सरस्वतीतन्त्र तृतीय पटल || Sarasvati Tantra Tritiya Patal

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आप सरस्वतीतन्त्र की सीरिज पढ़ रहे हैं जिसका की आपने प्रथम पटल व द्वितीय पटल अभी तक पढ़ा।अब आगे सरस्वतीतन्त्र तृतीय पटल में माता पार्वती ने आशुतोष भगवान शिव से पूछा की प्रभु कुल्लुका कैसा है ? सेतु-महासेतु तथा निर्वाण क्या है ? आपने जितने जपांग कहे है, वे किस प्रकार के है ?


|| अथ सरस्वतीतन्त्रम् तृतीयः पटलः ||

देव्युवाच –

कुल्लुका कीदृशी नाथ सेतुर्वा कीदृशो भवेत् ।
कीदृशो वा महासेतुर्निर्वाणं त्वय कीदृशम् ॥ १॥
अन्यथा कथितं यन्मे कीदृश तद्वदस्व मे ॥ २॥
देवा कहती हैं -हे प्रभो कुल्लुका कैसा है ? सेतु-महासेतु तथा निर्वाण क्या है ? आपने जितने जपांग कहे है, वे किस प्रकार के है ? ॥ १-२॥

ईश्वर उवाच –

गुह्याद् गुह्यतरं देवि तव स्नेहेन कथ्यते ।
विना येन महेशानि निष्कलञ्च जपादिकम् ॥ ३॥
ईश्वर कहते हैं -हे देवी ! जिसके बिना जप प्रभृति निष्फल हो जाते हैं, उस ग्रुह्यतम ज्ञान को तुम्हारे प्रेमवश प्रकाशित करता हूं ॥ ३॥

ताराया कुल्लुका देवि महानीलसरस्वती ।
पञ्चाक्षरी कालिकाया कुल्लुका परिकीर्त्तिता ॥ ४॥
हे देवी ! महानीलसरस्वती का बीज (ह्रीं स्त्री हुँ) समस्त तारामन्त्रो का कुल्लुका है । पंचाक्षरी मन्त्र को कालिका का कुल्लुका कहते हैं ॥ ४॥

कालीकूर्चवधुर्माया फट्कारान्ता महेश्वरि ।
छिन्नायास्तु महेशानि कुल्लुकाष्टाक्षरी भवेत् ॥ ५॥
हे महेश्वरी ! काली बीज, कूर्चबीज, वधुबीज तथा मायाबीज के अन्त मे “फट्” लगाने से जो पंचाक्षर मन्त्र होता है, वही काली देवी का कुल्लुका कहा जाता ह । (क्रीं हुं स्त्रीं ह्रीं फट्) । हे महश्वरी ! अष्टाक्षरी मन्त्र छिन्नमस्ता देवी का कुल्लुका कहां गया है ॥ ५॥

बज्रवैरोचनीये च अन्त वर्म प्रकीर्त्तयेत् ।
सम्पत्प्रदाया : प्रथम भैरव्या: कुल्लुका भवेत् ॥ ६॥
वज्रवैरोचनीये पद के अन्त मे फट् का उच्चारण करने से यह अष्टाक्षर हो जाता हैं (वज्रवैरोचनीये फट्) । भैरवी का प्रथम बीज ही धनदा का कुल्लुका कहा गया हैं ॥ ६॥

श्रीमत्रिपुरसुन्दर्याः कुल्लुका द्वादशाक्षरी ।
वाग्भवं प्रथमं बीजं कामबीजमनन्तरम ॥ ७॥

लक्ष्मीबीजं ततः पश्चात् त्रिपुरे चेति तत् परम् ।
भगवतीति तत्पश्चात् अन्ते ठद्वयमुद्धरेत् ॥ ८॥
द्वादशाक्षर मन्त्र को त्रिपुर सुन्दरी का कुल्लुका कहते है । प्रथमतः वाग्भव तदन्तर कामबीज, तत्पश्चात् लक्ष्मीबीज, तदन्तर त्रिपुरे, तत्पश्चात् भगवति, तत्पश्चात् स्वाहा लगाने से द्वादशाक्षरी कुल्लुका होता हें जैसे “ऐं क्लीं श्रीं त्रिपुरे भगवति ठः ठः” ॥ ७-८॥

अथवा कामबीजञ्च कुल्लुका परिकीर्त्तिता ।
प्रासादबीजं शम्भोश्च मञ्जुधोषे षडक्षरम् ॥ ९॥
अथवा केवल कामबीज (क्लीं) हो त्रिपुरा का कुल्लुका हैं । प्रसाद बलि (हौं) शिवमन्त्र का कुल्लुका हैं । षड्क्षरमन्त्र हीं मंजुघोष मन्त्र का कुल्लुका कहा गया है -ॐ नमः शिवायः ॥ ९॥

एकार्णा भुवनेश्वर्या विष्णोः स्यादष्टवर्णकम् ।
नमो नारायणायेति प्रणवाद्या च कुल्लुका ॥ ।१०॥
एकाक्षर मंत्र (ह्रीं) भुवनेश्वरी बीज का कुल्लुका हैं । विष्णु मन्त्र का कुल्लुका हैं अष्टाक्षर मन्त्र अर्थात् “नमो नारायणाय” के पहले ॐ लगाये । “ॐ नमो नारायणाय” ॥ १०॥

मातङ्गयाः प्रथमं बीजं माया धूमावतीं प्रति ।
बालायाश्च बधूबीजं लक्ष्म्याश्च निजबीजकम् ॥ ११॥
प्रथम बीज (ॐ) मातङ्गी का कुल्लुका है एवं मायाबीज (ह्रीं) धूमावती का कुल्लुका कहा जाता हैं । बालामन्त्र का कुल्लुका है वधुबीज (स्त्रीं) तथा लक्ष्मी मन्त्र का कुल्लुका “श्रीं” ही हैं ॥ ११॥

सरस्वत्या वागृभवञ्च अन्नदाया अनङ्गकम् ।
अपरेषाञ्च देवानां मन्त्रमात्र प्रकीर्त्तिता ॥ १२॥
सरस्वती मन्त्र का कुल्लुका हैं “ऐं” । अन्नदा देवी का कुल्लुका है कामबीज (क्लीं) । अन्य देवताओं का कुल्लुका उनका अपना ही मन्त्र है ॥ १२॥

इयन्ते कथिता देवि संक्षेपात् कुल्लुका मया ।
अज्ञात्वा कुल्लुकामेतां यो जपेदधमः प्रिये ॥ १३॥
हे देवी ! मेने संक्षेप मे यह कुल्लुका कहा है । हे प्रिये ! जो अधम मनुष्य बिना कुल्लुका को जाने मन्त्र जप करते है ॥ १३॥

पञ्चत्वमाशु लभते सिद्धिहानिस्तु जायते ।
तथा जपादिकं सर्वं निष्फलं नात्र संशयः ।
तस्मात् सर्वप्रयत्नेन प्रजपेन्मूर्घ्नि कुल्लुकाम् ॥ १४॥
वे शीघ्र हो मृत्यु को प्राप्त होते है और उनकी सिद्धि नष्ट हो जाती है । उनकी जपादि समस्त साधना निष्फल होती हैं । अतः यत्नपूर्वक मस्तक के उपर मुर्द्धा मे कुल्लुका जपे ॥ १४॥

॥ इति सरस्वतोतन्त्रे तृतीयः पटलः ॥

॥ सरस्वतीतन्त्र का तृतीय पटल समाप्त ॥

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