Periyar E V Ramasamy Autobiography | ई वी रामास्वामी पेरियार का जीवन परिचय : एक तमिल राष्ट्रवादी, राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता थे

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ई.वी. रामास्वामी एक तमिल राष्ट्रवादी, राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता थे। इनके प्रशंसक इन्हें आदर के साथ ‘पेरियार’ संबोधित करते थे। इन्होने ‘आत्म सम्मान आन्दोलन’ या ‘द्रविड़ आन्दोलन’ प्रारंभ किया था। उन्होंने जस्टिस पार्टी का गठन किया जो बाद में जाकर ‘द्रविड़ कड़गम’ हो गई। वे आजीवन रुढ़िवादी हिन्दुत्व का विरोध करते रहे और हिन्दी के अनिवार्य शिक्षण का भी उन्होने घोर विरोध किया। उन्होंने दक्षिण भारतीय समाज के शोषित वर्ग के लिए आजीवन कार्य किया। उन्होंने ब्राह्मणवाद और ब्राह्मणों पर करारा प्रहार किया और एक पृथक राष्ट्र ‘द्रविड़ नाडु’ की मांग की। पेरियार ई.वी. रामास्वामी ने तर्कवाद, आत्म सम्मान और महिला अधिकार जैसे मुद्दों पर जोर दिया और जाति प्रथा का घोर विरोध किया। उन्होंने दक्षिण भारतीय गैर-तमिल लोगों के हक़ की लड़ाई लड़ी और उत्तर भारतियों के प्रभुत्व का भी विरोध किया। उनके कार्यों से ही तमिल समाज में बहुत परिवर्तन आया और जातिगत भेद-भाव भी बहुत हद तक कम हुआ। यूनेस्को ने अपने उद्धरण में उन्हें ‘नए युग का पैगम्बर, दक्षिण पूर्व एशिया का सुकरात, समाज सुधार आन्दोलन के पिता, अज्ञानता, अंधविश्वास और बेकार के रीति-रिवाज़ का दुश्मन’ कहा।

ई.वी. रामासामी पेरियार
जन्म 17 सितम्बर 1879
इरोड, मद्रास प्रेजिडेंसी, ब्रिटिश भारत (अब इरोड जिला, तमिलनाडु, भारत)
मृत्यु 24 दिसम्बर 1973 (उम्र 94)
वेलोर, तमिलनाडु, भारत
अन्य नाम ई.वी.आर पेरियार, वैकम वीरारी,
व्यवसाय सामाजिक कारकुन, राजनेता, सुधारक
राजनैतिक पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
जस्टिस पार्टी
संस्थापक द्रविदर कड़गम
जीवनसाथी नगममाई (निधन 1933), मनिअमाई(1948- 1973)

पेरियार ई.वी.रामास्वामी नायकर का जन्म दक्षिण भारत के ईरोड (तमिलनाडु) नामक स्थान पर 17 सितम्बर 1879 ई. को हुआ था। इनके पिताजी का नाम वेंकटप्पा नायकर तथा माताजी का नाम चिन्नाबाई था। वर्णव्यवस्था के अनुसार शूद्र, वेंकटप्पा नायकर एक बड़े व्यापारी थे। धार्मिक कार्यों, दान व परोपकार के कार्यों में अत्यधिक रुचि रखने के कारण उन्हें उस क्षेत्र में अत्यधिक सम्मान प्राप्त था। पेरियार रामास्वामी नायकर की औपचारिक शिक्षा चौथी कक्षा तक हुई थी। 10 वर्ष की उम्र में उन्होंने पाठशाला को सदा के लिए छोड़ दिया। पाठशाला छोड़ने के पश्चात वे अपने पिताजी के साथ व्यापार के कार्य में सहयोग करने लगे। इनका विवाह 19 वर्ष की अवस्था में नागम्मई के साथ सम्पन्न हुआ।

पेरियार रामास्वामी का परिवार धार्मिक तथा रूढ़िवादी था। लेकिन अपने परिवार की परम्पराओं के विपरीत पेरियार रामास्वामी किशोरावस्था से ही तार्किक पद्धति से चिन्तन–मनन करने लगे थे। इनके घर पर अक्सर धार्मिक अनुष्ठान एवं प्रवचन होते रहते थे। रामास्वामी अपने तार्किक प्रश्नों से अनुष्ठानकर्ताओं को अक्सर संकट में डाल देते थे। उम्र बढ़ने के साथ–साथ पेरियार अपनी वैज्ञानिक सोच पर और दृढ़ होते गये। परिणामस्वरूप परिवार की अन्धविश्वास–युक्त एवं ढकोसले वाली बातें, एक के बाद एक रामास्वामी के प्रहार का निशाना बनने लगी। जो भी कार्य उन्हें अनावश्यक लगता था, या तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता, उसे अवश्य ही बन्द करने का प्रयत्न करते। उदाहरणस्वरूप– स्त्रियों द्वारा गले में पहने जाने वाला आभूषण ‘बाली’ या ‘हंसुली’ को वे बंधन या गुलामी का प्रतीक मानते थे। अतः उन्होंने अपनी पत्नी के गले से भी ‘हंसुली’ उतरवा दिया था। अपनी पत्नी व परिवार के अन्य सदस्यों को वे मन्दिर भी नहीं जाने देते थे। वे अक्सर अपने अस्पृश्य मित्रों को परिवार की परम्परा के विरुद्ध अपने घर बुलाते और साथ में भोजन करते।

पेरियार रामास्वामी का धर्म–विरुद्ध आचरण उनके परिवार के लोगों को खटकने लगा। एक सफल व्यापारी होने के कारण उनके पिताजी ने जो सम्मान और श्रद्धा अर्जित की थी, वह धीरे–धीरे घटने लगी। विशेष रूप से उनके पिताजी वेंकटप्पा नायकर को अपने धर्माचरण तथा विश्वास इतने प्रिय थे, कि वे अपने पुत्र तथा व्यापार सभी को तिलांजलि दे सकते थे। मतभेदों ने शीघ्र ही छिट–पुट कहासुनी तथा विरोधों का रूप धारण कर लिया। अन्ततः रामास्वामी ने पितृगृह छोड़ने का निश्चय कर लिया। गृहत्याग के पश्चात् रामास्वामी कुछ दिनों तक इधर–उधर घूमते रहे। बहुत दिनों तक वे संन्यासियों के साथ संन्यासी बनकर रहे। इस जीवन में उन्हें अपना स्वास्थ्य बिगड़ने के अतिरिक्त कुछ भी प्राप्त न हो सका। अन्ततः उन्होंने संन्यास जीवन त्याग दिया और पुनः अपने घर लौट आये।

