Bankim Chandra Chatterjee In Hindi Biography | बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय का जीवन परिचय : भारत का राष्ट्रगीत ‘वन्दे मातरम्’ उनकी ही रचना है

0
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का जीवन परिचय, जीवनी, परिचय, इतिहास, जन्म, शासन, युद्ध, उपाधि, मृत्यु, प्रेमिका, जीवनसाथी (Bankim Chandra Chattopadhyay History in Hindi, Biography, Introduction, History, Birth, Reign, War, Title, Death, Story, Jayanti)

बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय,19वीं शताब्दी के बंगाल के प्रकाण्ड विद्वान् तथा महान् कवि और उपन्यासकार थे। 1874 में प्रसिद्ध देश भक्ति गीत वन्देमातरम् की रचना की जिसे बाद में आनन्द मठ नामक उपन्यास में शामिल किया गया। प्रसंगतः ध्यातव्य है कि वन्देमातरम् गीत को सबसे पहले 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था।

क्र. . परिचय बिंदु (Introduction Points) परिचय (Introduction)
1. पूरा नाम (Full Name) बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय
2. अन्य नाम (NickName) बंकिम चन्द्र चैटर्जी
3. जन्म (Birth) 27 जून 1838
4. जन्म स्थान (Birth Place) कंथालपरा, बंगाल
5. पेशा (Profession) मजिस्ट्रेट
6. मृत्यु (Death) 8 अप्रैल 1894
7. मृत्यु स्थान (Death Place) कलकत्ता, बंगाल
8. उम्र (Age) 56
9. धर्म (Religion) बंगाली ब्राह्मण
10. राष्ट्रीयता (Nationality) भारतीय
11. गृहनगर (Hometown) कंथालपरा
12. धर्म (Religion) हिन्दू
13. जाति (Caste) ब्राह्मण
14. राशि (Zodiac Sign) कर्क
15. वैवाहिक स्थिति (Marital Status) विवाहित (2)
16. प्रसिध्य रचना वन्दे मातरम्

बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय जन्म एवं परिवार की जानकारी (Birth and Family Details)

1. माता का नाम (Mother’s Name) दुर्गादेवी
2. पिता का नाम (Father’s Name) यादव (जादव) चन्द्र चट्टोपाध्याय
3. भाइयों के नाम (Siblings’s Name) 2 भाईसंजीव चन्द्र चट्टोपाध्याय
4. बहनों के नाम (Sister’s Name) नहीं है
5. पत्नी का नाम (Spouse’s Name) पहली शादी – 1849दूसरी शादी – राजलक्ष्मी देवी
6. बेटे का नाम (Son’s Name) नहीं है
7. बेटी का नाम (Daughter’s Name) 3 बेटियां

जीवन परिचय

बंगला भाषा के प्रसिद्ध लेखक बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय का जन्म 26 जून, 1838 ई. को बंगाल के 24 परगना ज़िले के कांठल पाड़ा नामक गाँव में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय बंगला के शीर्षस्थ उपन्यासकार हैं। उनकी लेखनी से बंगला साहित्य तो समृद्ध हुआ ही है, हिन्दी भी अपकृत हुई है। वे ऐतिहासिक उपन्यास लिखने में सिद्धहस्त थे। वे भारत के एलेक्जेंडर ड्यूमा माने जाते हैं। इन्होंने 1865 में अपना पहला उपन्यास ‘दुर्गेश नन्दिनी’ लिखा।

बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय जन्म एवं परिवार की जानकारी (Birth and Family Details)

