भूतडामर तन्त्र पटल २ – Bhoot Damar Tantra Patal 2, भूतडामरतन्त्रम् द्वितीयं पटलम्

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तन्त्र श्रृंखला में आगमतन्त्र से भूतडामर महातन्त्र अथवा  भूतडामरतन्त्र के पटल १ में भैरव-भैरवी संवाद तथा सिद्धिप्राप्ति प्रकार को दिया गया, अब पटल २ में मारण प्रयोग और रस रसायन रत्नप्राप्ति प्रकार का वर्णन हुआ है।

भूतडामरतन्त्रम् द्वितीयं पटलम्

भूतडामर तन्त्र पटल २ 

भूतडामरतन्त्र दूसरा पटल 

अथ द्वितीयं पटलम्

अथातः सम्प्रवक्ष्यामि सुगोप्यं मनुमुत्तमम् ।

सुराणामथ भूतानां मारणं येन सिद्धयति ॥ १ ॥

मैं अति गोपनीय मन्त्र का उपदेश कर रहा हूँ, जिसके द्वारा देवता एवं भूतगण का भी मारण कर्म सिद्ध हो जाता है।।१॥

विषं ॐ वज्रज्वालेन हनयुग्मं ततः परम् ।

सर्वभूतान् ततः कूर्च्चमस्त्रान्तं मनुमीरितम् ॥

अस्य विज्ञानमात्रेण क्रोधेशाद्रोमकूपतः ।

वज्रज्वालाः प्रजायन्ते शुष्यन्ति प्रमथादयः ।

ब्रह्मेशजिष्णुप्रमुखा नीताः स्युर्यमशासनम् ॥ २-३ ।।

ॐ वज्रज्वाले हन हन सर्वभूतान् हुं फट् इस मन्त्र को जानने मात्र से क्रोधभैरव के रोमकूप से वज्रज्वाला प्रकट होती है। प्रमथादि भूतगण शुष्क हो जाते हैं और ब्रह्मा, महादेव, इन्द्रादि प्रमुख देवगण भी यमराज (मृत्यु) के अधीन हो जाते हैं ।। २-३ ।।

ततः सविस्मयं प्राहू रुद्राद्या क्रोधभूपतिम् ।

वर्तमानेऽत्र समये नामीषां निग्रहं कुरु ।

सर्वभूताश्च भूतिन्यः करिष्यन्ति भवद्वचः ॥ ४ ॥

जब क्रोधभैरव ने उन्मत्त भैरवी से इस प्रकार कहा तब देवगण ( रुद्रादि ) विस्मित होकर कहने लगे हे भैरव ! इस समय आप इनका निग्रह न करें। समस्त भूतगण एवं पृथ्वी आपके वाक्य का प्रतिपालन करेगी ॥ ४ ॥

विज्ञानाकर्षिणी मन्त्रं भाषतेऽतोऽतिविस्मिता ।

तारं ब्रह्ममुखे प्रोच्य शरयुग्मान्तमीरितम् ॥

अस्य भाषितमात्रेण वज्रज्वाला विनिःसृताः ।

मृतसञ्जीवनी विद्या मृतप्राणप्रदायिनी ।

भूतानां दुरितध्वंसो भवेदस्य प्रभावतः ॥ ५-६ ।।

अब अत्यन्त विस्मयप्रद विज्ञानाकर्षण मन्त्र कहा जाता है। ॐ ब्रह्ममुखे शर शर फट् इसका उच्चारण करते ही वज्रज्वाला निकल पड़ती है। यह है मृतसंजीवनी विद्या । इससे मृतक प्राणी जीवित हो जाता है।इसके प्रभाव से भूतादि का भय नष्ट हो जाता है ।। ५-६ ।।

अथापराजितानाथो नाथपादो प्रगृह्य च ।

वन्दयित्वा च शिरसा त्राता त्वं भगवान् परः ।

त्राहि मां भूतनिचयं जम्बूद्वीपे कलौ युगे ॥ ७ ॥

तदनन्तर भूतनाथ उन्मत्त भैरव का पैर पकड़ कर नमस्कार करके कहे कि आप परित्राता तथा षड् ऐश्वर्ययुक्त प्रधान पुरुष हैं। इस कलियुग में जम्बूद्वीप के प्राणिवर्ग का तथा मेरा रक्षण करें ॥ ७ ॥

