कालभैरवाष्टकम् || Kaalbhairav Ashtakam

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कालभैरवाष्टकम् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित स्तोत्र है। इसका प्रवाह शिवताण्डव की तरह ही है। कालिकापुराण के अनुसार भैरव शिवजी के गण हैं। इनका वाहन कुत्ता है। यह एक उग्र किन्तु न्यायप्रिय देवता है। ऐसी मान्यता है कि इनका निवास हिंदू तीर्थ काशी नगरी के तट पर है अतः इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। आदि शंकराचार्य ने भगवान कालभैरव को प्रसन्न करने के हेतु नौ श्लोकों के एक स्तोत्र की रचना की, जिसमें से आठ श्लोक कालभैरव की महिमा तथा स्तुति करने वाले हैं और नौंवा श्लोक फलश्रुति है। इसीकारण नौ श्लोक होते हुए भी इसे कालभैरवाष्टकम् कहा जाता है। किसी भी शक्तिपीठ पर कालभैरव की पूजा और प्रसन्नता के बाद ही देवी की पूजा फलीभूत मानी जाती है। भगवान काल भैरव को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने, सभी बुराईयों को दूर रख मनः शांति पाने, धन, सुख-समृद्धि पाने शत्रु बाधा दूर करने व शत्रुओं पर विजय पाने के लिए कालभैरवाष्टकम् का नित्य पाठ करें।

श्रीकालभैरवाष्टकम् मूलपाठ

देवराज सेव्यमान पावनाङ्घ्रिपङ्कजं

व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्।

नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥ १॥

भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं

नीलकण्ठभीप्सिनार्थदायकं त्रिलोचनम् ।

कालकालमंबुजाक्ष मक्षशूलमक्षरं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥२॥

शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादि कारणं

श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।

भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥३॥

भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं

भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।

विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥४॥

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं

कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम् ।

स्वर्णवर्णशेषपाश शोभिताङ्गमण्डलं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ५॥

रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं

नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम् ।

मृत्युदर्पनाशनं कराळदंष्ट्रमोक्षणं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥६॥

अट्टहासभिन्नपद्म जाण्डकोशसन्ततिं

दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।

अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकन्धरं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥७॥

भूतसङ्घनायकं विशालकीर्तिदायकं

काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।

नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं

काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥८॥

कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं

ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।

शोकमोहदैन्यलोभ कोपतापनाशनं

ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं ध्रुवम् ॥९॥

॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं कालभैरवाष्टकं संपूर्णम् ॥

श्रीकालभैरवाष्टकम् श्लोक अर्थसहित

ॐ देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं, व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्।

नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं, काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥१॥

देवराज इंद्र जिनके पवित्र चरणों की सदैव सेवा करते है, जिन्होंने चंद्रमा को अपने शिरोभूषण के रूप में धारण किया है, जिन्होंने सर्पों का यज्ञोपवीत अपने शरीर पर धारण किया है, नारद सहित बड़े बड़े योगीवृन्द जिनको वंदन करते है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ।

भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं,नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।

कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं,काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥२॥

जो करोड़ो सूर्यों के समान तेजस्वी है,संसार रूपी समुद्र को तारने में जो सहायक है, जिनका कंठ नीला है, जिनके तीन नेत्र है, और जो सभी ईप्सित अपने भक्तों को प्रदान करते है, जो काल के भी काल (महाकाल) है, जिनके नयन कमल की तरह सुंदर है,तथा त्रिशूल और रुद्राक्ष को जिन्होंने धारण किया है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ।

शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं,श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।

भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं,काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥३॥

जिनकी कांति श्याम रूपी है, तथा शूल, टंक, पाश, दंड आदि को जिन्होंने धारण किया है, जो आदिदेव, अविनाशी तथा आदिकारण है, जो महापराक्रमी है तथा अद्भुत तांडव नृत्य करते है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ।

भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं,भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।

विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं,काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥४॥

जो भुक्ति तथा मुक्ति प्रदान करते है, जिनका स्वरूप प्रशस्त तथा सुंदर है, जो भक्तों को प्रिय है, समस्त लोकों में स्थिर और स्थित है, जिनकी कमर पे करधनी रुनझुन करती है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ।

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं,कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम् ।

स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं,काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥५॥

जो धर्म मार्ग के पालक तथा अधर्ममार्ग के नाशक है, जो कर्मपाश का नाश करने वाले तथा कल्याणप्रद दायक है, जिन्होंने स्वर्णरूपी शेषनाग का पाश धारण किया है, जिसके कारण सारा अंग मंडित हो गया है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ।

रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं,नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम् ।

मृत्युदर्पनाशनं कराळदंष्ट्रमोक्षणं,काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥६॥

जिन्होंने रत्नयुक्त पादुका (खड़ाऊ) धारण किये हैं, और जिनकी कांति अब सुशोभित है, जो नित्य निर्मल, अविनाशी, अद्वितीय है तथा सब के प्रिय देवता है, जो मृत्यु का अभियान दूर करने वाले हैं, तथा काल के भयानक दाँतो से मुक्ति प्रदान करते है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ।

अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसन्ततिं,दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।

अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकन्धरं,काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥७॥

जिनके अट्टहास से समुचित ब्रह्मांड विदीर्ण होता है, और जिनके दृष्टिपात से समुचित पापों का समूह नष्ट होता है, तथा जिनका शासन कठोर है, जिन्होंने कपालमाला धारण की है और जो आठ प्रकार की सिद्धियों के प्रदाता है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ।

भूतसङ्घनायकं विशालकीर्तिदायकं,काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।

नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं,काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥८॥

जो समस्त भूतसंघ के नायक है, तथा विशाल कीर्तिदायक है, जो काशीपुरी में रहनेवाले सभी भक्तों के पाप-पुण्यों का शोधन करते है तथा सर्वव्यापी है, जो नीतिमार्ग के वेत्ता है, पुरातन से भी पुरातन है, तथा समस्त संसार के स्वामी है, ऐसे काशीपुरी के स्वामी का मैं भजन (आराधना) करता हूँ।

कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं,ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।

शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं,ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं ध्रुवम् ॥९॥

ज्ञान और मुक्ति प्राप्त करने हेतु, भक्तों के विचित्र पुण्य का वर्धन करनेवाले, शोक, मोह, दैन्य, लोभ, कोप,ताप आदि का नाश करने हेतु, जो इस कालभैरवाष्टकम् का पाठ करते है, वो निश्चित ही कालभैरव के चरणों की प्राप्ति करते हैं।

इस प्रकार श्रीआदि शङ्कराचार्य कृत कालभैरवाष्टकम् संपूर्ण हुआ ॥

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