गृह त्याग कर कुछ दिनों तक संन्यास जीवन व्यतीत करने के पश्चात् न तो रामास्वामी के विचार बदले न ही समाज की परिस्थितियां व समस्यायें ही बदलीं। परन्तु परिस्थितियों व समस्याओं के प्रति रामास्वामी के दृष्टिकोण में अवश्य ही परिवर्तन हो गया। इस परिवर्तन का एक कारण यह भी था कि उनके एक बार घर से चले जाने के कारण अब घर वाले भी नम्र हो गये थे। रामास्वामी ने भी अनुभव किया कि किसी बात पर सैद्धान्तिक वाद–विवाद करने, उससे टकराने या उससे बिल्कुल मुंह मोड़ लेने की अपेक्षा, उचित यह है कि उपस्थित समस्याओं पर मतभेद रखने वाले व्यक्तियों के साथ सहयोग करके उनके विचारों को बदलने का प्रयास किया जाय। इस प्रकार रामास्वामी ने अपने विचारों में परिवर्तन किये बिना, अपनी कार्यपद्धति में महत्वपूर्ण परिवर्तन किया। कार्य–पद्धति में परिवर्तन के कारण शीघ्र ही वे अपने क्षेत्र में एक सर्वप्रिय और निःस्वार्थ समाजसेवक के रूप में जन–जन के हृदय में स्थान पा गये। परिणामस्वरूप छोटी–छोटी विभिन्न संस्थाओं में रामास्वामी को विभिन्न पदों पर कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ। कांग्रेस की नीतियों और कार्यक्रमों, यथा– राजनैतिक स्वतंत्रता, सामाजिक पुनर्गठन, आर्थिक विकास आदि से प्रभावित होकर रामास्वामी कांग्रेस के सदस्य बने। सन् 1920 ई. में महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन का दक्षिण भारत में पेरियार रामास्वामी को नेतृत्व का दायित्व सौंपा गया। रामास्वामी ने इस दायित्व को पूरी गंभीरता से लिया। परिस्थिति की मांग को ध्यान में रखते हुए उन्होंने सर्वप्रथम अपने को अन्य उत्तरदायित्वों से पूर्णतः मुक्त करना आवश्यक समझा, जिससे वे पूरी तरह आन्दोलन का कार्य कर सकें। अतः सबसे पहले उन्होंने व्यापार तथा पारिवारिक दायित्व का भार अपने भाई कृष्णा स्वामी को सौंप दिया। रामास्वामी का केवल पारिवारिक दायित्व से ही मुक्त होना पर्याप्त नहीं था, क्योंकि उनका जीवन केवल पारिवारिक दायरे तक ही सीमित नहीं था। रामास्वामी उस समय उन्तीस संस्थाओं से जुड़े थे। उन्होंने एक झटके में सभी संस्थाओं से अपना संबंध–विच्छेद कर लिया और कांग्रेस के असहयोग आन्दोलन का कार्य करने के लिए पूर्ण स्वतंत्र हो गये।

पेरियार रामास्वामी ने कांग्रेस द्वारा चलाये गये विभिन्न आंदोलनों में बढ़–चढ़कर हिस्सा लिया तथा नेतृत्व भी किया। कांग्रेस द्वारा चलाये गये नशाबंदी आंदोलन के कारण अपने बाग के एक हजार से भी अधिक ताड़ के पेड़ कटवा दिया, क्योंकि नशाबंदी आंदोलन के नेतृत्वकर्ता का ताड़ के पेड़ों का मालिक बने रहना हास्यास्पद था। इसी प्रकार ‘अदालतों का बहिष्कार’ आंदोलन में रामस्वामी ने सहर्ष भारी आर्थिक हानि उठाना पसंद किया। रामास्वामी के पास उस समय लगभग पचास हजार रूपये के प्रोनोट व दस्तावेज आदि थे, जिन्हें सरकारी अदालतों की सहायता से ही प्राप्त किया जा सकता था। उन्होंने ‘अदालतों का बहिष्कार’ आंदोलन को सार्थकता प्रदान करने के लिए प्रोनोट व दस्तावेजों को फाड़कर फेंक दिया। इस आर्थिक हानि की उन्होंने कभी चर्चा भी नहीं की। ‘वाइकोम–आंदोलन’, जो अछूतों के अधिकारों के लिए कांग्रेस ने चलाया था, का नेतृत्व भी रामास्वामी नायकर ने ही किया तथा उनके गिरफ्तार होने के पश्चात् उनकी पत्नी नागम्मई एवं एस. रामनाथन ने नेतृत्व की बागडोर संभाली। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप अछूतों के अधिकारों को स्वीकार किया गया और उनके स्वतंत्र आवागमन पर लगे सारे प्रतिबंध हटा लिए गये।

जिस प्रकार रामास्वामी कांग्रेस के आंदोलनों में अपना सर्वस्व छोड़कर शामिल हो गये थे उसी प्रकार कांग्रेस से मतभेद होने पर 1925 में उन्होंने कांग्रेस को छोड़ दिया। 1931 में उन्होंने रूस, जर्मनी, इंग्लैण्ड, स्पेन, फ्रांस तथा मध्यपूर्व के अन्य देशों का भ्रमण किया। उन्होंने रूस के कल–कारखाने, कृषि–फार्म, स्कूल, अस्पताल, मजदूर संगठन, वैज्ञानिक शोध केन्द्र, उत्तम कला केन्द्र संस्थाओं का अवलोकन किया और बहुत प्रभावित हुए।

1925 में कांग्रेस के परित्याग के पश्चात् रामास्वामी ने ‘आत्मसम्मान आंदोलन’ की स्थापना की। 1926 में उन्होंने अपना संबंध ‘जस्टिस पार्टी’ से जोड़ा जो वहां की एक अब्राह्मण पार्टी थी। वहां रहकर उन्होंने अस्पृश्य और पिछड़ी जातियों की उन्नति के लिए अटूट प्रयत्न किया। 1938 में उन्हें सर्वसम्मति से जस्टिस पार्टी का अध्यक्ष चुना गया। कुछ समय के लिए स्वाभिमान आंदोलन और जस्टिस पार्टी ने एक–दूसरे के साथ घुल–मिलकर कार्य किया। 1944 में उन्होंने स्वाभिमान आंदोलन और जस्टिस पार्टी के गठबंधन से ‘द्रविड़ कषगम’ नामक संस्था की स्थापना किया। 1951 में तमिलनाडु सरकार का साम्प्रदायिक जी.ओ. (सरकारी आदेश), सुप्रीम कोर्ट द्वारा निरस्त कर दिये जाने का रामास्वामी ने प्रबल विरोध किया। फलस्वरूप संविधान के अनुच्छेद-15 व 16 में संशोधन किया गया। 15 दिसंबर, 1973 को वेल्लोर के एक अस्पताल में पेरियार रामास्वामी ने अंतिम सांसें ली।

पेरियार ई.वी. रामास्वामी नायकर के विचार :

