बुधवार व्रत कथा || Budhavaar Vrat Katha

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मानव के सभी दुःख पाप जनित हैं। सभी व्रत पाप नाश के लिए किये जाते हैं अगर इनका विधिपूर्वक अनुष्ठान किया जाये तो इनके प्रभाव से जीवन में अपूर्व परिवर्तन दिखाई देता है वर्षों से दुःख भोगने वाले मनुष्य के लिए इन व्रतों के प्रभाव से ऐसे आचरण मिल जाते हैं जिनके प्रभाव दुःख, दारिद्रय स्वप्नवत् विलीन हो जाते हैं और मनोवांछित सुख की प्राप्ति होती है। इससे पूर्व व्रत-कथा की श्रृंखला में आपने सोमवार और मंगलवार का व्रत कथा पढ़ा अब बुधवार व्रत कथा पढेंगे।

बुधवार व्रत का लाभ व महत्त्व

शान्ति तथा सर्व सुख की इच्छा रखने वाले को बुधवार का व्रत करना चाहिए, विधिपूर्वक बुधवार का व्रत करने से बुध जनित सम्पूर्ण दोष, रोग, शोक समूल नष्ट हो जाते हैं। स्थायी आरोग्यता, स्वास्थ्य, बुद्धि की वृद्धि होती है। शारीरिक मानसिक वाचिक पाप, महापाप बुधवार के व्रत के प्रभाव से दूर होकर सुख, यश, लक्ष्मी तथा बुद्धि की वृद्धि होती है। बुधवार का व्रत करने से, विद्यार्थी को विद्या, क्षत्रिय को बल, वैश्य को धन, शूद्र को सुख, निर्धन को धन, कुमारी को पति, रोगी को आरोग्यता, कैदी को मुक्ति की प्राप्ति होती है और इस लोक में अनेकों प्रकार के सुख भोग कर पुत्रपौत्रादि युक्त होकर अन्त में स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।

बुधवार व्रत की विधि
बुधवार के व्रत को प्रत्येक स्त्री, पुरुष, विद्यार्थी कर सकते हैं। बुध की प्रसन्नता के लिए विशाखा नक्षत्र युक्त बुधवार से व्रत किया जाना बहुत ही श्रेष्ठ रहता है। व्रत प्रारम्भ करने वाले स्त्री-पुरुष को चाहिए कि वह व्रतारम्भ के प्रथम दिन ही क्षौर कर्म आदि कराले। फिर नदी अथवा तालाब में यज्ञ भस्म गोमय मृतिका तथा पंचगव्य से स्नान करके अन्त में शुद्ध जल से स्नान करके फिर सायंकाल में जब तारागण आकाश में दिखाई देने लगे तब व्रत की दीक्षा ले, और अपने किए हुए पापों को सच्चे हृदय से पश्चाताप करे और पुनः न करने का प्रतिज्ञा करें। व्रत वाले दिन प्रातः स्नान आदि करके देव पितृ तर्पण कर मौनावलम्बन पूर्वक मन वाणी और क्रिया के द्वारा व्रत में लग जाए। इस प्रकार सावधानी पूर्वक व्रत करे बुध की स्वर्ण प्रतिमा बनवाकर कांसे के पात्र में रखकर सुगन्ध युक्त चन्दन, चांवल, पुष्पादि से पूजन करे। दो सफेद वस्त्र धारण कराये। गुड़, दही, चांवल का भात का भोग लगावे। प्रेम और भक्ति से बुधवार व्रत कथा को सुने। कथा की समाप्ति पर प्रसाद बांटे। अपामार्ग की १२८ समिधा में घी, दही मिला कर हवन करे गुड़, दही, चांवल के भात से ब्राह्मण को भोजन करावे। इस प्रकार ७, २७ अथवा १२८ बुधवार तक व्रत करने से सम्पूर्ण कामना पूर्ण होती हैं। बुध जनित सम्पूर्ण दोष दूर होकर सुख और शान्ति मिलती है। मनोवांछित सुखों की प्राप्ति होने पर इस व्रत का उद्यापन करना चाहिए, विशेष रूप से बुध देव का पूजन करे। २७ ब्राह्मणों को भोजन कराये तथा व्रत का विसर्जन करे, व्रत के उद्यापन बिना सम्पूर्ण कामनाओं की सिद्धि नहीं होती है।

