शनिदेव को तेल क्यों चढ़ाया जाता है | शनिदेव को तेल क्यों प्रिय है Shanidev ko Tel Kyon Chadhaya Jata Hai

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इस संदर्भ में बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक कथा इस प्रकार है जो हम आज आपको इस लेख के माध्यम से बताना चाहेंगे।

एक बार की बात है हनुमानजी प्रभु श्रीराम के ध्यान में मग्न होकर आनंदित हो रहे थे। आंख बंद किए हुए भगवान श्री राम के दर्शन करते हुए आनंद विभोर हो रहे थे।

तभी वहां टहलते टहलते भगवान सूर्य के पुत्र शनि देव भी पहुंच गए भगवान शनिदेव को अपनी शक्ति का बहुत ही घमंड था। वह मन ही मन सोच रहे थे कि मुझसे ज्यादा शक्तिशाली इस संसार में कोई दूसरा नहीं है। और मेरे सामने इस सृष्टि में कोई टिक नहीं सकता।

इस तरह से विचार करते हुए शनि देव की दृष्टि हनुमान जी पर पड़ी अब उन्होंने हनुमान जी को पराजित करने का निश्चय कर लिया। युद्ध का निश्चय करके शनिदेव हनुमान जी के सम्मुख पहुंच गए और उद्दंडता का परिचय देते हुए शनि महाराज ने बहुत  कर्कश आवाज में हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारने लगे।

 कहा , हे बंदर मैं महान शक्तिशाली शनि तुम्हारे सामने उपस्थित हूं और मैं तुमसे युद्ध करना चाहता हूं ।तुम इस पाखंड को त्याग कर खड़े हो जाओ और मुझसे युद्ध करो ।

इस तरह तिरस्कार पूर्ण वाणी सुनते ही हनुमान जी ने अपने नेत्र खोले और बड़ी ही शालीनता एवं शांति से शनि महाराज से पूछा। महाराज आप कौन हैं ,और यहां पधारने का आपका उद्देश्य क्या है।

तब शनि महाराज ने अत्यंत अहंकार में आकर उत्तर दिया मैं परम तेजस्वी सूर्य का परम पराक्रमी पुत्र शनि हूं इस संसार में मेरा नाम सुनते ही लोग कांप उठते हैं। मैंने तुम्हारे बल और पौरुष की बड़ी ही गाथाएं सुनी है।इसलिए मैं तुम्हारी शक्ति की परीक्षा करना चाहता हूं ।सावधान हो जाओ मैं तुम्हारी राशि पर आ रहा हूं।

तब पवन पुत्र हनुमान ने बड़ी ही विनम्रता से कहा शनिदेव मैं बहुत बुजुर्ग हो चुका हूं ,और अपने प्रभु का ध्यान कर रहा हूं ,आप कृपा करके हमारे ध्यान में व्यवधान मत डालिए और कहीं और चले जाइए आपकी बड़ी कृपा होगी।

अहंकार में चूर शनिदेव  ने भारी आवाज में कहा मैं किसी जगह जा करके वापस लौटना नहीं जानता हूं। अपना प्रबल्य और प्राधिकार तो स्थापित ही कर लेता हूं। तब बजरंगबली ने शनिदेव की बार-बार प्रार्थना की ।

महात्मा में काफी वृद्ध हो गया हूं। युद्ध करने की शक्ति मुझ में अब नहीं है ।मुझे अपने भगवान श्री राम का स्मरण करने दीजिए। आप यहां से जाकर किसी और  वीर को ढूंढ लीजिए। मेरे भजन ध्यान में विघ्न उपस्थित मत कीजिए।

कायरता तुम्हें शोभा नहीं देती अत्यंत उद्धत शनि ने मल्लविद्या के परमआराध्य श्री हनुमान जी की अवमानना के साथ व्यंग पूर्वक तीक्ष्ण स्वर में कहा ।तुम्हारी स्थिति देखकर मेरे मन में करुणा का संचार हो रहा है किंतु मैं तुमसे युद्ध अवश्य करूंगा।

