गरुडपुराण सारोद्धार || Garud Puran Saroddhar
गरुडपुराण-सारोद्धार (प्रेतकल्प) में मृत्यु का स्वरूप, मरणासन्न व्यक्ति की अवस्था और उसके कल्याण के लिये अन्तिम समय में किये जानेवाले कृत्यों तथा विविध प्रकार के दानों आदि का निरूपण हुआ है। साथ ही मृत्यु के बाद के और्ध्वदैहिकसंस्कार, पिण्डदान (दशगात्रविधि-निरूपण), तर्पण, श्राद्ध, एकादशाह, सपिण्डीकरण, अशौचादिनिर्णय, कर्मविपाक, पापों के प्रायश्चित्त का विधान आदि वर्णित है। इनमें नरकों, यममार्गों तथा यममार्ग में पड़नेवाली वैतरणी नदी, यम-सभा और चित्रगुप्त आदि के भवनों के स्वरूपों का भी परिचय दिया गया है। इसी प्रकार स्वर्ग, वैकुण्ठादि लोकों के वर्णन के साथ ही पुरुषार्थ चतुष्टय-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त करने के विविध साधनों का निरूपण हुआ है और जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त होने के लिये आत्मज्ञान का प्रतिपादन भी प्राप्त है।यह ग्रन्थ सोलह अध्यायों में लिखा गया है व अन्त में इसके सुनने,पढ़ने के लाभ को फलश्रुति में बताया गया है। प्रायः श्राद्ध आदि पितृकार्यों तथा अशौचावस्था में परम्परा से इसी को सुनाया जाता है और सामान्य लोग प्रायः इसे ही गरुडपुराण के रूपमें जानते हैं, परंतु वास्तव में यह ग्रन्थ मूल गरुडपुराण से भिन्न है। प्राचीन काल में राजस्थान के विद्वान् पं० नौनिधिशर्माजी के द्वारा किया गया यह एक महत्त्वपूर्ण संकलन है। इसमें श्रीमदादिशंकराचार्य के विवेकचूडामणि, भगवद्गीता, नीतिशतक, वैराग्यशतक एवं अन्य पुराणों के साथ गरुडपुराणके श्लोकों का भी संग्रह है।
गरुडपुराण-सारोद्धार (प्रेतकल्प) की महिमा
कुछ लोगों में यह भ्रान्त धारणा बनी है कि इस गरुडपुराण-सारोद्धार (प्रेतकल्प)-को घर में नहीं रखना चाहिये। केवल श्राद्ध आदि प्रेतकार्यों में ही इसकी कथा सुनते हैं। यह धारणा अत्यन्त भ्रामक और अन्धविश्वासयुक्त है, कारण इस ग्रन्थ की महिमा में ही यह बात लिखी है कि ‘जो मनुष्य इस गरुडपुराण-सारोद्धार को सुनता है, चाहे जैसे भी इसका पाठ करता है, वह यमराज की भयंकर यातनाओं को तोड़कर निष्पाप होकर स्वर्ग प्राप्त करता है। यह ग्रन्थ बड़ा ही पवित्र और पुण्यदायक है तथा सभी पापों का विनाशक एवं सुननेवालों की समस्त कामनाओं का पूरक है। इसका सदैव श्रवण करना चाहिये।
पुराणं गारुडं पुण्यं पवित्रं पापनाशनम् ।
शृण्वतां कामनापूरं श्रोतव्यं सर्वदैव हि॥(सारो० फलश्रुति ११)
गरुडपुराण-सारोद्धार (प्रेतकल्प) पढ़ने या सुनाने व पूजन विधि-
जब कोई अशौच हो तो उनके यहाँ मृत व्यक्ति की व मोक्ष कामना से अस्थि संचय के दिन तृतीय या चतुर्थी से ब्राह्मण उनके यहाँ जाकर सर्वप्रथम गौरी-गणेश,नवग्रह व कलश पूजन मृतक परिवार या गोत्रज्य से बाहर अन्य गोत्री(बहन या बेटी या अन्य गोत्रज्य)को यजमान बनाकर पूजन करावें। कोई न हो तो आचार्य स्वयं पूजन करें। तत्पश्चात सामने एक चौंकी पर सफ़ेद वस्त्र बिछाकर गरुड़र्ध्वज भगवान श्री विष्णु की या गरुडपुराण या गरुडपुराण-सारोद्धार (प्रेतकल्प) ग्रन्थ को रख कर भगवान श्री विष्णु का पूजन करें। अब सामने गोबर के ऊपर एक कलश रख एक बत्ती लगा दीपक या गोबर उपलब्ध न हो तो कलश में आटा से दीपक बनवाकर एक बत्ती दीपक यमराज भगवान के निमित्त जला देवें और यमराज जी का ध्यान व पूजन करें।इसके बाद गरुडपुराण-सारोद्धार (प्रेतकल्प) की कथा सुनावें व अन्त में आरती कर सभी को तुलसी व गंगाजल प्रसाद रूप से बांटे। गरुडपुराण-सारोद्धार(प्रेतकल्प)अध्याय १-१६ तक श्लोक व हिंदी भावार्थ सहित आने वाले अंकों में देखें।