Ramayan Sambarasur Autobiography | शंबासुर का जीवन परिचय : इंद्र और दशरथ के साथ युद्ध, रामायण

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दंडक वन में एक असुर रहता था जो वहां पर कई वर्षों से शासन कर रहा था। उस राक्षस का नाम था शंभरासुर/ शंबासुर/ तिमिध्वज। देवराज इंद्र के साथ उसका कई समय से युद्ध चल रहा था जिसमें देवता हार रहे थे। राक्षस शंबरासुर के पास कई मायावी शक्तियां थी जिस कारण असुरों की सेना देवताओं पर भारी पड़ रही थी । इसी से परेशान होकर देवराज इंद्र अयोध्या के नरेश महाराज दशरथ से सहायता मांगने के लिए गए। चूँकि दशरथ परमप्रतापी राजा थे व भारत के शक्तिशाली साम्राज्य अयोध्या उनके अधीन था इसलिये वे अपनी सेना के साथ असुरों से लड़ने के लिए मान गए ।

हमारे ग्रंथों में कई राक्षसों का वर्णन किया गया है। ये राक्षस तप करके ईश्वरीय शक्तियां प्राप्त कर लेते थे और ऋषि मुनियों, पृथ्वीवासियों एवं कई देवताओं तक पर अत्याचार करते थे। वे वरदान भी कुछ इस तरह के लिया करते थे कि साधारण मानव और देवताओं के लिए भी उनका अंत करना असंभव हो जाता था। परन्तु जब-जब किसी असुर के अत्याचार बहुत ही अधिक बड़ जाते हैं, तब त्रिदेव या माँ आदिशक्ति स्वयं कोई ऐसा अवतार लेकर आते हैं कि जिससे उस असुर का संहार या उद्धार किया जा सके। इसी प्रकार से एक असुर था बाणासुर आज हम उसके बारे में जानेंगे कि बाणासुर कौन था, बाणासुर की कहानी (जीवनी), उसकी मृत्यु कैसे हुई व बाणासुर-कृष्ण युद्ध के बारे में।

बाणासुर कौन था?

राजा बलि के सौ पुत्र थे। जिनमें से सबसे बड़े, वीर और पराक्रमी पुत्र का नाम बाणासुर था। बाणासुर एक बड़े साम्राज्य शोणितपुर का राजा था एवं दुनिया के सभी राजा व देवता भी उससे डरते थे। बाणासुर भक्त प्रह्लाद का प्रपौत्र था।

शिव से प्राप्त वर

बाणासुर भगवान शिव की घोर तपस्या एक कंदरा (गुफा) में कर रहा था। कई वर्षों की तपस्या में लीन बाणासुर का वध करने कहीं से एक असुर आगया और बाणासुर का अंत करने का प्रयास किया। तभी महादेव वहां प्रकट हुए और उस असुर से बाणासुर को संरक्षण प्रदान किया। वे बाणासुर की भक्ति से प्रसन्न हुए और वहाँ उसे वरदान देने आये थे। बाणासुर ने उनसे 2 वर मांगे। प्रथम वर उसने माँगा कि उसे अपने पूर्वजों यानि प्रह्लाद व राजा बलि से भी अधिक अच्छे कार्य करने हैं इसलिए उसकी भुजाएं इन सभी कर्मों का वहन करने हेतु सशक्त हो जाएं। भगवान शिव ने यह सुनकर उसे 1 सहस्त्र (1 हज़ार) भुजाओं का वरदान दिया एवं यह भी कहा कि हर एक भुजा में 1 सहस्त्र हाथियों का बल होगा। तुम्हें जब इनकी आवश्यता होंगी ये प्रकट हो जाएँगी।

यह वरदान प्राप्त कर बाणासुर ने कुछ सोचा तो पुनः शिवजी ने पूछा और कोई वर चाहिए तो मांग लो। तब बाणासुर ने कहा कि आज आपने मेरा संरक्षण किया तभी मैं जीवित हूँ। तो क्या ऐसा कुछ नहीं हो सकता कि मुझे सदैव आपका संरक्षण मिले? इस पर महादेव ने उसे संरक्षण प्रदान करने का वर दिया और कहा कि जब भी तुम्हें मेरी आवश्यकता होगी और मेरा आव्हान करोगे मैं तुम्हारे पास आ जाऊंगा और तब तक नहीं जाऊंगा जब तक तुम मुझे जाने को नहीं कहोगे।

