Syama Prasad Mukherjee Autobiography | श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जीवन परिचय : कवयित्री ही नहीं एक स्वतंत्रता सेनानी भी

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श्यामा प्रसाद मुखर्जी को मॉडर्न हिन्दू राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का गॉडफादर माने जाते है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी। ये अपनी तरहा का पहला हिंदू राष्ट्रवादी दल था। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे थे और हिंदू महासभा के नेता भी थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम आशुतोष मुखर्जी था और वह बंगाल के बड़े सम्मानित वकील थे और उनकी मां का नाम जोगमाया देवी था। उनके जीवन पर वीर सावरक की गहरी छाप थी। भारत सरकार सीएसआईआर ने मुखर्जी के नाम पर कई फेलोशिप की स्थापना की। आइए उनकी जन्मदिवस पर भारत में उनके योग्दान और उनके जीवन से जुड़ी अन्य बाते जाने।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी की शिक्षा

  • मुखर्जी की प्रारंभिक शिक्षा भवानीपूर मित्रा इंस्टीट्यूशन में हुइ जहां से उन्होंने मैट्रिक पास की और उसके बाद उन्होंने प्रसीडेंसी कॉलेज से 1916 में आर्ट्स स्ट्रीम से इंटर पास की।
  • मुखर्जी ने अपनी ग्रेजुएशन इंग्लिश में की जहां उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त किया। 1923 में मुखर्जी ने बंगाली में एमए की और 1924 में बीएल।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी : करियर

मुखर्जी 1924 में उनके पीता देहांत के बाद कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में शामिल हुए। 1926 में मुखर्जी लिंकन में पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए और 1927 में बैरिस्टर की उपाधि हासिल की।

मुखर्जी 33 वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय के सबसे कम उम्र के वाइस चांसलर बने। वे कलकत्ता विश्वविद्यालय में वाइस चांसलर के पद पर 1938 तक रहे।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी : राजनीतिक करियर

मुखर्जी एक आदर्शवादी इंसान थे। इसकी झलक उनके राजनीतिक करियर में भी देखने को मिलती है। मुखर्जी 1929 में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर बंगाल विधान परिषद के रूप में चुने गए थे। लेकिन इसके अगले ही साल यानी 1930 में उन्होंने अपने इस पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद मुखर्जी ने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और जीता। 1937 में उन्हें विश्वविद्यालय कॉन्सिट्यूंसी से दूबारा चुना गया।
कलकत्ता की शैक्षिक संरचना को कमजोर होता हुआ देख उन्होंने कांग्रेस सरकार के सामने मंत्रालय को हटाने की बात रखी लेकिन उनकी बात सुनी नहीं गई जिसकी वजह से उन्होंने खुद से गैर-कांग्रेसी और गैर-मुस्लिम लीग वाली राष्ट्रवादि ताकतों के साथ आवाज उठाई। फजलुल हक के साथ मुख्यमंत्री के रूप में गठबंधन मंत्रालय बनाया और खुद वित्त मंत्रालय का कार्य भार संभालने का फैसला लिया।

वीर सावरक का श्यामा प्रसाद मुखर्जी के जीवन पर प्रभाव

1942 में जब अंग्रेजों ने आतंक शुरू किया तो उस दौरान सभी कांग्रेस के नेता जेल में थे। उस समय मुखर्जी ने अपनी इच्छा से अपने राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभाई। मुखर्जी नें बंगाल मंत्रीमंडल छोड़ कर अंग्रेजों के खिलाफ खड़ी राष्ट्रिवादि ताकतों का साथ देने का फैसला किया।

इन लगातार चल रही घटनाओं में वीर सावरक ने मुखर्जी के जीवन पर गहरी छाप छोड़ी जिससे वह हिंदू प्रवक्ता के रूप में तेजी से उभरे और 1944 में हिंदू महासभा का हिस्सा बने।

मुखर्जी एक हिंदू नेता थे। मुखर्जी को कम्युनिस्ट का विरोध करने की आवश्यकता लगती थी, परंतु वह मुस्लिम विरोधी नहीं थे। वह जिन्ना की मुस्लिम लीग के खिलाफ थे जो बढ़ा चढ़ा कर मुस्लिम अधिकार या मुस्लिम राज्य पाकिस्तान की मांग कर रही थी। मुखर्जी का मानना था कि मुसलमान अल्पसंख्यक थे इसी कारण से उन्हें हिंदू जनता से ज्यादा उच्चा दर्जा नहीं दिया जा सकता है।

इन सब घटनाओं को देखते हुए उन्होंने हिंदूओं की आवाजों को एकजुट करते हुए और मुस्लिम लीग द्वारा विभाजन के एजेंडे के खिलाफ हिंदूओं की रक्षा करने का फैसला लिया और उन कारणों को अपनया।

मुखर्जी और उनको पसंद करने या फोलो करने वाले हमेशा देश को स्वस्थ, समृद्ध और मुस्लिम आबादि के लिए सुरक्षित जगह बनाए रखना चाहेंगे।

भारत विभाजन के दौरान श्यामा प्रसाद मुखर्जी

1943 में जब आकाल की स्थिति पैदा हुई तब मुखर्जी के मानवीय कार्यों ने कई लोगों की जान बचाई। वह बहुत मुश्किलों का दौर था जब आकाल के तुरंत बाद भारत विभाजन की स्थिति उत्पन्न हुई। मुखर्जी भारत विभाजन के पूरी तरह से खिलाफ थे।

