Samrat Harshvardhan History In Hindi Biography | सम्राट हर्षवर्धन का जीवन परिचय : महाराज के स्थान पर महाराजाधिराज और परम भट्टारक की उपाधियां धारण की थीं

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सम्राट हर्षवर्धन का जीवन परिचय, जीवनी, जयंती कब है, प्रेमिका, जीवनसाथी (Samrat Harshvardhan History in Hindi) (Biography, Story, Jayanti)  

हर्षवर्धन, प्राचीन उत्तर भारत का एक सम्राट था जिसने 606 ईस्वी से लेकर 647 ईस्वी तक शासन किया। उसे हर्ष के नाम से भी जाना जाता है। वह वर्तमान हरियाणा के छोटे से वंश पुष्यभूति में पैदा हुआ था। 16 साल की उम्र में वह पुष्यभूति की राजगद्दी पर बैठा और 41 वर्षों तक शासन किया।

हर्ष ने हूणो को पराजित करके भारत को भयंकर संकट से बचाया। अपने शासन के अंतिम समय में उसने कई सभाओं का आयोजन करवाया तथा बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया। वह गौतम बुद्ध का भक्त था।

हर्षवर्धन का परिचय (Introduction to Harshavardhana)

नाम हर्षवर्धन
जन्म 590 ई., थानेश्वर (प्राचीन भारत)
माता यशोमती
पिता प्रभाकरवर्धन
भाई (बड़ा) राज्यवर्धन
बहिन राज्यश्री
पत्नी दुर्गावती (संभवतः)
पुत्र वाग्यवर्धन तथा कल्याणवर्धन (संभवतः)
साम्राज्य पुष्यभूति (वर्धन)
शासन काल 606 ई. – 647 ई.
पूर्ववर्ती राजा राज्यवर्धन
उत्तराधिकारी राजा अरूणस्व
उपाधि महाराजा
प्रसिद्धि का कारण महान राजा तथा दानी, बौध धर्म का प्रचारक, हूणों को खदेड़ा
रचनाएँ नागानंद, प्रियदर्शिका, रत्नावली
धर्म बौध (पहले हिन्दू)
मृत्यु 647 ई., कन्नौज (प्राचीन भारत)
उम्र 57 साल

हर्षवर्धन का जन्म 590 ईस्वी को थानेश्वर (वर्तमान हरियाणा का एक क्षेत्र) में हुआ था। उसके पिता प्रभाकरवर्धन, पुष्यमित्र वंश का एक राजा था तथा माता यशोमती थी। हर्ष का एक बड़ा भाई तथा एक बहिन थी जिनके नाम क्रमशः राज्यवर्धन तथा राज्यश्री थे।

हर्ष से पहले वर्धन साम्राज्य का ज्यादा विस्तार नहीं हुआ था। उसके भाई ने सम्राट बनने के बाद साम्राज्य को विस्तारित किया। परंतु यह विस्तार ज्यादा नहीं था। जब हर्ष राजा बना था तो उसने लगभग पूरे उत्तरी भारत पर अपने शासन स्थापित कर लिया।

एक समय में वर्धन साम्राज्य का शासक हर्ष के पिता प्रभाकर वर्धन थे। प्रभाकर का किसी कारणवश देहांत हो गया जिसके बाद उनके बड़े बेटे राज्यवर्धन ने शासन संभाला।

वह हर्ष का बड़ा भाई था। दोनों भाइयों की इकलौती बहन राज्यश्री का विवाह मोखेरी राजा ग्रहवरमण से हुआ। कई वर्षों बाद ग्रहवरमण को मालवा के राजा देवगुप्त ने युद्ध में हरा दिया तथा उनका कत्ल कर दिया।

विधवा राज्यश्री को भी बंदी बना लिया गया। अपने परिवार के साथ ऐसी अनहोनी होते हुए देखकर राज्यवर्धन ने मालवा पर आक्रमण कर दिया तथा देवगुप्त को हरा दिया।

इसके बाद पश्चिम बंगाल के गौड़ वंश के शासक शशंक ने राज्यवर्धन के साथ नजदीकी संबंध बनाए। परंतु शशंक मालवा के राजा से मिले हुए थे।

शशंक ने विश्वासघात करके राज्यवर्धन की हत्या कर दी। हर्ष ने अपने भाई की हत्या की खबर सुनकर गौड़ों पर आक्रमण कर दिया। उस समय हर्ष मात्र 16 वर्ष का था।

और इसी 16 वर्ष की उम्र में 606 ईस्वी को हर्षवर्धन पुष्यमित्र साम्राज्य का सम्राट बना।

