Lokmanya Bal Gangadhar Tilak biography in hindi | बाल गंगाधर तिलक का जीवन परिचय : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक थे।

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लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जीवन परिचय [जन्म तारीख, परिवार, पत्नी, कविता, पॉलिटिक्स करियर, मृत्यु] Lokmanya Bal Gangadhar Tilak biography, history, essay in hindi [family, date of birth, political career, books, death]

बाल गंगाधर तिलक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के जनक के रूप में जाने जाते है. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के पहले लीडर गंगाधर जी ही रहे थे. बाल गंगाधर तिलक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. वे एक शिक्षक, वकील, सामाजिक कार्यकर्त्ता, स्वतंत्रता संग्रामी, नेशनल लीडर थे. उन्हें इतिहास, संस्कृत, खगोलशास्त्र एवं गणित में महारथ हासिल थी. बाल गंगाधर तिलक को लोग प्यार से ‘लोकमान्य’ कहकर पुकारते थे. स्वतंत्रता के समय इन्होने कहा था ‘स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और हम इसे पाकर ही रहेंगें.’ इस नारे ने बहुत से लोगों को प्रोत्साहित किया था.  बाल गंगाधर जी पूरी तरह से महात्मा गाँधी का समर्थन नहीं करते थे, उनके हिसाब से अहिंसा सत्याग्रह पूरी तरह से अपनाना सही नहीं है, जरूरत पड़ने पर आपको हिंसा का उपयोग करना पड़ता है.

भारतीय अन्तःकरण में एक प्रबल आमूल परिवर्तनवादी थे। उनका मराठी भाषा में दिया गया नारा “स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच” (स्वराज यह मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूँगा) बहुत प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कई नेताओं से एक क़रीबी सन्धि बनाई, जिनमें बिपिन चन्द्र पाल, लाला लाजपत राय, अरविन्द घोष, वी. ओ. चिदम्बरम पिल्लै और मुहम्मद अली जिन्नाह शामिल थे।

आरम्भिक जीवन :

भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के जनक, स्वराज्य की माँग रखने वाले और कांग्रेस की उग्र विचारधारा के समर्थक बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को रत्नागिरि जिले के चिकल गाँव तालुका में हुआ था। इनके पिता का नाम गंगाधर रामचन्द्र पंत व माता का नाम पार्वती बाई गंगाधर था। कहते हैं कि इनकी माता पार्वती बाई ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से पूरे अश्विन महीने (हिन्दी कलैण्डर का महीना) में निर्जला व्रत रखकर सूर्य की उपासना की थी, इसके बाद तिलक का जन्म हुआ था। इनके जन्म के समय इनकी माता बहुत दुर्बल हो गयी थी। जन्म के काफी समय बाद ये दोनों स्वस्थ्य हुये।

बाल गंगाधर तिलक के बचपन का नाम केशव था और यही नाम इनके दादा जी (रामचन्द्र पंत) के पिता का भी था इसलिये परिवार में सब इन्हें बलवंत या बाल कहते थे, अतः इनका नाम बाल गंगाधर पड़ा। इनका बाल्यकाल रत्नागिरि में व्यतीत हुआ। बचपन में इन्हें कहानी सुनने का बहुत शौक था इसलिये जब भी समय मिलता ये अपने दादाजी के पास चले जाते और उनसे कहानी सुनते।

दादाजी इन्हें रानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे, गुरु नानक, नानक साहब आदि देशभक्तों और क्रान्तिकारियों की कहानी सुनाते थे। तिलक बड़े ध्यान से उनकी कहानियों को सुनकर प्रेरणा लेते। इन्हें अपने दादाजी से ही बहुत छोटी सी उम्र में भारतीय संस्कृति और सभ्यता की सीख मिली। इस तरह प्रारम्भ में ही इनके विचारों का रुख क्रान्तिकारी हो गया और ये अंग्रेजों व अंग्रेजी शासन से घृणा करने लगे।

शिक्षा –

पिता की मृत्यु के चार माह पश्चात इन्होंने मेट्रिक्स की परीक्षा पास की। 1876 ईo में डेक्कन कॉलेज से बीo एo ( ऑनर्स ) की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1879 ईo में बॉम्बे विश्वविद्यालय से LLB की परीक्षा पास की।

