यमसूक्तम् || Yamasuktam

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यम सूक्तम् – यमराज हिन्दू धर्म के अनुसार मृत्यु के देवता हैं। इनका उल्लेख वेद में भी आता है। इनकी जुड़वां बहन यमुना (यमी) है। यमराज, महिषवाहन (भैंसे पर सवार) दण्डधर हैं। वे जीवों के शुभाशुभ कर्मों के निर्णायक हैं। वे परम भागवत, बारह भागवताचार्यों में हैं। यमराज दक्षिण दिशा के दिक् पाल कहे जाते हैं । दक्षिण दिशा के इन लोकपाल की संयमनीपुरी समस्त प्राणियों के लिये, जो अशुभकर्मा हैं, बड़ी भयप्रद है। यमराज की पत्नी देवी धुमोरना थी। कतिला यमराज व धुमोरना का पुत्र था। विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से भगवान सूर्य के पुत्र यमराज, श्राद्धदेव मनु और यमुना उत्पन्न हुईं।

सूक्त,स्तोत्र,स्तुति आदि से किसी भी देवों की प्रार्थना की जाती है। यम द्वितीया,श्राद्ध,तर्पण या अंतिम यात्रा पर भगवान यमराज के प्रसन्नार्थ व यम यातना से मुक्ति के लिए या जब कोई व्यक्ति मृत्यु से भयंकर कष्ट भोग रहा हो तो उसकी निवृति के लिए यम सूक्तम् का पाठ करें।

॥ अथ यम सूक्तम् ॥

ॐ तदेवाग्निस्तदादित्यस्तद्वायु स्तदुचंद्रमाः॥
तदेव शुक्रं तद्ब्रह्मताऽआपः स प्रजापतिः ॥१॥

सर्वेनिमेषाः जज्ञिरे विद्युतः पुरुषादधि ॥
नैनमूर्द्धन्नतिर्यञ्चन्नमद्धये परिजग्रभत् ॥२॥

न तस्य प्रतिमाऽअस्ति यस्य नाम महद्यशः ॥
हिरण्यगर्भऽइत्येषमामाहि৶ सीदित्येषा यस्मान्न जातऽइत्येषः ॥ ३॥

एषो हदेवः प्रदिशोनु सर्वाः पूर्वोह जातः सऽउगर्भेऽअंतः ॥
सऽएवजातः स जनिष्यमाणः प्रत्यङ् जनास्तिष्ठति सर्वतो मुखः ॥ ४॥

यस्माज्जातन्नपुरा किञ्चनैवयऽआवभूव भुवनानि विश्वा॥
प्रजापतिः प्रजयास৶रराणस्त्रीणि ज्योति ৶ सि सचते षोडशी ॥ ५॥

येनद्यौ रुग्रापृथिवी च दृढायेन स्वस्तभितं येन नाकः ॥
येऽअंतरिक्षे रजसो विमानः कस्मैदेवाय हविषा विधेम ॥६॥

यंक्रन्दसीऽअवसा तस्तभानेऽअब्भ्यै क्षेताम्मनसा रेजमानो ॥
यत्राधिसूरऽउदितो विभाति कस्मै देवाय हविषा विधेम आपोह यद्बृहतीर्यश्चि दापः ॥७॥

वेनस्तत्पश्यन्निहितं गुहासद्यत्र विश्वम्भवत्येक नीडम् ॥
तस्मिन्निद৶ सञ्च विचैति सर्व৶ सऽओतः प्रोतश्च विभूः प्रजासु ॥८॥

प्रतद्वो चेदमृतन्नु विद्वान्गंधर्वो धामविभृतं गुहासत् ॥
त्रीणिपदानि निहिता गुहास्य यस्तानिवेद सपितुः पितासत् ॥९॥

स नो बंधुर्जनिता सविधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा॥
यत्रदेवाऽअमृतमानशानास्तृतीये धामन्नद्धयैरयन्त ॥१०॥

परीत्यभूतानि परीत्यलोकान्परीत्यसर्वा: प्रदिशो दिशश्च ॥
उपस्त्थाय प्रथम जामृतस्यात्मनात्मानमभि संविवेश ॥११॥

परिद्यावा पृथिवी सद्यऽइत्वा परिलोकान्परिदिशः परिस्वः ॥
ऋतस्य तन्तुঁ विततँ विचृत्य तदपश्यत्तदभवत्तदासीत् ॥१२॥

सदसस्पतिमद्भूतम्प्रियमिन्द्रस्य काम्यम् ॥
सनिम्मेधामयासिष৶ स्वाहा ॥ १३॥

याम्मेधान्देवगणाः पितरश्चोपासते ॥
तयामामद्य मेधयाग्ने मेधाविनं कुरुस्वाहा ॥१४॥

मेधाम्मे वरुणो ददातु मेधामग्निः प्रजापतिः॥
मेधामिन्द्रश्च वायुश्च मेधान्धाता ददातुमे स्वाहा ॥१५॥

इदम्मे ब्रह्मच क्षत्रञ्चोभे श्रियमश्रुताम् ॥
मयिदेवा दधत श्रिममुत्तमान्तस्यै ते स्वाहा॥ १६ ॥

इति: यमसूक्तम् समाप्त॥

यम सूक्तम्

यमराज के चौदह नाम

यमराजजी की आराधना के लिए यमराज के चौदह नामों का पाठ करें । इन्हीं नामों से इनका तर्पण किया जाता है।
यम, धर्मराज, मृत्यु, अन्तक, वैवस्वत, काल, सर्वभूतक्षय, औदुभ्बर, दघ्न, नील, परमेष्ठी, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त ।

यमसूक्तम्

यम मन्त्र

ॐ सुगन्नुपंथां प्रदिशन्नऽएहि, ज्योतिष्मध्येह्यजरन्नऽआयुः।

अपैतु मृत्युममृतं मऽआगाद्, वैवस्वतो नो ऽ अभयं कृणोतु।

ॐ यमाय नमः।

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