पवित्री धारण मंत्र तथा उस से जुडी जानकारी – Pavitri dharan | Holy wearing mantra and information related to it

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पवित्री कुशा से बनायी गई एक प्रकार की अंगूठी होती है जिसे पूजा पाठ, धार्मिक कार्य करते समय हमें अपनी दयने हात कि अनामिक उंगली में धारण करनी चाहिए। कुशा की महत्वता सोने की पवित्री से अधिक है।

सुवर्ण से भी सुध पवित्री को माना गया हैं। पवित्री दो प्रकार की होती है:- दो कुशों से बनायी हुई पवित्री तथा तीन कुशों से बनायी गयी पवित्री।

पवित्री धारण (Pavitri dharan) क्यों और कैसे करनी चाहिए।

पवित्री को स्नान, संध्योपासन, पूजन, जप, होम, वेदाध्ययन और पितृकर्म में धारण करना आवश्यक है। जो भि कार्य बीना पवित्री धारण किये करे जाते हैं वह सभी कार्य पूर्ण फल दायक नहीं होते।

दो कुशोंसे बनायी हुई पवित्री दाहिने हाथकी अनामिकाके मूल भाग में तथा तीन कुशोंसे बनायी गयी पवित्री बायीं अनामिका के मूल में ‘ॐ भूर्भुवः स्वः ‘ मन्त्र पढ़कर धारण करे।

दोनों पवित्रियाँ देवकर्म, ऋषिकर्म तथा पितृकर्म में उपयोगी हैं। इन दोनों पवित्रियों को प्रतिदिन बदलना आवश्यक नहीं है। स्नान, संध्योपासनादि के पश्चात् यदि इन्हें पवित्र स्थान में रख दिया जाय तो दूसरे कामों में बार-बार धारण किया जा सकता है।

पवित्री पहन कर आचमन करने मात्र से ‘कुश’ जूठा नहीं होता। अतः आचमनके पश्चात् इसका त्याग भी नहीं होता। हाँ , पवित्री पहनकर यदि भोजन कर लिया जाय, तो वह जूठी हो जाती है और उसका त्याग अपेक्षित है।

जूठी हो या श्राद्ध किया जाय, तब इन्हें त्याग देना चाहिये। उस समय इनकी गाँठों का खोलना आवश्यक हो जाता है।

यज्ञोपवीत की भाँति इन्हें भी शुद्ध स्थान में छोड़ना चाहिये। जल में छोड़ दे या शुद्ध भूमि को खोद कर ‘ ॐ ‘ कहकर मिट्टी से दबा दे।

Pavitri dharan mantra | पवित्री धारण मंत्र

शास्त्रों में पवित्री धारण करने के लिए मंत्र दिया गया है

1. ॐ भूर्भुव: स्व:

2. ॐ यथा वज्रं सुरेंद्र स्य , यथा चक्रं हरेस्तथा।
त्रिशूलं च त्रिनेत्र स्य, तथा मम पवित्र कम्।

यह मंत्र वैदिक है इस लिए इस सिर्फ ब्रह्मण हि पढ़े

पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः ।
तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम् ।

शुक्ल यजुर्वेद

इस मंत्र को पढ़े के पवित्री धारण की जा सकती है

पवित्री बनाने की विधि

कुश को उखाड़ने या तोड़ने की विधि (कुशोत्पाटन)

कुशोत्पाटन विधि स्नानके बाद सफेद वस्त्र पहनकर प्रातः काल कुश को उखाड़ना चाहिये। उखाड़ते समय मुँह उत्तर की ओर या पूरब की ओर रहे।

कुश को उखाड़ने का मंत्र

पहले ‘ ॐ ‘ कहकर कुश का स्पर्श करे और फिर निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर प्रार्थना करे

विरञ्चिना सहोत्पन्न परमेष्ठिनिसर्जन । नुद सर्वाणि पापानि दर्भ ! स्वस्तिकरो भव ॥

कुश को एक ही झटकेसे उखाड़ना होता है। अतः पहले खनती या खुरपी आदि से उसकी जड़को ढीला कर ले, फिर ‘ हुँ फट् ‘ कहकर उखाड़ ले।

कुश हमेशा प्रतिदिन नया-नया उखाड़ कर प्रयोग करना चाहिए। यदि ऐसा सम्भव न हो तो अमावास्या को कुशोत्पाटन करे। अमावास्या को उखाड़ा गया कुश एक मास तक चल सकता है। यदि भाद्रमास की अमावास्या को कुश उखाड़ा जाय तो वह एक वर्ष तक चलता है।

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