पेरियार ई.वी. रामास्वामी नायकर के विचारों का उल्लेख करने के पूर्व उनके समय के तमिलनाडु प्रदेश की सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियों पर दृष्टिपात करना आवश्यक है। उस समय तमिलनाडु की सामाजिक संरचना उत्तर भारत की सामाजिक संरचना से कुछ भिन्न थी। वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत शिखर पर स्थिति ब्राह्मणों के पास सभी अधिकार केन्द्रित थे। शेष लगभग 93 प्रतिशत शूद्र एवं अतिशूद्र सभी प्रकार के मानवीय अधिकारों से वंचित थे। यहां पर यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि तमिलनाडु में क्षत्रियों की संख्या कुछ राजघरानों तथा वैश्यों की संख्या कुछ व्यापारिक परिवारों तक सीमित थी। दक्षिण भारत में अस्पृश्यता अपने वीभत्स रूप में प्रचलित थी। इन सामाजिक परिस्थितियों से पेरियार के विचार बहुत प्रभावित हैं।

पेरियार रामास्वामी का मत है कि दलित समस्या हिंदू धर्म एवं हिंदू समाज व्यवस्था की देन है। उनके अनुसार दलित एवं शूद्र इस देश के मूल निवासी हैं। आर्य बाहर से यहां आक्रमणकारी के रूप में आये तथा यहां के मूल निवासियों को युद्ध में पराजित करके अपना दास बना लिया। आर्यों ने यहां के मूल निवासियों को न केवल दास बनाया बल्कि उनकी समृद्धशाली सभ्यता और संस्कृतियों को भी नष्ट किया। आर्यों ने अपना वर्चस्व चिरस्थायी बनाने के उद्देश्य से वैदिक धर्म एवं वर्णव्यवस्था का निर्माण किया। ईश्वर का आविष्कार आर्यों ने भारत के मूल निवासियों को मानसिक दास बनाने के लिए किया। इसलिए रामास्वामी पेरियार ने ईश्वर, धर्म, आत्मा, पुनर्जन्म, स्वर्ग–नर्क आदि सिद्धान्तों तथा इन सिद्धान्तों का प्रचार–प्रसार करने वाले धर्म–ग्रन्थों का कड़ा विरोध किया। उनके शब्दों में, ‘धर्म एवं ईश्वर मात्र मनुष्यों के लिए है और अन्य प्राणियों के लिए नहीं। यदि वास्तव में धर्म एवं ईश्वर का अस्तित्व होता, तो समाज में समानता स्थापित होती। यदि संसार में निर्धन–धनी, शोषक–शोषित, ऊँच–नीच का भेद समाप्त कर दिया जाय तो ईश्वर और धर्म का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा।’ इसी प्रकार उन्होंने गहरी संवेदना के साथ कहा था कि ‘ईश्वर नहीं है, ईश्वर नहीं है, ईश्वर बिल्कुल नहीं है, जिसने ईश्वर का आविष्कार किया वह मूर्ख है, जो ईश्वर का प्रचार करता है वह धूर्त है, जो ईश्वर को पूजता है वह जंगली है।’ उनका कहना था कि मनुष्य के अतिरिक्त पृथ्वी के किसी अन्य प्राणी के लिए ईश्वर का कोई औचित्य नहीं है, धर्म की आवश्यकता नहीं पड़ती, जातियां नहीं बनी है, तो मात्र मनुष्यों के लिए ही ईश्वर, धर्म एवं जातियों का अस्तित्व क्यों है?

पेरियार रामास्वामी का विचार था कि दलितों एवं शूद्र को हिन्दू धर्म की मूल्य–मान्यताओं एवं ईश्वर के संजाल से मुक्त होना आवश्यक है। उनके शब्दों में, ‘मैं कहता हूं कि हिन्दुत्व एक बड़ा धोखा है, हम मूर्खों की तरह हिन्दुत्व के साथ अब और नहीं रह सकते। यह पहले ही हमारा काफी नुकसान कर चुका है। इसने हमारी मेधा को नष्ट कर दिया है। इसने हमारे मर्म को खा लिया है। इसने हमारी सम्भावनाओं को गड़बड़ा दिया है। इसने हमें हजारों वर्गों में बांट दिया है। क्या धर्म की आवश्यकता ऊंच–नीच पैदा करने के लिए होती है? हमें ऐसा धर्म नहीं चाहिए जो हमारे बीच शत्रुता, बुराई और घृणा पैदा करे।’

पेरियार मूलरूप से एक सामाजिक क्रान्तिकारी थे। वे एक बुद्धिवादी, अनीश्वरवादी एवं मानववादी थे। उनके चिंतन का मुख्य विषय समाज था, फिर भी उनके विचार और दृष्टिकोण राजनीति एवं आर्थिक क्षेत्र में परिलक्षित होते हैं, उनका अटूट विश्वास था कि सामाजिक मुक्ति ही राजनैतिक एवं आर्थिक मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगी। उनकी इच्छा थी कि अंग्रेजों के भारत छोड़ने से पहले ही सामाजिक समानता स्थापित हो जानी चाहिए। अन्यथा स्वाधीनता का यह अभिप्राय होगा कि हमने विदेशी मालिक की जगह भारतीय मालिक को स्वीकार कर लिया है। उनका सोचना था कि यदि इन समस्याओं का समाधान स्वाधीनता प्राप्ति के पहले नहीं किया गया, तो जाति व्यवस्था और उनकी बुराइयां हमेशा बनी रहेंगी। उनका कहना था कि राजनैतिक सुधार से पहले सामाजिक सुधार होना चाहिए।

हिंदू वर्ण–व्यवस्था के अनुसार दलितों एवं शूद्रों का राज्य संस्था के संचालन में हस्तक्षेप वर्जित था। आधुनिक भारत में महात्मा जोतीराव फुले ने राजनैतिक क्षेत्र में दलितों एवं शूद्रों के लिए प्रतिनिधित्व की मांग की थी। पेरियार रामास्वामी ने भी दलितों एवं शूद्रों के लिए राजनैतिक क्षेत्र में जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व देने का विचार व्यक्त किया। स्वतंत्रता आंदोलन के समय पेरियार ने कांग्रेस के सम्मेलन में जनसंख्या के अनुपात में नौकरियों में प्रतिनिधित्व संबंधी प्रस्ताव स्वीकृति कराने का प्रयास किया था। 1950 में तत्कालीन मद्रास सरकार ने पेरियार की सलाह पर नौकरियों में दलितों–पिछड़ों के लिए 50 प्रतिशत स्थान सुरक्षित करने का निर्णय लिया। मद्रास सरकार के इस निर्णय को उच्च वर्णीय व्यक्तियों द्वारा मद्रास उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी। मद्रास उच्च न्यायालय ने मद्रास सरकार के उक्त जी.ओ. को यह कहते हुए शून्य घोषित कर दिया कि यह जी.ओ. मौलिक अधिकारों के विरुद्ध है। सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय का समर्थन किया। यह याचिका मद्रास राज्य बनाम चम्पक दुरई राजन के नाम से जानी जाती है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर उस समय विधिमंत्री थे। नौकरियों में आरक्षण के लिए किया गया उनका संघर्ष निष्फल हो गया। रामास्वामी पेरियार ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध विशाल आंदोलन चलाया और संविधान में संशोधन की मांग की। फलस्वरूप संविधान में प्रथम संशोधन 18 जून 1951 को हुआ जिसमें अनुच्छेद 15 व 16 को संशोधित किया गया।

