ब्राह्मण और ब्रह्मराक्षस Pandit And Evil Panchatantra Story

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एक गांव में द्रोण नाम का ब्राह्मण रहता था। भिक्षा मांगकर अपनी जीविका चलाता था। एक बार किसी यजमान ने ब्राह्ममण पर दया करके उसे बैलों की जोड़ी दे दी। अच्छे भरण-पोषण से दोनों बैल खूब मोटे-तोजे हो गए। उन्हें देखकर क्रूरकर्म नाम के चोर के मन में लालच आ गया।

ब्राह्मण के घर जाते समय रास्ते में उसे लंबे दांत, लाल आंखों, तेज नाखून और उभरी हुई नाक वाला एक भयंकर आदमी मिला। भयभीत चोर ने पूछा, “तुम कौन हो?”

उसने कहा, “मैं ब्रह्मराक्षस हूं, तुम कौन हो और कहां जा रहे हो?”

चोर ने उत्तर दिया, “मैं चोर हूं और ब्राह्ममण के घर बछड़े चुराने जा रहा हूं।”

राक्षस ने कहा, “मैंने कई दिनों से कुछ नहीं खाया है।‘ चलो, आज उस ब्राह्मण को खाकर भूख मिटाऊंगा।”

रात में दोनों ब्राह्मण के घर पहुंचे। ब्राह्मण के सो जाने पर राक्षस उसे खाने के लिए जब आगे बढ़ने लगा तो चोर ने उसे रोकते हुए कहा, ‘यह सही नहीं है। पहले मैं बैलों की जोड़ी चुरा लूं फिर तुम अपना काम करना।‘

राक्षस ने कहा, “बैलों को चुराते समय यदि खटका हुआ तो ब्राह्मण जाग जाएगा फिर मैं खा नहीं पाऊंगा।” पर चोर अपनी बात पर अड़ा रहा।

दोनों के बहस से ब्राह्मण जाग गया। उसने ध्यान से दोनों की बातें सुनीं और सारी-बात समझ गया। पूरी तरह से सावधान होकर उसने अपने प्रभु को याद किया और लाठी-उठाकर दोनों को वहां से खदेड़ दिया।

शिक्षा (Moral): आपस में लड़ने से तीसरा लाभ ले लेता है।

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