डंडे की करामात Dande Ki Karamat Tenalirama Stories
एक गांव में एक औरत रहती थी। वह प्रतिदिन शाम को अपने पति को दस जूते मारा करती थी।
इस औरत की एक बेटी भी थी। जब वह शादी के लायक हुई तो उसके लिए वर की खोज होने लगी। लड़की रूपवती थी, परन्तु जूता मारने में मां की नकल करने का लोागों को उसकी ओर से डर था। इसलिए उसके साथ कोई विवाह नहीं करना चाहता था।
नगर-नगर और गांव-गांव में इस जूता मारने वाली औरत की चर्चा फैल रही थी।
इधर तेनाली राम की कीर्ति भी कम न थी। उसके शत्रु उससे वैर रखते थे। ऐसे लोगों ने किसी न किसी बहाने तेनाली राम को नीचा दिखाने का विचार किया। तेनाली राम के रिश्तेदार भी उससे बहुत जलते थे, इसलिए उन्होंने भी अपना बैर निकालने के लिए यह अच्छा अवसर समझा।
एक दिन तेनाली राम सारे कामों से निबट कर अपने घर में बैठे थे। उस समय एक पुरोहित उनसे मिलने आया। तेनाली राम ने उस को बहुत आदरपूर्वक बिठाया।
थोड़ी देर इधर-उधर की बातें करने के बाद पुरोहित ने कहा – “वह रमाबाई अपने पति विष्णु शर्मा को नित्य दस जूते मारा करती है, उसको तो आप जानते होंगे। उसकी एक बहुत रूपवती बेटी है। उससे कोई विवाह नहीं करता। सबको यही भय है कि उसमें माता से आचरण न हों। यदि आप उससे विवाह कर लें तो आप की बहुत प्रशंसा होगी।”
तेनालीराम ने उसका मतलब समझ लिया और कहा – “आपका कहना ठीक है, परन्तु मेरा एक विवाह हो चुका है और दूसरा करने की मेरी कोई इच्छा नहीं है, इसलिए मैं यह विवाह नहीं कर सकता। किन्तु हां, मेरा एक छोटा भाई है जो इन दिनों काशी पढ़ने गया है, यदि उस के साथ उस लड़की का रिश्ता हो सकात हो तो मैं तैयार हूं।”
यह सुनकर पुरोहित जी प्रसन्न होते हुए रमाबाई के घर गए और अपने आने का मतलब कह सुनाया। सुनते ही रमाबाई बहुत प्रसन्न हुई और उसने तेनाली राम के भाई को अपनी लड़की देना स्वीकार कर लिया। विवाह का दिन निश्चित करने की भी उसने पुरोहित को अनुमति दे दी। पुरोहित ने तेनालीराम के पास जाकर विवाह का दिन भी निश्चित कर दिया।
तेनालीराम का कोई भाई न था। जब विवाह पक्का हो गया, तब वह एक अनाथ बालक को ढूंढ़ने लगे। ढूंढ़ते-ढूंढ़ते दो तीन दिन में उनको एक बीस वर्ष का युवक मिल गया जो बहुत पढ़ा लिखा था और पेट पालने की चिंता में विजयनगर आया हुआ था।
तेनालीराम ने उस युवक को अपने घर पर टिका लिया और एक दिन कहा – “मैं रमाबाई की कन्या से तुम्हारा विवाह करा दूंगा और तेरे जीवन निर्वाह का उचित प्रबंध भी करा दूंगा। परन्तु इन सब बातों के लिए तुम्हें मेरा भाई बनना पड़ेगा, यदि तुम्हारी इच्छा हो तो मैं उपाय करूं।”
तेनालीराम की यह बात सुनकर युवक अत्यन्त प्रसन्न हुआ। उसने यह सहर्ष स्वीकार किया।
थोड़े ही दिनों के बाद विवाह की तैयारी हुई और भाँवरें पड़ीं।
जिस दिन लड़की ससुराल जाने को तैयार हुई, उसी दिन उसकी मां ने एक जूता उसे दिया और शिक्षा दी – “बेटी, जो तू मेरी सच्ची लड़की है तो मुझ से भी अधिक अपने पति पर प्रभाव जमा लेना। मैं तो हर रोज उसे दस जूते मारती हूं, परन्तु तुझ को बहादुर मां की बेटी उसी समय मानूंगी जब कि तू अपने पति को पन्द्रह जूते रोज मारे, और यदि तू मेरे कहने के अनुसार नहीं चलेगी तो मैं जन्म भर तेरा मुंह भी नहीं देखूंगी।”
लड़की ने यह बात स्वीकार कर ली।
रमाबाई ने अपने पति को उसे पहुंचाने के लिए भेजा।
लड़की के ससुराल में पहुंचते ही तेनालीराम ने ऐसा रूप बना लिया जिससे वह थरथर कांपने लगी। उसके पति को भी तेनालीराम ने चिड़चिड़े स्वभाव का बन कर रहने को समझा दिया था। तेनाली राम और अपने पति, इन दोनों के स्वभाव में चिड़चिड़ापन और क्रोध देख कर उस लड़की ने भय के मारे जूता चुपके से कोने में डाल दिया और मारने का विचार उस समय छोड़ दिया।
एक दिन भोजन के पश्चात तेनाली राम और विष्णु दोनों बात कर रहे थे। उस समय तेनाली राम ने बिल्कुल अनजान बनकर विष्णु की पीठ पर हाथ फेरते हुए पूछा – “तुम्हारी पीठ पर ऐसे गड्ढ़े क्यों पड़ रहे हैं?”