रामास्वामी पेरियार का मत है कि सरकार को सामाजिक समानता एवं एकता स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। वे सामाजिक परिवर्तन के लिए कार्य करने वाले व्यक्तियों के नियंत्रण में सरकार को संचालित करने का विचार व्यक्त करते हैं।

रामास्वामी नायकर के अनुयायियों ने उन्हें ‘थंथाई’ (पिता) ‘पेरियार’ (महान) की उपाधियों से विभूषित किया। यूनेस्को ने उन्हें ‘दक्षिण–पूर्व एशिया का सुकरात’ जैसे विशेषण से सम्मानित किया। मृत्योपरान्त यूनेस्को ने जो शील्ड प्रदान किया उस पर ,

पेरियार, अर्वाचीन विचारो के प्रणेता, दक्षिण पूर्व एशिया के सोक्रेटिस, सामाजिक क्रांति के प्रणेता और अज्ञानता, अंधविश्वास, अर्थविहीन रीतिरिवाजों के कट्टर दुश्मन..- 27/6/1970, यूनेस्को

अंकित है। इस अवार्ड द्वारा ई.वी .रामास्वामी की उपलब्धियों और प्रयासों को यूनेस्को ने मान्यता प्रदान किया है।

पेरियार के इंकलाबी बोल : जाति का उन्मूलन

  • यदि हमारे लोग जाति, धर्म, आदतों और रीति-रिवाजों में सुधार लाने को तैयार नहीं होते हैं, तो वे स्वतंत्रता, प्रगति और आत्म-सम्मान पाने की शुरूआत कैसे कर सकते हैं?
  • एक बड़ी आबादी आज अछूतों के रूप में बनी हुई है, और इससे भी बड़ी आबादी भूदासों, कुलियों, घरेलू नौकरों और गैरकानूनी बच्चों के रूप में शूद्रों के नाम पर मौजूद है। ऐसी आज़ादी किस काम की, जो इन भेदभावों को खत्म नहीं कर सकती? ऐसा धर्म, ऐसे धर्मशास्त्र और ऐसा ईश्वर किसे चाहिए, जो परिवर्तन नहीं कर सकता?
  • चूंकि इस देश में पार्टियां जातियों और समुदायों की चिंता से सम्बन्धित हैं, इसलिए राजनीति भी जनता के कल्याण की बजाए इन सांप्रदायिक दलों के लिए ही की जाती है।
  • स्वतन्त्रता की जमीन पर क्या नागरिक शूद्र (वेश्या के वारिस) हो सकते हैं? क्या नागरिकों को अछूत, दास, पापी और सेवक मानने वाले धर्म, महाकाव्य और कानून (स्मृतियां) हो सकते हैं? सोचो और कुछ करो।
  • कोई आदमी मुझसे कम नहीं है। इसी तरह, कोई भी मुझसे बेहतर नहीं है। मतलब यह कि हर व्यक्ति स्वतंत्र और समान है। इस स्थिति को पैदा करने के लिए जाति का उन्मूलन जरूरी है।
  • डॉक्टर रोगी को ठीक करते हैं, और रोग फिर रोगी को पकड़ लेता है. जब तक रोग को खत्म करने के लिए उसके मूल कारण को नहीं खोजा जायेगा, बीमारी खत्म नहीं होगी। इसलिए बीमारी होने पर हर बार एक ही तरह की दवाएं देते रहना असर करने वाला उपाय नहीं है। इसी तरह, जातिवाद की जो बीमारी हमारे समाज को नष्ट कर रही है, उसकी जब हम मूल जड़ का पता लगाएंगे, तभी उसे समाप्त किया जा सकता है।
  • जो जाति व्यवस्था जन्म के आधार पर ऊंच-नीच की शिक्षा देती है, उसे हर आधार पर नष्ट किया जाना चाहिए।
  • उस आदमी की लोग न निंदा करते हैं, और न उसे जाति से बहिष्कृत करते हैं, जो चोरी करता है, या झूठ बोलता है या बिना परिश्रम किए निठल्ला बनकर जीने का प्रयास करता है। लेकिन यदि वह अपनी जाति से बाहर खाना खाता है, या अपनी जाति के बाहर शादी करता है तो वह जाति से बहिष्कृत कर दिया जाता है। यह है इन लोगों का चरित्र और जाति की हठधर्मिता।
  • यदि किसी क्षेत्र में, दो कुंए हैं, एक में खारा पानी है, जो पीने योग्य नहीं है, और दूसरे में पीने योग्य मीठा पानी है, तो उस पीने योग्य पानी का उपयोग किसी विशेष वर्ग द्वारा किया जाता है, और दूसरी तरफ खारे पानी वाले कुंए का उपयोग दूसरे वर्ग द्वारा किया जाता है, यानी एक वर्ग अकेले उस मीठे पानी को पीने के लिए योग्य है और दूसरा वर्ग उसे पीने के लिए योग्य नहीं है, जरा इस पर विचार करें कि यह क्रूरता कितनी दर्दनाक है। हमारी जाति व्यवस्था इतनी हद तक दर्द पैदा करने के लिए इतनी स्थापित की गई है। हमारी जाति व्यवस्था इतनी हद तक पीड़ा पहुंचाने के लिए स्थापित की गई है। जब तक कि इस जाति व्यवस्था का, जो थोड़े से ब्राह्मणों को आराम पहुंचाने और बहुतों को पीड़ित करने के लिए स्थापित की गई है, इस देश से उन्मूलन नहीं किया जायेगा, तब तक हम निश्चित रूप से इन अत्याचारों से कभी छुटकारा नहीं पाएंगे।
  • हमारे अतिरिक्त इन्द्रिय-ज्ञान का उपयोग क्या है? हालांकि जानवर एक अर्थ में जातिहीन हैं; पर हम जाति के कारण, अपने छठे इन्द्रिय-ज्ञान के बावजूद, अपमान का सामना करते हैं। क्या हमें इस पर विचार नहीं करना चाहिए?
  • वर्तमान में भारत का संविधान जाति के उन्मूलन के लिए अनुकूल नहीं है। यह इसे मौलिक अधिकार के विपरीत मानता है, और साथ ही, यह सांप्रदायिक अनुपात को भी प्रतिबंधित करता है क्योंकि यह वर्ग-घृणा को मानता है। कहने के लिए कि जाति रह सकती है, लेकिन जाति के आधार पर विशेषाधिकारों का बना रहना सबसे बड़ी धोखाधड़ी है।
  • जाति संस्कृत भाषा का शब्द है। तमिल में जाति के लिए कोई शब्द नहीं है। तमिल में किसी का ‘संप्रदाय’ या ‘वर्ग’ पूछना एक रिवाज है। पर जन्म के आधार पर किसी के साथ जातीय भेदभाव नहीं किया जाता है। मानव जाति के बीच कोई जाति नहीं हो सकती है। एक ही देश के रहने वालों में जाति और जातीय भेदभाव की बात करना बहुत बड़ी शरारत है।