1946-47 में हुए सांप्रजायिक दंगों (Communal riots) के दौरान कई हिंदू मुस्लिम मारे गए थे। यही वजह रही कि वह हिंदूओं के मुस्लिम क्षेत्र और मुस्लिम लीग के डोमिनेटड सरकार के अधिन रहने के पूरी तरहा से खिलाफ थे।

मुखर्जी 1947 में महात्मा गांधी के नेतृत्व वाली पहली राष्ट्राय सरकार में शामिल हुए। प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मुखर्जी को इंडस्ट्रियल सप्लाई में मंत्री के रूप में शामिल किया। मुखर्जी हमेशा ही पाकिस्तान के प्रति सरकार की नीति से असहमत रहे। 1949 में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के साथ हुए दिल्ली समझोते के मुद्दे पर 6 अप्रैल 1950 में इस्तीफा दे दिया। पाकिस्तान में मारे गए लाखों हिंदू शरणार्थियों के लिए मुखर्जी पाकिस्तान को सीधा दोषी ठरहना चाहते थे।

भारतीय जनसंघ (बीजेएस) की स्थापना

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता माधव सदाशिव गोलवलकर के साथ, मुखर्जी ने 21 अक्टूबर, 1951 में दिल्ली में भारतीय जनसंघ (इंडियन पीपुल्स यूनियन) की स्थापना की और इसके पहले अध्यक्ष बने।

मुखर्जी की पार्टी भारतीय जनसंघ नें नेहरू सराकार के द्वारा मुसलमानों के प्रति पक्षपात की आलोचना की।

भारतीय जनसंघ नें हिंदूओं और मुस्लमानों के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट का समर्थन किया। मुखर्जी गोहत्या के साथ- साथ जम्मू और कश्मीर की विशेष आधिकारों को समाप्त करना चाहते थे। मुखर्जी ने पूरे भारत के साथ जम्मू और कश्मीर के एकीकरण (इंटीग्रेशन) का समर्थन किया।

1953 में मुखर्जी कश्मीर दौरे के लिए गए और अपने ही देश के एक हिस्से में ना बसने देने के कानून और आईडी कार्ड लेके जाने की आवश्यकता को लेकर उन्होंने भीख हड़ताल की। इसके बाद उन्हें 11 मई को सीमा पार करते हुए गिरफ्तार कर लिया गया।

लगातार उनके प्रयासों को देखते हुए कश्मीर में आईडी कार्ड वाले कानून को रद्द कर दिया गया।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यू

23 मई 1953 में हिरास्त में एक बंदी के तौर पर उनकी मृत्यू हुई। मुखर्जी की मृत्यू बहुत रहस्यमय है। हिरासत में हुई उनकी मृत्यू ने पूरे देश के मन में संदेह पैदा कर दिया। इस घटना पर स्वतंत्र जांच की मांग की और मुखर्जी की मां जोगमाया देवी ने उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से इस मुद्दे पर गंभीरता बनाने के लिए अनुरोध किया।

लेकिन रहस्यमय तौर पर हुई उनकी मृत्यू पर कोई जांच कमेटी का गठन नहीं हुआ और आज भी उनकी मृत्यू एक रहस्य है। मुखर्जी का अंतिम संस्कार कलकत्ता में हुआ और लोगों की भीड़ देख कर ये पता लगा कि किस प्रकार मुखर्जी बंगाल के लोगों के भावनात्मक रूप से जुड़े थे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद सदस्यों ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को सम्मानित किया।

अटल बिहारी वाजपेयी के रोल मॉडल श्यामा प्रसाद मुखर्जी

अटल बिहारी वाजपेयी श्यामा प्रसाद मुखर्जी को अपना रोल मॉडल मानते थे।
1960 और 70 में बीजेएस को हिंदू ऑर्थोडॉक्स पॉलीटिकल पार्टी बनाया और इस पार्टि के उत्तराधिकारी के तौर पर भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई। आज के समय की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी भारत की सबसे बड़ी पार्टी है। वाजयपेयी ने 1998 से 2004 तक सरकार बनाई थी और एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी की सरकार 2014 से 2019 के लिए बनी और 2019 में हुए चुनाव में फिर जीत हासिल कर 2024 तक के लिए सरकार बनाई गई।

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी अपने हृदय की गहराई तक एक सच्चे राष्ट्रवादी थे। ‘देश पहले आता है’ ये उनके द्वारा बोले हुए शब्द थे।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी की विरासत और सीखे देश के लिए हमेशा ताजा रहेंगी और राजनीतिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक गतिविधियों मार्गदर्शन करती रहेंगी।

विनायक दामोदर सावरकर के साथ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को भारत में हिंदू राष्ट्रवाद का गॉडफादर माना जाता है, विशेष रूप से हिंदुत्व आंदोलन के लिए।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी का सम्मान

27 अगस्त 1998 में अहमदाबाद नगर निगम ने मुखर्जी के नाम पर एक पूल का नाम रखा। साल 2001 में भारत सरकार के सीएसआईआर ने मुखर्जी के नाम पर कई फेलोशिप की स्थापना भी की। भारत की सबसे प्रतिष्ठित फेलोशिप श्यामा प्रसाद मुखर्जी फेलोशिप पीएचडी करने वाले छात्रों को दी जाती है।
डाक और तार विभाग भारत ने इस महान सपूत क सम्मान में एक स्मारक डाक टिकट जारी करा जो अपने आप में सौभाग्य की बात है।

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