कृष्ण कथा – कृष्ण एक ऐतिहासिक पुरुष या भगवान कौन हैं ? Krishna’s Story, Krishna Katha – Who is Krishna a Historical Person or God?

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कृष्ण या Krisna कौन है? कृष्ण क्यूँ जन्म (Birth) लेते हैं? कृष की लीलाएं (krishnas Leela) कहानियाँ  (Krishnas story) और कथाएं सुनने और पढने से क्या लाभ मिलता है? Krishna ki story जानने और पढने से पहले हमे Krishn के बारे में जानना चाहिए कुछ लोग कृष्ण को विष्णु भी समझते हैं. कई लोग जानना चाहेंगे कि कृष्ण और विष्णु कौन है और कृष्ण कथा पढने से क्या लाभ मिलता होगा.

भगवान् कृष्ण एक ऐतिहासिक पुरुष हैं जो 5000 वर्ष पूर्व इस धरती पर अवतरित हुए थे. उन्होंने इस धरती पर 125 वर्षों तक रहकर एक मनुष्य के समान ही आचरण किया. आगे हम कृष्ण की सभी कहानियों को जानेंगे. 

लेकिन उससे पहले जानिये कृष्ण कौन हो? कृष्ण और विष्णु में अंतर क्या है? कृष्ण कथा से क्या लाभ है?

भगवत गीता में भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा है कि वे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान है. उनके अवतरण का एक मात्र कारण है – जब -जब मनुष्य के धार्मिक जीवन में नियामक सिद्धांतों की हानि होती है और संसार में अधर्मी कार्यकलाप में वृद्धि होती है, तब-तब मैं पृथ्वीलोक में अवतरित होता हूँ.

भौतिक सृजन का सारा कार्यभार कृष्ण के पूर्णअंश भगवान महाविष्णु पर होता अत: जब भगवान अवतरित होते हैं तो वो अवतार विष्णु से उद्धत होता है. महाविष्णु भौतिक सृष्टि के आदि कारण हैं , उनसे गर्भोदकशायी विस्तार होता है और उसके बाद क्षीरोदकशायी विष्णु का.

सामान्यता इस ब्रह्मांड में जितने भी अवतार होते हैं वे क्षीरोदकशायी विष्णु के पूर्ण विस्तार या अंश होते हैं. अतः इस पृथ्वी पर पाप कर्मों के भार को कम करने का कार्य भगवान विष्णु का नहीं है लेकिन जब कृष्ण प्रकट  होते हैं तो सभी विष्णु विस्तार में उनके साथ हो लेते हैं.

कृष्ण के सारे विस्तार या अंश यथा नारायण, वासुदेव संकर्षण, प्रद्धुमन, अनिरुद्ध का चतुर्गुना रूप तथा उनके अंशअवतार यह मत्स्य एवं अन्य युगावर एवं मन्वंतर अवतार ये सब एक साथ भगवन कृष्ण के साथ प्रकट होते हैं. 

कृष्ण परिपूर्ण है. अत: सारे पुर्नांश तथा अंश अवतार सदा उन्ही में निवास करते हैं. जब कृष्ण प्रकट हुए तो भगवान विष्णु भी उनके साथ थे. वास्तव में कृष्ण अपनी वृंदावन लीलाओं को प्रदर्शित करने तथा भाग्यशाली बद्धजीवों को आकृष्ट करने तथा उन्हें भगवत धाम का आमंत्रण देने के लिए प्रकट होते हैं

वृंदावन में असुरों का वध कृष्ण के विष्णु अंश द्वारा ही उत्पन्न हुआ . भगवत गीता में कहा गया है कि भगवान के निवास स्थान का वर्णन हुआ है जहां यह बताया गया है कि एक अपरा चिन्मय आकाश होता है, जो इस व्यक्त तथा अव्यक्त पदार्थ जगत से परे है. 

व्यक्त जगत को उनके नक्षत्रों, लोकों तथा सूर्य, चंद्र, आदि के रूप में देखा जा सकता है. लेकिन इसके परे अव्यक्त भाग भी है, जो किसी शरीरधरी द्वारा नहीं पहुंचा जा सकता. और इस अव्यक्त जगत से परे भी एक जगत है जिसे आध्यात्मिक जगत कहा जाता है.

