शनि प्रदोष व्रत कथा || Shani Pradosh Vrat Katha

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इससे पूर्व आपने पढ़ा कि शुक्रवार के दिन को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को शुक्र प्रदोष व्रत कथा कहते हैं। अब पढेंगे कि- शनिवार को आने वाले प्रदोष को शनिवार प्रदोष या शनि प्रदोषम् प्रदोष भी कहा जाता है और इस व्रत कथा को शनि प्रदोष व्रत कथा कहा जाता है। इस दिन इस पावन व्रत को पुत्र की कामना से किया जाता है। शनि प्रदोष के दिन भगवान शंकर और शनिदेव पूजन किया जाता है।


शनि प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा

प्राचीन काल में एक नगर सेठ थे। सेठजी के घर में हर प्रकार की सुख-सुविधाएं थीं लेकिन संतान नहीं होने के कारण सेठ और सेठानी हमेशा दुःखी रहते थे। काफी सोच-विचार करके सेठजी ने अपना काम नौकरों को सौंप दिया और खुद सेठानी के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। अपने नगर से बाहर निकलने पर उन्हें एक साधु मिले, जो ध्यानमग्न बैठे थे। सेठजी ने सोचा, क्यों न साधु से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा की जाए। सेठ और सेठानी साधु के निकट बैठ गए। साधु ने जब आंखें खोलीं तो उन्हें ज्ञात हुआ कि सेठ और सेठानी काफी समय से आशीर्वाद की प्रतीक्षा में बैठे हैं।

साधु ने सेठ और सेठानी से कहा कि मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं। तुम शनि प्रदोष व्रत करो, इससे तुम्हें संतान सुख प्राप्त होगा। साधु ने सेठ-सेठानी को प्रदोष व्रत की विधि भी बताई और शंकर भगवान की निम्न वंदना बताई।

हे रुद्रदेव शिव नमस्कार।
शिवशंकर जगगुरु नमस्कार।।

हे नीलकंठ सुर नमस्कार।
शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार।।

हे उमाकांत सुधि नमस्कार।
उग्रत्व रूप मन नमस्कार।।

ईशान ईश प्रभु नमस्कार।
विश्वेशश्वर प्रभु शिव नमस्कार।।

दोनों साधु से आशीर्वाद लेकर तीर्थयात्रा के लिए आगे चल पड़े। तीर्थयात्रा से लौटने के बाद सेठ और सेठानी ने मिलकर शनि प्रदोष व्रत किया जिसके प्रभाव से उनके घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ और खुशियों से उनका जीवन भर गया।

शनि प्रदोष व्रत कथा समाप्त
इति: प्रदोष व्रत कथा समाप्त ।

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