पेरियार के सुनहरे बोल : 

राजनीति 

  • जो लोग प्रसिद्धि, पैसा, पद पसंद करते हैं, वे तपेदिक की घातक बीमारी की तरह हैं। वे समाज के हितों के विरोधी हैं।
  • आज हमें देश के लोगों को ईमानदार और निःस्वार्थ बनाने वाली योजनाएं चाहिए। किसी से भी नफरत न करना और सभी से प्यार करना, यही आज की जरूरत है।
  • जो लोगों को अज्ञान में रखकर राजनीति में प्रमुख स्थिति प्राप्त कर चुके हैं, उनका ज्ञान के साथ कोई संबंध नहीं माना जा सकता।
  • हम जोर-शोर से स्वराज की बात कर रहे हैं। क्या स्वराज आप तमिलों के लिए है, या उत्तर भारतीयों के लिए है? क्या यह आपके लिए है या पूंजीवादियों के लिए है?क्या स्वराज आपके लिए है या कालाबाजारियों के लिए है? क्या यह मजदूरों के लिए है या उनका खून चूसने वालों के लिए है?
  • स्वराज क्या है? हर एक को स्वराज में खाने, पहनने और रहने के लिए पर्याप्त होना चाहिए। क्या हमारे समाज में आपको यह सब मिलता है? तब स्वराज कहाँ है?
  • आइए विश्लेषण करें। कौन उच्च जाति के और कौन निम्न जाति के लोग हैं। जो काम नहीं करता है, और दूसरों के परिश्रम पर रहता है, वह उच्च जाति है। जो कड़ी मेहनत करके दूसरों को लाभ प्रदान करता है, और बोझ ढोने वाले जानवर के समान बिना आराम और खाए-पिए कड़ी मेहनत करता है, उसे निम्न जाति कहा जाता है।
  • जो ईश्वर और धर्म में विश्वास रखता है, वह आजादी हासिल करने की कभी उम्मीद नहीं कर सकता।
  • जब एक बार मनुष्य मर जाता है, तो उसका इस दुनिया या कहीं भी किसी के साथ कोई संबंध नहीं रह जाता है।
  • धन और प्रचार ही धर्म को जिन्दा रखता है। ऐसी कोई दिव्य शक्ति नहीं है, जो धर्म की ज्योति को जलाए रखती है।
  • धर्म का आधार अन्धविश्वास है। विज्ञान में धर्मों का कोई स्थान नहीं है। इसलिए बुद्धिवाद धर्म से भिन्न है। सभी धर्मवादी कहते हैं कि किसी को भी धर्म पर संदेह या कुछ भी सवाल नहीं करना चाहिए। इसने मूर्खों को धर्म के नाम पर कुछ भी कहने की छूट दी है। धर्म और ईश्वर के नाम पर मूर्खता एक सनातन रीत है।
  • ब्राह्मणों ने शास्त्रों और पुराणों की सहायता से शूद्रों (वेश्या या रखैल पुत्र) को बनाया है। हमने हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया है। हमने तालाब खोदे हैं, मंदिरों का निर्माण किया है, धन दान किया है। लेकिन कौन आनंद ले रहा है? केवल ब्राह्मण आनंद ले रहे हैं।
  • ब्राह्मणों ने हमें हमेशा के लिए शूद्र बनाने की साजिश रची, जिसके परिणामस्वरुप हमें आर्य धर्म द्वारा दास के रूप में बनाया गया है। और अपने उच्च स्तर की सुरक्षा के लिए उन्होंने मंदिरों और देवताओं को बनाया है।
  • धनी लोग, शिक्षित लोग, व्यापारी और पुरोहित वर्ग जातिप्रथा, धर्म, शास्त्र और ईश्वर से लाभ उठा रहे हैं। इनकी वजह से इनको कोई परेशानी नहीं होती है। इन्हीं सब चीजों से इनका उच्च स्तर बना हुआ है।
  • इस तथ्य को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि इस भारत देश को जाति व्यवस्था द्वारा बर्बाद कर दिया गया है।
  • हम द्रविड़ियन इस देश के मूल निवासी हैं। हम प्राचीन शासक वर्ग से आते हैं। किन्तु आज हम चौथे वर्ण के अधीन बना दिए गए हैं। क्यों? हमारी इस वर्तमान अपमानजनक स्थिति के लिए हमारे पूर्वज, पुरखे और हमारे राजा ज़िम्मेदार हैं, जिन्होंने शर्मनाक व्यवहार किया था।
  • जब सभी मनुष्य जन्म से बराबर हैं, तो यह कहना कि अकेले ब्राह्मण ही उच्च हैं, और दूसरे सब नीच हैं, जैसे परिया (अछूत) या पंचम, एकदम बकवास है। ऐसा कहना शातिरपन है। यह हमारे साथ किया गया एक बड़ा धोखा है।
  • एक धर्म को प्यार को बढ़ावा देने वाला होना चाहिए। वह हर एक को दूसरों की सहायता करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। उसे हर एक को सत्य का सम्मान करना सिखाना चाहिए। दुनिया के लिए ऐसा ही धर्म आवश्यक है, जिसमें ये सारे गुण हों। एक सच्चे धर्म का इसके सिवा कोई अन्य महत्वपूर्ण काम नहीं है।