इसके अलावा बाणासुर ने महादेव से अमरत्व भी मांगा था। लेकिन त्रिदेव किसी को भी अमरत्व का वर नहीं देते हैं। फिर भी महादेव ने एक वरदान अवश्य ही बाणासुर को दिया था जिस कारण उसका अंत होना कठिन था। इस वरदान के बारे में हम लेख में आगे चर्चा करेंगे।

महादेव से यह वरदान पाकर वह अत्यंत ही शक्तिशाली हो चुका था। कोई भी उससे युद्ध नहीं करना चाहता था क्युकी जिसे स्वयं महादेव से संरक्षण हो उसका काल भी क्या बिगाड़ लेगा?

बाणासुर की मृत्यु कैसे हुई?

बाणासुर कौन था व उसे शिव से क्या वर प्राप्त था यह तो आपने जान लिया। किन्तु जब भी किसी दुष्ट प्रवृत्ति के प्राणी के हाथों में कोई शक्ति लगती है तो वह अहंकार से भर जाता है और दुष्कर्म करने लगता है। वह अपने से दुर्बल प्राणियों को नुकसान पहुँचाने में ही अपने आप को गर्वित समझने लगता है। बाणासुर ने यह शक्तियां अपने कुल का गौरव बढ़ाने के लिए ली तो थी मगर यही शक्तियां उसे अहंकारी बना देंगी यह उसने भी शायद नहीं सोचा होगा। वह अत्याचार करता चला गया और सोचने लगा कि अब उसका अंत तो असंभव है क्युकी स्वयं महादेव उसकी रक्षा करेंगे। लेकिन देवताओं द्वारा जब भी कोई वरदान दिया जाता है उसी समय यदि उस वरदान का दुरूपयोग हुआ तो उसका हल भी निकल ही आता है। आगे के सेक्शन में आप जानेंगे कि किस प्रकार बाणासुर की शक्तियों का दमन हुआ एवं बाणासुर की मृत्यु कैसे हुई?

कृष्ण-बाणासुर युद्ध

वैसे तो महान शक्तियों के साथ बड़े दायित्व आते हैं परन्तु मुर्ख लोगों को जब दैवीय शक्तियां प्राप्त हो जाएं तो उनमें अहंकार घर कर जाता है और वे दूसरों का बुरा करने में लग जाते हैं और खुद के विनाश को आमंत्रित करने लग जाते हैं। बाणासुर भी अपनी शक्तियों की वजह से पूर्णतः अहंकार से भर चुका था। समय के साथ साथ वह और अहंकारी और क्रूर होता गया।

बाणासुर की एक पुत्री थी जिसका नाम उषा था। उसे स्वप्न में एक बार एक मनोरम युवक दिखाई दिया और वह उससे प्रेम कर बैठी। परन्तु अब पता कैसे लगाया जाये कि वह है कौन? इसलिए उषा ने अपनी परम सखी चित्रलेखा (जो कि एक बहुत ही प्रतिभावान चित्रकार थी) की सहायता ली। चित्रलेखा ने उषा द्वारा किये गए वर्णन के आधार पर अनिरुद्ध का चित्र बना दिया। जब उन दोनों सखियों को पता लगा कि यह कोई और नहीं बल्कि श्री कृष्ण के पौत्र हैं तो चित्रलेखा ने अपनी यौगिक शक्ति से अनिरुद्ध का हरण कर लिया और उसे सोनितपुर ले आयी।

