Madhukar Dattatraya Deoras In Hindi Biography | मधुकर दत्तात्रेय देवरस का जीवन परिचय : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तीसरे सरसंघचालक

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बालासाहब देवरस / मधुकर दत्तात्रेय देवरस का जीवन परिचय, जीवनी, परिचय, इतिहास, जन्म, शासन, युद्ध, उपाधि, मृत्यु, प्रेमिका, जीवनसाथी (Balasaheb Deoras / Madhukar Dattatreya Deoras History in Hindi, Biography, Introduction, History, Birth, Reign, War, Title, Death, Story, Jayanti)

मधुकर दत्तात्रेय देवरस, जिन्हें उनके प्रसिद्ध नाम ‘बालासाहब देवरस’ से जाना जाता है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तीसरे सरसंघचालक थे। वे स्वयंसेवकों के उस पहले दल में एक थे, जिन्होंने डॉ. हेडगेवार द्वारा ‘नागपुर के मोहितबाड़ा’ में शुरू की गई आर.एस.एस. की पहली शाखा में भाग लिया था। (यद्यपि आर.एस.एस. की स्थापना वर्ष 1925 में विजयादशमी के मौके पर की गई थी, परंतु पहली दैनिक शाखा कुछ महीनों के बाद वर्ष 1926 में शुरू की गई थी।) बालासाहब का प्रशिक्षण और किसी ने नहीं, बल्कि आर.एस.एस. के संस्थापक ने स्वयं अपने हाथों से किया था और शायद यही उन कारणों में से एक था कि लाखों स्वयंसेवकों, जिन्होंने डॉ. हेडगेवार को कभी नहीं देखा था, उन्हें बालासाहब में आर.एस.एस. संस्थापक की छवि नजर आती थी।

महाराष्ट्र के भक्ति और वारकरी संप्रदाय के बारे में कहा जाता है कि ‘ज्ञानदेव रचिला पाया, तुका झलासे कलस‘। वही तुलना की जाए तो पूर्व सरसंघचालक डाॅ. केशव बलिराम हेडगेवार के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राष्ट्रव्यापी स्थापना द्वितीय सरसंघचालक प्रो. माधव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य श्रीगुरुजी ने किया और तीसरे सरसंघचालक मधुकर दत्तात्रेय उपाख्य बालासाहब देवरस ने संघ को समाज की ओर मोड़कर उसे चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया।

श्री बाला साहब देवरस का जन्म 11 दिसम्बर 1915 को नागपुर में हुआ था। उनके पिता सरकारी कर्मचारी थे और नागपुर इतवारी में आपका निवास था। यहीं देवरस परिवार के बच्चे व्यायामशाला जाते थे 1925 में संघ की शाखा प्रारम्भ हुई और कुछ ही दिनों बाद बालसाहेब ने शाखा जाना प्रारम्भ कर दिया। स्थायी रूप से उनका परिवार मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले के आमगांव के निकटवर्ती ग्राम कारंजा का था। उनकी सम्पूर्ण शिक्षा नागपुर में ही हुई। न्यू इंगलिश स्कूल मे उनकी प्रारम्भिक शिक्षा हुई।

संस्कृत और दर्शनशास्त्र विषय लेकर मौरिस कालेज से बालसाहेब ने 1935 में बीए किया। दो वर्ष बाद उन्होंने विधि (लॉ) की परीक्षा उत्तीर्ण की। विधि स्नातक बनने के बाद बालसाहेब ने दो वर्ष तक ‘अनाथ विद्यार्थी बस्ती गृह’ मे अध्यापन कार्य किया। इसके बाद उन्हें नागपुर मे नगर कार्यवाह का दायित्व सौंपा गया। 1965 में उन्हें सरकार्यवाह का दायित्व सौंपा गया जो 6 जून 1973 तक उनके पास रहा।

