Maitreyi Devi Autobiography | मैत्रेयी देवी का जीवन परिचय : अपने प्रेम की दास्तां सुनाने वाली लेखिका

1

हमारा समाज प्रेम को पारंपरिक भाषा में बांध कर रखता है। उस पर जाति, धर्म, लिंग, नस्ल आदि के आधार पर बीसों शर्तें लगाता है। इन सभी शर्तों को तोड़ती मैत्रेयी देवी अपने प्रेम की सच्ची कहानी बेतकल्लुफ़ी और दृढ़ता से अपने बंगाली उपन्यास ‘ना हन्यते’ में बताती हैं। यह उपन्यास काल्पनिक नहीं है बल्कि मैत्रेयी ने अपनी कहानी अमृता के माध्यम से बताई है। यह वास्तव में रोमानिया के प्रसिद्ध लेखक और मैत्रेयी के पूर्व-प्रेमी मिर्चा इलियाडे के उपन्यास ‘बंगाल नाइट्स’ की प्रतिक्रिया में लिखा गया था।

मैत्रेयी देवी का जन्म साल 1914 में कोलकत्ता के प्रतिष्ठित संस्कृत विद्वान डॉ. सुरेन्द्रनाथ दासगुप्ता के घर में हुआ। इन्होंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी के जगमाया देवी कॉलेज से अपनी स्नातक पूर्ण की। इनके परिवार का रबीन्द्र नाथ टैगोर जी से नाता था। मैत्रेयी जी को बचपन से लिखने का शौक़ था। इनकी पहली किताब तब छपी जब वह केवल 16 वर्ष की थीं। उस किताब की प्रस्तावना स्वयं टैगोर द्वारा लिखी गई थी। यह सांप्रदायिक सौहार्द संवर्द्धन समिति (कॉउन्सिल फ़ॉर प्रमोशन ऑफ कम्युनल हार्मनी) की संस्थापक रही। इसके साथ ही यह राष्ट्रीय महिला समन्वय समिति (ऑल इंडिया वीमेन कोआर्डिनेशन कॉउन्सिल) की उपाध्यक्ष भी रहीं।

इलियाडे इनके पिता के शिष्य थे और कुछ दिनों के लिए इनके घर पर संस्कृत और दर्शन-विज्ञान पढ़ने आए थे। यहीं दोनों को एक दूसरे से प्रेम हुआ। जब इस प्रेम का सच मैत्रेयी के घरवालों को पता लगा, तो इलियाडे को वापिस भेज दिया गया। इसके बाद दोनों अपनी-अपनी ज़िंदगी जीने लगे। मैत्रेयी देवी का विवाह बीस साल की उम्र में 34 वर्ष के डॉ. मनमोहन सेन से हुआ, जो मुंगपु में सिनकोना फैक्टरी में मुख्य केमिस्ट थे। यह दोनों अपने दो बच्चों के साथ जीवन जीने लगे। बच्चों के बावजूद भी मैत्रेयी जी दिन में अपने पढ़ने के लिए समय निकालती थीं। यह टैगोर से भी लगातार चिट्ठी-व्यवहार से अपने मन की बातें सांझा कर लेती थीं। टैगोर और इनका रिश्ता बहुत सहज था। टैगोर मैत्रेयी के विवाह के बाद भी उनसे मिलने उनके घर जाया करते थे। इन सभी यादगार किस्सों को इन्होंने अपनी किताब ‘मुंगपुते रबीन्द्रनाथ’ में दर्ज़ किया है।

बंगाल नाइट्स

आधी उम्र गुज़र जाने पर 58 वर्ष की उम्र में मैत्रेयी जी पुनः कलकत्ता में रहने लगी। वहाँ एक दिन उनकी मुलाक़ात सेर्गेई-अल-जॉर्ज से हुई। जॉर्ज भी रोमानिया से थे और इलियाडे के अच्छे मित्र थे। यहाँ से मैत्रेयी देवी को ज्ञात हुआ कि इलियाडे ने ‘मैत्रेयी’ के नाम से एक उपन्यास लिखा है – ‘ला नुइट बेंगाली’, जिसमें उनकी प्रेम कहानी का वर्णन किया गया है। मैत्रेयी ने कहीं से इस किताब का अनुवाद खोजा और उसे पढ़ना शुरू किया। जो उन्होंने पढ़ा, वह उनके लिए अविश्वसनीय था। उस उपन्यास में कल्पनाओं का समावेश था। उसमें जिन बातें और प्रेम के किस्सों का ज़िक्र था, वह उनके बीच कभी घटी ही नहीं। इलियाडे ने अपनी ही फैंटेसी दुनिया में मैत्रेयी को सेक्स की वस्तु बनाकर प्रस्तुत किया था।