यह सुनकर विष्णु ने सारी बात कह सुनाई। तेनाली राम ने सुन कर बहुत खेद प्रकट किया और कहा, “एक उपाय मुझे सूझा है, तुम करो तो बताऊं?”
उसने इस बात की हामी भरी। तेनाली राम ने उसको चार मास तक अपने यहां रख कर नित्यप्रति प्रातःकाल सूर्य को साष्टांग दंडवत प्रणाम करते रहने के लिए कहा।
वह तेनाली राम की आज्ञानुसार नित्यप्रति यह व्यायामक रने लगा। तेनाली राम उसको खाने के लिए अच्छा पौष्टिक भोजन देता था, जिससे चार मास में उसका शरीर हष्ट-पुष्ट हो गया।
जब वह खूब हष्ट-पुष्ट हो गया, तब तेनाली राम ने लुहार को बुलवा कर एक सुन्दर डंडा बनवाया। इस डंडे में बांस के ऊपर उचित स्थानों पर लोहा लगवा कर उसको ठीक लुहांगी बना दिया।
तेनालीराम ने वह लुहांगी उसको दे कर उसका नाम ‘गुरू भाई’ रखा और काम पड़ने पर उसको किस प्रकार काम में लाना चाहिए उस को बतला दिया और घर भेज दिया।
अपने पति को पांच मास बाद आया हुआ देखकर रमाबाई को बहुत हर्ष हुआ। उसने पांच मास तक के जूतों का हिसाब कर रखा था।
पति को हष्टपुष्ट देखकर वह मन में बहुत प्रसन्न हुई। यद्यपि वह बेचारा बहुत दूर से थका हारा आया था, परन्तु उसको इस बात से कोई मतलब नहीं था।
उसने आते ही उसको जूता मारने के स्थान पर बैठने की आज्ञा दी। बेचारा पति अपने डंडे को छिपाये हुए उस स्थान पर जा बैठा।
औरत ने जूता मारने के लिए ज्यों ही हाथ बढ़ाया, त्यों ही पति ने रमाबाई को ऐसे जोर से डंडा मारा कि उसका सिर फट गया।
डंडे के लगते ही वह चीखी, ‘अरे रे, मार डाला!’ और जमीन पर गिर पड़ी।
तब पति ने दूसरा डंडा मारा जिसके लगते ही वह और जोर से चिल्लाने लगी।
उसकी चिल्लाहट सुनकर अड़ोस-पड़ोस के आदमी इकट्ठे हो गये, और उसको मारने से रोका।
अपने पति का रौद्र रूप देखकर वह डर गई और उस दिन से उसकी आज्ञा मानने लगी।
जब लोगों ने यह बात सुनी कि तेनाली राम की युक्ति से विष्णु ने अपनी दुष्ट स्त्री से छुटकारा पाया है तो वे उसकी बुद्धी की प्रशंसा करने लगे और उन्होंने उस दिन से तेनाली राम से बैर रखना छोड़ दिया।
शिक्षा (Tenali’s Moral): किसी ने सच कहा कि डंडे के आगे तो भूत भी भाग जाता है।
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