श्रीगुरू जी के स्वर्गवास के बाद 6 जून 1973 को सरसंघचालक के दायित्व को ग्रहण किया। उनके कार्यकाल में संघ कार्य को नई दिशा मिली। उन्होंने सेवाकार्य पर बल दिया परिणाम स्वरूप उत्तर पूर्वाचल सहित देश के वनवासी क्षेत्रों के हजारों की संख्या में सेवाकार्य आरम्भ हुए। 1937 के पुणे संघशिक्षा वर्ग में बालासाहब मुख्य शिक्षक बनकर गए |

उस समय उनकी आयु मात्र 22 वर्ष थी | उन्होंने यह दायित्व उत्तम प्रकार से निर्वाह किया | शिक्षा वर्ग से लौटने के बाद उन्हें नागपुर का कार्यवाह नियुक्त किया गया | 1939 में की ऐतिहासिक सिंदी बैठक में बाला साहब देवरस भी उपस्थित रहे थे | उसके बाद उन्हें प्रचारक के रूप में कलकत्ता भेजा गया | पिताजी नाराज हुए किन्तु माताजी ने स्थिति संभाल ली |

डाक्टर जी का स्वास्थ्य अधिक खराब होने के चलते बालासाहब को 1940 में कलकत्ता से वापस बुला लिया गया | देशभर के विभिन्न स्थानों पर प्रचारक भेजने की जिम्मेदारी नागपुर शाखा की ही सर्वाधिक रहती थी, स्वयंसेवक को उस हेतु गढ़ना, किसे कहाँ भेजना यह जिम्मेदारी बाला साहब उत्तम रीति से संभालते थे | डाक्टर जी के निर्देश पर 1937 से 1940 के बीच गुरूजी संघ कार्य में पूरी तरह डूब गए थे |

उस समय के नवयुवक कार्यकर्ताओं को नजदीक से देखकर उनकी क्षमता व योग्यताओं का आंकलन श्री गुरूजी ने बहुत बारीकी से किया था | डाक्टर जी का अनुशरण किसने कितनी मात्रा में किया है, यह बात भी गुरूजी के निरीक्षण में आई होगी | इसी भाव को प्रदर्शित करते हुए श्रीगुरूजी ने 1943 के पुणे संघ शिक्षा वर्ग में बाला साहब का परिचय करते हुए कहा कि, “आप लोगों में अनेक स्वयंसेवक ऐसे होंगे जिन्होंने डाक्टर जी को नहीं देखा होगा |

1940 के बाद लगभग 30-32 साल तक उनकी गतिविधियों का केन्द्र मुख्यतः नागपुर ही रहा. इस दौरान उन्होंने नागपुर के काम को आदर्श रूप में खड़ा किया. देश भर के संघ शिक्षा वर्गों में नागपुर से शिक्षक जाते थे. नागपुर से निकले प्रचारकों ने देश के हर प्रान्त में जाकर संघ कार्य खड़ा किया. 1965 में वे सरकार्यवाह बने. शाखा पर होने वाले गणगीत, प्रश्नोत्तर आदि उन्होंने ही शुरू कराये. संघ के कार्यक्रमों में डा0 हेडगेवार तथा श्री गुरुजी के चित्र लगते हैं. बालासाहब के सरसंघचालक बनने पर कुछ लोग उनका चित्र भी लगाने लगे; पर उन्होंने इसे रोक दिया. यह उनकी प्रसिद्धि से दूर रहने की वृत्ति का ज्वलन्त उदाहरण है.

1973 में श्री गुरुजी के देहान्त के बाद वे सरसंघचालक बने. 1975 में संघ पर लगे प्रतिबन्ध का सामना उन्होंने धैर्य से किया. वे आपातकाल के पूरे समय पुणे की जेल में रहे; पर सत्याग्रह और फिर चुनाव के माध्यम से देश को इन्दिरा गांधी की तानाशाही से मुक्त कराने की इस चुनौती में संघ सफल हुआ. मधुमेह रोग के बावजूद 1994 तक उन्होंने यह दायित्व निभाया.

