श्री वामन चालीसा | Shri Vaman Chalisa | Vamana Dev Chalisa

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॥ दोहा ॥

श्री वामन शरण जो आयके, धरे विवेक का ध्यान ।
श्री वामन प्रभु ध्यान धर, देयो अभय वरदान ॥
संकट मुक्त निक राखियो, हे लक्ष्मीपति करतार ।
चरण शरण दे लीजिये, विष्णु बटुक अवतार ॥

॥ चौपाई ॥

जय जय जय अमन बलबीरा । तीनो लोक तुम्ही रणधीरा ॥१॥
ब्राह्मण गुण रूप धरो जब । टोना भारी नाम पड़ो तब ॥२॥
भाद्रो शुक्ला द्वादशी आयो । वामन बाबा नाम कहाओ ॥३॥
बायें अंग जनेऊ साजे । तीनो लोक में डंका बाजे ॥४॥

सर में कमंडल छत्र विराजे । मस्तक तिलक केसरिया साजे ॥५॥
कमर लंगोटा चरण खड़ाऊँ । वामन महिमा निशदिन गाऊँ ॥६॥
चोटी अदिव्य सदा सिर धारे । दीन दुखी के प्राणं हारे ॥७॥
धरो रूप जब दिव्य विशाला । बलि भयो तब अति कंगाला ॥८॥

रूप देख जब अति विसराला । समझ गया नप है जग सारा ॥९॥
नस बलि ने जब होश संभाला । प्रकट भये तब दीन दयाला ॥१०॥
दिव्य ज्योति बैंकुठ निवासा । वामन नाम में हुआ प्रकाशा ॥११॥
दीपक जो कोई नित्य जलाता । संकट कटे अमर हो जाता ॥१२॥

जो कोई तुम्हरी आरती गाता । पुत्र प्राप्ति पल भर में पाता ॥१३॥
तुम्हरी शरण हे जो आता । सदा सहाय लक्ष्मी माता ॥१४॥
श्री हरी विष्णु के अवतार । कश्यप वंश अदिति दुलारे ॥१५॥
वामन ग्राम से श्री हरी आरी । महिमा न्यारी पूर्ण भारी ॥१६॥

भरे कमंडल अद्भुत नीरा । जहां पर कृपा मिटे सब पीड़ा ॥१७॥
पूरा हुआ ना बलि का सपना । तीनो लोक तीनो अपना ॥१८॥
पूर्ण भारी पल में हो । राक्षस कुल को तुरंत रोऊ ॥१९॥
तुम्हरा वैभव नहीं बखाना । सुर नर मुनि सब गावै ही गाना ॥२०॥

चित दिन ध्यान धरे वा मन को । रोग ऋण ना कोई तन को ॥२१॥
आये वामन द्वारा मन को । सब जन जन और जीवन धन को ॥२२॥
तीनो लोक में महिमा न्यारी । पाताल लोक के हो आभारी ॥२३॥
जो जन नाम रटत हैं तुम्हरा । रखते बाबा उसपर पहरा ॥२४॥

कृष्ण नाम का नाता गहरा । चरण शरण जो तुम्हरी ठहरा ॥२५॥
पंचवटी में शोर निवासा । चारो और तुम हो प्रकाशा ॥२६॥
हाँथ में पोथी सदा विराजा । रंक का किया आचरण पल में राजा ॥२७॥
सम्पति सुमिति तोरे दरवाजे । ढोल निगाडे गाजे बाजे ॥२८॥

केसर चन्दन तुमको साजे । वामन ग्राम में तुम्हे ही विराजे ॥२९॥
रिद्धि सिद्धि के दाता तुम हो । दीन दुःखी के भ्राता तुम हो ॥३०॥
वामन ग्राम के तुम जगपाला । तुम बिन पाये ना कोई निवाला ॥३१॥
तुम्हरी गाये सदा जो शरणा । उनकी इच्छा पूरी करना ॥३२॥

निकट निवास गोमती माता । दुःख दरिद्र को दूर भगाता ॥३३॥
तुमरा गान सदा जो गाता । उनके तुम हो भाग्य विद्याता ॥३४॥
भूत पिशाच नाम सुन भागै । असुर जाति खर-खर-खर खापैं ॥३५॥
वामन महिमा जो जन गाईं । जन्म मरण का को कछु छुटी जाई ॥३६॥

अंत काल बैकुंठ में जाई । दिव्य ज्योति में वहां छिप जाई ॥३७॥
संकट कितना भी गंभीरा । वामन तोड़ सब गंभीरा ॥३८॥
जै जै जै विकट गोसाई । कृपा करो केवट की नाईं ॥३९॥
अंत काल बैकुंठ निवासा । फिर सिंदु में करे विलासा ॥४०॥

॥ दोहा ॥

चरण शरण निज राखियों, अदिति माई के लाल ।
छत सी छाया राखियों, तुलसीदास हरिदास ॥

॥ इति श्री वामन चालीसा संपूर्णम् ॥

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