  • चट्टोपाध्याय जी का जन्म बंगाल के नैहाटी के पास छोटे से गांव कंथालपरा में हुआ था. इनका जन्म एक रूढ़िवादी बंगाली ब्राह्मण  परिवार में हुआ था.बंकिम जी के दो बड़े भाई थे. बंकिमचंद्र जी का पूरा परिवार शिक्षित और संपन्न था. इनके पिता सरकारी नौकरी में थे, जो बाद में बंगाल के मिदनापुर के उप कलेक्टर बन गए. बंकिमचंद्र जी और उनके भाईयों ने अपनी स्कूली शिक्षा मिदनापुर के सरकारी स्कूल से की थी.
  • बंकिम चंद्र  बचपन से ही पढ़ने लिखने में रूचि थी. स्कूल के दिनों में ही इन्होंने पहली बार कविता लिखी थी. बंकिम चन्द्र जी को इंग्लिश भाषा से ज्यादा संस्कृत में रूचि थी, इसके पीछे एक कारण भी है. एक बार स्कूल में उनके इंग्लिश के शिक्षक ने उन्हें इंग्लिश न बनने पर पिटाई कर दी थी, जिसके बाद बंकिम चन्द्र जी को इंग्लिश भाषा से ही चिढ़ हो गई थी. बंकिमचंद्र जी पढाई के साथ साथ खेलकूद में भी आगे थे. स्कूल में उन्हें एक अच्छे मेहनती छात्र के रूप में जाना जाता था.
  • आगे की कॉलेज की पढाई बंकिमचंद्र जी ने हुगली मोहसिन कॉलेज से की थी, फिर उसके बाद वे प्रेसिडेंसी कॉलेज गए, जहाँ से उन्होंने आर्ट्स विषय में 1858 में स्नातक किया। कलकत्ता युनिवर्सिटी से उस समय सिर्फ दो लोगों ने स्नातक की फाइनल परीक्षा पास की थी, जिसमें से एक बंकिमचंद्र जी थे. बंकिम जी ने कानून की परीक्षा पास कर, इसकी डिग्री भी हासिल की. इनके भाई भी एक उपन्यासकार और लेखक थे, जिन्होंने कई प्रसिध्य रचनाएँ लिखी थी, जिनमें से एक पलामू थी.
  • बंकिम जी कि शादी मात्र 11 वर्ष में हो गई थी, उस समय उनकी पत्नी महज 5 साल की थी. शादी के 11 साल बाद इनकी पत्नी कि मृत्यु हो गई. जब बंकिम जी 22 साल के थे. इसके बाद बंकिम चन्द्र जी ने दूसरी शादी राजलक्ष्मी देवी से की, जिसके बाद उन्हें तीन बेटियां हुई.

बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय का करियर

  • कानून की पढाई पूरी करने के बाद बंकिम जी को सरकारी नौकरी मिल गई और पिता की तरह ही उन्हें भी बंगाल के एक जिले का उप कलेक्टर बना दिया गया.  कुछ समय बाद उनके काम को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने बंकिमचंद्र जी को उप मजिस्ट्रेट पद पर नियुक्त कर दिया।
  • बंकिमचंद्र जी ने लगभग तीस साल तक अंग्रेजों के अधीन होकर काम किया। 1891 में बंकिम जी ने ब्रिटिश सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त होने का निर्णय  लिया और नौकरी छोड़ दी.
  • अंग्रेजों के साथ काम करते हुए, बंकिम जी के उनकी कार्यप्रणाली को करीब से देखा था. 1857 की क्रांति के बंकिम जी प्रत्यक्ष गवाह थे. यही सब उनके अंदर क्रांति की आग को भर रहा था. 1857 की लड़ाई के बाद भारत देश कि शासन प्रणाली पूरी तरह बदल गई थी. ईस्ट इंडिया कंपनी की हार के बाद, भारत देश अब ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के अंदर आ गया था. भारत के शासन पर अब इनका ही अधिकार था. बंकिम जी उस समय सरकारी नौकरी में थे, जिस वजह से वे खुल कर अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन का हिस्सा नहीं बन सके, लेकिन अंग्रेजों के प्रति रोष, आक्रोश उनके अंदर बढ़ता ही जा रहा था, जिसे उन्होंने अपनी कलम के द्वारा सभों तक पहुँचाने का रास्ता निकाला.