उषा ने अपने प्रेमी को पुष्पमाला, अमूल्य वस्त्रों, गहनों से सुसज्जित किया एवं उसे अपने ह्रदय की बात बतायी। अनिरुद्ध भी उषा के प्रेम में पड़ गए। उषा ने उन्हें अपने कमरे में बंद कर रखा था। दोनों एक दूसरे में इतना खो गए कि उन्हें पता ही नहीं लगा कि कब प्रातः हो जाती और कब साँझ? ऐसे ही कई दिन बीत गए। जब बाणासुर को इसकी भनक लगी तो वह अपनी पुत्री के कमरे में आया जहां उसने उषा और अनिरुद्ध को चौसर खेलते हुए पकड़ लिया। अनिरुद्ध को कैद करने के लिए बाणासुर ने अपने सैनिकों से कहा परन्तु राजकुमार ने सभी सैनिकों को हरा दिया। फिर बाणासुर ने वरुण देव द्वारा प्रदान की गयी एक शक्ति से उसे बांध दिया और कैद कर लिया। यहां उषा भी अपने प्रिय के विरह में उदास रहने लगी और दूसरी तरफ कई दिन बीत जाने के बाद भी जब अनिरुद्ध राज्य में नहीं लौटे तो यदुवंशियों ने उन्हें खोजना आरम्भ कर दिया।

यदुवंशियों ने उन्हें यहां वहां हर ओर ढूंढा लेकिन राजकुमार कहीं नहीं मिले। लगभग एक महीने तक अनिरुद्ध बाणासुर की कैद में रहे और यदुवंशियों को इस बात का पता नारद जी के द्वारा लगा। यह सूचना मिलते ही तुरंत यदुओं की सेना ने बाणासुर पर आक्रमण करने हेतु एवं राजकुमार को मुक्ति दिलाने के लिए 12 अक्षौहिणी के साथ शोणितपुर को घेर लिया। श्री कृष्ण ने स्वयं जाकर बाणासुर से कहा कि अनिरुद्ध और उषा को मुक्त कर दो तो तुम्हें कोई क्षति नहीं पहुचायेंगे। दोनों ने गन्धर्व विवाह तो कर ही लिया है। द्वारका की प्रजा इन दोनों के स्वागत हेतु तत्पर है। इस पर बाणासुर ने अपना अहंकार दिखाते हुए श्री कृष्ण का ही अपमान करने का प्रयत्न किया और उषा का हाथ देने से मन कर दिया। तब श्री कृष्ण वहां से अनिरुद्ध को मुक्त करा कर लेकर आये और बाणासुर को यह कहा कि तुम्हारे पास केवल 1 दिवस का समय है। यदि हाँ की तो बारात शोणितपुर आएगी अन्यथा युद्ध होगा।

लेकिन बाणासुर कहाँ सुनने वाला था? वह युद्ध की तैयारी करने लगा। बाणासुर स्वयं महादेव के पास गया और अपनी ओर से युद्ध लड़ने हेतु उन्हें आमंत्रित कर आया। अगले दिन युद्ध क्षेत्र में एक ओर श्री कृष्ण, बलराम, अनिरुद्ध, अन्य राजकुमार एवं नारायणी सेना थे और दूसरी ओर बाणासुर, उसकी सेना, महादेव, श्री गणेश, कार्तिकेय एवं नंदी। इतना बड़ा युद्ध देखने के लिए स्वयं ब्रह्मा, अन्य देव, अप्सराएं एवं यक्षिणियां भी आयी।

अगले दिन युद्ध क्षेत्र में एक ओर श्री कृष्ण, बलराम, अनिरुद्ध, अन्य राजकुमार एवं नारायणी सेना थे और दूसरी ओर बाणासुर, उसकी सेना, महादेव, श्री गणेश, कार्तिकेय एवं नंदी। इतना बड़ा युद्ध देखने के लिए स्वयं ब्रह्मा, अन्य देव, अप्सराएं एवं यक्षिणियां भी आयी।

युद्ध आरम्भ होते ही बलराम, अनिरुद्ध, नंदी, गणेश, कार्तिकेय एवं अन्य योद्धा आपस में युद्ध करने लगे। कुछ समय युद्ध ऐसे ही चलता रहा।