शासन का विस्तार (Extension of Reign)

हर्षवर्धन ने राजा बनने के बाद अपने साम्राज्य  का विस्तार करना शुरू किया। उसने लगभग पूरे उत्तर भारत पर अपने शासन को स्थापित कर लिया था। गुप्त साम्राज्य का कई दशकों पहले विनाश हो चुका था तथा उसके सभी अंग छोटे-छोटे हिस्सों में बंट चुके थे।

जिसकी वजह से हर्ष को उन राज्यों को अपने शासन में मिलाने में ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा और उसने देखते ही देखते पूरे उत्तर भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया।

606 ईस्वी में जब हर्षवर्धन सम्राट बना था तो उसके मंत्रियों के सहयोगीयों ने उसे महाराजा की उपाधि दी। उसका साम्राज्य खुशहाल और धनवान था।

राज्य की न्याय व शांति प्रणाली बहुत ही शानदार थी जिससे बाहरी दार्शनिकों व विद्वानों को राज्य विचरण के लिए प्रेरित किया

चीनी यात्री ह्वेनसांग हर्षवर्धन के समय में ही भारत आया था। उसने हर्ष के न्याय व उदारता की बहुत प्रशंसा कीआया तथा उसके द्वारा किए गए दान को भी उसने पूरी दुनिया में फैलाया।

हर्षवर्धन के द्वारा लड़े गए युद्ध (Wars Fought by Harshavardhana)

हर्ष ने अपने 41 वर्षों के शासन के दौरान कई युद्धों का सामना किया। उसके द्वारा लड़े गए मुख्य युद्ध निम्न थे –

पुलकेशिन द्वितीय के साथ युद्ध

618-619 इस्वी की सर्द ऋतु में हर्षवर्धन ने पुलकेशिन द्वितीय के साथ युद्ध किया। यह युद्ध नर्मदा नदी के तट पर लड़ा गया था। पुलीकेशिन द्वितीय तथा हर्षवर्धन दोनों कुशल राजा थे जो साम्राज्यवादी नीति पर काम करते थे।

तो अपने राज्य के विस्तार के लिए वह एक दूसरे से भिड़ गए। इस युद्ध में हर्ष की पराजय हुई।

पुलकेशिन द्वितीय ने अपनी विजय के बाद नर्मदा नदी को सीमा मानकर वर्धन साम्राज्य के साथ संधि स्थापित की।

वल्लभ साम्राज्य के साथ युद्ध

हर्ष ने 630 ईस्वी से 633 ईस्वी के बीच वल्लभ साम्राज्य के शासक ध्रुवसेन द्वितीय बालादित्य के साथ युद्ध किया। इस युद्ध में हर्ष ने ध्रुवसेन को पराजित कर दिया।

परंतु वल्लभी वंश को हराने के बाद हर्ष ने उनके साथ वैवाहिक संबंध बनाकर संधि स्थापित की।

पूर्वी भारत के राजाओं के साथ युद्ध

हर्ष अपने पूर्वी भारत के आक्रमणों में असफल रहा। तो उसने कामरूप के शासक भास्कर वर्मा के साथ मिलकर पूर्वी भारत पर चढ़ाई की। उसने 640 ईसवी के आसपास ओडू, कांगोद तथा कलिंग पर विजय प्राप्त की। इसके बाद उसने वर्तमान उड़ीसा के क्षेत्र को भी जीत कर एक बौद्ध सभा बुलाई जो कन्नौज सभा को नाम से जानी गयी।

हर्ष ने कश्मीर, नेपाल, जालंधर, वल्लभी, मालवा, सिंध, सीमांत प्रदेश व असम को अपने साथ में मिला लिया। सिंध उसका आश्रित राज्य बन गया था।

हर्ष का धर्म (Religion of Harsha)

हर्ष हिंदू धर्म में पैदा हुआ था। वह भगवान शिव का भक्त था जिससे कुछ इतिहासकार उसे शैव भी मानते हैं। इसके बाद वह धीरे-धीरे बौद्ध धर्म की ओर प्रेरित हुआ। आखिर में उसने बौद्ध धर्म अपना लिया।

उसने 443 ईस्वी में कन्नौज में एक बहुत बड़े सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन में बौद्ध, ब्राह्मण, जैन व नालंदा के विद्वान उपस्थित हुए।

हर्ष अपने राजस्व का एक चौथाई हिस्सा धर्म के लिए बाँट देता था। उसके प्रश्रय से बौद्ध धर्म का महायान देश विदेश में भी फैला।

हर्ष की सभाएं (Harshavardhana’s Meetings)

