित करने वाले हैं, ऐसे मेरे हृदय के देवता बाल गोपाल कृष्ण खूब शोभा पा रहे हैं।
निज-मनोहर भाषण चातुरी-
परवशीकृत-नन्द- हृदम्बुजम् ।
निज-नमज्जन-कामित-पूरणं
मम विराजति मानस-दैवतम् ॥ ९ ॥
बातें करने में अपनी मनोहर चतुराई के द्वारा जिन्होंने नंद बाबा के हृदय रूपी कमल को परवश कर दिया है तथा जो अपने को नमस्कार करने वाले भक्त जनों की कामनाओं को पूरा करने वाले हैं, वे मेरे हृदय के देवता बाल गोपालकृष्ण खूब शोभा पा रहे हैं।
विकलया वृषभानुजया सह
व्रज-निकुञ्ज-विलास-परायणम् ।
सुतृण-चारण-पोषित गोकुलं
मम विराजति मानस-दैवतम् ॥ १० ॥
विरह से व्याकुल बनी हुई वृषभानु की कन्या (राधिका) के साथ व्रज के कुञ्जों के भीतर प्रेमकला के विलास में लगे रहते हुए और हरी हरी कोमल घास के चराने से गायों के समूहों को खूब पुष्ट बनाने वाले मेरे हृदय के देवता बाल गोपाल कृष्ण खूब शोभा पा रहे हैं ।
श्री बालकृष्ण दशकम् लेखक परिचय
श्रीमद्विक्रम-भूपतेरथ गते सिंहाधिपे वत्सरे
द्वादश्यां रवि-वासरे सित-दले चैत्रे कुलोल्लासिना ।
काश्मीरान्तरनन्तनाग-सविधे ग्रामे वराहाभिधे
विप्रेण ग्रथितां पठन् स्तुतिमिमां पुष्णात्वभीष्टं जनः ॥११॥
श्री विक्रम संवत् १९८७ में, चैत्र के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को, रविवार के दिन, अपने वंश को उल्लास में लाने वाले तथा कुण्डलिनी के सभी चक्रों की श्रेणी को उल्लास में लाने वाले, शास्त्रज्ञ ब्राह्मण के द्वारा कश्मीर देश में अनन्त नाग के समीप वराह (व्राह) नामक ग्राम में बनाई हुई इस स्तुति का पाठ करते हुए भक्तजन इससे अपने अभीष्ट प्रयोजनों को पुष्ट करते रहें ।
अमृतवाग्भव-सूरि-विनिर्मिता
द्रुतविलम्बित वृत्त मनोहरा ।
पृथुक-कृष्ण-नुतिः पठतां नणां
प्रियमियं परिपूरयतां द्रुतम् ॥ १२ ॥
अमृतवाग्भव नामक विद्वान् के द्वारा ‘द्रुतविलम्बित‘ नामक छन्द में रची हुई, बालक श्रीकृष्ण की यह मनोहर स्तुति इसका पाठ करने वाले भक्तजनों के अभीष्ट फल को अतिशीघ्र पूरा करती रहे ।
आचार्यामृतवाग्भव-विप्र-ग्रथितं शुभप्रदं स्तोत्रम् ।
श्री बालकृष्ण दशकाभिधं पठन्नेतु लोकः शम् ॥ १३ ॥
आचार्यामृतवाग्भव नामक शास्त्रज्ञ ब्राह्मण के द्वारा रची गई इस “श्री बालकृष्ण दशक” नामक शुभप्रद स्तुति का पाठ करते हुए लोग कल्याण को प्राप्त करते रहें ।
कृतिरियमाचार्यामृतवाग्भवस्य ।
यह बालकृष्ण दशक स्तोत्र आचार्य अमृतवाग्भव की रचना है ।