भगवान विष्णु के 10 अवतार – Vishnu Dashavatar Name in Hindi

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भगवान श्रीहरि विष्णु (Lord Vishnu) ने धर्म की रक्षा हेतु हर काल में अवतार लिया है। वैसे तो भगवान विष्णु के अनेक अवतार हुए हैं लेकिन उनमें से 10 अवतार प्रमुख माने जाते हैं। यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं भगवान श्रीहरि विष्णु के 10 अवतार यानी दशावतार की पौराणिक एवं प्रामाणिक कथाएं।

क्या है भगवान विष्णु के दशावतार (Vishnu Dashavatar Name) ?

जब जब धरती पर पाप बढ़ता है, तब तब ईश्वर किसी न किसी रूप में धरती पर जन्म लेते हैं। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के कुल 24 अवतार हैं, जिसमें से 23 अवतार हो चुके हैं तथा 24वां अवतार कल्कि अवतार होना शेष है। इन 24 अवतारों में से भी भगवान विष्णु के 10 अवतार प्रमुख माने गए हैं, भगवान विष्णु हिन्दू त्रिदेवों (तीन महा देवताओं) में से एक हैं। निर्माण की योजना के अनुसार, वे ब्रह्माण्ड के निर्माण के बाद, उसके विघटन तक उसका संरक्षण करते हैं। इसलिए विष्णु को पालनकर्ता भी कहा गया है। भगवान विष्णु के दस अवतारों को संयुक्त रूप से ‘दशावतार’ कहा जाता है।

श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण के द्वारा कहा गया है :

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युथानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे॥

अर्थात:- जब-जब धर्म की हानि और अधर्म का उत्थान हो जाता है, तब-तब सज्जनों के परित्राण और दुष्टों के विनाश के लिए मैं विभिन्न युगों मे उत्पन्न होता हूँ।

युग अनुसार विष्णु अवतार

हिन्दू मान्यता अनुसार कुल 4 युग होते है। जो क्रमशः सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग औऱ कलयुग है। जिसमें विष्णु ने विभिन्न अवतार लिए है, जिसे तालिका के माध्यम से बताया गया है। अभी कल्कि अवतार होना शेष है। कल्कि अवतार कलयुग के अंतिम चरण में होगा। अभी कलयुग का प्रथम चरण चल रहा है।

युग अवतार
सतयुग मत्स्य, कूर्म और वराह
त्रेतायुग नरसिंह, वामन, परशुराम और राम
द्वापरयुग कृष्ण
कलयुग बुद्ध, कल्कि

आइये, जानते हैं भगवान विष्णु के 10 अवतार, जिन्हें दशावतार भी कहा जाता है, के बारे में विस्तार से :

1. मत्स्य अवतार (Matsya Avatar)

मत्स्यावतार भगवान विष्णु का प्रथम अवतार है। यह अवतार सृष्टि के क्रम को पुनः स्थापित करने के लिए गया था। सतयुग के आदि में राजा सत्यवृत्त (मनु) हुए थे।

भगवान ने मत्स्य अवतार में सत्यवृत से कहा- सुनो राजा सत्यवृत! आज से सात दिन बाद प्रलय होगी। तब मेरी प्रेरणा से एक विशाल नाव तुम्हारे पास आएगी। तुम सप्त ऋषियों, औषधियों, बीजों व प्राणियों के सूक्ष्म शरीर को लेकर उसमें बैठ जाना।

सत्यव्रत ने ठीक ऐसा ही किया। रास्ते में भगवान मत्स्य नारायण ने मनु को मत्स्य पुराण भी सुनाया। इस तरह प्रभु ने सबकी प्रलय से रक्षा की, तथा पौधों तथा जीवों की नस्लों को बचाया।

2. कूर्म अवतार (Kurma Avatar)