वर्षों से हर्ष छोटी मोटी सभाओं का आयोजन करवाता आया था जो बौद्ध धर्म व अन्य धर्मों का प्रचार-प्रसार करती थी। अपने शासन के अंतिम वर्षों में हर्ष ने दो मुख्य सभाओं का आयोजन करवाया-

  • कन्नौज सभा
  • प्रयाग सभा

कन्नौज सभा (Kannauj Meeting)

643 ईस्वी में हर्ष ने कन्नौज सभा का आयोजन करवाया। यह सभा 23 दिनों तक चली। इसमें चीनी यात्री ह्वेनसांग, 3,000 महायान और हीनयान बौद्ध भिक्षु, 3,000 ब्राह्मण व नालंदा विश्वविद्यालय के हजार बौद्ध विद्वान को बुलाया गया।

कन्नौज सभा का मुख्य उद्देश्य बौद्ध धर्म के महायान का प्रचार प्रसार करना था। ह्वेनसांग को इस सभा का सभापति बनाया गया।

गंगा नदी के तट पर विशाल विहार को बनाया गया। भगवान बुद्ध की मूर्ति को 1,000 फुट उँच्चे स्तंभ पर रखा गया। हर रोज बुध की एक दूसरी मूर्ति को जुलूस में उठाया जाता। हर्ष खुद जुलूस में छात्र को उठाता।

20 राजा 300 हाथी जुलूस में जाते थे। हर्ष (Harshavardhana) भगवान बुद्ध की मूर्ति को नहला कर वह पश्चिमी स्तंभ तक लेकर गया। वह मूर्ति पर मोती, सुनहरे फूल व अन्य कीमती चीजों को बिखेरता।

प्रयाग सभा (Prayag Meeting)

हर्ष ने 646 ईसवी में ही प्रयाग में मोक्ष परिषद का आयोजन करवाया। वह पिछले 30 वर्षों से प्रत्येक वर्ष ऐसी सभाओं का आयोजन करवाता रहा था। इस सभा में 5,00,000 से ज्यादा लोग एकत्रित हुए। यह सभा गंगा जमुना के प्रयाग की रेत पर आयोजित करवाई गई।

सभा में चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा देश के राजा आए हुए थे। यह सभा 75 दिनों तक चली। हर एक दिन बहुत सारा दान दिया गया।

पहले दिन भगवान बुद्ध की मूर्ति की स्थापना की गई और वस्त्र व बहुमूल्य चीजें बांटी गई। दूसरे व तीसरे दिन क्रमशः सूर्य और शिव की पूजा की गई।

चौथे दिन बौद्ध भिक्षुओं को बहुत सारा दान दिया गया तथा पांचवें दिन ब्राह्मण लोगों को दान दिया गया। अगले 10 दिनों तक अन्य धर्म के लोगों को दान दिया गया। इसके उपरांत अन्य विदेशी तपस्वियों को भी दान दिया गया।

अगले 1 महीने तक निर्धन, असहाय व अनाथ लोगों को सहायता प्रदान की गई।

ह्वेनसांग ने बताया कि 75 दिनों की सभा में हर्ष ने पिछले 5 वर्षों के राजस्व को लोगों में बांट दिया। उसने अपने पहने हुए वस्त्र तथा सभी बेशकीमती आभूषणों को भी बिना किसी भेदभाव के लोगों में बांट दिया।

सब कुछ दान करने के बाद उसने अपनी बहन से एक पुराना वस्त्र मांगा और उसे पहनकर बुध की पूजा की। उसने प्रसन्नता अनुभव की कि उसका सारा धन दान कार्य में व्यय हो गया है।

कुंभ मेला की कहानी

हर 12 साल पर लगने वाला कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा मेला है। माना जाता है कि कुंभ मेला का इतिहास करीब 2,000 साल पुराना है। चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरणों में कुंभ मेला का जिक्र मिलता है। ह्वेनसांग 629 में भारत की यात्रा पर आया और 645 तक रहा। उस समय उत्‍तर भारत के अधिकांश भूभाग पर सम्राट हर्षवर्धन का राज था। हर्षवर्धन के शासन में शांति और समृद्धि थी। दूर-दूर से विद्वान, कलाकार और धर्मगुरु आते थे। ह्वेनसांग के यात्रा विवरणों में हषवर्धन के न्‍याय और दान की तारीफ मिलती है। सम्राट हर्षवर्धन हर पांच साल पर लगभग सारी संपत्ति दान कर देते थे। हर्षवर्धन के समय पुष्‍यभूति राजवंश का साम्राज्‍य नेपाल से नर्मदा नदी, असम से गुजरात तक फैला था। सम्राट हर्षवर्धन ने कन्‍नौज में नई राजधानी बसाई। भारत के महान हिंदू राजाओं की सीरीज में आज बात सम्राट हर्षवर्धन की।