अथ बुधवार व्रत कथा
एक समय नैमिषारण्य में शौनक आदि मुनि एकत्र हुए और पुराणों के ज्ञाता व्यास जी के प्रधान शिष्य श्री सूत जी से पूछने लगे -हे मुने! आपने हमें अनेकों सुन्दर कथा सुनाई हैं, जो देहिक, दैविक, भौतिक पापों को नाश करने वाली हैं। कृपा करके कोई ऐसी व्रत बतायें जिसके करने से मनुष्य के सभी पाप समाप्त हो जाय और श्री हरि की भक्ति हो सके। आप कृपा करके हमसे कहें। श्री सूत जी बोले-हे महर्षियो ! मैं स्वयं इसका वर्णन नहीं कर सकता हूँ क्योंकि यह विषय अथाह है। मैं आपके सामने एक सुन्दर इतिहास कहता हूँ जिसे महर्षि वशिष्ठ से राजा मान्धाता ने पूछा था अब मैं उसी को आपसे कहता हूं।

महाराजा मान्धाता अपनी सभा में बैठे हुए थे, उसी समय महर्षि वशिष्ठ पधारे। द्वारपाल ने महर्षि के आगमन की सूचना दी महाराज अपने प्रधान सभासदों के साथ उठकर महर्षि को लेने के लिये आये और सुन्दर आसन पर विराज कर बोले प्रभो! मेरे लिए क्या आज्ञा है ? वशिष्ठ जी ने कहा राजन ! मैं घूमते-घूमते आपकी ओर चला आया था। आपको देख परम हर्ष हुया, आप सब कुशल पूर्वक तो हो ? मान्धाता बोले महर्षि आपकी कृपा से सब कुशल है परन्तु प्रभु ! कोई ऐसा व्रत कहें जिसके करने से पापों की शान्ति होकर स्वर्ग को प्राप्ति हो। महर्षि ने कहा-राजन ! आपने बहुत ही सुन्दर प्रश्न किया है। एक महा पुण्य का देने वाला तथा स्वर्ग मृत्युलोक में दुर्लभ व्रत आपसे कहता हूं। आप ध्यान देकर सुनें। महापुण्य को देने वाला बुधवार का व्रत कथा है। अगर मनुष्य भक्ति और श्रद्धायुक्त होकर बुधवार का व्रत करता है तो इस लोक में सभी प्रकार के सुखों को भोग कर अन्त में वैकुण्ठ को प्राप्त होता है। महाराज मान्धाता बोले-महर्षिवर ! आपने बुधवार का व्रत तो कह दिया इस व्रत के करने से क्या फल मिलता है, इस व्रत की विधि क्या है, किस देवता का पूजन करना चाहिए और सबसे पहले यह पृथ्वी पर किसने किया यह सब विस्तार पूर्वक मुझसे कहें । आपकी अति कृपा होगी। महर्षि बोले राजन ! मैं आपसे व्रत का फल संक्षेप में वर्णन करता हूं, वैसे व्रत के फल के कहने का सामर्थ्य स्वयं ब्रह्मा जी में नहीं है। यह व्रत दुःख और शोक का नाश करने वाला, धन और धान्य को बढ़ाने वाला, समस्त पापों का नाश करने वाला है, जो मनुष्य जिस कामना को लेकर इस व्रत को करता है वह कामना पूर्ण होती है तथा समस्त पापों का नाश होकर उत्तम गति की प्राप्ति होती है। अन्त में श्रीहरि के लोक को प्राप्ति होती है । इस व्रत की विधि निम्न है-

मनुष्य श्रद्धा भक्ति से बुधवार के दिन व्रत करे प्रातःकाल नदी आदि में स्नान करके नवीन कलश जल का भर लावें। किसी भी पवित्र स्थान में कमल का आकार बनावे, उसके मध्य इस कलश को स्थापित कर श्वेत चावलों से उसका पूजन करे, बुध की स्वर्ण की मूर्ति कांस्य पात्र में स्थापन करके उस कलश के ऊपर रखे, दो सफेद वस्त्र धारण करावे । गन्ध, पुष्पादि से पूजन करे, यज्ञोपवीत चढ़ावे। अशोक के छाल की बत्ती बनाकर दीपक जलाये, गुड़ दही, भात, खीर का भोग लगावे। उसी पदार्थ से ब्राह्मणों को भोजन करावे, तत्पश्चात प्रदक्षिणा करके बुध की प्रार्थना करे, इस प्रकार सात बुधवार व्रत करने से बुध जनित सम्पूर्ण दोष दूर होकर सुख और शान्ति मिलती है बुद्धि बढ़ती है। २७ बुधवार व्रत करने से पूर्व जन्म के किये हुए पापों का नाश होकर स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