कूर्म अवतार भगवान विष्णु का दूसरा अवतार है, इसे ‘कच्छप अवतार’ भी कहते हैं। जब देवता और दानव श्रीसागर में समुन्द्र मंथन कर रहे थे तो मंदराचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को नेती बनाया गया था। किंतु मंदराचल के नीचे कोई आधार नहीं होने के कारण वह समुद्र में डूबने लगा।

यह देखकर भगवान विष्णु विशाल कूर्म (कछुए) का रूप धारण कर मंदारचल पर्वत को अपने कवच पर संभाला था। भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घुमने लगा और इस प्रकार समुद्र मंथन संपन्न हो पाया।

3. वराह अवतार (Varaha Avatar)

वराह अवतार भगवान विष्णु के तृतीय अवतार थे। इन्हें शुकर अवतार भी कहते है। इस अवतार में मुख शुकर का था, लेकिन शरीर इंसान का। यह भद्रप्रद, शुक्ल पक्ष की तृतीया को अवतरित हुए थे। इस अवतार पर 18 पुराणों में से एक पुराण वराह पुराण भी है।

एक समय राक्षसराज हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को जल में डुबो दिया था तब ब्रह्मा की नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए। भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर सभी देवताओं व ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की। सबके आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को टूंढना प्रारंभ किया। अपनी थूधनी की सहायता से उन्होंने पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए।

हिरण्याक्ष और वराह के मध्य भीषण युद्ध हुआ। अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया। इसके बाद भगवान वराह ने अपने खुरों से जल को स्तंभित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया।

4. भगवान नृसिंह (Narsingha Avatar)

नरसिंह नर + सिंह (“मानव-सिंह”) को पुराणों में भगवान विष्णु केे अवतार है। अवतार में विष्णु आधे मानव और आधे सिंह के रूप में प्रकट हुए थे। इनका सिर एवं धड तो मानव का था लेकिन चेहरा एवं पंजे सिंह (शेर) की तरह थे। यह अवतार प्रह्लाद की रक्षा एवं दुष्ट हिरणकश्यप के संहार के लिए लिया था।

ब्रह्म से हिरण्यकश्यप को यह वरदान था कि उसकी मृत्यु न दिन में, न रात में, न धरती में, न आकाश में, न दिन में, न रात में, न अस्त्र से, न शस्त्र से, न देवता से, न दानव से, न पशु से न पक्षी से होगी। इस घमण्ड से फलीभूत होकर वह अत्यन्त शक्तिशाली और अत्याचारी हो गया। वह अपने आपको भगवान मानता था, और जो विष्णु की पूजा करता था उसे मृत्यु दंड देता है।

जब हिरण्यकश्यप को यह बात पता चला कि उसका पुत्र ‘प्रह्लाद‘ विष्णु की पूजा करता है। तो उसे खूब समझाया फिर भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकशिपु ने उसे मृत्युदंड देने का निश्चय किया। उसे सांप के बीच छोड़ दिया, पहाड़ से गिरा दिया। लेकिन प्रह्लाद हर बार विष्णु की कृपा से बच गया।

हिरण्यकशिपु की बहन होलिका, जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, वह प्रह्लाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ गई। तब भी भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई।

जब हिरण्यकशिपु स्वयं प्रह्लाद को मारने ही वाला था तब भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर ये से प्रकट हुए और उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु का वध कर दिया

5. वामन अवतार (Vanana Avatar)

वामन विष्णु के पाँचवे तथा त्रेता युग के पहले अवतार थे। इसके साथ ही यह विष्णु के पहले ऐसे अवतार थे जो मानव रूप में प्रकट हुए इनको दक्षिण भारत में उपेन्द्र के नाम से भी जाना जाता है।

सत्ययुग में प्रसाद के पौत्र दैत्यराज बलि ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया। सभी देवता इस विपत्ति से बचने के लिए भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने कहा कि मैं स्वयं देवमाता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होकर तुम्हें स्वर्ग का राज्य दिलाऊंगा। कुछ समय पश्चात भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया।

