हंस और उल्लू Hans Aur Ullu Panchatantra Story

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ढेर सारे वृक्षों से घिरा हुआ एक तालाब था। उसमें आराम से एक हंस रहता था। एक दिन एक उल्लू उस तालाब के पास आया और प्रसन्न होकर बोला, “आहा! कितनी सुंदर जगह है। मैंने इतनी सुंदर जगह कभी नहीं देखी।”

वहाँ रहने वाले हंस ने पूछा, “तुम यहां क्या कर रहे हो?”

हंस से मित्रता करने की इच्छा से वह बोला, “क्या तुम वही हंस हो जो यहां बहुत दिनों से रहता है? मैंने तुम्हारी बहुत तारीफ सुनी है। मैं तुमसे मित्रता करना चाहता हूं।”

मीठी बातें सुनकर हंस प्रसन्न होता हुआ बोला, “मित्र तुम हमारे अतिथि हो। मेरा आतिथ्य स्वीकार करो।”

दोनों में गाढ़ी मित्रता हो गई। एक दिन उल्लू ने कहा, “मित्र! तुमसे आतिथ्य कराते बहुत दिन हो गए। मुझे अब जाना चाहिए। कृपया, मुझे अनुमति दो।”

हंस ने उसे ध्न्यवाद दिया और उल्लू चला गया।

कुछ दिनों के बाद हंस उल्लू से मिलने गया। जिस पेड़ पर उल्लू रहता था उसके नीचे से हंस ने आवाज दी। हंस को देखकर उल्लू बहुत प्रसन्न हुआ और बोला, “इतने दिनों बाद मिले हो, तुम्हें देखकर बहुत अच्छा लग रहा है। यहीं रूको कुछ दिन।” हंस वहीं रहने लगा।

एक दिन कुछ यात्री पेड़ के पास ही ठहरे हुए थे। ज्योंही वे जाने लगे उल्लू ने बोलना शुरू कर दिया। यात्रियों ने इसे अपशकुन माना। एक ने कहा, “तुरंत उस उल्लू को मार डालो। इसका बोलना हमारे लिए अशुभ है।” दूसरे यात्री ने निशाना साधकर उल्लू पर तीर छोड़ दिया पर दुर्भाग्यवश निशाना चूक गया और हंस को लग गया। बेचारा निरीह हंस जान से हाथ धो बैठा।

शिक्षा (Panchatantra Moral): गलत लोगों से मित्रता करना भयंकर मूर्खता है।

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