रसं रसायनं सौख्यं स्वर्णवैदूर्यमौक्तिकम् ।

हंसेन्दुकान्तादिमणिगन्धवस्त्रश्व कावनम् ।

भोजनं कुसुमं क्षेमं वरं दास्याम ईप्सितम् ॥ ८ ॥

उन्मत्त भैरव कहते हैं – रस, रसायन, सुखभोग, सुवर्ण, नीलकान्तमणि, मुक्ता, उत्कृष्ट वस्तु, चन्द्रकान्त आदि मणि, गन्धद्रव्य, वस्त्र, भोजन, पुष्प,कुशल आदि अभीष्ट वर हम तुम्हें देंगे ।। ८ ।।

भूतिन्यश्चेटिकाः क्रोधजापिनां चेटका वयम् ।

राजा हि तस्करभयं जरानिष्टाघसम्भवम् ।

भूतप्रेतपिशाचादीन्नाशयामः प्रयत्नतः ॥ ९ ॥

जो क्रोधभैरव के मन्त्र का जप करते हैं-मैं उनका भृत्य हूँ और भूतिनी- गण उनकी दासी हैं। उनका जरा (बुढ़ापा) अनिष्ट तथा पापजनित भय,राजा एवं तस्करभय, भूत-प्रेत-पिशाचादि समस्त अशुभों को मैं यत्नपूर्वक नष्ट कर देता हूँ ।। ९ ।।

यदि सिद्धि न यच्छन्ति भूतिन्यः साधकं प्रति ।

स्फोटयामि तदा नूनं क्रोधवज्रेण मूर्धनि ।

क्वचिदग्नौ महाघोरे नरके पातयामि च ॥ १० ॥

यदि ऐसे साधक को भूतिनी, यक्षिणी, पिशाच आदि सिद्धि नहीं देती तब मैं तत्क्षण निश्चित रूप से उनके मस्तक को अपने क्रोधवज्र द्वारा फाड़ देता हूँ, अथवा उन भूतिनियों आदि को अग्नि में किंवा महाघोर नरक में भेज देता हूँ ।। १० ।।

एवमस्त्विति ताः प्राहुर्विस्मिताः क्रोधभूपतिम् ॥ ११॥

महादेव आदि देवगण विस्मित होकर क्रोधभैरव से कहते हैं—–आपने जो कुछ कहा है, वही हो ।। ११ ।।

ततो नृणां हितार्थाय प्रमथाद्युपकारकम् ।

क्रोधराजः पुनः प्राह मृतसञ्जीवनीमनुम् ॥ १२ ॥

तदनन्तर क्रोधभैरव ने संसार के हित के लिए पुनः प्रमथादि का उपकार करने वाले संजीवनी मन्त्र का उपदेश दिया।।१२ ।।

पञ्चरश्मि समुद्धृत्य सङ्घट्टेति द्विधा पदम् ।

अस्य भाषितमात्रेण मूच्छिता भूतदेवताः ।

स्तम्भिता वेपमानाश्च उत्तिष्ठन्त्यतिविह्वलाः ॥ १३ ॥

ॐ संघट्ट-संघट्ट मृतान् जीवय स्वाहाइस मन्त्र का उच्चारण करने मात्र से भूतादि देवता मूर्च्छित, स्तम्भित, कम्पित तथा विह्वल हो जाते हैं ।। १३ ।।

अथ प्राह महादेवो भूपति तं मुहुर्मुहुः ।

क्रोधाधिपं वज्रपाणि हित्वा त्राता न विद्यते ॥ १४ ॥

तदनन्तर महादेव क्रोधभैरव से पुनः पुनः कहने लगे कि वज्रपाणि क्रोध- भैरव के अतिरिक्त और कोई संसार का रक्षक नहीं है ।। १४ ।

अथोवाचाशनिधरो मार्माभैर्महेश्वरम् ।

तवान्येषाञ्च देवानां हितार्थं भूतनिग्रहम् ।

करिष्यामि कलौ जम्बूद्वीपस्थानां नृणामपि ।। १५ ।।

तदनन्तर वज्रपाणि क्रोधभैरव महादेव से कहते हैं कि- भयभीत न हो, भयभीत न हो; अन्य देवगण के, आपके तथा जम्बूद्वीप में स्थित मनुष्यों के हित के लिए मैं कलियुग में भूतनिग्रह करूँगा ।। १५ ।।