16 की उम्र में राज संभाला, आत्‍मदाह करने जा रही बहन को बचाया
संस्‍कृत के प्रसिद्ध कवि बाणभट्ट ने हर्षवर्धन की जीवनी लिखी। उसी से हर्षवर्धन के बचपन के बारे में जानकारी मिलती है। छठी सदी के मध्‍य में गुप्‍त राजवंश के पतन के बाद उत्‍तर भारत कई छोटे-छोटे राज्‍यों में बंट गया था। हर्षवर्धन के पिता प्रभाकरवर्धन ने वर्धन वंश की नींव रखी। उनकी राजधानी थानेसर (अब हरियाणा का कुरुक्षेत्र) हुआ करती थी। 605 ईस्‍वी में प्रभाकरवर्धन के निधन के बाद बड़े बेटे राज्‍यवर्धन गद्दी पर बैठे। हर्षवर्धन, राज्‍यवर्धन के छोटे भाई थे। कुछ साल बाद, दोनों की बहन राज्‍यश्री के पति को मालवा के राजा देवगुप्‍त ने युद्ध में हराया और फिर मार दिया। राज्‍यश्री को बंदी बना लिया गया।

राज्‍यवर्धन को यह खबर मिली तो उन्‍होंने देवगुप्‍त के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। युद्ध में पराज‍ित होने के बाद देवगुप्‍त ने गौदा के राजा शशांक संग मिलकर षड़यंत्र रचा। राज्‍यवर्धन का मित्र बनकर मगध आए शशांक ने उनकी हत्‍या कर दी। इस बीच, राज्‍यश्री जेल से फरार होकर जंगल में भाग गईं। अपने भाई की हत्‍या के बारे में सुनकर हर्षवर्धन ने फौरन रणभेरी बजा दी। हालांकि, उनका प्रयास असफल रहा और वापस लौटना पड़ा। 16 साल की उम्र में हर्षवर्धन राजा बने। उन्‍हें अपने बहनोई और भाई की हत्‍या का बदला लेना और बहन को खोजना था। कहते हैं कि राज्‍यश्री आत्‍मदाह करने जा रही थीं जब हर्षवर्धन ने उन्‍हें बचाया।

चीन के साथ स्‍थापित किए कूटनीतिक संबंध
राजा बनने के बाद हषवर्धन ने बिखरे हुए उत्‍तर भारत को एकजुट करना शुरू क‍िया। अप्रैल 606 की एक सभा में पंजाब से लेकर मध्‍य भारत तक के राजाओं और उनके प्रतिनिधियों ने हर्षवर्धन को महाराजा स्‍वीकार किया। हषवर्धन ने ऐसा साम्राज्‍य खड़ा किया कि समूचा उत्‍तर भारत उनके नियंत्रण में था। नेपाल से लेकर नर्मदी नदी तक, असम से गुजरात तक हर्षवर्धन का साम्राज्‍य फैला था। कामरूप के राजा संग हर्षवर्धन के मैत्रीपूर्ण संबंध थे। हर्षवर्धन ने चीन के राजा के दरबार में अपना राजदूत भिजवाया। भारत और चीन के बीच यह पहला कूटनीतिक संपर्क था। हषवर्धन के राज में सामाजिक, आर्थिक और साहित्यिक प्रगति देखने को मिली। सम्राट हषवर्धन ने कन्‍नौज में राजधानी बसाई जो कुछ साल में व्‍यापार का प्रमुख केंद्र बन गई।

हर्षवर्धन की मृत्यु (Death of Harshavardhana) 

हर्षवर्धन की मृत्यु 647 ईस्वी को कन्नोज में 57 वर्ष की उम्र में  हुई थी। उसने 41 वर्षों तक उत्तरी भारत पर शासन किया। अपने शासन के अंतिम समय में हर्ष ने राज्य के राजस्व को दान आदि में बांट दिया।

वह भगवान बुध का भक्त बन गया था। उसने नागानंद, प्रियदर्शिका व रत्नावली आदि की रचना भी की।

हर्ष ने विद्वानों शिक्षा के प्रचार-प्रसार धर्म अनुयायियों पर राज्यों का चौथा हिस्सा व्यय किया।

हर्ष  एक महान सम्राट था। इसके साथ ही, यह भी कहा जा सकता है कि वह एक अंतिम हिंदू सम्राट था।

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