प्रबोधनी एकादशी / देवउठनी ग्यारस 2022 : महत्व, पूजा विधि और कथा, Dev Uthani Gyaras Mahatva 2022 / Prabodhini Ekadashi Vrat Katha
देवउठनी ग्यारस जिसे तुलसी विवाह और प्रबोधनी एकादशी भी कहा जाता हैं. सनातन धर्म में इस दिन का बेहद ही खास महत्व होता हैं. देवउठनी ग्यारस के दिन ही भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार माह के शयन के बाद जागे थे. सनातन धर्म में इस दौरान चार माह तक कोई भी धार्मिक कार्य नहीं किया जाता हैं और देवउठनी ग्यारस के शुभ दिन से ही सभी मांगलिक और धार्मिक कार्य शुरू किये जाते हैं. इस दिन पूरे भारतवर्ष में तुलसी विवाह का भी आयोजन समारोह पूर्वक किया जाता हैं.
2022 में देवउठनी एकादशी कब है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी का त्यौहार मनाया जाता हैं. वर्ष 2022 में देवउठनी ग्यारस और तुलसी विवाह 14 नवंबर रविवार को है.
वर्ष 2022 में देव उठानी एकादशी 04 नवंबर 2022 की है, यह एकादशी 3 नवंबर को शाम 7 बजकर 30 मिनट पर शुरू होगी और 4 नवंबर 2022 की शाम 6 बजकर 08 मिनट पर यह एकादशी समाप्त होगी. हिंदू पंचाग के अनुसार इसका शुभ मुहूर्त और समय कुछ इस प्रकार है-
देवउठनी एकादशी ग्यारस पारण मुहूर्त – एकादशी के व्रत को तोड़े जाने को पारण कहते है. एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है, लेकिन यह द्वादशी तिथि के समाप्त होने से पहले पूर्ण हो जाना चाहिए. देवउठानी एकादशी 2022 का पारण समय 5 नवंबर को सुबह 6 बजकर 36 मिनट से 8 बजकर 48 मिनट तक रहेगा.
देवउठनी ग्यारस पूजा विधि (Dev Uthani Gyaras Puja Vidhi)
- दोस्तों इस तिथि को सर्वप्रथम सूर्योदय से पूर्व स्नान करना चाहिए.
- जिसके बाद पूजन करने वाले निराहार व्रत भी रखते हैं. बहुत सी महिलाएं इस दिन निर्जला उपवास भी रखती हैं.
- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती हैं.
- एकादशी के दिन घरों में चावल नहीं बनायें जाते हैं.
- कई हिंदू घरों में इस दिन भजन और कीर्तन का आयोजन किया जाते हैं.
- पौराणिक कथाओं की मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत रखने से कई जन्मों का उद्धार होता है.
देवउठनी ग्यारस कथा (Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha)
हिंदू धर्म में तुलसी को औषधीय पौधे की उपमा दी गई है, जो अपने लाभकारी गुणों के लिए जाना जाता है. यह पर्यावरण को शुद्ध तो करता ही है साथ ही वह अपने आस-पास सकारात्मक वातावरण को उत्पन्न करता है.
राक्षस जालंधर की पत्नी तुलसी थी. तुलसी सर्वगुण संपन्न एक सद्गुणों वाली स्त्री थी. राक्षस जालंधर बहुत ही दुष्ट था. रक्षस के कर्मों की कारण तुलसी बहुत दुखी रहती थी. इसलिए वह हर समय अपना मन नारायण भक्ति में व्यतीत करती थी. जालंधर के बढ़ते पापों के कारण भगवान विष्णु ने उसका संहार किया और तुलसी अपने पति की मृत्यु के बाद सती धर्म को अपनाकर सती हो गई.
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार उस सती की भस्म से ही तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ और उनके ओजस्वी विचारों एवं गुणों के कारण तुलसी का यह औषधीय पौधा आज इतना गुणकारी है. तुलसी के सत कर्मो की कारण भगवान विष्णु ने अगले जन्म में तुलसी से विवाह किया. इसीलिए देवउठनी ग्यारस के दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है.
तुलसी स्तुति मंत्र (Tulsi Sthuti Mantra)
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरै:
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये
तुलसी पूजन मंत्र
देवउठनी ग्यारस की शायरी (Dev Uthani Ekadashi Shayari)
उठो देव हमारे, उठो इष्ट हमारे
खुशियों से आंगन भर दो,
जितने मित्र रहे रहे दुख सुख में सहारे
देवउठनी ग्यारस की हार्दिक शुभकामनाएं
तुलसी संग शालिग्राम ब्याहे
सज गई उनकी जोड़ी
तुलसी विवाह संग लगन शुरू हुए
जल्दी लेकर आओ पिया डोली
शुभ तुलसी विवाह
हर घर के आँगन में तुलसी,
तुलसी बड़ी महान है,
जिस घर में यह तुलसी रहती,
वह घर स्वर्ग समान है.
तुलसी विवाह और देवउठनी ग्यारस की हार्दिक शुभकामनाएं
देवउठनी ग्यारस की आरती (Dev Uthani Gyaras Aarti)
ॐ जय एकादशी माता, जय एकादशी माता
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
पापमोचनी फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला पापमोचनी
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
चैत्र शुक्ल में नाम पापमोचनी, धन देने वाली
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥
॥ॐ जय एकादशी…॥
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥
॥ ॐ जय एकादशी…॥