  • हमने ईश्वर को आज़ाद नहीं छोड़ा है। आप मंदिर-गोपुरम (टावर) क्यों चाहते हैं? आप पूजा करना क्यों चाहते हैं? आप एक पत्नी; गहने क्यों चाहते हैं? आप स्वर्ण और हीरे के आभूषण क्यों चाहते हैं? आप भोजन क्यों चाहते हैं? क्या आप खाना खाते हैं? क्या आप देवदासियों का आनंद ले रहे हैं, जो आपको अपनी पत्नियों की तरह बुलाती हैं? हमने ईश्वर को आज़ाद नहीं छोड़ा है। हमने उसे प्रश्नों की बौछार के साथ परेशान किया है। अब तक कोई ईश्वर उत्तर देने के लिए आगे नहीं आया है। कोई ईश्वर विरोध करने के लिए आगे नहीं आया है। किसी भी ईश्वर ने हमला करने या दंडित करने की हिम्मत नहीं की।
  • ये लम्बे और शंकु जैसे टावर किसने बनाए हैं? उनके शिखर पर सोने की परत किसने चढ़ाई? नटराज के लिए सोने की छत किसने बनाई? एक हजार खम्भों वाला मंडपम किसने बनाया? चॉकलेटियों (कारवाँ सराय) के लिए कड़ी मेहनत किसने की? क्या इनमें से किसी भी मंदिर, टैंक और धर्मार्थ चीजों के लिए दान के रूप में एक भी पाई ब्राह्मण ने दी है? जब यह सच है, तो ब्राह्मणों को कुछ भी योगदान किए बिना उच्च जाति बनकर क्यों रहना चाहिए? उन्हें हमें धोखा देने की अनुमति क्यों दी जानी चाहिए? यही कारण है कि, हम साहसपूर्वक भगवान को चुनौती दे रहे हैं। ईश्वर ने लोगों का कुछ भी भला नहीं किया है। यही कारण है कि, हम भगवान से पूछते हैं कि क्या वह वास्तव में भगवान है या केवल पत्थर है? ईश्वर गूंगा और अचल रहकर हमारे आरोपों को स्वीकार कर रहा है। इसलिए कोई भी भगवान हमारे खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करने अदालत में नहीं गया है।
  • अगर धर्म यह कहे कि मनुष्य को मनुष्य का सम्मान करना चाहिए, तो हम कोई आपत्ति नहीं करेंगे। अगर धर्म यह कहे कि समाज में न कोई उच्च है और न नीच, तो हम उस धर्म के खिलाफ आवाज नहीं उठाएंगे।अगर धर्म यह कहे कि किसी को भी उसकी पूजा करने के लिए कुछ भी खर्च करने की ज़रूरत नहीं है, तो हम उस भगवान का विरोध नहीं करेंगे।
  • ब्राह्मण आपको ईश्वर के नाम पर मूर्ख बना रहे हैं। वह आपको अन्धविश्वासी बनाता है। वह आपको अस्पृश्य के रूप में निंदा करके बहुत ही आरामदायक जीवन जीता है। वह आपकी तरफ से भगवान को प्रार्थना करके खुश करने के लिए आपके साथ सौदा करता है। मैं इस दलाली के व्यवसाय की दृढ़ता से निंदा करता हूँ और आपको चेतावनी देता हूँ कि इस तरह के ब्राह्मणों पर विश्वास न करें।
  • रूढ़िवादी हिंदुओं के लिए सबूत है कि कुछ देवताओं ने मुस्लिम लड़कियों को जीवन-साथी बना लिया है। ऐसे भी देवता हैं, जो अस्पृश्य समुदाय की लड़कियों से प्यार करते थे और उनसे विवाह करते थे।
  • हालांकि ब्राह्मण जातियों के मामले में सौदा करने के लिए आगे आ सकते हैं, पर जब तक कृष्णा और उनकी गीता यहां है, जातियों का अंत होने वाला नहीं हैं।
  • ईश्वर सद्गुणों का प्रतीक है। उसे रूप धारण करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उसका भौतिक अस्तित्व ही नहीं है।
  • इंग्लैंड में न कोई शूद्र है, और न परिया अछूत। रूस में आपको वर्णाश्रम धर्म या भाग्यवाद नहीं मिलेगा। अमरीका में, लोग ब्रह्मा के मुख से या पैरों से पैदा नहीं होते हैं। जर्मनी में भगवान भोग नहीं लगाते हैं। टर्की में देवता विवाह नहीं करते हैं। फ्रांस में देवताओं के पास 12 लाख रुपये का मुकुट नहीं है। इन देशों के लोग शिक्षित और बुद्धिमान हैं। वे अपना आत्मसम्मान खोने के लिए तैयार नहीं होते हैं। बल्कि, वे अपने हितों और अपने देश की सुरक्षा के लिए तैयार होते हैं। अकेले हमें क्यों बर्बर देवताओं और धार्मिक कट्टरवाद को मानना चाहिए।
  • उस ईश्वर को नष्ट कर दो, जो तुम्हें शूद्र कहता है। उन पुराणों और महाकाव्यों को नष्ट कर दो, जो हिन्दू ईश्वर को सशक्त बनाते हैं। यदि कोई ईश्वर वास्तव में दयालु, हितैषी और बुद्धिमान है, तो उसकी प्रार्थना करो।
  • प्रार्थना क्या है? क्या इससे नारियल टूट रहा है? क्या यह ब्राह्मणों को पैसे दे रही है? क्या यह त्यौहारों में है? क्या यह ब्राह्मणों के चरणों में गिर रही है? क्या यह मन्दिर बना रही है? नहीं, यह हमारे अच्छे व्यवहार में निहित है। हमें बुद्धिमान लोगों की तरह व्यवहार करना चाहिए। प्रार्थना का यही सार है।