भगवत गीता के इस जगत को सर्वोपरि था शास्वत कहा गया है जिसका विनाश कभी नहीं होता जबकि इस भौतिक प्रकृति का बारंबार सृजन और संहार होता है. किंतु यह आध्यात्मिक जगत हमेशा एक सा ही बना रहता है.

भगवान कृष्ण के परमधाम को ब्रह्म-संहिता में चिंतामणि धाम भी कहा गया है. कृष्ण का यह धाम गोलोक वृंदावन कहलाता है जो पारसमणि के प्रासादों से परिपूर्ण है. वहां के वृक्ष कल्पवृक्ष कहलाते हैं और गाय सुरभि कही जाती है. वहां भगवान की सेवा में हजारों लक्ष्मी लगी रहती हैं. उनका नाम आदि भगवान गोविंद है और वे समस्त कारणों के कारण है.

वहां भगवान अपनी वंशी बजाते हैं. उनके नेत्र कमल दलों के समान है. और उनके शरीर का वर्ण सुंदर बादल जैसा है. उनके सिर पर मयूरपंख है. वे इतने आकर्षक हैं कि सहस्त्रों कामदेवों को लज्जित कर देते हैं. गीता में भगवान कृष्ण अपने धाम का संकेत मात्र करते हैं, जो आध्यात्मिक जगत में सर्वोच्च लोक हैं.

लेकिन श्रीमदभागवत में कृष्ण अपने साज सामान के साथ वास्तव में प्रकट होते हैं और अपने कार्यकलापों को सर्वप्रथम वृंदावन में फिर मथुरा में और तब द्वारका में प्रदर्शित करते हैं. यादव कुल में जन्म लेकर कृष्ण यदुवंशी कहलाते हैं. 

यदुवंश सोम अर्थात चंद्रलोक के देव से चला आ रहा है. राजवंशी क्षत्रियों के दो मुख्य कुल है-  एक चंद्रलोक के राजा से अवतरित (चंद्रवंशी) तथा दूसरा सूर्य के राजा से अवतरित (सूर्यवंशी) जब -जब भगवान अवतरित होते हैं, तब प्राय: वे क्षत्रिय कुल में प्रकट होते हैं क्योंकि उन्हें धर्म की स्थापना करनी होती है. 

वैदिक प्रणाली के अनुसार क्षत्रिय कुल मानव जाति का रक्षक होता है .जब भगवान श्री रामचंद्र के रूप में अवतरित हुए तो वे सूर्यवंश में प्रकट हुए, जो रघु वंश के नाम से विख्यात था. और जब वे कृष्ण के रूप में प्रकट हुए तो यदुवंश में हुए. 

श्रीमद्भागवत गीता के नवं स्कंध के 24 नंबर के अध्याय में यदुवंशी राजाओं की एक लंबी सूची दी गई है. वे सभी महान शक्तिशाली राजा थे.

कृष्ण के पिता का नाम वसुदेव था, जो यदुवंशी सूररसेन के पुत्र थे .वस्तुतः भगवान इस भौतिक जगत के किसी भी वंश से संबंधित नहीं है. लेकिन वे जिस कुल में जन्म लेते हैं उनकी कृपा से वह कुल विख्यात हो जाता है. उदाहरणार्थ मलय देश में चंदन उत्पन्न होता है. चंदन में मलय से भिन्न अपने गुण होते हैं लेकिन चूँकि दैववश यह मुख्य रूप से मलय देश में उत्पन्न होता है इसलिए यह  मलय चंदन कहलाता है.

इसी प्रकार भगवान कृष्ण सबके हैं. लेकिन लेकिन जिस प्रकार सूर्य पूर्व से उदय होता है यद्यपि दूसरी दिशाएं भी है जिनसे वह उदय हो सकता है. उसी प्रकार भगवान भी अपनी रुचि से किसी विशेष कुल में प्रकट होते हैं और वह कुल विख्यात हो जाता है.