महादेव से श्री कृष्ण का युद्ध

जब श्री कृष्ण स्वयं बाणासुर पर आक्रमण करने आये तो महादेव बाणासुर के संरक्षण में आ गए और महादेव एवं श्री कृष्ण के मध्य युद्ध शुरू हो गया। महादेव अपने वचन से बंधे हुए थे। वे जानते थे कि बाणासुर गलत है परन्तु फिर भी अपने वरदान की रक्षा करने हेतु उन्हें स्वयं नारायण के अवतार श्री कृष्ण से युद्ध करना पड़ा। श्री कृष्ण एवं महादेव के इस युद्ध में दोनों ने ही एक दूसरे पर विभिन्न प्रकार के अस्त्र, शास्त्रों का प्रयोग किया। ये अस्त्र इतने घातक थे कि प्रकृति पर इसका दुष्प्रभाव पड़ना शुरू हो गया एवं सभी देव गण चिंतित हो उठे। लेकिन युद्ध यहां थमने का नाम ही नहीं ले रहा था क्यूंकि दोनों में ही एक समान शक्तियों का वास है और दोनों ही एक दूसरे को पराजित नहीं कर सकते। कुछ समय ऐसे ही युद्ध करने के पश्चात श्री कृष्ण ने महादेव से निवेदन किया कि इस युद्ध को ख़त्म करने का मुझे उपाय बताएं।

श्री कृष्ण ने महादेव की स्तुति की उसके पश्चात् महादेव ने उन्हें कहा कि है देवकीनंदन, आप मुझपर महा जम्नास्त्र का प्रयोग कीजिये। इससे युद्ध को विराम मिल जायेगा। दोनों को ही इस अस्त्र का उपयोग करने के परिणाम ज्ञात थे। श्री कृष्ण ने कहा कि ठीक है मैं आपके आग्रह पर इसका उपयोग करूँगा। दोनों पुनः युद्ध क्षेत्र में लौट आये और कृष्ण ने भगवान शिव पर महा जम्नास्त्र चलाया जिससे की वे शिथिल अवस्था में चले गए एवं युद्ध क्षेत्र से दूर स्थापित हो गए।

इसके बाद युद्ध क्षेत्र में बाणासुर व कृष्ण आमने सामने आ गए। सभी चकित थे कि महादेव कहाँ अदृश्य हो गए?

श्री कृष्ण ने बाणासुर पर चलाया सुदर्शन चक्र

महादेव के युद्ध क्षेत्र से हटने पर बाणासुर का अंत अब निश्चित हो चुका था। परन्तु फिर भी बाणासुर अपने अहंकार वश श्री कृष्ण को मायावी कहकर श्री कृष्ण से युद्ध करने के लिए निकल पड़ा। कुछ समय युद्ध करने के पश्चात् श्री कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र बाणासुर पर छोड़ दिया। यह वह चक्र है जिसे नारायण अपनी इच्छाशक्ति से उपयोग करते हैं एवं इसे जिस कार्य के लिए भेजा जाता है वह कार्य करने के पश्चात् यह स्वयं ही उनके पास आ जाता है।

महादेव के युद्ध क्षेत्र से हटने पर बाणासुर का अंत अब निश्चित हो चुका था। परन्तु फिर भी बाणासुर अपने अहंकार वश श्री कृष्ण को मायावी कहकर श्री कृष्ण से युद्ध करने के लिए निकल पड़ा। कुछ समय युद्ध करने के पश्चात् जब श्री कृष्ण ने देखा की बाणासुर का अहंकार ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा तो उन्होंने क्रोधित होकर अपना सुदर्शन चक्र बाणासुर पर छोड़ दिया। यह वह चक्र है जिसे नारायण अपनी इच्छाशक्ति से उपयोग करते हैं एवं इसे जिस कार्य के लिए भेजा जाता है वह कार्य करने के पश्चात् यह स्वयं ही उनके पास आ जाता है।

सुदर्शन चक्र ने बाणासुर के सहस्त्र हाथों को काट दिया। इसके पश्चात् भी श्री कृष्णा का क्रोध कम नहीं हुआ और वे उसका शीष भी काटना चाहते थे। तभी ब्रह्मा जी, शिवजी एवं अन्य देवताओं ने कहा कि प्रभु इसका अंत मत कीजिये, आपने इसके सहस्त्र बाहु काट कर इसके अहंकार का अंत कर दिया है। श्री कृष्ण बोले इसका अहंकार इसके बाजुओं में नहीं अपितु इसके भीतर ही है अतः इसका अंत करना ही सही होगा। ब्रह्मा जी ने कृष्ण को उनका वह वचन याद दिलाया जिसमें उन्होंने भक्त प्रह्लाद से कहा था कि वे उनकी 18 पीढ़ियों तक किसी का वध नहीं करेंगे। इसी वजह से कृष्ण ने सुदर्शन चक्र वापस ले लिया।