समाज 

  • एक समय था, जब हमें तमिल कहा जाता था। पर आज तमिल का प्रयोग तमिल भाषा के लिए किया जाता है। अत: आर्य संस्कृति और आर्य सभ्यता के लोग भी इसलिए अपने आप को तमिल कहते हैं, क्योंकि वे तमिल बोलते हैं। इतना ही नहीं, वे हम पर आर्य सभ्यता को भी थोपना चाहते हैं। मैं कहता हूं कि आज हमें उनके साथ सहयोग करने के कारण ही शूद्र कहा जाता है।
  • हम रक्त के बारे में चिंतित नहीं हैं। हम संस्कृति और सभ्यता के बारे में चिंतित हैं। हम भेदभाव रहित समाज चाहते हैं। हम समाज में किसी के भी साथ प्रचलित भेदभाव के कारण अलगाव नहीं चाहते हैं।
  • हिन्दू धर्म और जाति-व्यवस्था नौकर और मालिक का सिद्धांत स्थापित करती है। अगर भगवान हमारे पतन का मूल कारण है, तो भगवान को नष्ट कर दो। अगर यह काम मनु धर्म, गीता या कोई अन्य पुराण कर रहा है, तो उन्हें भी जलाकर राख कर दोI अगर यह काम मन्दिर, कुंड या पर्व करता है, तो उनका भी बहिष्कार करो। अंतत: यह हमारी राजनीति है, तो इसे आगे आगे बढ़कर खुलेआम घोषित करो।
  • मनुष्य मनुष्य बराबर है। कोई शोषण नहीं होना चाहिए।हर एक को दूसरे की मदद करनी चाहिए। किसी को भी किसी का नुक्सान नहीं करना चाहिए। किसी को भी कोई कष्ट या शिकायत नहीं होनी चाहिए। हर किसी को राष्ट्रीय भावना के साथ जीना चाहिए और दूसरे को भी जीने देना चाहिए।
  • स्वाभिमान आन्दोलन का आदर्श क्या है? इस आन्दोलन का मकसद उन संगठनों का पता लगाना है, जो हमारी प्रगति में बाधक बने हुए हैं। यह उन ताकतों का मुकाबला करेगा, जो समाजवाद के खिलाफ काम करते हैं। यह समस्त धार्मिक प्रतिक्रियावादी ताकतों का विरोध करेगा। यह उन लोगों का विरोध करता है, जो कानून-व्यवस्था भंग करते हैं। स्वाभिमान आन्दोलन शान्ति और प्रगति के लिए काम करता है। यह प्रतिक्रियावादियों को कुचल देगा।
  • एक समाजवादी समाज को तैयार करने के लिए और आम आदमी तथा दलित वर्गों का हित करने के लिए स्वाभिमान आंदोलन शुरू किया गया था। पर समाज के सभी वर्गों में शांति और संतोष स्थापित करना भी आज आंदोलन की एक और ज़िम्मेदारी है।
  • यदि लोग और देश समृद्ध हैं, तो शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अनुशासन में भारी सुधार किया जाना चाहिए ।
  • द्रविड़ियन आन्दोलन ब्राह्मणवाद के खात्मे तक सक्रिय और जिन्दा रहेगा। तब तक हमारे दुश्मनों या सरकार द्वारा हमारे साथ कुछ भी अत्याचार, दमन, साजिश और विश्वासघात किया जा सकता है, पर हमें विश्वास है कि अंत में सफलता निश्चित रूप से हमारी होगी।
  • मुझे ब्राह्मण प्रेस द्वारा ब्राह्मण-विरोधी के रूप में चित्रित किया गया है। किन्तु मैं व्यक्तिगत रूप से किसी भी ब्राह्मण का दुश्मन नहीं हूँ। एकमात्र तथ्य यह है कि मैं ब्राहमणवाद का धुर विरोधी हूँ। मैंने कभी नहीं कहा कि ब्राह्मणों को खत्म किया जाना चाहिए। मैं केवल यह कहता हूँ कि ब्राह्मणवाद को खत्म किया जाना चाहिए। ऐसा लगता है कि कोई ब्राह्मण स्पष्ट रूप से मेरी बात समझ नहीं पाता है।
  • जातियां नहीं होनी चाहिए। जन्म के कारण स्वयं को उच्च या निम्न नहीं बुलाया जाना चाहिए। यही वह चीज है, जो हम चाहते हैं। अगर हम यह कहते हैं, तो यह गलत कैसे है?
  • कांग्रेस पार्टी से अकेले ब्राह्मण और धनी लोग ही लाभ उठा रहे हैं।यह आम आदमी, गरीब आदमी और श्रमिक वर्गों के लिए अच्छा काम नहीं करेगी। यह बात मैं काफी लम्बे समय से कह रहा था। आप लोगों ने मेरी बातों पर विश्वास नहीं किया। पर अब आप लोग कांग्रेस शासन में चीजों को देखने के बाद, सच्चाई को महसूस कर रहे हैं।
  • जब मैं तमिलनाडू कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष था, तो मैंने 1925 के सम्मेलन में एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। उस प्रस्ताव में मैंने जातिविहीन समाज के निर्माण का समर्थन किया था। मेरे मित्र राजगोपालाचारी ने अस्वीकृत कर दिया थाI मैंने यह भी अनुरोध किया था कि कांग्रेस के विभिन्न पक्षों और क्षेत्रों में सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का पालन किया जाना चाहिए। पर यह प्रस्ताव भी विषय समिति में थिरु वि. का. (एक सम्मानित तमिल विद्वान कल्यानासुन्दरानर) के द्वारा अस्वीकृत कर दिया गया थाI तब मुझे अपने प्रस्ताव के समर्थन में 30 प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर प्राप्त करने के लिए कहा गया था। श्री एस. रामानाथन ने 50 प्रतिनिधियों से हस्ताक्षर प्राप्त कर लिए। तब सर्वश्री सी. राजगोपालाचारी (राजाजी), श्रीनिवास आयंगर, सत्यमूर्ति और अन्य लोगों ने अपना प्रतिरोध दर्ज करायाI उन्हें डर था कि अगर मेरा प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया, तो कांग्रेस खत्म हो जाएगीI बाद में यह प्रस्ताव थिरु वि. का. और डा. पी. वरदाराजुलू के द्वारा रोक दिया गयाI ब्राह्मण बहुत खुश हुएI इतना ही नहीं, उन्होंने मुझे सम्मेलन में बोलने की इजाजत भी नहीं दी, यह केवल उस दिन हुआ, जब मैंने कांग्रेस पार्टी में प्रमुख ताकतों से लड़ने की अपील की थी। मैंने सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व लागू करने के लिए संघर्ष करने के लिए संकल्प किया। मैंने सम्मेलन में अपना दृढ़ निश्चय घोषित किया और मैं कांग्रेस सत्र से बाहर चला गया। उसी दिन से मैं कांग्रेस पार्टी की चाल, षड्यंत्र और धोखाधड़ी की गतिविधियों का खुलासा कर रहा हूं।
  • जिसे भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहा जाता है, वह चीज बहुत पहले ही गायब हो गई। जो लोग सरकार के खिलाफ वैध आरोप लगाते हैं, उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है। उन पर स्वतंत्रता के दुश्मनों के रूप में झूठा आरोप लगाया जाता है।
  • उन व्यक्तियों के विवरण जानिए, जिन्होंने पहले ही धन और लाभ अर्जित कर लिए हैं। इस बुराई को रोकने के लिए साधन क्या तैयार किये। क्या हमें किसी व्यक्ति को इस तरह धन इकट्ठा करने की अनुमति देनी चाहिए?
  • कांग्रेस और अंग्रेजों के बीच हुए समझौते के कारण यह सरकार अस्तित्व में आई है। यह वह स्वतंत्रता नहीं है, जो सभी भारतीयों को दी गई है। इस स्वतंत्रता से गैर-कांग्रेसी लोगों को कोई लाभ नहीं हुआ है। वे कहीं भी प्रतिनिधित्त्व नहीं करते हैं। जातिवाद की बुराई भी गायब नहीं हुई है।
  • आर्यों ने द्रविड़ों को दीपावली, राम का जन्मदिन, कृष्ण का जन्मदिन त्यौहार मनाने के लिए बनाए। इसी तरह उत्तर भारतीयों ने स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए 15 अगस्त बनाया। इस सब के सिवा कोई अन्य लाभ या प्रशंसनीय कार्य नहीं है।
  • प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है। यह उसका अभिव्यक्ति के अपने अधिकार के प्रयोग करने का अधिकार है। इस अधिकार को अस्वीकार करना अन्यायपूर्ण है। बोलने की आजादी लोकतंत्र का आधार है।

श्रमिक 

  • अमीर लोग जो मजदूरों का शोषण करते हैं और अपनी संपत्ति की रक्षा करने की कोशिश करते हैं और जो लोग एक खुशहाल जीवन का आनंद लेना चाहते हैं और जो लोग अधिक धन के लिए भगवान से याचना करते हैं और जो मृत्यु के बाद भी नाम और प्रसिद्धि चाहते हैं और जो अपनी संपत्ति अपने बेटों और पोतों के लिए छोड़ना चाहते हैं, वे हमेशा शाश्वत चिंता में रहते हैं। किन्तु एक कठोर श्रम करने वाले श्रमिक के साथ ऐसा नहीं है।
  • विश्व में श्रम समस्या हमेशा लोगों की समस्या है। यह श्रमिक ही है, जो विश्व में सब कुछ बनाता है। लेकिन यह श्रमिक ही चिंताओं, कठिनाइयों और दुःखों से गुजरता है।
  • कुरल (Kural) एक दुर्लभ किताब है जो जाति, धर्म, भगवान और अंधविश्वास से ऊपर है। यह उच्च गुणों और प्रेम की प्रतीक है।
  • तिरुवल्लुवार का कुरल अकेला ग्रन्थ है, जो हमारे देश के लोगों को शिक्षित करने के लिए पर्याप्त है।

