दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रम् || Daridriya Dahan Shivstotram

0

दरिद्रता का अर्थ केवल भूख या गरीबी ही नहीं है। अपितु यह एक व्यापक शब्द है, जिसका अर्थ जीवन के हरेक क्षेत्र चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक आभाव हो, दरिद्रता इन सब का पर्याय है। भगवान शिव को भोले भंडारी भी कहा जाता है। जो यदि प्रसन्न हो जाए तो जीवन से हर प्रकार के दरिद्रता को समाप्त कर देते है। अतः प्रतिदिन भगवान शंकर का पूजन करके वसिष्ठ ऋषि के द्वारा रचित दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रम्‌ का पाठ करना चाहिए। इससे शिव की कृपा प्राप्ति होकर दारिद्रय का समूल नाश होता है तथा अथाह धन-संपत्ति व स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। व्यापार में उन्नति और कर्ज से मुक्ति के लिए इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए क्योंकि जैसा इस स्तोत्र का नाम है वैसा ही इसका फल है। यहाँ दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रम् का श्लोक सहित हिंदी में अर्थ दिया जा रहा है।

|| अथ दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रम् || 

विश्वेश्वराय नरकार्णव तारणाय

कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय ।

कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय

दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ १॥

जो विश्व के स्वामी हैं, जो नरकरूपी संसारसागर से उद्धार करने वाले हैं, जो कानों से श्रवण करने में अमृत के समान नाम वाले हैं, जो अपने भाल पर चन्द्रमा को आभूषणरूप में धारण करने वाले हैं, जो कर्पूर की कांति के समान धवल वर्ण वाले जटाधारी हैं, दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है।

गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय

कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय ।

गंगाधराय गजराजविमर्दनाय

दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ २॥

जो माता गौरी के अत्यंत प्रिय हैं, जो रजनीश्वर(चन्द्रमा) की कला को धारण करने वाले हैं, जो काल के भी अन्तक (यम) रूप हैं, जो नागराज को कंकणरूप में धारण करने वाले हैं, जो अपने मस्तक पर गंगा को धारण करने वाले हैं, जो गजराज का विमर्दन करने वाले हैं, दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है।

भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय

उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय ।

ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय

दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ ३॥

जो भक्तिप्रिय, संसाररूपी रोग एवं भय का नाश करने वाले हैं, जो संहार के समय उग्ररूपधारी हैं, जो दुर्गम भवसागर से पार कराने वाले हैं, जो ज्योतिस्वरूप, अपने गुण और नाम के अनुसार सुन्दर नृत्य करने वाले हैं, दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है।

चर्मम्बराय शवभस्मविलेपनाय

भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय ।

मंझीरपादयुगलाय जटाधराय

दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ ४॥

जो बाघ के चर्म को धारण करने वाले हैं, जो चिताभस्म को लगाने वाले हैं, जो भाल में तीसरा नेत्र धारण करने वाले हैं, जो मणियों के कुण्डल से सुशोभित हैं, जो अपने चरणों में नूपुर धारण करने वाले जटाधारी हैं, दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है।

पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय

हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय ।

आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय

दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ ५॥

जो पांच मुख वाले नागराज रूपी आभूषण से सुसज्जित हैं, जो सुवर्ण के समान किरणवाले हैं, जो आनंदभूमि (काशी) को वर प्रदान करने वाले हैं, जो सृष्टि के संहार के लिए तमोगुनाविष्ट होने वाले हैं, दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है।

भानुप्रियाय भवसागरतारणाय

कालान्तकाय कमलासनपूजिताय ।

नेत्रत्रयाय शुभलक्षण लक्षिताय

दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ ६॥

जो सूर्य को अत्यंत प्रिय हैं, जो भवसागर से उद्धार करने वाले हैं, जो काल के लिए भी महाकालस्वरूप, और जिनकी कमलासन (ब्रम्हा) पूजा करते हैं, जो तीन नेत्रों को धारण करने वाले हैं, जो शुभ लक्षणों से युक्त हैं, दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है।

रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय

नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय ।

पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय

दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ ७॥

जो राम को अत्यंत प्रिय, रघुनाथजी को वर देने वाले हैं, जो सर्पों के अतिप्रिय हैं, जो भवसागररूपी नरक से तारने वाले हैं, जो पुण्यवालों में अत्यंत पुण्य वाले हैं, जिनकी समस्त देवतापूजा करते हैं, दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है।

मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय

गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय ।

मातङ्गचर्मवसनाय महेश्वराय

दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥ ८॥

जो मुक्तजनों के स्वामीस्वरूप हैं, जो चारों पुरुषार्थों का फल देने वाले हैं, जिन्हें गीत प्रिय हैं और नंदी जिनका वाहन है, गजचर्म को वस्त्ररूप में धारण करने वाले हैं, महेश्वर हैं, दारिद्र्य रुपी दुःख का नाश करने वाले शिव को मेरा नमन है।

वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणं ।

सर्वसम्पत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम् ।

त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात् ॥ ९॥

समस्त रोगों के विनाशक तथा शीघ्र ही समस्त सम्पत्तियों को प्रदान करनेवाले और पुत्र – पौत्रादि वंश परम्परा को बढ़ानेवाले, वसिष्ठ द्वारा निर्मित इस स्तोत्र का जो भक्त नित्य तीनों कालों में पाठ करता है, उसे निश्चय ही स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।

॥ इति श्रीवसिष्ठविरचितं दारिद्र्यदहनशिवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

॥ महर्षि वसिष्ठ विरचित दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रम् सम्पूर्ण ॥

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *