पार्वती स्तोत्रम् || Parvati Stotram – सीताकृतं पार्वतीस्तोत्रम्
यदि कुमारी कन्या माता गौरी का व्रत रख इस स्तोत्र का पाठ करती है, तो उसे माँ दुर्गा की कृपा से उन्हें शीघ्र ही रूपवान तथा गुणवान् पति की प्राप्ति होती है। जिन कन्याओं के विवाह में यदि अड़चन आ रहा हो तो इस स्तोत्र के पाठ से शीघ्र ही उनका विवाह हो जाता है। काण्व-शाखा में वर्णित पार्वती स्तोत्रम् द्वारा परमेश्वरी पार्वती का स्तवन करके सत्यपरायणा सीता ने शीघ्र ही कमल-नयन श्रीराम को प्रियतम पति के रूप में प्राप्त किया था। वह स्तोत्र यह है।
सीताकृतं पार्वतीस्तोत्रम्
जानक्युवाच ।।
शक्तिस्वरूपे सर्वेषां सर्वाधारे गुणाश्रये ।
सदा शंकरयुक्ते च पतिं देहि नमोऽस्तु ते ।।१।।
सृष्टिस्थित्यंतरूपेण सृष्टिस्थित्यन्तरूपिणी ।
सृष्टिस्थित्यन्तबीजानां बीजरूपे नमोऽस्तु ते ।।२ ।।
हे गौरि पतिमर्मज्ञे पतिव्रतपरायणे ।
पतिव्रते पतिरते पतिं देहि नमोस्तु ते ।। ३ ।।
सर्वमंगलमाङ्गल्ये सर्वमंगलसंयुते ।
सर्वमंगलबीजे च नमस्ते सर्वमंगले ।।४।।
सर्वप्रिये सर्वबीजे सर्वाशुभविनाशिनि ।
सर्वेशे सर्वजनके नमस्ते शंकरप्रिये ।। ५ ।।
परमात्मस्वरूपे च नित्यरूपे सनातनि ।
साकारे च निराकारे सर्वरूपे नमोऽस्तु ते ।। ६ ।।
क्षुत्तृष्णेच्छा दया श्रद्धा निद्रा तन्द्रा स्मृतिः क्षमा ।
एतास्तव कलाः सर्वा नारायणि नमोऽस्तु ते ।। ७ ।।
लज्जा मेधा तुष्टिपुष्टी शान्तिसंपत्तिवृद्धयः ।
एतास्तव कलाः सर्वाः सर्वरूपे नमोऽस्तु ते ।। ८ ।।
दृष्टादृष्टस्वरूपे च तयोर्बीजफलप्रदे ।
सर्वानिर्वचनीये च महामाये नमोऽस्तु ते ।। ९ ।।
शिवे शंकरसौभाग्ययुक्ते सौभाग्यदायिनि ।
हरिं कान्तं च सौभाग्यं देहि देवि नमोऽस्तु ते ।। १० ।।
स्तोत्रेणानेन याः स्तुत्वा समाप्तिदिवसे शिवाम् ।
नमन्ति परया भक्त्या ता लभन्ते हरिं पतिम् ।।११ ।।
इह कान्तसुखं भुक्त्वा पतिं प्राप्य परात्परम् ।
दिव्यं स्यन्दनमारुह्य यात्यन्ते कृष्णसन्निधिम् ।। १२ ।।
इति श्रीब्रह्मवैवर्ते सीताकृतं पार्वतीस्तोत्रम् ।।
पार्वती स्तोत्र भावार्थ सहित
जानक्युवाच ।।
शक्तिस्वरूपे सर्वेषां सर्वाधारे गुणाश्रये ।
सदा शंकरयुक्ते च पतिं देहि नमोऽस्तु ते ।।१।।
जानकी बोलीं– सबकी शक्तिस्वरूपे! शिवे! आप सम्पूर्ण जगत की आधारभूता हैं। समस्त सद्गुणों की निधि हैं तथा सदा भगवान शंकर के संयोग-सुख का अनुभव करने वाली हैं; आपको नमस्कार है। आप मुझे सर्वश्रेष्ठ पति दीजिये।
सृष्टिस्थित्यंतरूपेण सृष्टिस्थित्यन्तरूपिणी ।
सृष्टिस्थित्यन्तबीजानां बीजरूपे नमोऽस्तु ते ।।२ ।।
सृष्टि, पालन और संहार आपका रूप है। आप सृष्टि पालन और संहाररूपिणी हैं। सृष्टि, पालन और संहार के जो बीज हैं, उनकी भी बीजरूपिणी हैं; आपको नमस्कार हैं।