बुद्धिवाद 

  • ज्ञान का आधार सोच है। सोच का आधार तर्कवाद है।
  • कोई भी अन्य जीवित प्राणी अपने ही वर्ग को नुकसान नहीं पहुंचाता है। कोई भी अन्य जीवित प्राणी अपने ही वर्ग को निम्न स्तर का नहीं बनाता है। कोई भी अन्य जीवित प्राणी अपने ही वर्ग का शोषण नहीं करता है। लेकिन मनुष्य, जो एक बुद्धिमान जीवित प्राणी कहा जाता है, इन सभी बुराइयों को करता है।
  • भेदभाव, घृणा, शत्रुता, ऊँच-नीच, गरीबी, दुराचरण इत्यादि, जो अब समाज में प्रचलित हैं, वह ज्ञान और तर्कवाद की कमी के कारण हैं। वे भगवान या समय की क्रूरता के कारण नहीं हैं।
  • विदेशी ग्रहों को संदेश भेज रहे हैं। हम ब्राह्मणों के माध्यम से हमारे मृत पूर्व पिता को चावल और अनाज भेज रहे हैं। क्या यह बुद्धिमानी का काम है?
  • मैं ब्राह्मणों के लिए एक शब्द कहना चाहता हूं, ‘भगवान, धर्म, शास्त्रों के नाम पर आपने हमें धोखा दिया है। हम शासक लोग थे। अब धोखा देने के इस जीवन को खत्म करो। तर्कवाद और मानवता के लिए जगह दो।’
  • मैंने 17 साल की उम्र में ही इन देवताओं और ब्राह्मणों का विरोध किया था। तब से आज तक, पिछले 53 सालों से मैं तर्कवाद का उपदेश दे रहा हूँI क्या मैं इसके लिए मारा गया हूँ? क्या मैं अपमानित किया गया हूँ? बिल्कुल नहीं। तो, आप डरते क्यों हैं? ज्ञान की तलाश करो।

सुधार 

  • आम आदमी सोचता है कि शादी काम करने के लिए किसी की नियुक्ति करने की तरह है। पति भी ऐसा ही सोचता है! पति का परिवार भी ऐसा ही सोचता है। हर कोई सोचता है कि एक लड़की काम करने के लिए परिवार में आ रही है। लड़की का परिवार भी लड़की को घर का काम करने के लिए प्रशिक्षित करता है।
  • शादी का मतलब क्या है? खुशी के साथ प्राकृतिक जीवन का आनंद लेने के लिए एक पुरुष और एक स्त्री परस्पर एक होते हैं। कड़ी मेहनत के बाद उससे सन्तोष मिलता है। ज्यादातर लोगों को यह एहसास नहीं होता कि विवाहित जीवन के साझा सुख विवाह हैं।
  • विवाह के परिणाम युगल की इच्छाओं के कारण होने चाहिए। यह उन हृदयों की बुनाई है, जो शादी का कारण बनते हैं।
  • बाल विवाह खत्म होने चाहिए। अगर तलाक का अधिकार है, तो विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए भी अधिकार हो और यदि महिलाओं को अब कुछ अधिकार दिए गए हैं, तो हम देश में वेश्यावृत्ति को नहीं देखेंगे। यह धीरे-धीरे गायब हो जाएगी।
  • एक पुरुष को आनंद के लिए, जो वह चाहता है, भटकने का अधिकार है। उसे कितनी ही लड़कियों से शादी करने का अधिकार है। इस प्रवृत्ति ने स्त्रियों को वेश्यावृत्ति की ओर अग्रसर किया है।
  • कोई भी राजनेता और अर्थशास्त्री समाज-सुधार की उन वास्तविक योजनाओं को स्वीकार करने को तैयार नहीं है, जिनकी समाज को जरूरत है।
  • मुझ पर दुनिया को बर्बाद करने का आरोप लगाया जाता है। दुनिया को बर्बाद करके मैं क्या हासिल करने जा रहा हूँ? मुझे समझ में नहीं आता कि ब्राह्मण भक्त वास्तव में क्या महसूस करते हैं। क्या कोई दुनिया को बर्बाद करने के लिए प्रचार करेगा? मुझे उम्मीद है कि वे जल्द ही इस पर तर्कसंगत विचार करेंगे।
  • यह पता लगाना बुद्धिमान लोगों का कर्तव्य है कि खादी आन्दोलन से देश को कोई लाभ हुआ है या नहीं? आज के आधुनिक औद्योगिक और राजनीतिक दौर में यह केवल एक अनाचारवाद है।
  • गरीबी का मूल कारण समाज में पूंजीपतियों का अस्तित्व है। यदि समाज में पूंजीपति लोग नहीं रहेंगे, तो गरीबी नहीं होगी।
  • जब तक हम शासक वर्गों को चाहते रहेंगे, यहां चिंताएं और चिंतित लोग बने रहेंगे। इसी वजह से देश में गरीबी और महामारी हमेशा बनी हुई है।
  • यदि हम मंदिरों की संपत्ति और मंदिरों में अर्जित आय को नए उद्योग शुरू करने के लिए खर्च कर दें, तो न कोई भिखारी, न कोई अशिक्षित और न कोई निम्न स्तर वाला व्यक्ति होगा। एक समाजवादी समाज होगा, जिसमें सब समान होंगे।
  • जब से ब्राह्मण यहां आए (तमिलनाडु), शायद ही कभी हम किसी से पूछते हैं कि ब्राह्मण क्यों? शूद्र क्यों? यहां तक कि जिन लोगों ने पूछा था, उन्हें शांत कर दिया गया। वल्लुवार और कपिलर ने भी स्पष्ट रूप से कहा कि जन्म से कोई उच्च और निम्न जाति नहीं है। ब्राह्मण उनके विचारों का विरोध नहीं कर सके। उन्होंने बस उनके विचारों का प्रचार नहीं किया।
  • मूर्तियों तथा वेदों को, जो अज्ञानता पैदा करते हैं, और उपनिषद, मनुस्मृति, बाराथम जैसे लोगों को मूर्ख बनाने वाले ग्रन्थों को हमारी तमिलनाडु की सीमाओं से बाहर निकाल दिया जायेगा।
  • मैंने ब्राह्मणों को तुच्छ मानने के लिए कुछ भी नहीं बोला है, सिर्फ इसलिए कि वे ब्राह्मणों के रूप में पैदा हुए हैं।
  • कांग्रेस पार्टी का नेता ब्राह्मण है। सोशलिस्टों का नेता ब्राह्मण है। कम्युनिस्टों का नेता ब्राह्मण है। हिन्दू महासभा का नेता ब्राह्मण है। आरएसएस का नेता ब्राह्मण है। ट्रेड यूनियन का नेता ब्राह्मण है। भारत का राष्ट्रपति ब्राह्मण है। वे सभी दिलों के दिल में हैं।

2 thoughts on “Periyar E V Ramasamy Autobiography | ई वी रामास्वामी पेरियार का जीवन परिचय : एक तमिल राष्ट्रवादी, राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता थे

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