साहित्य क्षेत्र में करियर (Literacy career)

  • बंकिम चन्द्र जी ने सबसे पहले ईश्वर चंद्र गुप्ता के साथ प्रकाशन का काम शुरू किया था, वे इनके साप्ताहिक समाचार पत्र “संगबा प्रभाकर” में लिखा करते थे.
  • बंकिम चन्द्र जी को लेखन का शौक था. वे अपने आदर्श ईश्वरचंद्र गुप्ता जी को मानते थे, उन्ही के रास्ते पर चलते हुए उन्होंने भी कविता लेखन के द्वारा अपनी साहित्यिक यात्रा शुरू की। लेकिन बाद में जब उनके अंदर लेखन की क्षमता का विकास हुआ तो उन्होंने कथा,कहानी, उपन्यास लिखने की तरफ अपना रुख किया. उनका पहला लेखन एक उपन्यास था जिसे उन्होंने एक प्रतियोगिता के लिए लिखा था। चूंकि उन्होंने प्रतियोगिता नहीं जीती और उपन्यास कभी प्रकाशित नहीं हुआ था।
  • बंकिम चन्द्र जी का पहला प्रकाशित उपन्यास इंग्लिश भाषा में था, जिसका नाम “राजमोहन कि पत्नी” था. अंग्रेजी में होने के कारण इस उपन्यास को ज्यादा पसंद नहीं किया गया, क्यूंकि उस समय भारत में अंग्रेजी को समझने वाले बहुत कम ही लोग हुआ करते थे. इसके बाद बंकिम चन्द्र जी ने सोचा बंगाल कि आम जनता तक अपनी बात पहुँचाने के लिए उन्हें वहां की क्षेत्रीय भाषा में लेखन करना होगा.
  • 1865 में बंकिम चन्द्र जी ने बंगाली भाषा में अपना पहला उपन्यास लिखा और प्रकाशन किया, जिसका नाम “दुर्गेशनंदिनी” था. यह एक बंगाली उपन्यास था, जो प्रेमकहानी पर आधारित था।
  • इसके बाद उनका बड़ा प्रकाशन – ‘कपालकुंडा’ था। जिसे सभी ने बहुत पसंद किया और इस उपन्यास ने उन्हें एक लेखक के रूप में स्थापित किया।
  • बंकिम जी ने 1869 में “मृणालिनी” नाम का एक उपन्यास लिखा, जो उनके बाकि उपन्यास से अलग था. बंकिम जी ने पहली बार ऐतिहासिक सन्दर्भ में कहानी लिखी थी.
  • बाद में बंकिम जी ने “बांगदर्शन” नामक अपनी मासिक साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया। यह पत्रिका 4 साल तक प्रकाशित होती रही।
  • बंकिम जी ने 1877 में “चंद्रशेखर” नाम का उपन्यास लिखा और प्रकाशित किया था, यह उपन्यास बंकिम चन्द्र जी की बाकि रचना से अलग था, इसमें उन्होंने अलग शैली से लिखा था.
  • 1877 में ही बंकिमचंद्र जी ने ‘रजनी’ नाम का साहित्य भी प्रकाशित किया, जिसे बंकिमचन्द्र जी की आत्मकथा कहा जाता है।
  • 1882 में बंकिमचन्द्र जी ने “आनंदमठ” उपन्यास लिखा था, जो एक राजनीतिक उपन्यास था। इसकी कहानी हिन्दू राष्ट्र और ब्रिटिश राज्य के इर्द गिर्द थी.
  • बंकिमचंद्र जी ने इसके अलावा और भी साहित्य कि रचना की थी, जैसे लोकसाहित्य, देवी चौधरानी, कमला कान्तेर, सीताराम, कृष्णा चरित्र, विज्ञान रहस्य, धर्मत्व आदि.

मुख्य उपाधि

  • बंकिम अपने सभी उपन्यासों और निबंधों के लिए जाने जाते हैं लेकिन इनकी रचना ‘आनंदमठ’ सबसे अधिक प्रसिध्य हुई, इसमें ही बंकिमचंद्र जी ने वंदेमातरम् गीत को पहली बार लिखा था. इसी से रवींद्रनाथ टैगोर ने ‘वंदे मातरम्’ गीत लिया जो आगे 1937 में भारत का राष्ट्रीय गीत बन गया.
  • बंकिमचंद्र जी ने अपनी साहित्यिक रचना से बहुत से लोगों को प्रभावित किया है, स्वतंत्रता की लड़ाई में बहुत से स्वतंत्रता सेनानी इनकी रचनाओं से प्रेरणा लेते थे, उनके अंदर एक नया जोश भरता था. बंकिम चन्द्र जी ने अपने काम और विचारों के साथ कई प्रमुख भारतीय व्यक्तित्वों को प्रेरित किया. बिपीन चंद्र पाल ने 1906 में बंदीचन्द्र जी के गीत के बाद “वंदे मातरम्” के नाम से देशभक्ति पत्रिका शुरू की थी, इनकी तरह ही लाला लाजपत राय जी ने भी इसी नाम का जर्नल प्रकाशित किया। ये सभी स्वतंत्रता सेनानियों में देश प्रेम को और बढ़ावा देते थे.

बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय मृत्यु (Death)

बंकिम जी की मात्र 55 साल में अपने कामकाज से सेवानिवृत्त होने के तुरंत बाद ही 8 अप्रैल को 1894 को बंगाल के कलकत्ता में मृत्यु हो गई थी. बंकिम जी की मृत्यु भारत देश के लिए एक बड़ी क्षति थी. बंकिम जी कभी शारीरिक रूप से स्वतंत्रता की लड़ाई में नहीं उतरे, लेकिन उनके द्वारा लिखी हुई रचनाएँ, लेख, कविता हर स्वतंत्रता सेनानी के अंदर देश की आजादी के प्रति अलख जगा देता था.

बंकिम चन्द्र जी ने बंगाली भाषा में आधुनिक साहित्य की शुरुवात की थी. इससे पहले कोई भी लेखक इंग्लिश या संस्कृत भाषा में ही साहित्य लिखा करता था. बंगाली साहित्य का उत्थान इन्ही के द्वारा 19 वीं शताब्दी में शुरू हुआ था. बंगाल साहित्य को आमजन तक पहुँचाने वाले बंकिम जी ही थे.

बंकिमचंद्र के उपन्यासों का भारत की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद किया गया। बांग्ला में सिर्फ बंकिम और शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय को यह गौरव हासिल है कि उनकी रचनाएं हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं में आज भी चाव से पढ़ी जाती है। लोकप्रियता के मामले में बंकिम और शरद और रवीन्द्र नाथ टैगोर से भी आगे हैं। बंकिम बहुमुखी प्रतिभा वाले रचनाकार थे। उनके कथा साहित्य के अधिकतर पात्र शहरी मध्यम वर्ग के लोग हैं। इनके पात्र आधुनिक जीवन की त्रासदियों और प्राचीन काल की परंपराओं से जुड़ी दिक्कतों से साथ साथ जूझते हैं। यह समस्या भारत भर के किसी भी प्रांत के शहरी मध्यम वर्ग के समक्ष आती है। लिहाजा मध्यम वर्ग का पाठक बंकिम के उपन्यासों में अपनी छवि देखता है।

उपन्यास

  • दुर्गेशनन्दिनी
  • कपालकुण्डला
  • मृणालिनी
  • बिषबृक्ष
  • इन्दिरा
  • युगलांगुरीय
  • चन्द्रशेखर
  • राधारानी
  • रजनी
  • कृष्णकान्तेर उइल
  • राजसिंह
  • आनन्दमठ
  • देबी चौधुरानी
  • सीताराम
  • उपकथा (इन्दिरा,युगलांगुरीय और राधारानी त्रयी संग्रह)
  • Rajmohan’s Wife

प्रबन्ध ग्रन्थ

  • कमलाकान्तेर दप्तर
  • लोकरहस्य
  • कृष्ण चरित्र
  • बिज्ञानरहस्य
  • बिबिध समालोचना
  • प्रबन्ध-पुस्तक
  • साम्य
  • कृष्ण चरित्र
  • बिबिध प्रबन्ध

विविध

  • ललिता (पुराकालिक गल्प)
  • धर्म्मतत्त्ब
  • सहज रचना शिक्षा
  • श्रीमद्भगबदगीता
  • कबितापुस्तक (किछु कबिता, एबं ललिता ओ मानस)

सम्पादित ग्रन्थावली

  • दीनबन्धु मित्रेर जीबनी
  • बांगला साहित्ये प्यारीचाँद मित्रेर स्थान
  • संजीबचन्द्र चट्टोपाध्यायेर जीबनी

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *