मीलों तक – कुंवर बेचैन

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जिंदगी यूँ भी जली‚ यूँ भी जली मीलों तक
चाँदनी चार कदम‚ धूप चली मीलों तक।

प्यार का गाँव अजब गाँव है जिसमे अक्सर
खत्म होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक।

घर से निकला तो चली साथ में बिटिया की हँसी
खुशबुएँ देती रही नन्हीं कली मीलों तक।

माँ के आँचल से जो लिपटी तो घुमड़ कर बरसी
मेरी पलकों में जो पीर पली मीलों तक।

मैं हुआ चुप तो कोई और उधर बोल उठा
बात यह है कि तेरी बात चली मीलों तक।

हम तुम्हारे हैं ‘कुँवर’ उसने कहा था इक दिन
मन में घुलती रही मिसरी की डली मीलों तक।

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