करियर –

इन्होने निर्णय किया था की ये सरकारी नौकरी नहीं करेंगे। इसके बजाय वे नई पीढ़ी को अच्छी व सस्ती शिक्षा देने के लिए प्राइवेट स्कूल या कॉलेज खोलेंगे। इन्होनें कुछ समय तक स्कूल व कॉलेज में गणित के शिक्षक के रूप में कार्य किया। ये अंग्रेजी शिक्षा के पुरजोर विरोधी थे। इनका मानना था कि अंग्रेजी भाषा भारतीय सभ्यता के प्रति अनादर सिखाती है। इन्होंने दक्कन एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना भारत के शिक्षा स्टार को सुधारने के उद्देश्य से की।

पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान –

इन्होंने अंग्रेजी भाषा में मराठा दर्पण नाम से और 1881 ईo में मराठा भाषा में केसरी नामक दो दैनिक पत्र निकाले। केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था।

राजनीतिक जीवन :

तिलक जी ने स्कूल के भार से स्वयं को मुक्त करने के बाद अपना अधिकांश समय सार्वजनिक सेवा में लगाने का निश्चय किया। अब उन्हें थोड़ी फुरसत मिली थी। इसी समय लड़कियों के विवाह के लिए सहमति की आयु बढ़ाने का विधेयक वाइसराय की परिषद के सामने लाया जा रहा था। तिलक पूरे उत्साह से इस विवाद में कूद पड़े, इसलिए नहीं कि वे समाज-सुधार के सिद्धांतों के विरोधी थे, बल्कि इसलिए कि वे इस क्षेत्र में ज़ोर-जबरदस्ती करने के विरुद्ध थे।

सहमति की आयु का विधेयक, चाहे इसके उद्देश्य कितने ही प्रशंसनीय क्यों न रहे हों, वास्तव में हिन्दू समाज में सरकारी हस्तक्षेप से सुधार लाने का प्रयास था। अत: समाज-सुधार के कुछ कट्टर समर्थक इसके विरुद्ध थे। इस विषय में तिलक के दृष्टिकोण से पूना का समाज दो भागों, कट्टरपंथी और सुधारवादियों में बँट गया। दोनों के बीच की खाई नए मतभेदों एवं नए झगड़ों के कारण बढ़ती गई।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नरम दल के लिए तिलक के विचार ज़रा ज़्यादा ही उग्र थे। नरम दल के लोग छोटे सुधारों के लिए सरकार के पास वफ़ादार प्रतिनिधिमंडल भेजने में विश्वास रखते थे। तिलक का लक्ष्य स्वराज था, छोटे- मोटे सुधार नहीं और उन्होंने कांग्रेस को अपने उग्र विचारों को स्वीकार करने के लिए राज़ी करने का प्रयास किया। इस मामले पर सन् 1907 ई. में कांग्रेस के ‘सूरत अधिवेशन’ में नरम दल के साथ उनका संघर्ष भी हुआ।

राष्ट्रवादी शक्तियों में फूट का लाभ उठाकर सरकार ने तिलक पर राजद्रोह और आतंकवाद फ़ैलाने का आरोप लगाकर उन्हें छह वर्ष के कारावास की सज़ा दे दी और मांडले, बर्मा, वर्तमान म्यांमार में निर्वासित कर दिया। ‘मांडले जेल’ में तिलक ने अपनी महान कृति ‘भगवद्गीता – रहस्य’ का लेखन शुरू किया, जो हिन्दुओं की सबसे पवित्र पुस्तक का मूल टीका है। तिलक ने भगवद्गीता के इस रूढ़िवादी सार को ख़ारिज कर दिया कि यह पुस्तक सन्न्यास की शिक्षा देती है; उनके अनुसार, इससे मानवता के प्रति नि:स्वार्थ सेवा का संदेश मिलता है।

1881 में पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश कर मराठा केसरी पत्रिका का संचालन किया । इसके माध्यम से जनजागरण व देशी रियासतों का पक्ष प्रस्तुत किया । ब्रिटिश सरकार की आलोचना के कारण उन्हें चार वर्ष का कारावास भोगना पड़ा । जेल से बाहर आकर उन्होंने डैकन एजूकेशन सोसायटी की स्थापना तथा फग्यूर्सन कॉलेज की स्थापना की । सन् 1888-89 में शराबबन्दी, नशाबन्दी व भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाते हुए पत्रों के माध्यम से कार्रवाई की ।

सन् 1889 में उन्हें बम्बई कांग्रेस का प्रतिनिधि चुन लिया गया । सन् 1891 को सरकार द्वारा विवाह आयु का स्वीकृति विधेयक का बिल उन्होंने प्रस्तुत किया । एक बार मिशन रकूल में भाषण देने पर उन्हें सनातनी हिन्दुओं के विरोध का तथा उसके प्रायश्चित के लिए काशी स्नान करना पड़ा । जनता की गरीबी को दूर करने के लिए उनकी भूमि सुधार सम्बन्धी नीतियों की काफी आलोचना हुई । 1907 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सूरत यहाँ भरे हुए अधिवेशन में जहाल और मवाल इन दो समूह में का संघर्ष बहोत बढ़ गया इसका परिणाम मवाल समूह ने जहाल समूह को कांग्रेस संघटने से निकाल दिया. जहाल का नेतृत्व लोकमान्य तिलक इनके पास था.