जैसा कि ऊपर वर्णन किया गया है, जब कृष्ण प्रकट होते हैं तो उनके सारे पूर्ण अंश भी उनके साथ ही प्रकट होते हैं. कृष्ण बलराम (बलदेव) के साथ प्रकट होते हैं जो उनके बड़े भाई के रूप में जाने जाते हैं. बलराम चतुर्वियुह के मूल संकर्षण हैं. वे कृष्ण के पूर्ण अंशावतार भी हैं.

यहाँ यह बताने का प्रयास किया जा रहा कि किस प्रकार कृष्ण यदु कुल में हुए और किस प्रकार उन्होंने अपने दिव्य गुणों का प्रदर्शन किया. लेकिन कृष्ण ऐसे ही किसी के यहाँ भी जन्म नहीं लेते जबतक की उनका उनके साथ कोई घनिष्ठ सम्बन्ध न हो. वे उनकी सुनते भी हैं और खुद की सुनाते भी हैं.

सामान्यता मुक्त आत्माएं ही भगवान की लीलाओं का श्रवण और आस्वादन करती हैं. जो बद्धजीव हैं, वे किसी सामान्य व्यक्ति के भैतिक कार्यकलापों की कहानियां पढ़ने में रुचि लेते हैं. यद्यपि भगवान के दिव्य कार्यकलापों से संबंधित ऐसी कथाएं श्रीमद्भागवत तथा अन्य पुराणों में पाई जाती है, तथापि बद्धजीव सामान्य कथाओं को पढ़ना पसंद करते हैं.

वे कृष्ण की लीलाओं की कथाओं को पढने में उतनी रूचि नहीं दिखाते. भगवान कृष्ण की लीलाओं के वर्णन इतने आकर्षक हैं कि वे सभी श्रेणी के मनुष्यों के लिए आस्वध्य हैं. इस संसार में तीन श्रेणी के मनुष्य हैं.

इस संसार में तीन श्रेणी के मनुष्य है – पहली श्रेणी मुक्त आत्माओं की है, दूसरी उन लोगों की है जो मुक्त होना चाहते हैं और तीसरी श्रेणी भौतिकवादी मनुष्यों की है. भगवान कृष्ण की लीलाएं इन तीनों श्रेणी के व्यक्तियों द्वारा पठनीय है.  

मुक्त आत्माओं को भौतिकवादी कार्यकलापों में कोई रुचि नहीं होती. यह मायावती सिद्धांत की मुक्ति के बाद मनुष्य निष्क्रिय हो जाता है. और उसे किसी प्रकार के श्रवण करने की आवश्यकता नहीं रहती, यह सिद्ध नहीं करता कि मुक्त पुरुष वास्तव में निष्क्रिय हो जाता है.  जीवात्मा निष्क्रिय नहीं हो सकता. वह अवस्था में अथवा मुक्त अवस्था में भी सक्रीय रहता हैं. 

उदाहरण के लिए एक रुग्न व्यक्ति भी सक्रिय रहता है. लेकिन उसके सारे कार्य कष्टदायक होते हैं. किन्तु वही व्यक्ति रोग मुक्त होने पर भी सक्रिय रहता है लेकिन रोगमुक्त अवस्था में उनके सारे कार्यकलाप आनंदमय होते हैं. इसी प्रकार से मायावादी लोग रुग्ण वृद्ध अवस्था से किसी तरह मुक्ति पाने का प्रयास करते हैं. लेकिन उन्हें स्वस्थ अवस्था के कार्यकलापों  का कोई ज्ञान नहीं रहता. 

जो लोग वास्तव में मुक्त हैं और ज्ञान से ओतप्रोत हैं, वह कृष्ण के कार्यकलापों का श्रवण करते हैं. ऐसी व्यस्तता शुद्ध आध्यात्मिक क्रिया है. जो लोग सचमुच मुक्त हैं उनके लिए अनिवार्य है कि वह कृष्ण की लीलाओं का श्रवण करें.

