जन्माष्टमी : गीता के संदेश जो जीवन में हर पल काम आएंगे

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भगवान कृष्ण द्वारा मानव मात्र को दिया गया गीता संदेश हर काल में उतना ही अनमोल है जितना महाभारत काल में था। असलियत में हम गीता को तो मानते हैं लेकिन गीता की बातों को नहीं मानते। इसलिए हमारे अंदर बदलाव नहीं आता। आज कृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में निम्न गीता के संदेशों में से यदि हम एक भी संदेश को अपने जीवन का हिस्सा बना लें, तो इससे बड़ा जन्माष्टमी व्रत नहीं हो सकता…

1/12 आत्मभाव में रहना ही मुक्ति है

नाम, पद, प्रतिष्ठा, संप्रदाय, धर्म, स्त्री पुरुष हम नहीं हैं और न यह शरीर हम है। ये शरीर अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जाएगा। लेकिन आत्मा स्थिर है और हम आत्मा हैं। आत्मा कभी न मरती है। न इसका जन्म है और न मृत्यु! आत्मभाव में रहना ही मुक्ति है।

2/12 ये हमारे शत्रु हैं

अपने क्रोध पर काबू रखो। क्रोध से भ्रम पैदा होता है और भ्रम से बुद्धि विचलित होती है। इससे स्मृति का नाश होता है और इस प्रकार व्यक्ति का पतन होने लगता है। क्रोध, कामवासना और भय ये हमारे शत्रु हैं।

3/12 इसलिए वर्तमान का आनंद लो

बीते कल और आने वाले कल की चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जो होना है वही होगा। जो होता है अच्छा ही होता है। इसलिए वर्तमान का आनंद लो।

4/12यहां सब बदलता रहता है

परिवर्तन संसार का नियम है। यहां सब बदलता रहता है। इसलिए सुख-दुःख, लाभ-हानि, जय-पराजय, मान-अपमान आदि में भेदों में एक भाव में स्थित रहकर हम जीवन का आनंद ले सकते हैं।

5/12 बंधन से मुक्त हो जाएंगे

अपने को भगवान के अर्पित कर दो। फिर वो हमारी रक्षा करेगा और हम दुःख, भय, चिन्ता, शोक और बंधन से मुक्त हो जाएंगे।

6/12भगवान के लिए अर्पण कर दो

सब कर्मों को भगवान के लिए अर्पण कर दो। ऐसा करने से हम सभी फलों से बच सकते हैं।

7/12हमारा नजरिया बदल जाएगा

हमें अपने देखने के नजरिए को शुद्ध करना होगा और ज्ञान व कर्म को एक रूप में देखना होगा, जिससे हमारा नजरिया बदल जाएगा।

8/12 वैराग्य को पक्का करते जाओ

अशांत मन को शांत करने के लिए अभ्यास और वैराग्य को पक्का करते जाओ, अन्यथा अनियंत्रित मन हमारा शत्रु बन जाएगा।

9/12कर्म करने से पहले विचार कर लेना चाहिए

हम जो भी कर्म करते हैं उसका फल हमने ही भोगना पड़ता है। इसलिए कर्म करने से पहले विचार कर लेना चाहिए।

10/12 हम अपना ही काम करें

कोई और काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है कि हम अपना ही काम करें। भले वह अपूर्ण क्यों न हो।

11/12दिनचर्या को व्यवस्थित करो

अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित करो- आहार, विहार और हमारी चेष्टाएं संतुलित होनी चाहिए। साथ ही सोने और जागने का समय भी निश्चित करना चाहिए।

12/12वियोग का नाम योग है

सभी के प्रति समता का भाव, सभी कर्मों में कुशलता और दुःख रूपी संसार से वियोग का नाम योग है।

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