1908 में तिलक इनपर राजद्रोह का मामला दर्ज हुआ. उसमे उनको छे साल की सजा सुनाई गई और उन्हें ब्रम्हदेश के मंडाले के जेल में भेज दिया गया. मंडाले के जेल में महापुरुषों के अलग अलग ग्रन्थ मंगवाके ‘गीतारहस्य’ का अमर ग्रन्थ लिखा. इतनाही नहीं तो जर्मन और फ्रेंच इस दो समृद्ध भाषा में के महत्वपूर्ण ग्रन्थ पढने आने चाहिए इस लिए उन भाषाका भी अभ्यास किया.

1916 में उन्होंने डॉ. अनी बेझंट इनके सहकार्य से ‘होमरूल लीग’ इस संघटने की स्थापना की. भारतीय होमरूल आन्दोलन ने स्वयं शासन के अधिकार ब्रिटिश सरकार को मांगे. होमरूल यानि अपने राज्य का प्रशासक हम करे. एसेही ‘स्वशासन’ कहते है. ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिध्द अधिकार है और मै इसे लेकर रहूँगा’ ऐसा तिलक इन्होंने विशेष रूप से बताया. होमरूल आन्दोलन की वजह से राष्ट्रिय आन्दोलन में नवचैतन्य निर्माण हुआ.

लोकमान्य तिलक इन्होंने स्वदेशी, बहिष्कार, राष्ट्रीय शिक्षा और स्वराज्य इस चतु: सूत्री हिन्दी ये राष्ट्र भाषा होनी चाहिए ये घोषणा तिलक इन्होंने सबसे पहले की
। बाल गंगाधर तिलक पहले भारतीय नेता थे जिन्होंने यह कहा, “स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है। मैं इसे लेकर रहूँगा।” वह संस्कृत और गणित के प्रकांड पंडित थे।

विचार :

1. स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।
2. आलसी व्यक्तियों के लिए भगवान अवतार नहीं लेते, वह मेहनती व्यक्तियों के लिए ही अवतरित होते हैं, इसलिए कार्य करना आरम्भ करें।
3. मानव स्वभाव ही ऐसा है कि हम बिना उत्सवों के नहीं रह सकते, उत्सव प्रिय होना मानव स्वभाव है। हमारे त्यौहार होने ही चाहिए।
4. आप मुश्किल समय में खतरों और असफलताओं के डर से बचने का प्रयास मत कीजिये। वे तो निश्चित रूप से आपके मार्ग में आयेंगे ही।
5. प्रातः काल में उदय होने के लिए ही सूरज संध्या काल के अंधकार में डूब जाता है और अंधकार में जाए बिना प्रकाश प्राप्त नहीं हो सकता।
6. कमजोर ना बनें, शक्तिशाली बनें और यह विश्वास रखें की भगवान हमेशा आपके साथ है।
7. ये सच है कि बारिश की कमी के कारण अकाल पड़ता है लेकिन ये भी सच है कि भारत के लोगों में इस बुराई से लड़ने की शक्ति नहीं है।
8. यदि हम किसी भी देश के इतिहास को अतीत में जाएं, तो हम अंत में मिथकों और परम्पराओं के काल में पहुंच जाते हैं जो आखिरकार अभेद्य अन्धकार में खो जाता है।
9. धर्म और व्यावहारिक जीवन अलग नहीं हैं। सन्यास लेना जीवन का परित्याग करना नहीं है। असली भावना सिर्फ अपने लिए काम करने की बजाये देश को अपना परिवार बना मिलजुल कर काम करना है। इसके बाद का कदम मानवता की सेवा करना है और अगला कदम ईश्वर की सेवा करना है।

बाल गंगाधर तिलक द्वारा लिखी गई किताबें

  • गीता-रहस्य
  • वेद काल का निर्णय (The Orion)
  • आर्यों का मूल निवास स्थान (The Arctic Home in the Vedas)
  • श्रीमद्भागवतगीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र
  • वेदों का काल-निर्णय और वेदांग ज्योतिष (Vedic Chronology & Vedang Jyotish)
  • हिन्दुत्व
  • श्यामजीकृष्ण वर्मा को लिखे तिलक के पत्र

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