मयूरेश्वर स्तोत्र अत्यन्त ही महत्वपूर्ण, त्वरित सफलतादायक, विघ्नों, बाधाओं और कठिनाइयों को दूर करने में समर्थ तथा रोग निवारण, सफलता एवं जीवन में समस्त प्रकार की भौतिक सुविधाओं को प्रदान करने में समर्थ व सर्वश्रेष्ठ है। यहाँ श्रीगणेश-पुराण के छटवां खण्ड में वर्णित देव, ऋषि-मुनि आदि द्वारा भगवान् मयूरेश का स्तोत्रम्(स्तुति) मूलपाठ व इसका संक्षिप्त भावार्थ सहित पाठकों के लाभार्थ दिया जा रहा है।
मयूरेश्वर स्तोत्रम्
सर्वे उचुः ।
परब्रह्मरूपं चिदानन्दरूपं परेशं सुरेशं गुणाब्धिं गुणेशम् ।
गुणातीतमीशं मयूरेशवंद्यं गणेशं नताः स्मो नताः स्मो नताः स्मः ॥ १॥
जगद्वन्द्यमेकं पराकारमेकं गुणानां परं कारणं निर्विकल्पम् ।
जगत्पालकं हारकं तारकं तं मयूरेशवंद्यं नताः स्मो नताः स्मः ॥ २॥
महादेवसूनुं महादैत्यनाशं महापूरुषं सर्वदा विघ्ननाशम् ।
सदा भक्तपोषं परं ज्ञानकोशं मयूरेशवंद्यं नताः स्मो नताः स्मः ॥ ३॥
अनादिं गुणादिं सुरादिं शिवाया महातोषदं सर्वदा सर्ववंद्यम् ।
सुरार्यंतकं भुक्तिमुक्तिप्रदं तं मयूरेशवंद्यं नताः स्मो नताः स्मः ॥ ४॥
परं मायिनं मायिनामप्यगम्यं मुनिध्येयमाकाशकल्पं जनेशम् ।
असंख्यावतारं निजाज्ञाननाशं मयूरेशवंद्यं नताः स्मो नताः स्मः ॥ ५॥
अनेकक्रियाकारकं श्रुत्यगम्यं त्रयीबोधितानेककर्मादिबीजम् ।
क्रियासिद्धिहेतुं सुरेन्द्रादिसेव्यं मयूरेशवंद्यं नताः स्मो नताः स्मः ॥ ६॥
महाकालरूपं निमेषादिरूपं कलाकल्परूपं सदागम्यरूपम् ।
जनज्ञानहेतुं नृणां सिद्धिदं तं मयूरेशवंद्यं नताः स्मो नताः स्मः ॥ ७॥
महेशादिदेवैः सदा ध्येयपादं सदा रक्षकं तत्पदानां हतारिम् ।
मुदा कामरूपं कृपावारिधिं तं मयूरेशवंद्यं नताः स्मो नताः स्मः ॥ ८॥
सदा भक्तिं नाथे प्रणयपरमानंदसुखदो
यतस्त्वं लोकानां परमकरुणामाशु तनुषे ।
षडूर्मीनां वेगं सुरवर विनाशं नय विभो
ततो भक्तिः श्लाघ्या तव भजनतोऽनन्यसुखदात् ॥ ९॥
किमस्माभिः स्तोत्रं सकलसुरतापालक विभो
विधेयं विश्वात्मन्नगणितगुणानामधिपते ।
न संख्याता भूमिस्तव गुणगणानां त्रिभुवने
न रूपाणां देव प्रकटय कृपां नोऽसुरहते ॥ १०॥
मयूरेशं नमस्कृत्य ततो देवोऽब्रवीच्च तान् ।
य इदं पठते स्तोत्रं स कामान् लभतेऽखिलान् ॥ ११॥
सर्वत्र जयमाप्नोति मानमायुः श्रियं पराम् ।
पुत्रवान् धनसम्पन्नो वश्यतामखिलं नयेत् ॥ १२॥
सहस्रावर्तनात्कारागृहस्थं मोचयेज्जनम् ।
नियुतावर्तनान्मर्त्यो साध्यं यत्साधयेत्क्षणात् ॥ १३॥
इति श्रीगणेशपुराणे उत्तरखण्डे बालचरित्रे मयूरेश्वरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
मयूरेश्वर स्तोत्रम् संक्षिप्त भावार्थ
भगवान् मयुरेश ने दैत्यराज उग्रेक्षण का वध कर मुनिगण, देवगण आदि सभी के विघ्न दूर कर देने पश्चात् देवता, ऋषि-मुनि आदि सब मयूरेश की स्तुति करने लगे-
‘जो प्रभु परब्रह्म, चिदानन्द, सदानन्दस्वरूप, सभी देवताओं के अधीश्वर, परमेश्वर, गुणों के समुद्र एवं गुणों के स्वामी किन्तु गुणों से परे हैं, उन आदिदेव परमात्मा मयूरेश को हम नमस्कार करते हैं । जो संसार भर के एकमात्र वन्दनीय, एकमात्र ओंकार, गुणों के परम कारण, कल्प रहित, विश्वपालक, संहारक और उद्धार करने वाले हैं, उन आदिदेव मयूरेश को हम नमस्कार करते हैं। हे गजानन ! हे गणराज ! वस्तुतः हम आपके योग्य सुन्दर स्तवन में समर्थ नहीं हैं । आप समस्त गुणों के भण्डार और सम्पूर्ण विश्व के प्रेमपात्र हैं । आपके गुणों का वर्णन करने की हममें शक्ति नहीं है । आपका संसार-रचना का क्रम समुद्र के समान अपार और अकथनीय है । हे प्रभो ! आपने अपने वचन का निर्वाह कर दिया तथा समस्त दैत्यों का संहार कर देवताओं और ऋषि-मुनियों को सुखी बना दिया ।’
इस प्रकार गणेश पुराण उत्तरखण्ड अंतर्गत मयूरेश्वर स्तोत्रम् संक्षिप्त भावार्थ सहित पूर्ण हुआ ।