शनिदेव इतने पर ही नहीं रुके उन्होंने बजरंगबली का हाथ पकड़ लिया और उन्हें युद्ध के लिए ललकारने लगे। श्री हनुमान जी ने झटक कर अपना हाथ छुड़ा लिया। तब शनिदेव हनुमान जी का हाथ पकड़कर युद्ध के लिए खींचने लगे।

तब हनुमानजी ने कहा कि आप नहीं मानेंगे अब तो आप से युद्ध करना ही पड़ेगा फिर उन्होंने अपनी पूंछ बढ़ाकर शनिदेव को उसमें लपेटना शुरू किया । कुछ ही क्षण में शनि देव तिलमिलाने लगे ।उनके सारे अंग छिलने लगे।सारे शरीर से रक्त की धारा बहने लगी। शनिदेव का अहंकार और शक्ति ब्यर्थ हो गए अब वे असहाय और निर उपाय हो गए। और अपने बंधन की पीड़ा से छटपटाने लगे।

अब हनुमान जी के रामसेतु की परिक्रमा का समय हो गया। अंजनानंदन उठे और दौड़ते हुए राम सेतु की प्रदक्षिणा करने लगे। शनिदेव  की संपूर्ण शक्ति से भी उनका बंधन शिथिल ना हो सका।

 भक्तराज हनुमान के दौड़ने से उनकी विशालकाय पूछ बानर भालु द्वारा रखे गए सिलाखंडों पर गिरती जा रही थी। वीरवर हनुमान दौड़ते हुए जानबूझकर भी अपनी पूंछ सिलाखंडों पर पटक देते थे।

 शनि महाराज की बहुत ही दयनीय दशा हो गई थी उनका सारा शरीर रक्त से लथपथ हो चुका था।हनुमान जी का बेग इतना तीव्र था ,कि वे रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

तब शनिदेव अत्यंत ही विनीत स्वर में हनुमान जी की प्रार्थना करने लगे। हे करुणामय भक्तराज हनुमान मुझ पर दया कीजिए ।मुझ पर कृपा कीजिए ।अपनी उदंडता का दंड मैं पा चुका हूं ।अब आप मुझे मुक्त कर दीजिए मेरे प्राणों को छोड़ दीजिए।

तब दया मूर्ति हनुमान जी शनि महाराज की प्रार्थना से प्रसन्न होकर एक स्थान पर रुक गए। शनिदेव का पूरा अंग लहूलुहान हो चुका था। शरीर में भयानक दर्द हो रहा था उनका रग रग दर्द से युक्त हो चुका था।

तब भक्तराज हनुमान जी ने शनिदेव से कहा कि पहले तुम्हें यह बचन देना होगा ,कि तुम मेरे भक्तों की राशि पर कभी नहीं जाओगे ।तभी मैं तुम्हें मुफ्त करूंगा और यदि तुमने ऐसा नहीं किया तो मैं तुम्हें कठोर दंड प्रदान करूंगा।

तब शनिदेव ने हनुमान जी से कहा कि है वीरवर पवनपुत्र हनुमान निश्चय ही मैं आपके भक्तों की राशि पर कभी नहीं जाऊंगा। पीड़ा से छटपटाते हुए शनि ने अत्यंत आतुरता से प्रार्थना की आप कृपा पूर्वक मुझे शीघ्र बंधन से मुक्त कर दीजिए।

तब शरणागत भक्तवत्सल हनुमान जी ने शनिदेव को बंधन से मुक्त कर  दिया। शनि ने अपना शरीर सहलाते हुए मारुति नंदन के चरणों में सादर प्रणाम किया। चोट पीड़ा से व्याकुल होकर अपनी देह पर लगाने के लिए तेल मांगने लगे। तभी से शनि देव को जो तेल प्रदान किया जाता है । उससे वह संतुष्ट होकर आशीर्वाद देते हैं। कहते हैं इसी कारण अब भी शनिदेव को तेल चढ़ाया जाता है।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण से शनि देव पर सरसों का तेल चढ़ाना ,शनि अधिकारिक वस्तुओं का दान है। शनिजनित पीड़ा, कष्टदायक स्थिति होने पर निवारण करने हेतु शनिदेव पर तेल चढ़ाने से शनि ग्रह की शांति होती है।

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