कृष्ण कथाएं दो प्रकार की है- एक तो वह जो कृष्ण द्वारा कही गई है और दूसरी वे जो कृष्ण के विषय में है. भगवत गीता साक्षात कृष्ण द्वारा कही गई कथा अथवा दर्शन अथवा भगवद विज्ञान है. श्रीमद्भागवत गीता कृष्ण के कार्यकलापों तथा उनकी दिव्य लीलाओं की कथा है. दोनों ही कृष्ण- कथा है. 

भगवान चैतन्य का आदेश है कि कृष्ण कथा का प्रचार सारे विश्व में हो. क्यूंकि यदि भौतिक जगत के कष्टों से दुखी बद्धजीव व्यक्ति कृष्ण -कथा का सहारा लेंगे, तो उनकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा.

इस लेख को प्रस्तुत करने का मुख्य उद्धेश्य लोगों को कृष्ण कथा को समझने के लिए प्रेरित करना है, जिससे वे भव बंधन से मुक्त हो सकें . यह कृष्ण – कथा अधिकांश भौतिकवादी व्यक्तियों को भी रुचिकर लगती है. क्योंकि गोपियों के साथ कृष्ण की लीलाएं इस भौतिक जगत में तरुणों तथा तरुणियों के प्रेम व्यापार के ही समान है. 

वस्तुत: मानव समाज में व्याप्त काम भावना अस्वाभाविक नहीं है. क्योंकि यही काम भावना आदि पुरुष भगवान में भी पाई जाती है. श्रीमती राधारानी आह्लादिनी शक्ति कहलाती है. काम भावना के आधार पर प्रेम व्यापार का आकर्षण भगवान का आदि स्वरुप है और हम बद्धजीव भी परमेश्वर के अंश होने के कारण ऐसी भावना से युक्त हैं. 

लेकिन वे उलटी सूक्ष्म दशा में अनुभव की जाती है. अतः इस जगत में जो लोग विषयी जीवन के पीछे लगे रहते हैं जब वे गोपियों के साथ कृष्ण की लीलाओं को सुनते हैं, तो उन्हें दिव्य आनंद प्राप्त होता है.

राजा परीक्षित की विशेष रूचि कृष्ण कथा सुनने के प्रति थी क्योंकि वे जानते थे कि वे उनके पूर्वज और विशेष रूप से उनके पितामह अर्जुन कृष्ण के ही कारण कुरुक्षेत्र के महा युद्ध में विजय हुए थे. हम भी इस भौतिक जगत को कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि मान सकते हैं.

प्रत्येक व्यक्ति इस युद्ध भूमि में अपने अस्तित्व के लिए कठोर संघर्ष कर रहा है और प्रत्येक पग पर खतरा बना हुआ है. महाराज परीक्षित के अनुसार कुरुक्षेत्र की भूमि युद्ध भूमि घातक पशुओं से परिपूर्ण विशाल सागर के समान थी. उनके पितामह अर्जुन को भीष्म, द्रोंण कर्ण जैसे शूरवीरों से तथा व्यक्तियों से युद्ध करना पडा जो सामान्य योद्धा नहीं थे. 

ऐसे योद्धाओं की तुलना समुद्र में तिमिंगिल मछली से की गई है.  यह तिमिंगिल मछली बड़ी से बड़ी व्हेल मछली को आसानी से निकल सकती है. कुरुक्षेत्र युद्ध भूमि में ऐसे अनेक योद्धा थे जो अर्जुन को निगल सकते थे. लेकिन कृष्ण की कृपा से ही अर्जुन सभी को मारने में समर्थ हो सके.

जिस प्रकार गोपद में भरे जल को बिना प्रयास के लांघा जा सकता है. उसी प्रकार कृष्ण की कृपा से अर्जुन भी कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि रुपी सागर को आसानी से लांघ सके.

अन्य अनेक कारणों से भी महाराज परीक्षित ने कृष्ण के कार्यकलापों की प्रशंसा की. कृष्ण के कारण न केवल उनके पितामह बचे थे, अपितु वे स्वयं भी कृष्ण के कारण ही बच सके थे.

