अन्नपूर्णास्तोत्रम, Annapurna Stotram
ॐ नमः कल्याणदे देवि नमः शङ्करवल्लभे |
नमो भक्तिप्रिये देवि ह्यन्नपूर्णे नमोऽस्तु ते || १ ||
नमो मायागृहीताङ्गी नमः शङ्करवल्लभे |
महेश्वरि नमस्तुभ्यमन्नपूर्णे नमोऽस्तु ते || २||
हे कल्याणदायिनी देवि ! आपको नमस्कार है | हे शंकरप्रियतमे ! आपको नमस्कार है | हे भक्तिप्रिये देवि ! आपको नमस्कार है | हे अन्नपूर्णे ! आपको नमस्कार है | हे शंकर-प्रियतमे ! आपको शरीर मायामय है, आपको नमस्कार है | हे माहेश्वरि ! आपको नमस्कार है | हे अन्नपूर्णे ! आपको नमस्कार है || १-२ ||
अन्नपूर्णे हव्यवाहपत्नीरुपे हरप्रिये |
कलाकाष्ठास्वरूपे च ह्यन्नपूर्णे नमोऽस्तु ते || ३ ||
उद्यद्भानुसहस्त्राभे नयनत्रयभुषिते |
चन्द्रचुडे महादेवि ह्यन्नपूर्णे नमोऽस्तु ते || ४ ||
हे अन्नपूर्णे ! आप अग्निदेव की पत्नीरुपा हैं | शिव की प्रिया हैं | कला – काष्ठास्वरुपा हैं | हे अन्नपूर्णे ! आपको नमस्कार है | हे महादेवि ! आपकी कान्ति उदीयमान सहस्त्रों सूर्यों के समान है | आप तीन नेत्रों से अलंकृत है | आपकी चूड़ा पर चन्द्रमा सुशोभित है | हे अन्नपूर्णे ! आपको नमस्कार है || ३-४ ||
विचित्रवसने देवि त्वन्नदानरतेऽनघे |
शिवनृत्यकृतामोदे ह्यन्नपूर्णे नमोऽस्तु ते || ५ ||
षट्कोणपद्ममध्यस्थे षडङ्ग युवतीमये |
ब्रह्माण्याडिस्वरुपे च ह्यन्नपूर्णे नमोऽस्तु ते || ६ ||
हे देवि ! आपका वस्त्र विलक्षण है |
आप सदैव अन्नदान करती रहती हैं | हे निर्मले !
आप महेश्वर का नृत्य देखती हुई आनन्दित होती हैं |
हे अन्नपूर्णे ! आपको नमस्कार है |
हे अन्नपूर्णे ! आप षट्कोण पद्म के मध्य में निवास करती हैं |
आप षडंग युवतियों से युक्त ब्रह्माणी आदि के रूप को धारण करती हैं |
आपको नमस्कार है || ५-६ ||
देवि चंद्रकलापीठे सर्वसाम्राज्यदायिनी |
सर्वानन्दकरे देवि ह्यन्नपूर्णे नमोऽस्तु ते || ७ ||
साधकाभीष्टदे देवि भवदुःखविनाशिनि |
कुचभारनते देवि ह्यन्नपूर्णे नमोऽस्तु ते || ८ ||
हे देवि आप चन्द्रको भूषण बनाकर धारण करती है,
सभी भक्ति को संपत्ति साम्राज्य प्रदान करती है,
आप सबको ख़ुशी आनंद प्रदान करती हो ||
हे देवि आप साधको की अपने भक्तो की मनोकामना पूरी करती हो,
हे देवि आप संसार के दुखो को दूर करती हो,
पयोधरों के भार से आपका शरीर झुका हुआ है,
हे अन्नपूर्णे ! आपको नमस्कार है ||
इन्द्राद्यर्चितपादाब्जे रुद्रादिरुपधारिणी |
सर्वसम्पत्प्रदे देवि ह्यन्नपूर्णे नमोऽस्तु ते || ९ ||
हे देवि इन्द्रादि देवगण आपके चरणों की पूजा करते है,
आप रुद्राणी रूप धारिणी हो |
आप सभी प्रकार की सम्पत्ति देने वाली हो,
हे अन्नपूर्णे ! आपको नमस्कार है ||
फलश्रुतिः
पूजाकाले पठेद्यस्तु स्तोत्रमेतत्समाहितः |
तस्य गेहे स्थिरा लक्ष्मिर्जायते नात्र संशयः || १० ||
प्रातःकाले पठेद्यस्तु मंत्रजापपुरः सरम् |
तस्यैवान्नसमृद्धिः स्यार्द्धमाना दिने दिने || ११ ||
यस्मै कस्मै न दातव्यं न प्रकाश्यं कदाचन |
प्रकाशात्सिद्धिहानिस्तद् गोपायेद्यत्नतः सुधीः || १२ ||
जो मनुष्य पूजा के समय एकाग्र मन से इस स्तोत्र का पाठ करता है,
उसके घर में स्थिर लक्ष्मीजी निवास करती है,
इसमें संदेह नहीं है,
प्रातःकाल मंत्र जाप के बाद जो मनुष्य इसका पाठ करता है,
उसके अन्न का भण्डार भरा रहता है,
|| इति श्रीअन्नपूर्णास्तोत्रं ||