नरक चतुर्दशी 2022 की पूजा विधि / Naraka Chaturdashi (Roop Chaudas) Puja Vidhi And Story in Hindi

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Narak Chaturdashi 2022 Date Puja Vidhi: दीवाली का त्योहार 5 दिवसीय पर्व होता है. इसी के अंतर्गत दीवाली के एक दिन पहले नरक चतुर्दशी होती है. इसे नरक चौदस व रूप चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन यमराज की उपासना की जाती है. इसके अलावा नरक चतुर्दशी को  कृष्ण पूजा और काली पूजा किए जाने का भी विधान है. हिंदू पंचांग के मुताबिक, नरक चतुर्दशी का त्योहार हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है. इस बार नरक चतुर्दशी का पर्व 23 अक्टूबर को मनाया जाएगा.

हिंदू धर्म ग्रंथों के मुताबिक नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्री कृष्ण की आराधना का विधान भी है. इस दिन इनकी पूजा विशेष महत्व रखती है. नरक चतुर्दशी से जुड़ी एक कथा के अनुसार, नरकासुर एक राक्षस था जिसका वध भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से किया था. जिस दिन उन्होंने नरकासुर का संहार किया उस दिन नरक चतुर्दशी ही थी. इसीलिए इस दिन कई जगहों पर भगवान कृष्ण की विशेष आराधना की जाती है,

नरक चतुर्दशी 2022 शुभ मुहूर्त (Narak Chaturdashi 2022 Shubh Muhurt)

  • कार्तिक चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ : अक्टूबर 23, 2022 को 06:03 PM बजे
  • कार्तिक चतुर्दशी तिथि समाप्त : अक्टूबर 24, 2022 को 05:27 PM बजे
  • नरक चतुर्दशी 23 अक्टूबर दिन रविवार को है.
  • काली चौदस 23 अक्टूबर 2022 रविवार को
  • काली चौदस मुहूर्त : 23 अक्टूबर को 11:40 PM से 24 अक्टूबर को 12:31 AM तक
  • पूजा अवधि : 00 घण्टे 51 मिनट

नरक चतुर्दशी पूजन विधि (Narak chaturdashi puja vidhi)

इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करने की परंपरा है. और स्नान में चन्दन का उबटन एवं तिल के तेल का उपयोग किया जाता है तथा नहाने के पश्चात भगवान सूर्य को अर्ध्य अर्पित किया जाता है.

इस दिन धर्मराज यम की भी पूजा की जाती है. और रात्रि के समय घर की दहलीज पर दीपों की माला से सज्जा की जाती है. इस दिन अंजनी पुत्र हनुमान की भी पूजा की जाती है.

नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथाएं (Stories of Naraka Chaturdashi)

नरक चतुर्दशी मनाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित है.

  • प्रथम कथा

एक कथा के अनुसार रंतिदेव नामक एक धर्मात्मा राजा थे. रंतिदेव धर्म के कार्य में सदैव आगे रहते थे. उन्होंने अपने जीवन काल में कोई भी पाप नहीं किया था. जब उनकी मृत्यु का समय निकट आया तो उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हुए. यमदूत को सामने देख राजा रंतिदेव अचंभित हो गए और उन्होंने धर्मराज से कहा कि मैंने तो जीवन में कोई भी पाप नहीं किया है फिर आप मुझे लेने क्यों आए हैं. जब भी धर्मराज हम किसी को लेने आते हैं तो इसका मतलब उस व्यक्ति को नर्क में जाना पड़ता है. राजा रंतिदेव ने कहा कि आपके यहां आने का मतलब मुझे नर्क में जाना होगा. आप बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे यह सजा मिल रही है.

यमराज ने राजा रंतिदेव से कहा कि हे राजन एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था यह उसी कर्म का फल है. इसके बाद राजा ने यमदूत से 1 वर्ष का समय मांगा. धर्मराज ने राजा रंतिदेव को 1 वर्ष का समय दिया. राजा रंतिदेव अपनी समस्या को लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्होंने अपनी सारी व्यथा बताई और अपनी समस्या का समाधान पूछा. तब ऋषि ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन आप व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उनके प्रति अपने द्वारा हुए अनचाहे अपराधों के लिए क्षमा याचना करें. ऋषियों द्वारा बताए गए उपाय को राजा ने अक्षरशः पालन किया. इस प्रकार राजा अपने पाप से मुक्त हुए और उन्हें नर्क की जगह विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ. इसलिए नर्क से मुक्ति हेतु कार्तिक चतुर्दशी या नरक चतुर्दशी के दिन लोग व्रत करते हैं.

  • द्वितीय कथा

इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने दानव नरकासुर का वध किया था. नरकासुर ने देवताओं की माता अदिति के आभूषण छीनकर, सभी देवताओं, सिद्ध पुरुषों और राजाओं की 16100 कन्याओं का अपहरण कर उन्हें बंदी बना लिया था. नरकासुर ने वरुण देवता को भी छत्र से वंचित कर दिया था. भगवान श्री कृष्ण ने सभी देवताओं की रक्षा करने हेतु नरक चतुर्दशी के दिन है राक्षस नरकासुर का वध किया था. और सभी कन्याओं को उसकी कैद से मुक्त किया था. लेकिन देवताओं ने श्री कृष्ण से कहा कि समाज इन कन्याओं को स्वीकार नहीं करेगा. इसलिए आप ही इस समस्या का निदान करें. यह सुनकर श्री कृष्ण ने समाज में कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए सत्यभामा की सहायता से सभी कन्याओं से विवाह किया था.

नरक चौदस को रूप चतुर्दशी क्यूँ कहा जाता हैं ? (Why Narak Chaturdashi Called Roop Chaudas)

हिरण्यगर्भ नामक राजा ने अपना राज पाठ छोड़कर साधना करने का निश्चय किया और कई वर्षों तक तपस्या की. परंतु तपस्या के दौरान उनके शरीर पर कीड़े लग गए और उनका शरीर सड़ गया था. हिरण्यगर्भ इस बात से बहुत दुखी हुए और उन्होंने अपनी इस व्यथा को देव ऋषि नारद के समक्ष व्यक्त किया. तब देव ऋषि नारद ने उनसे कहा कि आपने साधना के दौरान शरीर की स्थिति सही नहीं रखी थी इसलिए यह आपके ही कर्मों का फल है. तब हिरण्यगर्भ ने इस समस्या का समाधान पूछा तो देव ऋषि नारद ने उनसे कहा कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष में त्रयोदशी तिथि के दिन अपने शरीर पर उबटन का लेप लगाकर सूर्योदय के पूर्व स्नान करना. स्नान के पश्चात भगवान सूर्य को अर्ध्य देकर सौंदर्य के देवता श्री कृष्ण की पूजा कर उनके आरती करना. आपको पुनः आपका सौंदर्य प्राप्त हो जाएगा. हिरण्यगभ ने ऐसा ही किया और अपने शरीर को स्वस्थ किया. इसी कारण इस दिन को रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है.

क्यों नरक चतुर्दशी के दिन हनुमान जयंती भी मनाई जाती है.

एक प्राचीन मान्यता के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन भगवान हनुमान ने माता अंजनी के गर्भ से जन्म लिया था. इसलिए सभी दुखों एवं कष्टों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए बल और बुद्धि के देवता हनुमान जी की पूजा की जाती है. यह उल्लेख वाल्मीकि की रामायण में मिलता है. इस प्रकार भारतवर्ष में 2 बार हनुमान जयंती का अवसर आता है. हिंदू वर्ष के अनुसार चेत्र माह की पूर्णिमा और कार्तिक मास की चतुर्दशी के दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है.

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