कुरुक्षेत्र के युद्ध समाप्त होने पर कुरुवंश के सारे सदस्य यहां तक कि धृतराष्ट्र तथा पांडु दोनों पक्षों के सारे पुत्र तथा पौत्र युद्ध में काम आए. पांचो पांडव के अतिरिक्त सारे लोग कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में मारे गए. उस समय महाराज परीक्षित अपनी माता के गर्भ में थे.

उनके पिता अर्जुन पुत्र अभिमन्यु भी कुरुक्षेत्र के युद्ध में मारे गए थे. महाराज परीक्षित अपने पिता की मृत्यु के बाद उत्पन्न हुए थे. जब वे अपनी माता के गर्भ में थे तो अव्श्वत्थामा ने इस बालक को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र छोड़ा था.

जब महाराज परीक्षित की माता उत्तरा, कृष्ण के पास पहुँचीं तो कृष्ण ने गर्भपात के भय से परमात्मा के रूप में गर्भ में प्रवेश करके महाराज परीक्षित को बचाया था.

महाराज परीक्षित का दूसरा नाम विष्णुरात है. क्योंकि स्वयं भगवान कृष्ण ने गर्भ के भीतर उनकी रक्षा की थी. इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को, चाहे वह जिस अवस्था में हो, कृष्ण तथा उनके कार्यकलापों के विषय में श्रवण करने में रुचि लेनी चाहिए क्योंकि वे परम सत्य भगवान हैं. वे सर्वव्यापी हैं. जन-जन के हृदय के भीतर वास करने वाले हैं और बाहर अपने विश्व रूप में रहने वाले हैं. 

फिर भी जैसाकि भगवतगीता में कहा गया है वे मानव समाज में अपने यथारूप में प्रकट होकर प्रत्येक व्यक्ति को अपने दिव्य धाम में वापस चलने के लिए आमंत्रित करते हैं.

कृष्ण के विषय में जानने के लिए प्रत्येक व्यक्ति में रूचि होनी चाहिए. इस लेख का उद्देश्य ही है कि लोग कृष्ण के विषय में जानें और इस मनुष्य जीवन में पूर्णरूपेण लाभान्वित हो सकें.

श्रीमद्भागवत गीता के नवं स्कंध में श्री बलदेव को वसुदेव-पत्नी रोहिणी का पुत्र बताया गया है. कृष्ण के पिता वसुदेव की सोलह पत्नियां थीं जिनमे से बलराम की माता रोहिणी भी एक थीं. लेकिन बलराम को देवकी पुत्र भी कहा गया है. अतः वे देवकी तथा रोहिणी दोनों के पुत्र किस प्रकार हो सकते हैं? 

महाराज परीक्षित ने शुकदेव गोस्वामी से एक प्रश्न यह भी पूछा कि वसुदेव के पुत्र रूप में प्रकट होते ही कृष्ण को क्यों तुरंत गोकुल वृंदावन में नंद महाराज के यहां पहुंचा दिया गया? 

वे यह भी यह भी जानना चाहते हैं कि वृंदावन तथा मथुरा में रहते हुए कृष्ण ने कौन-कौन से कार्य किए?  इसके अतिरिक्त यह जानने के लिए विशेष उत्सुक थे कि उन्होंने अपने मामा कंस का वध क्यों किया?  उनकी माता का भाई होने के कारण कंस घनिष्ठ गुरुजन था. 

तो फिर उन्होंने कंस का वध क्यूँ किया? उन्होंने यह भी पूछा कि भगवान कृष्ण कितने वर्षों तक मानव समाज में रहे और कितने वर्षों तक द्वारका के राज्य पर शासन किया और वहां उन्होंने कितनी पत्नियां स्वीकार की.? 

क्षत्रिय राजा सामान्यता एक से अधिक प्रतियां स्वीकार कर सकता है, अतः महाराज परीक्षित ने उनकी पत्नियों की संख्या भी जानी चाही. इस लेख का विषय ही है महाराज परीक्षित द्वारा पूछे गए प्रश्नों का शुकदेव गोस्वामी द्वारा समाधान और जवाब, जिन्हें हम आगे की कृष्ण कथाओं के द्वारा जानेंगे.

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