Ramayan Viradha Autobiography | विराध का जीवन परिचय : दंडक वन का राक्षस, रामायण

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विराध दंडकवन का राक्षस था। सीता और लक्ष्मण के साथ राम ने दंडक वन में प्रवेश किया। वहां पर उन्हें ऋषि-मुनियों के अनेक आश्रम दृष्टिगत हुए। राम उन्हीं के आश्रम में रहने लगे। ऋषियों ने उन्हें एक राक्षस के उत्पात की जानकारी दी। राम ने उन्हें निर्भीक किया। वहां से उन्होंने महावन में प्रवेश किया, जहां नाना प्रकार के हिंसक पशु और नरभक्षक राक्षस निवास करते थे। ये नरभक्षक राक्षस ही तपस्वियों को कष्ट दिया करते थे। कुछ ही दूर जाने के बाद बाघम्बर धारण किए हुए एक पर्वताकार राक्षस दृष्टिगत हुआ।

रावण कुशल राजनीतिज्ञ, महानयोद्धा और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के साथ-साथ ब्रह्मज्ञानी था. राक्षस जाति की उन्नति के लिए उठाए गए उसके कदमों के चलते उसे राक्षसों का राजा बनाया गया. उसने लंका कुबेर से छीनी थी, उसे मायावी इसलिए कहा गया, क्योंकि उसे इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और तरह-तरह के जादू आते थे, उसके पास एक ऐसा विमान था, जो तीनों लोक में किसी और के पास नहीं था.

कालनेमि
यह मायावी असुर कालनेमि राक्षस का भरोसेमंद अनुचर था. यह बेहद क्रूर था. रावण ने श्रीराम के साथ युद्ध में इसे बेहद कठिन काम सौंपा. युद्ध में लक्ष्मण जब बेहोश हो गए तो हनुमान तुरंत संजीवनी लाने द्रोणाचल की ओर चले. रावण ने मार्ग में विघ्न पैदा करने को कालनेमि भेजा. कालनेमि ने माया से तालाब, मंदिर और सुंदर बगीचा बनाया और वहीं ऋषि के वेश में बैठ गया. हनुमानजी वहां जलपान को रुके. तालाब में उतरते ही एक मगरी ने हनुमानजी का पैर पकड़ लिया तो उन्होंने उसे मार डाला फिर उन्होंने अपनी पूंछ से कालनेमि को जकड़कर वध कर दिया.

मारीच
पंचवटी में राम के तीर से बचने के बाद ताड़का पुत्र मारीच ने रावण की शरण ली. मारीच लंका के राजा रावण का मामा था. सुर्पणखा ने अपमान की बात बताई तो रावण ने सीताहरण की योजना बनाई. सीता के हरण के लिए रावण ने मारीच से कहा कि तुम एक सुंदर हिरण का रूप धरो कि सीता मोहित हो जाए. अगर वह मोहित हो गईं तो जरूर राम को पकड़ने भेजेंगी. इस दौरान मैं उन्हें हरकर ले जाऊंगा. मारीच ने रावण के कहे अनुसार ही काम किया.

कबंध
सीता की खोज के दौरान राम-लक्ष्मण को दंडक वन में अचानक विचित्र दानव दिखा. इसका सिर और गला नहीं था. केवल एक ही आंख नजर आती थी. यह विशालकाय और भयानक था. उसका नाम कबंध था. कबंध ने राम-लक्ष्मण को पकड़ लिया तो दोनों ने कबंध की दोनों भुजाएं काट दीं. जमीन पर गिरे कबंध ने पूछा कि आप कौन हैं? परिचय देने पर कबंध ने कहा कि यह मेरा भाग्य है कि मुझे बंधन मुक्त कर दिया. मैं दनु का पुत्र पराक्रमी और सुंदर था, राक्षसों जैसी भीषण आकृति बनाकर ऋषियों को डराया करता था, इसीलिए मेरा यह हाल हो गया था.

विराध
विराध भी दंडकवन का राक्षस था. सीता और लक्ष्मण के साथ राम ने दंडक वन में प्रवेश किया तो वहां ऋषि-मुनियों के कई आश्रम थे. ऋषियों ने उन्हें एक राक्षस की जानकारी दी, उसे ब्रह्माजी से वर था कि किसी भी प्रकार का अस्त्र-शस्त्र न हत्या की सकती है और न अंग छिन्न-भिन्न हो सकते थे. मगर राम और लक्ष्मण ने उसे हर तरह से घायल कर दिया, उसकी भुजाएं काट दीं. तभी राम ने कहा, लक्ष्मण! यह दुष्ट मर नहीं सकता, उचित यह है कि गड्ढा खोदकर बहुत गहराई में इसे गाड़ दें. लक्ष्मण गड्ढा खोदने लगे तो राम विराध की गर्दन पर पैर रखकर खड़े हो गए तो विराध बोला, प्रभु! मैं तुम्बुरू गंधर्व हूं. कुबेर ने मुझे राक्षस होने का शाप दिया था. आज मुझे शाप से मुक्ति मिल रही है. राम और लक्ष्मण ने उसे उठाकर गड्ढे में डाल कर बंद कर दिया.

 

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