श्री गिरिराज चालीसा व आरती || Shri Giriraj Chalisa And Arat

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माना जाता है कि इन्द्रदेव ने लगातार सात दिनों तक वर्षा की थी और जिस दिन भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को फिर से यथास्थान नीचे रखा था, उस दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा थी। इसलिए भगवान कृष्ण के इस कृत्य को याद रखने के उद्देश्य से ही दीपावली के दूसरे दिन गिरिराज गोवर्धन पूजा की जाती है।

 

कैसे करते हैं गोवर्धन पूजा ?

दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पर्व के रूप में हिंदू धर्मावलंबी घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धननाथ जी की प्रतिमूर्ति अथवा गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मौली, रोली, चावल, फूल दही तथा तेल का दीपक जलाकर पूजा करते है तथा परिक्रमा करते हैं। इसके बाद ब्रज के साक्षात देवता माने जाने वाले गिरिराज पर्वत को प्रसन्न करने के लिए अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।

चूंकि, इस दिन को गायों की पूजा का दिन भी माना जाता है, इसलिए इस दिन गाय बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर फूल माला, धूप, चन्दन आदि से उनका पूजन करते हैं, फिर मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है और अंत में उनकी प्रदक्षिणा की जाती है व माना जाता है कि गायों की प्रदक्षिणा करना, गोवर्धन पर्वत की प्रदक्षिणा करने के समान ही फलदायक होता है।

श्री गिरिराज चालीसा व आरती

क्यों करते हैं गोवर्धन परिक्रमा ?

सभी हिंदूजनों के लिए इस पर्वत की परिक्रमा का विशेष महत्व है। वल्लभ सम्प्रदाय के वैष्णवमार्गी लोग तो अपने जीवनकाल में इस पर्वत की कम से कम एक बार परिक्रमा अवश्य ही करते हैं क्योंकि वल्लभ संप्रदाय में भगवान कृष्ण के उस स्वरूप की पूजा-अर्चना, आराधना की जाती है, जिसमें उन्होंने बाएं हाथ से गोवर्धन पर्वत उठा रखा है और उनका दायां हाथ कमर पर है।

इस पर्वत की परिक्रमा के लिए समूचे विश्व से वल्लभ संप्रदाय के लोग, कृष्णभक्त और वैष्णवजन आते हैं। यह पूरी परिक्रमा ७ कोस अर्थात लगभग २१ किलोमीटर है। परिक्रमा मार्ग में पड़ने वाले प्रमुख स्थल आन्यौर, जातिपुरा, मुखार्विद मंदिर, राधाकुंड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, गोविन्द कुंड, पूंछरी का लौठा, दानघाटी इत्यादि हैं जबकि गोवर्धन में सुरभि गाय, ऐरावत हाथी तथा एक शिला पर भगवान कृष्ण के चरण चिह्न हैं। इसीलिए कृष्ण भक्तों के लिए इस पर्वत की परिक्रमा का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।

परिक्रमा की शुरुआत दो अलग सम्प्रदायों के लोग दो अलग स्थानों से करते हैं। वैष्णवजन अपनी परिक्रमा की शुरूआत जातिपुरा से करते हैं, जबकि और अन्य सामान्यजन मानसी गंगा से करते हैं और परिक्रमा के अंत पर पुन: वहीं पहुंचते हैं। पूंछरी का लौठा में दर्शन करना आवश्यक माना गया है, जो कि राजस्थान क्षेत्र के अन्तर्गत आता है और ये माना जाता है कि यहां आने से ही इस बात की पुष्टि होती है कि आपने गोवर्धन परिक्रमा की है।

वैष्णवजनों के अनुसार गिरिराज पर्वत पर भगवान कृष्ण का जो मंदिर है उसमें भगवान कृष्ण शयन करते हैं। यहीं मंदिर में एक गुफा भी है, जिसके बारे में मान्यता ये है कि इस गुफा का अन्त राजस्थान स्थित श्रीनाथद्वारा मंदिर पर होता है।