हे गौरि पतिमर्मज्ञे पतिव्रतपरायणे ।
पतिव्रते पतिरते पतिं देहि नमोस्तु ते ।। ३ ।।
पति के मर्म को जानने वाली पतिव्रतपरायणे गौरि! पतिव्रते! पत्यनुरागिणि! मुझे पति दीजिये; आपको नमस्कार है।
सर्वमंगलमाङ्गल्ये सर्वमंगलसंयुते ।
सर्वमंगलबीजे च नमस्ते सर्वमंगले ।।४।।
आप समस्त मंगलों के लिये भी मंगलकारिणी हैं। सम्पूर्ण मंगलों से सम्पन्न हैं, सब प्रकार के मंगलों की बीजरूपा हैं; सर्वमंगले! आपको नमस्कार है।
सर्वप्रिये सर्वबीजे सर्वाशुभविनाशिनि ।
सर्वेशे सर्वजनके नमस्ते शंकरप्रिये ।। ५ ।।
आप सबको प्रिय हैं, सबकी बीजरूपिणी हैं, समस्त अशुभों का विनाश करने वाली हैं, सबकी ईश्वरी तथा सर्वजननी हैं; शंकरप्रिये! आपको नमस्कार है।
परमात्मस्वरूपे च नित्यरूपे सनातनि ।
साकारे च निराकारे सर्वरूपे नमोऽस्तु ते ।। ६ ।।
परमात्मस्वरूपे! नित्यरूपिणि! सनातनि! आप साकार और निराकार भी हैं; सर्वरूपे! आपको नमस्कार हैं।
क्षुत्तृष्णेच्छा दया श्रद्धा निद्रा तन्द्रा स्मृतिः क्षमा ।
एतास्तव कलाः सर्वा नारायणि नमोऽस्तु ते ।। ७ ।।
क्षुधा, तृष्णा, इच्छा, दया, श्रद्धा, निद्रा, तन्द्रा, स्मृति और क्षमा– ये सब आपकी कलाएँ हैं; नारायणि! आपको नमस्कार है।
लज्जा मेधा तुष्टिपुष्टी शान्तिसंपत्तिवृद्धयः ।
एतास्तव कलाः सर्वाः सर्वरूपे नमोऽस्तु ते ।। ८ ।।
लज्जा, मेधा, तुष्टि, पुष्टि, शान्ति, सम्पत्ति और वृद्धि– ये सब भी आपकी ही कलाएँ हैं; सर्वरूपिणि! आपको नमस्कार है।
दृष्टादृष्टस्वरूपे च तयोर्बीजफलप्रदे ।
सर्वानिर्वचनीये च महामाये नमोऽस्तु ते ।। ९ ।।
दृष्टि और अदृष्ट दोनों आपके ही स्वरूप हैं, आप उन्हें बीज और फल दोनों प्रदान करती हैं, कोई भी आपका निर्वचन (निरूपण) नहीं कर सकता है, महामाये! आपको नमस्कार है।
शिवे शंकरसौभाग्ययुक्ते सौभाग्यदायिनि ।
हरिं कान्तं च सौभाग्यं देहि देवि नमोऽस्तु ते ।। १० ।।
शिवे! आप शंकरसम्बन्धी सौभाग्य से सम्पन्न हैं तथा सबको सौभाग्य देने वाली हैं। देवि! श्रीहरि ही मेरे प्राणवल्लभ और सौभाग्य हैं; उन्हें मुझे दीजिये। आपको नमस्कार है।
स्तोत्रेणानेन याः स्तुत्वा समाप्तिदिवसे शिवाम् ।
नमन्ति परया भक्त्या ता लभन्ते हरिं पतिम् ।।११ ।।
जो स्त्रियाँ व्रत (गौरीव्रत) की समाप्ति के दिन इस स्तोत्र से शिवादेवी की स्तुति करके बड़ी भक्ति से उन्हें मस्तक झुकाती हैं; वे साक्षात श्रीहरि को पतिरूप में प्राप्त करती हैं।
इह कान्तसुखं भुक्त्वा पतिं प्राप्य परात्परम् ।
दिव्यं स्यन्दनमारुह्य यात्यन्ते कृष्णसन्निधिम् ।। १२ ।।
इस लोक में परात्पर परमेश्वर को पति रूप में पाकर कान्त-सुख का उपभोग करके अन्त में दिव्य विमान पर आरूढ़ हो भगवान श्रीकृष्ण के समीप चली जाती है।
इति श्रीब्रह्मवैवर्ते सीताकृतं पार्वतीस्तोत्रम् ।।