एक बार जब बलि महान यज्ञ कर रहा था तब भगवान वामन बलि की यज्ञशाला में गए और राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी। राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान की लीला समझ गए और उन्होंने बलि को दान देने से मना कर दिया। लेकिन बलि ने फिर भी भगवान वामन को तीन पग धरती दान देने का संकल्प ले लिया। भगवान वामन ने विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरे पग मैं स्वर्ग लोक नाप लिया।

जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने भगवान बामन को अपने सिर पर पग रखने को कहा। बलि के सिर पर पग रखने से वह सुतललोक पहुंच गया। बलि की दानवीरता देखकर भगवान ने उसे सुतललोक का स्वामी भी बना दिया। इस तरह भगवान वामन ने देवताओं की सहायता कर उन्हें स्वर्ग पुन: लौटाया।

6. परशुराम अवतार (Parshuram Avatar)

परशुराम, भगवान विष्णु का छठा अवतार हैं। इनका जन्म महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को मध्यप्रदेश के इंदौर जिला में ग्राम मानपुर के में हुआ था।

पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम कहलाए। वे जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये।

जब जमदग्नि को कीर्तिवीर्य नामक राजा ने ठगा तो परशुराम ने उसका वध कर दिया लेकिन ऐसा करने से जमदग्नि की कीर्तिवीर्य के पूत्रों ने हत्या कर दी। परशुराम ने इससे हतोत्साहित होकर पूरी पृथ्वी को क्षत्रियांवहीन करने का निर्णय लिया था और अपने इस संकल्प को 21 बार पूरा किया।

7. श्रीराम अवतार (Ram Avatar)

श्री राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं। इन्हें श्रीराम और श्रीरामचन्द्र के नामों से भी जाना जाता है। रामायण में वर्णन के अनुसार अयोध्या के सूर्यवंशी राजा, चक्रवर्ती सम्राट दशरथ ने पुत्र की कामना से यज्ञ कराया जिसके फलस्वरूप उनके पुत्रों का जन्म हुआ।

श्रीराम का जन्म देवी कौशल्या के गर्भ से अयोध्या में हुआ था। श्रीराम जी चारों भाइयों में सबसे बड़े थे। हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को श्रीराम जयंती या राम नवमी का पर्व मनाया जाता है।

त्रेतायुम में राक्षसराज रावण का बहुत आतंक था। उससे देवता भी डरते थे। उसके वध के लिए विष्णु ने राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या के गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लिया।

8. श्रीकृष्ण अवतार (Krishna Avatar)

श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के 8 वें अवतार थे। इन्हें कान्हा, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता हैं। इनका जन्म मधुरा में हुआ था। उनके पिता का नाम बसुदेव और माता का नाम देवकी था। उनके नाना (उनकी माता देवकी के ज्येष्ठ पिता) मथुरा के राजा के राजा थे। उनका पुत्र कंस उन्हें हटाकर स्वयं राजा बन बैठा।

ऐसी भविष्यवाणी हुई थी कि देवकी के गर्भ से उत्पन्न हुई आठवीं संतान के द्वारा उसका वध होगा, अत: कंस ने कृष्ण की मारने की अनेक चेष्टाएँ की; किंतु कृष्ण ने अपने अद्भुत पुरुषार्थ से बाधाओं को पार करके अंत में कंस का वध किया।

इसी बीच हस्तिनापुर में कौरवों और पांडवों में राज्य के बटवारे को लेकर संघर्ष हुआ। कृष्ण पांडवों के सहायक थे। पहले उन्होंने शांति के साथ पांडवों को अधिकार दिलाना चाहा: किंतु कौरवों के दुराग्रह से का महाभारत युद्ध हुआ।

महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथि बने और दुनिया को श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान दिया। धर्मराज युधिष्ठिर को राजा बना कर धर्म की स्थापना की। भगवान विष्णु का ये अवतार सभी अवतारों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।

