धनदा लक्ष्मी स्तोत्र | Dhanada Lakshmi Stotra धनदे धनपे देवि, दानशीले दयाकरे
सद्यः धन प्राप्ति के लिए यह स्तोत्र महत्वपूर्ण है | शिव मंदिर,केले का वन, बिल्व वृक्ष के मूल अथवा देवी के मंदिर में फलाहार भोजन, ब्रह्मचर्य पालन करते हुए स्तोत्र के प्रतिदिन १०० पाठ करने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है | ११००० का पुरश्चरण करें | अखुट धन संपत्ति देनेवाला श्रीसूक्त के समान फल देता है यह स्तोत्र मूल पाठ इस प्रकार है
धनदे धनपे देवि, दानशीले दयाकरे |
त्वं प्रसीद महेशानि यदर्थं प्रार्थयाम्यहम || १ ||
धरामरप्रिये पुण्ये, धन्ये धनद-पूजिते |
सुधनं धार्मिकं देहि, यजमानाय सत्वरम || २ ||
रम्ये रुद्रप्रियेऽपर्णे, रमारूपे रतिप्रिये |
शिखासख्यमनोमूर्ते ! प्रसीद प्रणते मयि || ३ ||
आरक्त चरणाम्भोजे, सिद्धि-सर्वार्थदायिनि |
दिव्याम्बरधरे दिव्ये, दिव्यमाल्यानुशोभिते || ४ ||
समस्तगुणसम्पन्ने, सर्वलक्षण- लक्षिते |
शरच्चन्द्रमुखे नीले, नीलनीरद लोचने || ५ ||
चंचरीक – चमू – चारु – श्रीहार – कुटीलालके |
दिव्ये दिव्यवरे श्रीदे, कलकण्ठरवामृते || ६ ||
हासावलोकनैर्दीव्यैर्भक्ताचिन्तापहारके |
रूप – लावण्य – तारुण्य – कारुण्यगुणभाजने || ७ ||
क्वणत – कंकण – मँजीरे, रस-लीलाऽऽकराम्बुजे |
रुद्रव्यक्त – महत्तत्वे, धर्माधारे धरालये || ८ ||
प्रयच्छ यजमानाय, धनं धर्मेक – साधनम |
मातस्त्वं वाऽविलम्बेन, ददस्व जगदम्बिके || ९ ||
कृपाब्धे करुणागारे, प्रार्थये चाशू सिद्धये |
वसुधे वसुधारूपे, वसु – वासव – वन्दिते || १० ||
प्रार्थिने च धनं देहि, वरदे वरदा भव |
ब्रह्मणा ब्राह्मणैः पूज्या, त्वया च शङ्करो यथा || ११ ||
श्रीकरे शङ्करे श्रीदे ! प्रसीद मायि किङ्करे |
स्तोत्रं दारिद्र्य कष्टार्त्त – शमनं सुघन प्रदम || १२ ||
पार्वतीश – प्रसादेन – सुरेश किङ्करे स्थितम |
मह्यं प्रयच्छ मातस्त्वं त्वामहं शरणं गतः || १३ ||
यह स्तोत्र स्वयं धनदा द्वारा ही कथित है | इसकी फलश्रुति में कहा गया है
इसके पाठ से धनलाभ-दरिद्रता का नाश-सभी प्रकार के योग-भोग-सुख-वैभव की प्राप्ति होती है |
इसके चारगुना पाठ करने से अधिक और शीघ्र फल प्राप्त होता है |
|| धनदा लक्ष्मी स्तोत्रं सम्पूर्णं ||