रक्षास्मानसकृत् प्राहुः प्रमथाश्र्वाप्सरोऽङ्गनाः ।

नागिन्यो यक्षकामिन्यः क्रोधेशं प्रणिपत्य च ॥ १६ ॥

प्रमथगण, अप्सराएँ, नागिनियाँ, यक्षिणियाँ प्रभृति क्रोधभैरव को प्रणाम करके पुनः-पुनः कहते हैंअब हमारी रक्षा करो ॥ १६ ॥

अथ वज्रधरः प्राह भैरवो रोमहर्षणः ।

सुन्दरि ! त्रिपुरे! भद्रकालि ! भैरवचण्डिके ! ॥

मज्जापिनां नृणां यूयमुपस्थानं करिष्यथ ।

स्वर्णाद्याकाङ्क्षितान्नानि जापिनेऽपि प्रदास्यथ ।। १७ ।।

तदनन्तर कुलिषपाणि लोमहर्षण क्रोधभैरव कहते हैं— ‘सुन्दरी ! त्रिपुरा ! भद्रकाली ! भैरवचण्डिका ! तुम सभी मेरा जप करनेवाले साधकों की उपासना करो और उन्हें स्वर्ण, अभिलषित भोज्यवस्तु आदि प्रदान करो।।१७।।

यक्षिण्योऽप्सरो देवकन्यका नागकन्यकाः ।

दास्यामो देवदेवेश ! निश्चितं क्रोधजापिनः ॥

करिष्याम उपस्थानं दास्यामः प्रार्थितं धनम् ।

यदि कुर्मोऽन्यथा नष्टा भवामः सकुलं प्रभो ! ।।

सर्वकर्म करिष्यामो दासत्वं क्रोधजापिनाम् ।

यद्यन्यथा करिष्यामो भगवान् मूनि दारयेत् ।

शतधा क्रोधवज्रेण नरके वा निपातयेत् ।। १८-२० ।।

अब यक्षिणी, देवकन्या तथा नागकन्या कहने लगीं- हे देवदेवेश ! हम आपके उपासकों की सेवा करेंगी तथा उन्हें प्रार्थित धन भी प्रदान करेंगी । प्रभो ! यदि हमलोग आपकी बातें न माने, तब हमारा वंश सहित विनाश हो जाये। जो क्रोधभैरव के मन्त्र की उपासना करते हैं, हमलोग उनकी दासी बनकर उनके समस्त कार्यों को करेंगी। यदि हमलोग आपकी आज्ञा का उल्लंघन करें, उस स्थिति में आप हमारा मस्तक अपने क्रोधवजू से सैकड़ों टुकड़ों में विदीर्ण करें और हमें नरक में डालें ॥। १८-२० ।।

साध्वित्युक्त्वा वज्रपाणिः पुनः प्राह सुरानिति ।

करिष्यथेत्युपस्थानं नराणां क्रोधजापिनाम् ।

वैदूर्यादिमणीन् स्वर्णमुक्ताद्रव्याणि दास्यथ ॥ २१ ॥

वज्रधारी क्रोधभैरव देवताओं से कहते हैं कि- तुम्हारा भला हो, हे नायिकागण ! जो मनुष्य क्रोधभैरव के मन्त्र का जप करते हैं, तुमलोग उन्हें नीलकान्तमणि तथा स्वर्ण, मोती इत्यादि द्रव्य प्रदान करो ।। २१ ।

एवमस्त्विति तं नत्वा क्रोधराजं सुरान्तकम् ।

गता आज्ञां शिरः कृत्वा स्वस्थानं यक्षनायिकाः ।। २२ ।।

यक्षनायिकाओं ने ऐसा ही हो‘, कहकर सुर-असुर का ध्वंस करनेवाले क्रोधभैरव को प्रणाम करके उनका आदेश शिरोधार्य करके अपने-अपने लोकों के लिए प्रस्थान किया ।। २२ ।।

तेनेष्टसिद्धिदाः सर्वा जम्बूद्वीपे कलौ युगे ।। २३ ।।

इस प्रकार कलिकाल जम्बूद्वीप के निवासियों को नायिकागण सिद्धि प्रदान करती हैं ।। २३ ।।

इति भूतडामरमहातन्त्रे द्वितीयं पटलम् ।

भूतडामर महातन्त्र का द्वितीय पटल समाप्त हुआ ।

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