9. बुद्ध अवतार (Budha Avatar)

भगवान विष्णु के दशावतार में नौवां अवतार है गौतम बुद्ध का। गौतम बुद्ध ने विश्व के चार बड़े धर्मों में से एक बौद्ध धर्म की स्थापना की थी। इनका जन्म क्षत्रिय कुल के शाक्य नरेश शुद्धोधन के पुत्र सिद्धार्थ के रूप में 563 ईसा पूर्व में नेपाल के लुम्बिनी में हुआ था।

एक दिन अपने राज्य में घूमते हुए उन्हें एक वृद्ध आदमी, रोगी मनुष्य, अर्थी और प्रसन्नचित्त सन्यासी दिखा, इन दृश्यों को देखने के बाद सिद्धार्थ को संसार से विरक्ति हो गयी तथा वे ज्ञान प्राप्ति के लिए निकल पड़े। उन्हें 35 वर्ष की आयु में वैशाख पूर्णिमा के दिन बोध गया में निरंजना नदी के तट पर पीपल वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्ति हुई। इसके बाद वे संसार को मोह माया और दुःखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग पर निकल पड़े।

बुद्धावतार भगवान् विष्णु का 9 वाँ अवतार है। आधुनिक मान्यतानुसार गौतम बुद्ध को ही बुद्धावतार माना जाता है परन्तु पुराणों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि गौतम तथा बुद्ध दोनो भिन्न व्यक्ति थे। भागवत स्कन्ध 1 अध्याय 6 के श्लोक 24 अनुसार-

ततः कलौ सम्प्रवृत्ते सम्मोहाय सुरद्विषाम्।
बुद्धोनाम्नाजनसुतः कीकटेषु भविष्यति॥

अर्थात:- कलयुग में देवद्वेषियों को मोहित करने नारायण कीकट प्रदेश (बिहार या उड़ीसा) में अजन के पुत्र के रूप में प्रकट होंगे।

जबकि गौतम का जन्म वर्तमान नेपाल में राजा शुद्धोदन के घर हुआ था।

10) कल्कि अवतार (Kalki Avatar)

भगवान विष्णु के दशावतार में दसवां अवतार है भगवान कल्कि का। भगवान विष्णु के नौ अवतार अब तक हो चुके हैं, जबकि कल्कि अवतार होना शेष है। भगवान विष्णु के 10 अवतार में से यह अवतार कलियुग के अंत में होगा।

श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार जब कलियुग में पाप और अधर्म चारों और फ़ैल जाएगा तथा अधर्मी लोगों का ही बोलबाला होगा, तब भगवान विष्णु उत्तर प्रदेश के संभल गाँव में विष्णु यश नामक ब्राह्मण की पत्नी सुमति के गर्भ से जन्म लेंगे तथा पुनः धर्म की स्थापना करेंगे। हमारे ग्रंथो में कल्कि अवतार के बारे में एक श्लोक लिखा है जो यह बताता है कि कलयुग में भगवान का कल्कि अवतार कब और कहां होगा और उनके माता-पिता कौन होंगे।

श्रीमद्भागवत-महापुराण के 12वे स्कंद के अनुसार-

सम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः।

भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।

अर्थात भगवान कल्कि का जन्म संभल गॉंव में विष्णुयश नामक श्रेष्ठ ब्राह्मण के पुत्र के रूप में होगा, ये देवदत्त नाम के घोड़े पर सवार होकर अपनी तलवार से दुष्टों का संहार कर सतयुग की पुनः स्थापना करेंगे।

यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा। भगवान विष्णु का कल्कि अवतार निष्कलंक अवतार के नाम से भी जाना जाएगा। इस अवतार में उनकी माता का नाम सुमति होगा इनके अलावा उनसे तीन बड़े भाई भी होंगे जिनके नाम – सुमंत, प्राज्ञ, और कवि होंगे।

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