श्रीकृष्णस्तोत्र राधाकृत || Shri Krishna Stotra by Radha
श्रीराधा द्वारा किये गये श्रीकृष्ण के इस स्तोत्र का जो मनुष्य तीनों संध्याओं के समय पाठ करता है, वह श्रीहरि की भक्ति और दास्यभाव प्राप्त कर लेता है, जो भक्तिभाव से इसका पाठ करता है, उसे शीघ्र ही सम्पत्ति प्राप्त होती है और यदि कुमारी कन्या इसका पाठ करें तो उसे शीघ्र ही रूपवान तथा गुणवान पति प्राप्त होता है।
श्रीकृष्णस्तोत्रम् राधाकृतम्
गोलोकनाथ गोपीश मदीश प्राणवल्लभ ।
हे दीनबन्धो दीनेश सर्वेश्वर नमोऽस्तु ते ॥ १॥
गोपेश गोसमूहेश यशोदाऽऽनन्दवर्धन ।
नन्दात्मज सदानन्द नित्यानन्द नमोऽस्तु ते ॥ २॥
शतमन्योर्भग्नमन्यो ब्रह्मदर्पविनाशक ।
कालीयदमन प्राणनाथ कृष्ण नमोऽस्तु ते ॥ ३॥
शिवानन्तेश ब्रह्मेश ब्राह्मणेश परात्पर ।
ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मज्ञ ब्रह्मबीज नमोऽस्तु ते ॥ ४॥
चराचरतरोर्बीज गुणातीत गुणात्मक ।
गुणबीज गुणाधार गुणेश्वर नमोऽस्तु ते ॥ ५॥
अणिमादिकसिद्धीश सिद्धेः सिद्धिस्वरूपक ।
तपस्तपस्विंस्तपसां बीजरूप नमोऽस्तु ते ॥ ६॥
यदनिर्वचनीयं च वस्तु निर्वचनीयकम् ।
तत्स्वरूप तयोर्बीज सर्वबीज नमोऽस्तु ते ॥ ७॥
अहं सरस्वती लक्ष्मीर्दुर्गा गङ्गा श्रुतिप्रसूः ।
यस्य पादार्चनान्नित्यं पूज्यास्तस्मै नमो नमः ॥ ८॥
स्पर्शने यस्य भृत्यानां ध्याने चापि दिवानिशम् ।
पवित्राणि च तीर्थानि तस्मै भगवते नमः ॥ ९॥
इत्येवमुक्त्वा सा देवी जले सन्न्यस्य विग्रहम् ।
मनःप्राणांश्च श्रीकृष्णे तस्थौ स्थाणुसमा सती ॥ १०॥
राधाकृतं हरेः स्तोत्रं त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः ।
हरिभक्तिं च दास्यं च लभेद्राधागतिं ध्रुवम् ॥ ११॥
विपत्तौ यः पठेद्भक्त्या सद्यः सम्पत्तिमाप्नुयात् ।
चिरकालगतं द्रव्यं हृतं नष्टं च लभ्यते ॥ १२॥
बन्धुवृद्धिर्भवेत्तस्य प्रसन्नं मानसं परम् ।
चिन्ताग्रस्तः पठेद्भक्त्या परां निर्वृतिमाप्नुयात् ॥ १३॥
पतिभेदे पुत्रभेदे मित्रभेदे च सङ्कटे ।
मासं भक्त्या यदि पठेत्सद्यः सन्दर्शनं लभेत् ॥ १४॥
भक्त्या कुमारी स्तोत्रं च श्रृणुयाद्वत्सरं यदि ।
श्रीकृष्णसदृशं कान्तं गुणवन्तं लभेद्ध्रुवम् ॥ १५॥
इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे श्रीकृष्णजन्मखण्डे गोपिकावस्त्रहरणप्रस्तावोनाम सप्तविंशोऽश्याये राधाकृतं श्रीकृष्णस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
राधाकृत श्रीकृष्णस्तोत्र भावार्थ सहित
गोलोकनाथ गोपीश मदीश प्राणवल्लभ ।
हे दीनबन्धो दीनेश सर्वेश्वर नमोऽस्तु ते ॥ १॥
राधिका बोलीं– गोलोकनाथ! गोपीश्वर! मेरे स्वामिन! प्राणवल्लभ! दीनबन्धो! दीनेश्वर! सर्वेश्वर! आपको नमस्कार है।
गोपेश गोसमूहेश यशोदाऽऽनन्दवर्धन ।
नन्दात्मज सदानन्द नित्यानन्द नमोऽस्तु ते ॥ २॥
गोपेश्वर! गोसमुदाय के ईश्वर! यशोदानन्दवर्धन! नन्दात्मज! सदानन्द! नित्यानन्द! आपको नमस्कार है।
शतमन्योर्भग्नमन्यो ब्रह्मदर्पविनाशक ।
कालीयदमन प्राणनाथ कृष्ण नमोऽस्तु ते ॥ ३॥
इन्द्र के क्रोध को भंग (व्यर्थ) करने वाले गोविन्द! आपने ब्रह्मा जी के दर्प का भी दलन किया है। कालियदमन! प्राणनाथ! श्रीकृष्ण! आपको नमस्कार है।