और पढ़ें : ताज बेग़म : मुग़ल काल की कवयित्री और कृष्ण भक्त जिन्हें भूला दिया गया

मैत्रेयी की प्रतिक्रिया 

मैत्रेयी अपने प्रेम के इस रूप को पढ़कर आहत हुई। उन्होंने इलियाडे से मिलकर उससे जवाब माँगने की ठानी। उन्होंने यह सारी कहानी अपने पति को सुनाई जिन्होंने मैत्रेयी का साथ दिया और यह दोनों साल 1973 में इलियाडे से मिलने यू.एस. ए को रवाना हुए। मैत्रेयी ने अपने साहित्यिक नेटवर्क से इलियाडे का पता किया। इलियाडे से मिलकर मैत्रेयी ने बिना हिचकिचाए उनसे पूछा कि उन्होंने दुनिया के सामने उनकी बदनामी क्यों की? इलियाडे का कहना था कि उन्होंने अपने उपन्यास में मैत्रेयी को वैसे ही प्रस्तुत किया है जैसी वह उसके मन में है। इलियाडे ने अपनी कल्पना और फैंटेसी की मैत्रेयी को उपन्यास में गढ़ा है ताकि वह उनके प्रेम को और उसे सम्मान दे सकें।

मैत्रेयी देवी अपने प्रेम की सच्ची कहानी बेतकल्लुफ़ी और दृढ़ता से अपने बंगाली उपन्यास ‘ना हन्यते’ में बताती हैं।

मैत्रेयी का दिल पसीज गया और उनके मन की दबी आकांक्षाएं पुनः जाग उठी। कुछ देर बाद देखने पर मैत्रेयी ने धयान दिया कि इलियाडे ने उनसे नज़रें नहीं मिलाई हैं। तब उन्हें यह अहसास हुआ कि इलियाडे अपनी दृष्टि खो चुके हैं। मैत्रेयी को यह जानकर धक्का लगा। दोनों दोबारा मिलने का वादा कर एक दूसरे से अलग हो गए।

ना हन्यते

इस मुलाकात के ठीक एक साल बाद साल 1974 में मैत्रेयी देवी द्वारा लिखा गया उपन्यास ‘ना हन्यते’ (इट डस नॉट डाई) प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास ने साहित्य जगत में तूफ़ान मचा दिया। यह कहानी मैत्रेयी देवी की ज़िंदगी की अर्द्ध-आत्मकथा थी। इसमें उन्होंने बेझिझक और दृढ़ता से अपने इलियाडे के साथ प्रेम का वर्णन किया। उन्होंने इलियाडे के साथ बिताए गए समय को बहुत ही ख़ूबसूरती से बयां किया। बंगाल नाइट्स के विपरीत इसमें उनका मकसद यह साबित करना था कि उनके प्रेम संबंध में हवस और सेक्स का कोई लेना-देना नहीं था। वह प्रेम अद्वितीय था और अपनी पराकाष्ठा पर था।

सच्चाई और आत्मविश्वास से लिखी गई इस कहानी पर लोगों ने बहुत सवाल भी उठाए। कई लोगों ने यह इल्ज़ाम भी लगाए कि उम्र के इस पड़ाव में आकर मैत्रेयी देवी जी सब लिखी गई बातों के बारे में इतनी आश्वस्त कैसे हो सकती हैं। लेकिन इससे मैत्रेयी जी का जज़्बा और उनकी ताकत और बढ़ गई क्योंकि वह जानती थी कि उन्होंने जो लिखा है, बेपरवाही से सच लिखा है। इस उपन्यास की लहर कुछ यूँ फैली कि इसके लिए इन्हें साहित्य अकादमी सम्मान से भी नवाज़ा गया। एक ही प्रेम कहानी का अपना-अपना अनुभव बताकर, दो अद्भुत कहानियां लिख कर, मैत्रेयी देवी जी साल 1990 में और इलियाडे साल 1986 में यह दुनिया छोड़कर चले गए।

और पढ़ें : एक थी अमृता प्रीतम: पंजाबी की पहली लेखिका

1 thought on “Maitreyi Devi Autobiography | मैत्रेयी देवी का जीवन परिचय : अपने प्रेम की दास्तां सुनाने वाली लेखिका

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *