इस तरह शरीर त्याग करने वाला ब्रह्म को प्राप्त होता है

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अग्निर्ज्योतिरह: शुक्ल: षण्मासा उत्तरायणम् |
तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जना: || 24||

अर्थ: अग्नि, ज्योति, दिवस, शुक्ल पक्ष, उत्तरायण के छह महीने में प्रयाण करने वाले ब्रह्मज्ञानी, ब्रह्म को प्राप्त होते हैं।
व्याख्या: ऐसा कहा जाता है कि गीता में लिखा है, जो उत्तरायण के छह महीने में, शुक्ल पक्ष और उसमें भी दिन के समय शरीर छोड़ता है वह मुक्त हो जाता है, लेकिन यह भ्रांति है, गीता में उत्तरायण का अर्थ छह महीनों से नहीं है, बल्कि जब योगी परमात्मा के ध्यान में लीन हो उसको उत्तरायण कहते हैं, ऐसे ही जब व्यक्ति मोह-माया में फंसा रहता है उसको दक्षिणायन कहते हैं।

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भगवान कह रहे हैं जब ब्रह्म को जानने वाला योगी परमात्मा में पूरी तरह लीन होता है, उस समय उसको आत्म ज्योति, अग्नि के समान अनुभव होती है और वह अपने भीतर दिन की भांति सूर्य का प्रकाश अनुभव करता है, उसी को शुक्ल पक्ष और उत्तरायण कहते हैं। इस अवस्था में शरीर छोड़ने से साधक ब्रह्म को प्राप्त होकर मुक्त हो जाता है।

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