ऐसी मान्यता है कि जो भी इच्छा मन में रखकर इस गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा की जाती है, वह इच्छा जरूर पूरी होती है। इसीलिए सामान्यत: लोग उस स्थिति में गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं, जब उनकी कोई इच्छा किसी भी अन्य तरीके से पूरी नहीं होती। इसके अलावा हिन्दु धर्म के लोगों का ये भी मानना है कि चारों धाम की यात्रा न कर सकने वाले लोगों को भी कम से कम इस गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा जरूर करनी चाहिए, जिससे मृत्यु के पश्चात सद्गति की प्राप्ति होती है।

कुछ भी हो जाए, इस दिन खुश रहें।

ऐसी मान्यता है कि यदि गोवर्धन पूजा के दिन कोई व्यक्ति किसी भी कारण से दु:खी या अप्रसन्न रहता है, तो वर्ष भर दु:खी ही रहता है। इसलिए कुछ भी हो जाए, इस दिन प्रसन्न रहने का ही प्रयास करें और इस दिन गोवर्धन पर्व के उत्सव को प्रसन्नतापूर्वक मनाऐें।साथ ही ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन स्नान से पूर्व पूरे शरीर में सरसों का तेल लगाकर स्नान करने से आयु व आरोग्य की प्राप्ति होती है तथा दु:ख व दरिद्रता का नाश होता है।भगवान श्री गिरिराज जी की चालीसा का पाठ करें, श्री गोवर्धन नाथ श्री गिरिराज जीकी कथा का श्रवण करें व श्री गोवर्धन आरती या श्री गिरिराज जी की आरती करें।