वहीं बाणासुर को भी अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने अपने बचे हुए दो हाथों से श्री कृष्ण से क्षमा दान मांगा।

कृष्ण ने उसे जीवित छोड़ दिया। इसके पश्चात धूमधाम से अनिरुद्ध व उषा का विवाह कराया गया।

लेकिन फिर भी हमारा प्रश्न वहीं का वहीं रह जाता है कि आखिर बाणासुर की मृत्यु कैसे हुई? तो इसके लिए पढ़ते रहिये यह लेख अंत तक।

जब फिर से बढ़ने लगा बाणासुर का अत्याचार

कृष्णा में बाणासुर के युद्ध को काफी समय बीत चुका था एवं उषा अनिरुद्ध की शादी भी हो चुकी थी। परन्तु एक बात तो है कि आप कितना ही एक आसुरी प्रवृत्ति के व्यक्ति को सुधारने का प्रयास करें, वह फिर भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता। अतः बाणासुर पुनः अत्याचारी बन गया व जगत में अशांति फैलाने लगा। अब उसका अंत होना अत्यंत ही आवश्यक हो गया था और उसके अंत के लिए ही माता पार्वती ने कुमारी के रूप में जन्म लिया।

माता कन्या कुमारी व बाणासुर के युद्ध की कथा

बाणासुर की कथा के अंत का आरम्भ अब हो चुका था। Banasur के बढ़ते अत्याचारों को समाप्त करने हेतु माता पार्वती ने कन्या कुमारी के रूप में दक्षिण भारत में अवतार ले लिया था। लेकिन माता पार्वती आखिर बाणासुर का अंत क्यों करने पहुंची? इसके पीछे का कारण यह है कि राजा हिमावन एवं मैनावती (पार्वती के माता पिता) के पुत्र क्रोंच की बाणासुर से मित्रता थी और उसी की संगति के असर की वजह से ही क्रोंच का अंत हुआ था। (इसकी कथा भी हम जल्द ही अपडेट करेंगे)

क्रोंच की मृत्यु के पश्चात् माता पार्वती से उनकी माता मैनावती ने यह वचन लिया कि तुम बाणासुर का अंत अवश्य करोगी और इसी वचन को पूरा करने हेतु माता कन्या कुमारी के रूप में आयीं। कन्या कुमारी के रूप में माता पार्वती को वह मुर्ख असुर पहचान नहीं पाया और उनसे युद्ध किया। और इसी युद्ध में बाणासुर की मृत्यु हुई अर्थात माता कन्या कुमारी ने उसका वध किया।

लेकिन जब बड़े बड़े देवताओं से बाणासुर को कोई भय नहीं था फिर कैसे एक कन्या ने उसका अंत कर दिया? इसका जवाब भी हम आपको बताएंगे। आर्टिकल में ऊपर हमने आपको बताया था कि बाणासुर ने महादेव से अमरत्व भी मांगा था। तो उसे अमरत्व न देते हुए महादेव ने Banasur को एक वरदान दिया था कि तुम्हारी मृत्यु केवल एक कुंवारी कन्या (Kanyakumari) के हाथों ही संभव होगी।

बाणासुर के कितने नाम थे

बाणासुर को महाकाल, सहस्रबाहु, असुर राज, तथा भूतराज भी कहा गया है।

माता पार्वती के आशीर्वाद से प्राप्त हुई थी उषा

भगवान शिव से सहस्त्र बाहुओं की शक्तियां प्राप्त कर लेने के पश्चात् वे बाणासुर पर हावी हो रही थी। वह अपने आप पर से नियंत्रण खोने लगा था। उसकी पत्नी वाणी भी उसे समझाती लेकिन वह उनकी भी एक न सुनता। असंतुलित होने के कारण वह अत्यंत ही विचलित रहने लगा था और इस समस्या का समाधान करने हेतु आशीर्वाद के रूप में एक पुत्री (उषा) माता पार्वती ने स्वयं वाणी और बाणासुर को भेंट की थी।

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