शिवानन्तेश ब्रह्मेश ब्राह्मणेश परात्पर ।
ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मज्ञ ब्रह्मबीज नमोऽस्तु ते ॥ ४॥
शिव और अनन्त के भी ईश्वर! ब्रह्मा और ब्राह्मणों के ईश्वर! परात्पर! ब्रह्मस्वरूप! ब्रह्मज्ञ! ब्रह्मबीज! आपको नमस्कार है।
चराचरतरोर्बीज गुणातीत गुणात्मक ।
गुणबीज गुणाधार गुणेश्वर नमोऽस्तु ते ॥ ५॥
चराचर जगतरूपी वृक्ष के बीज! गुणातीत! गुणस्वरूप! गुणबीज! गुणाधार! गुणेश्वर! आपको नमस्कार है।
अणिमादिकसिद्धीश सिद्धेः सिद्धिस्वरूपक ।
तपस्तपस्विंस्तपसां बीजरूप नमोऽस्तु ते ॥ ६॥
प्रभो! आप अणिमा आदि सिद्धियों के स्वामी हैं। सिद्धि की भी सिद्धिरूप हैं। तपस्विन! आप ही तप हैं और आप ही तपस्या के बीज; आपको नमस्कार है।
यदनिर्वचनीयं च वस्तु निर्वचनीयकम् ।
तत्स्वरूप तयोर्बीज सर्वबीज नमोऽस्तु ते ॥ ७॥
जो अनिर्वचनीय अथवा निर्वचनीय वस्तु है, वह सब आपका ही स्वरूप है। आप ही उन दोनों के बीज हैं। सर्वबीजरूप प्रभो! आपको नमस्कार है।
अहं सरस्वती लक्ष्मीर्दुर्गा गङ्गा श्रुतिप्रसूः ।
यस्य पादार्चनान्नित्यं पूज्यास्तस्मै नमो नमः ॥ ८॥
मैं, सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा, गंगा और वेदमाता सावित्री– ये सब देवियाँ जिनके चरणारविन्दों की अर्चना से नित्य पूजनीया हुई हैं; उन आप परमेश्वर को बारंबार नमस्कार है।
स्पर्शने यस्य भृत्यानां ध्याने चापि दिवानिशम् ।
पवित्राणि च तीर्थानि तस्मै भगवते नमः ॥ ९॥
जिनके सेवकों के स्पर्श और निरन्तर ध्यान से तीर्थ पवित्र होते हैं; उन भगवान को मेरा नमस्कार है।
इत्येवमुक्त्वा सा देवी जले सन्न्यस्य विग्रहम् ।
मनःप्राणांश्च श्रीकृष्णे तस्थौ स्थाणुसमा सती ॥ १०॥
यों कहकर सती देवी राधिका अपने शरीर को जल में मन-प्राणों को श्रीकृष्ण में स्थापित करके ठूँठे काठ के समान अविचलभाव से स्थित हो गयीं।
राधाकृतं हरेः स्तोत्रं त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः ।
हरिभक्तिं च दास्यं च लभेद्राधागतिं ध्रुवम् ॥ ११॥
श्रीराधा द्वारा किये गये श्रीहरि के इस स्तोत्र का जो मनुष्य तीनों संध्याओं के समय पाठ करता है, वह श्रीहरि की भक्ति और दास्यभाव प्राप्त कर लेता है तथा उसे निश्चय ही श्रीराधा की गति सुलभ होती है।
विपत्तौ यः पठेद्भक्त्या सद्यः सम्पत्तिमाप्नुयात् ।
चिरकालगतं द्रव्यं हृतं नष्टं च लभ्यते ॥ १२॥
जो विपत्ति में भक्तिभाव से इसका पाठ करता है, उसे शीघ्र ही सम्पत्ति प्राप्त होती है और चिरकाल का खोया हुआ नष्ट द्रव्य भी उपलब्ध हो जाता है।
भक्त्या कुमारी स्तोत्रं च श्रृणुयाद्वत्सरं यदि ।
श्रीकृष्णसदृशं कान्तं गुणवन्तं लभेद्ध्रुवम् ॥ १३ ॥
यदि कुमारी कन्या भक्तिभाव से एक वर्ष तक प्रतिदिन इस स्तोत्र को सुने तो निश्चय ही उसे श्रीकृष्ण के समान कमनीय कान्तिवाला गुणवान पति प्राप्त होता है।
इस प्रकार श्रीब्रह्मवैवर्त महापुराण के श्रीकृष्णजन्मखण्ड में वर्णित राधाकृत श्रीकृष्णस्तोत्र भावार्थ सहित सम्पूर्ण हुआ ।