श्री गिरिराज चालीसा व आरती

श्री गिरिराज चालीसा

दोहा

बन्दहुँ वीणा वादिनी, धरि गणपति को ध्यान।

महाशक्ति राधा, सहित कृष्ण करौ कल्याण।

सुमिरन करि सब देवगण, गुरु पितु बारम्बार।

बरनौ श्रीगिरिराज यश, निज मति के अनुसार।

चौपाई

जय हो जय बंदित गिरिराजा, ब्रज मण्डल के श्री महाराजा।

विष्णु रूप तुम हो अवतारी, सुन्दरता पै जग बलिहारी।

स्वर्ण शिखर अति शोभा पावें, सुर मुनि गण दरशन कूं आवें।

शांत कंदरा स्वर्ग समाना, जहाँ तपस्वी धरते ध्याना।

द्रोणगिरि के तुम युवराजा, भक्तन के साधौ हौ काजा।

मुनि पुलस्त्य जी के मन भाये, जोर विनय कर तुम कूं लाये।

मुनिवर संघ जब ब्रज में आये, लखि ब्रजभूमि यहाँ ठहराये।

विष्णु धाम गौलोक सुहावन, यमुना गोवर्धन वृन्दावन।

देख देव मन में ललचाये, बास करन बहुत रूप बनाये।

कोउ बानर कोउ मृग के रूपा, कोउ वृक्ष कोउ लता स्वरूपा।

आनन्द लें गोलोक धाम के, परम उपासक रूप नाम के।

द्वापर अंत भये अवतारी, कृष्णचन्द्र आनन्द मुरारी।

महिमा तुम्हरी कृष्ण बखानी, पूजा करिबे की मन ठानी।

ब्रजवासी सब के लिये बुलाई, गोवर्धन पूजा करवाई।

पूजन कूं व्यंजन बनवाये, ब्रजवासी घर घर ते लाये।

ग्वाल बाल मिलि पूजा कीनी, सहस भुजा तुमने कर लीनी।

स्वयं प्रकट हो कृष्ण पूजा में, मांग मांग के भोजन पावें।

लखि नर नारि मन हरषावें, जै जै जै गिरिवर गुण गावें।

देवराज मन में रिसियाए, नष्ट करन ब्रज मेघ बुलाए।

छाया कर ब्रज लियौ बचाई, एकउ बूंद न नीचे आई।

सात दिवस भई बरसा भारी, थके मेघ भारी जल धारी।

कृष्णचन्द्र ने नख पै धारे, नमो नमो ब्रज के रखवारे।

करि अभिमान थके सुरसाई, क्षमा मांग पुनि अस्तुति गाई।

त्राहि माम मैं शरण तिहारी, क्षमा करो प्रभु चूक हमारी।

बार बार बिनती अति कीनी, सात कोस परिकम्मा दीनी।

संग सुरभि ऐरावत लाये, हाथ जोड़ कर भेंट गहाए।

अभय दान पा इन्द्र सिहाये, करि प्रणाम निज लोक सिधाये।

जो यह कथा सुनैं चित लावें, अन्त समय सुरपति पद पावैं।

गोवर्धन है नाम तिहारौ, करते भक्तन कौ निस्तारौ।

जो नर तुम्हरे दर्शन पावें, तिनके दुख दूर ह्वै जावे।

कुण्डन में जो करें आचमन, धन्य धन्य वह मानव जीवन।

मानसी गंगा में जो नहावे, सीधे स्वर्ग लोक कूं जावें।

दूध चढ़ा जो भोग लगावें, आधि व्याधि तेहि पास न आवें।

जल फल तुलसी पत्र चढ़ावें, मन वांछित फल निश्चय पावें।

जो नर देत दूध की धारा, भरौ रहे ताकौ भण्डारा।

करें जागरण जो नर कोई, दुख दरिद्र भय ताहि न होई।

श्याम शिलामय निज जन त्राता, भक्ति मुक्ति सरबस के दाता।

पुत्रहीन जो तुम कूं ध्यावें, ताकूं पुत्र प्राप्ति ह्वै जावें।

दण्डौती परिकम्मा करहीं, ते सहजहिं भवसागर तरहीं।

कलि में तुम सक देव न दूजा, सुर नर मुनि सब करते पूजा।

दोहा

जो यह चालीसा पढ़ै, सुनै शुद्ध चित्त लाय।

सत्य सत्य यह सत्य है, गिरिवर करै सहाय।

क्षमा करहुँ अपराध मम, त्राहि माम् गिरिराज।

श्याम बिहारी शरण में, गोवर्धन महाराज।

|| श्री गिरिराज चालीसा व आरती || 

आरती श्री गोवर्धन महाराज की

श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

तोपे पान चढ़े तोपे फूल चढ़े,

तोपे चढ़े दूध की धार।

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

तेरी सात कोस की परिकम्मा,

और चकलेश्वर विश्राम

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

तेरे गले में कण्ठा साज रहेओ,

ठोड़ी पे हीरा लाल।

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

तेरे कानन कुण्डल चमक रहेओ,

तेरी झाँकी बनी विशाल।

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

गिरिराज धरण प्रभु तेरी शरण।

करो भक्त का बेड़ा पार

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,

तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

।। इति श्री गोवर्धन आरती समाप्त ।।

श्री गिरिराज जी की आरती

ॐ जय जय जय श्री गिरिराज, जय जय श्री गिरिराज

संकट में तुम रखो, निज भक्तन की लाज

जय जय जय श्री गिरिराज, जय जय श्री गिरिराज

इंद्रादिक सब देवा तुम्हरो ध्यान धरे।

ऋषि मुनि जन यश गामें, ते भवसिंधु तरे॥

ॐ जय जय जय श्री गिरिराज

सुन्दर रूप तुम्हरौ श्याम सिला सोहें।

वन उपवन लखि लखिके ,भक्तन मन मोहें॥

ॐ जय जय जय श्री गिरिराज

मध्य मानसी गंगा, कलि के मल हरनी।

तापै दीप जलावे, उतरे बैतरनी॥

ॐ जय जय जय श्री गिरिराज

नवल अप्सरा कुण्ड सुहाने, दाँये सुखकारी।

बायेँ राधा -कृष्ण कुण्ड है, महापाप हारी॥

ॐ जय जय जय श्री गिरिराज

तुम हो मुक्ति के दाता, कलयुग में स्वामी।

दीनन के हो रक्षक , प्रभु अन्तर्यामी॥

ॐ जय जय जय श्री गिरिराज

हम हैं शरण तुम्हरी, गिरवर गिरधारी।

देवकीनंदन कृपा करो हे भक्तन हितकारी॥

ॐ जय जय जय श्री गिरिराज

जो नर दे परिकम्मा , पूजन पाठ करें।

गावें नित्य आरती , पुनि नहीं जनम धरें॥

ॐ जय जय जय श्री गिरिराज

श्री गिरिराज चालीसा व आरती

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