सबसे पूर्व पृथ्वी पर जिसने बुधवार का व्रत किया था उसकी कथा कहते हैं। पूर्व काल में मिथिलापुरी में एक राजा राज्य करता था उसका नाम निमि था। उसके शत्रुओं ने परस्पर प्रेम करके मिथिलापुरी पर चढ़ाई कर दी बहुत ही भयंकर संग्राम हुआ। इस संग्राम में महाराज निमि मारे गये तथा उनके राज्य को शत्रुओं ने अपने आधीन कर लिया। महाराज निमि की रानी का नाम उर्मिला था। उसके एक लड़का और एक लड़की थी। जब रानी ने महाराज के मारे जाने का समाचार सुना तो वह बहुत ही दुखी हूई। उसने विचार किया कि अगर मैं यहां पर महल में रहूंगी तो महाराज के शत्रु मुझे पकड़ लेंगे, तथा मुझे, कुमार व कुमारी को मार देंगे। इससे अच्छा है, मैं इस राज्य और राजमहल को छोड़ कर चल दूं। रानी ने ऐसा विचार कर अपने पुत्र और पुत्री को लेकर राजमहल के गुप्त दरवाजे से निकल गई और किसी ने रानी को नहीं पकड़ा। रानी उर्मिला अपने छोटी अवस्था वाले पुत्र और पुत्री को साथ लेकर अन्न-वस्त्र की चिन्ता करती हुई चारों ओर विचरण करने लगी भगवान की कृपा से उसे जो कुछ फूल और फल मिल जाता उसी को ग्रहण कर लेती तथा अपने पुत्र और पुत्री का पालन करती थी। जंगल में जहां कहीं भी स्थान मिल जाता रात्रि को वहां शयन कर लेती और फिर प्रातःकाल उठकर चल देती । इस प्रकार रानी अन्न वस्त्र की चिन्ता में घूमती हुई उज्जयनी नगरी में जा पहुँची वहां एक बाह्मण के यहा कुटने पीसने के काम पर नियुक्त होकर अपने तथा पुत्र-पुत्री का पालन करने लगी । एक दिन सात गेहूं के दाने उठाकर अपने दोनों बालकों के लिए दे दिये, क्योंकि दोनों बालक क्षुधा से अत्यन्त पीड़ित थे। बहुत समय के बाद रानी का देहान्त हो गया। ब्राह्मण दोनों बालकों को अपनी ही सन्तान के समान मानकर पालन पोषण करने लगा, ब्राह्मण ने इस बालक के शरीर चिन्ह तथा हरतरेखा को देखकर अनुमान लगा लिया कि वह राजपुत्र है और एक न एक दिन अवश्य राजा होगा, परन्तु अब इसका भाग्य इसका साथ नहीं दे रहा है। ब्राह्मण ने राजकुमार को बुधवार का व्रत बतलाया। राजकुमार श्रद्धा और शक्तिपूर्वक बुधवार का व्रत करने लगा। व्रत के प्रभाव से बुधदेव प्रसन्न हो गये। मिथिला नगरी की प्रजा ने विद्रोह कर दिया, राजा को मार डाला पुराने मन्त्री को पुनः नियुक्त कर आज्ञा दी जहां भी महाराज कुमार हों, उनकी तलाश की जावे और उनको राज्य सिंहासन पर बैठाया जावे, मन्त्री ने अनेक दूतों को राजपुत्र और राज्यकन्या के तलाश की आज्ञा दी। दूत विचरण करते-करते उज्जयनी नगरी में पहुँचे । राजकुमार व राजकुमारी को देखकर बहुत ही प्रसन्न हुए। इनको लेकर मिथिला लौटकर आये। मिथिला नगरी की प्रजा और मन्त्री सभी अपने महाराज को पाकर बहुत प्रसन्न हुए। राजकुमार को सिंहासन पर बैठाया और बहुत ही खुशी मनाई गई। राजकुमार को अपना राज्य वापिस मिल गया तो उसने उज्जयनी ब्राह्मण को राजगुरु के पद पर रखा तथा अपनी बहिन के विवाह की चिन्ता करने लगा। राजकुमार ने अपनी बहिन श्मामला का विवाह धर्मराज के साथ कर दिया, दहेज में काफी धन दिया श्यामला धर्मराज को पति के रूप में पाकर बहुत ही प्रसन्न हुई। वह सभी प्रकार से धर्मराज की सेवा करती तथा हर प्रकार से प्रसन्न रखती थी। धर्मराज श्यामला से बहुत ही सन्तुष्ट रहते थे, घर का सभी काम-काज उन्होंने श्यामला को सौंप दिया। धर्मराज के घर में सात कोठे थे। यह सातो कोठे कीलों से अच्छी तरह बन्द थे। धर्मराज ने इन सातो कोठों के खोलने को श्यामला से मना कर दिया था। श्यामला अपने घर सभी कार्य