इसलिए गीता में श्रीकृष्ण ने कहा दुख में ही नहीं सुख में भी याद करो

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तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च। मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्।। गीता 8/7।।

अर्थ: इसलिए सभी कालों में मेरा स्मरण कर और युद्ध कर! जब तेरा मन और बुद्धि मुझमें अर्पित होगी तो तू निःसंदेह मुझको ही प्राप्त हो जाएगा।

व्याख्या: मन में अच्छे-बुरे ख्यालों, इच्छाओं, वासनाओं, लाभ-हानि, जय-पराजय, सुख-दुःख आदि का युद्ध जीवन भर चलता ही रहता है, भले व्यक्ति अमीर हो या गरीब, स्त्री हो या पुरुष, छोटा-बड़ा हो या वृद्ध, सबके अंदर हलचल होती ही रहती है।

मन की इस उहापोह का नाम ही युद्ध है, जो चलता ही रहेगा। ऐसे में व्यक्ति सोचने लगता है कि जीवन में जब सब कुछ ठीक होगा, तब प्रभु का नाम लूंगा। लेकिन यहां भगवान कह रहे हैं कि हे अर्जुन!

तू युद्ध भी कर और मुझे भी याद कर, क्योंकि प्रभु को याद करते रहने से युद्ध का असर चित्त पर नहीं आएगा। जिसके मन और बुद्धि में संसार के ख्याल न चलकर केवल प्रभु का ही स्मरण रहता है, वह प्रभु को ही प्राप्त हो जाता है, इसमें कोई भी संदेह नहीं है।

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