इस दौरान उन्होंने संघ कार्य में अनेक नये आयाम जोड़े. इनमें सबसे महत्वपूर्ण निर्धन बस्तियों में चलने वाले सेवा के कार्य हैं. इससे वहाँ चल रही धर्मान्तरण की प्रक्रिया पर रोक लगी. स्वयंसेवकों द्वारा प्रान्तीय स्तर पर अनेक संगठनों की स्थापना की गयी थी. बालासाहब ने वरिष्ठ प्रचारक देकर उन सबको अखिल भारतीय रूप दे दिया.

बालासाहब का प्रचारक जीवन :

बालासाहब देवरस तो बचपन से ही संघ के स्वयंसेवक रहे, पर उनका प्रचारक जीवन सन 1939 से प्रारंभ हुआ। प्रचारक बनाते ही वे सर्वप्रथम संघकार्य के विस्तार हेतु बंगाल गए। किन्तु सन 1940 में डॉ. हेडगेवार के निधन के बाद उन्हें नागपुर वापस बुला लिया गया। 1940 के बाद लगभग 30-32 साल तक उनकी गतिविधियों का केन्द्र मुख्यतः नागपुर ही रहा। इस दौरान उन्होंने नागपुर के काम को आदर्श रूप में खड़ा किया।

देशभर के संघ शिक्षा वर्गों में नागपुर से शिक्षक जाते थे। नागपुर से निकले प्रचारकों ने देश के हर प्रान्त में जाकर संघ कार्य खड़ा किया। नागपुर नगर से प्रचारकों की एक बहुत बड़ी फौज तैयार कर पूरे देश में भेजने का श्रेय बाला साहब देवरस को ही जाता है। यही नहीं जिन प्रचारकों को देश के अन्य भागों में भेजा आया उनके घर की भी पूरी चिन्ता करने का काम बालासाहब ने किया। इसके अलावा जो भी प्रचारक 10 या पांच साल बाद प्रचारक जीवन से वापस आया उसकी भी हर प्रकार की नौकरी से लेकर व्यवसाय तक की पूरी चिन्ता उन्होंने की।

नागपुर से जो प्रचारकों की खेप पूरे देश में भेजी गई उसमें स्वयं उनके भाई भाऊराव देवरस भी शामिल थे। भाऊराव देवरस को उत्तर प्रदेश भेजा गया था। भाऊराव ने लखनऊ में रहकर संघ कार्य को गति प्रदान की और एकात्म मानववाद के प्रणेता पण्डित दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे लोगों को संघ से जोड़ा।

संघ प्रेरित सत्याग्रह :

तीस जून को बाला साहब गिरफ्तार कर लिए गए और चार जुलाई को संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया | बाला साहब के गिरफ्तार होते ही संघ के अनेक ज्येष्ठ कार्यकर्ता भूमिगत हो गए | बालासाहब को पुणे के यरवडा कारागृह में रखा गया | उनके साथ संपर्क रखना सरल हो, इस कारण मुम्बई को अगले नीति निर्धारण का केंद्र बनाया गया | देश को चार भागों में बांटकर चार बरिष्ठ प्रचारकों को उनकी जिम्मेदारी सोंपी गई | लोक संघर्ष समिति के साथ संपर्क बनाए रखने का काम मोरोपंत पिंगले को दिया गया |

दक्षिण विभाग के प्रमुख यादवराव जोशी, पश्चिम के मोरोपंत पिंगले, उत्तर के राजेन्द्र सिंह और पूर्व विभाग के भाउराव देवरस ऐसा विभाजन किया गया | माधवराव मुले पर आन्दोलन की प्रमुख जिम्मेदारी सोंपी गई | प्रदेशों की राजधानियों, जिला, तहसील और गाँव गाँव तक सन्देश पहुंचाने की व्यवस्था स्थापित हुई | देश में कहाँ क्या हो रहा है, उसकी जानकारी येरवडा कारागृह में बालासाहब को सप्ताह में दो बार मिल ही जाती थी | विरोधी दलों के नेताओं के साथ संपर्क बनाए रखने का कार्य रामभाऊ गोडबोले को दिया गया था | एकनाथ जी रानाडे को शासकीय अधिकारीयों के साथ चर्चा करने की जिम्मेदारी सोंपी गई |

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