भली प्रकार से करती, परन्तु उस कोठों को न खोलती थी। इस प्रकार से श्यामला का काफी समय व्यतीत हो गया। एक दिन धर्मराज किसी आावश्यक कार्य वश घर से बाहर गये थे। श्यामला देवी ने विचार किया कि पतिदेव ने सभी कार्य की मुझे स्वतन्त्रता दे रक्खी है परन्तु न जाने इन सात कोठों के लिए क्यों मना कर दिया है। इस कौतूहल वश श्यामला देवी ने धर्मराज की अनुपस्थित में एक कोठे की कील निकाल दी और खोलकर देखा। उसमें श्यामला देवी ने अपनी माता को यमराज के भयंकर दूतों द्वारा गर्म तेल से भरे हुए कढ़ाये में पटके जाते हुए देखा इस दृश्य को देखकर बहुत ही दुःखी हुई और मन में आातंक छा गया। उसने फिर दूसरे कोठे को खोलकर देखा। वहां उसने अपनी माता को कोल्हू में पिसते हुए देखा। अब श्यामला और भी दुःखी हुई। तीसरे कोठे को खोलकर देखा तो उसमें अपनी माता को बड़े-बड़े हथियारों द्वारा पटके जाते देखा तो श्यामला बहुत ही दुखी हुई फिर उसने चौथे कोठे को खोलकर देखा तो श्यामला की मां कंठ से पकड़ी जाकर वस्त्र का भाति निचोड़ा जा रही है। श्यामला ने छठवें कोठे को खोलकर देखा कि उसकी माता काठ के समान छिली जा रही है। सातवें कोठे को खोलकर देखा कि उसकी माता के ऊपर बड़ी-बड़ी शिलायें फेंकी जा रही हैं । इन सबको देखकर श्यामला को बहुत ही दुःख हुया। अपनी माता के दुखों को देखकर श्यामला शोक ग्रस्त हो गई। धर्मराज जब लौटकर आये उन्होंने श्यामला की ऐसी दशा देखी तो उन्होंने पूछा तुमने कोठे तो खोल कर नहीं देखे थे ? मैंने तुमसे उन सात कोठों को खोलने के लिए मना कर दिया था। श्यामलता ने अपना सिर धर्मराज के चरणों में रख दिया और प्रार्थना की, कि- नरेन्द्र मेरी माता ने ऐसा कौन सा पाप किया है जिसके कारण वह इस प्रकार से नरक की यातनायें सहन कर रही ? धर्मराज बोले श्यामला तुम्हारी माता ने तुम्हारे और तुम्हारे भाई के स्नेह के वशीभूत होकर ब्राह्मण के सात गेहूं के दाने ले लिए थे। प्रथम चोरी ही महा पाप है इस पर भी ब्राह्मण के अन्न की चोरी करने से सात कुल दग्ध हाते है इसी से तुम्हारी मां सप्तम कुल तक दुखी हो रही है। श्यामला हाथ जोड़कर बोली हे नाथ! कोई ऐसा उपाय बतायें जिसके करने से मेरी माँ का उद्धार हो वह इस कष्ट को न भोगे। मैं अपनी माता के कष्ट को नहीं देख सकती हूँ धर्मराज बोले कि हे देवी पूर्व जन्म में तुम ब्राह्मणी थी उस जन्म में तुमने बुधवार का व्रत किया तथा अपनी सखियों से भी बुधवार का व्रत करवाया था। इस जन्म में तुमने बाह्मण के उपदेश को मानकर बुधवार का व्रत किया है उस व्रतराज के प्रभाव से समस्त सुख आपके लिए प्राप्त है। अब आप सत्य प्रतिज्ञा करके इस बुधवार के व्रत के पुण्य को मेरे सन्मुख अपनी माता को दे दो तो आपकी मा के कष्टों की समाप्ति हो जायगी, उन्हें उत्तम सुख प्राप्त होगा। श्यामला ने ऐसा ही किया, पुण्य के मिलते ही श्यामला की मां उर्मिला पीड़ा से मुक्त होकर दिव्य शरीर को धारण करके स्वर्ग के लिए चली गई। भगवान विष्णु के दूत सुन्दर विमान लेकर उसे लेने के लिए आये। इस दृश्य को देख कर बहुत ही आनन्द माना और बुधवार का हमेशा व्रत करने लगी। इस कथा को सुनकर महाराजा मान्धाता ने बहुत ही सुख माना तथा वशिष्ठ जी की बहुत प्रकार से सेवा की तथा बुधवार का व्रत कर इस लोक में अनेकों प्रकार के सुख भोगकर अन्त में दुर्लभ मोक्ष की प्राप्ति की।

[इति श्री भविष्योत्तर पुराणे बुधवार व्रत कथा सम्पूर्णम ]

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